Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 473

Page 473

ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਵਡਾ ਕਰਿ ਸਾਲਾਹੀਐ ਜਿਸੁ ਵਿਚਿ ਵਡੀਆ ਵਡਿਆਈਆ ॥ जिस सतगुरु में महान् गुण उपस्थित हैं, उसे बड़ा मानकर उसी की स्तुति करनी चाहिए।
ਸਹਿ ਮੇਲੇ ਤਾ ਨਦਰੀ ਆਈਆ ॥ भगवान की कृपा से सतगुरु मिल जाए तो वह सतगुरु की बड़ाई को देखता है।
ਜਾ ਤਿਸੁ ਭਾਣਾ ਤਾ ਮਨਿ ਵਸਾਈਆ ॥ जब उसे अच्छा लगता है तो वह मनुष्य के मन में बसा देता है।
ਕਰਿ ਹੁਕਮੁ ਮਸਤਕਿ ਹਥੁ ਧਰਿ ਵਿਚਹੁ ਮਾਰਿ ਕਢੀਆ ਬੁਰਿਆਈਆ ॥ ईश्वर की आज्ञा हो तो सतगुरु मनुष्य के मस्तक पर हाथ रखकर तमाम बुराइयाँ निकाल कर फेंक देता है।
ਸਹਿ ਤੁਠੈ ਨਉ ਨਿਧਿ ਪਾਈਆ ॥੧੮॥ जब प्रभु प्रसन्न हो जाए तो नवनिधियाँ प्राप्त हो जाती हैं॥ १८ ॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥ श्लोक महला १ ॥
ਪਹਿਲਾ ਸੁਚਾ ਆਪਿ ਹੋਇ ਸੁਚੈ ਬੈਠਾ ਆਇ ॥ पहले ब्राह्मण आप निर्मल होकर पवित्र चौके पर बैठ जाता है।
ਸੁਚੇ ਅਗੈ ਰਖਿਓਨੁ ਕੋਇ ਨ ਭਿਟਿਓ ਜਾਇ ॥ शुद्ध भोजन जिसे किसी ने स्पर्श नहीं किया होता, उसके समक्ष लाकर परोसा जाता है।
ਸੁਚਾ ਹੋਇ ਕੈ ਜੇਵਿਆ ਲਗਾ ਪੜਣਿ ਸਲੋਕੁ ॥ इस तरह पवित्र होकर वह भोजन ग्रहण करता है और तब श्लोक पढ़ने लग जाता है।
ਕੁਹਥੀ ਜਾਈ ਸਟਿਆ ਕਿਸੁ ਏਹੁ ਲਗਾ ਦੋਖੁ ॥ उसने पवित्र भोजन को अपने पेट में अशुद्ध स्थान में डाल लिया, यह दोष किसे लगा है ?
ਅੰਨੁ ਦੇਵਤਾ ਪਾਣੀ ਦੇਵਤਾ ਬੈਸੰਤਰੁ ਦੇਵਤਾ ਲੂਣੁ ਪੰਜਵਾ ਪਾਇਆ ਘਿਰਤੁ ॥ ਤਾ ਹੋਆ ਪਾਕੁ ਪਵਿਤੁ ॥ अन्न, जल, अग्नि एवं नमक चारों ही देवता अर्थात् पवित्र पदार्थ हैं। जब पाँचवां पदार्थ घी डाल दिया जाता है तो शुद्ध एवं पवित्र भोजन बन जाता है।
ਪਾਪੀ ਸਿਉ ਤਨੁ ਗਡਿਆ ਥੁਕਾ ਪਈਆ ਤਿਤੁ ॥ देवताओं की तरह पवित्र भोजन पापी तन के संयोग से अपवित्र हो जाता है और उस पर फिर थूका जाता है।
ਜਿਤੁ ਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਨ ਊਚਰਹਿ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਰਸ ਖਾਹਿ ॥ हे नानक ! वह मुँह जो नाम का उच्चारण नहीं करता और नाम के बिना रसों का भोग करता है,
ਨਾਨਕ ਏਵੈ ਜਾਣੀਐ ਤਿਤੁ ਮੁਖਿ ਥੁਕਾ ਪਾਹਿ ॥੧॥ यूं समझ लीजिए कि उस मुँह पर थूक ही पड़ता है॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥ महला १॥
ਭੰਡਿ ਜੰਮੀਐ ਭੰਡਿ ਨਿੰਮੀਐ ਭੰਡਿ ਮੰਗਣੁ ਵੀਆਹੁ ॥ नारी जन्मदात्री है, उसी के माध्यम से मनुष्य गर्भ में से जन्म लेता है, उसी के माध्यम से प्राणी का शरीर बनता है। नारी से ही उसकी सगाई एवं विवाह होता है।
ਭੰਡਹੁ ਹੋਵੈ ਦੋਸਤੀ ਭੰਡਹੁ ਚਲੈ ਰਾਹੁ ॥ नारी से ही मनुष्य दोस्ती करता है और नारी द्वारा ही दुनिया की उत्पत्ति का मार्ग जारी रहता है।
ਭੰਡੁ ਮੁਆ ਭੰਡੁ ਭਾਲੀਐ ਭੰਡਿ ਹੋਵੈ ਬੰਧਾਨੁ ॥ यदि किसी मनुष्य की पत्नी मर जाती है तो वह दूसरी स्त्री की खोज करता है। नारी से ही उसका दूसरों से रिश्ता बनता है।
ਸੋ ਕਿਉ ਮੰਦਾ ਆਖੀਐ ਜਿਤੁ ਜੰਮਹਿ ਰਾਜਾਨ ॥ फिर उस नारी को क्यों बुरा कहें ? जिसने बड़े-बड़े राजा महाराजा एवं महापुरुषों को जन्म दिया है।
ਭੰਡਹੁ ਹੀ ਭੰਡੁ ਊਪਜੈ ਭੰਡੈ ਬਾਝੁ ਨ ਕੋਇ ॥ नारी से ही नारी पैदा होती है और नारी के बिना कोई भी पैदा नहीं हो सकता।
ਨਾਨਕ ਭੰਡੈ ਬਾਹਰਾ ਏਕੋ ਸਚਾ ਸੋਇ ॥ किन्तु हे नानक ! केवल एक परमात्मा ही नारी के बिना अयोनि में है।
ਜਿਤੁ ਮੁਖਿ ਸਦਾ ਸਾਲਾਹੀਐ ਭਾਗਾ ਰਤੀ ਚਾਰਿ ॥ जिस मुख से सदा ही प्रभु की गुणस्तुति होती है, वह भाग्यशाली एवं सुन्दर है।
ਨਾਨਕ ਤੇ ਮੁਖ ਊਜਲੇ ਤਿਤੁ ਸਚੈ ਦਰਬਾਰਿ ॥੨॥ हे नानक ! वह मुख उस सत्य प्रभु के दरबार में उज्ज्वल होता है।॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥
ਸਭੁ ਕੋ ਆਖੈ ਆਪਣਾ ਜਿਸੁ ਨਾਹੀ ਸੋ ਚੁਣਿ ਕਢੀਐ ॥ हे प्रभु ! सभी तुझे अपना स्वामी कहते हैं लेकिन जिसका तू नहीं है, उसे चुनकर बाहर निकाल दिया जाता है।
ਕੀਤਾ ਆਪੋ ਆਪਣਾ ਆਪੇ ਹੀ ਲੇਖਾ ਸੰਢੀਐ ॥ हर किसी प्राणी ने अपने कर्मों का फल भोगना है और अपना लेखा-जोखा चुकाना है।
ਜਾ ਰਹਣਾ ਨਾਹੀ ਐਤੁ ਜਗਿ ਤਾ ਕਾਇਤੁ ਗਾਰਬਿ ਹੰਢੀਐ ॥ यदि मनुष्य ने इस जगत में सदा नहीं रहना तो वह क्यों अभिमान करे।
ਮੰਦਾ ਕਿਸੈ ਨ ਆਖੀਐ ਪੜਿ ਅਖਰੁ ਏਹੋ ਬੁਝੀਐ ॥ ਮੂਰਖੈ ਨਾਲਿ ਨ ਲੁਝੀਐ ॥੧੯॥ किसी को भी बुरा मत कहो और विद्या पढ़कर इस बात को समझना चाहिए। मूर्खों से कदापि झगड़ा नहीं करना चाहिए ॥१९॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥ श्लोक महला १॥
ਨਾਨਕ ਫਿਕੈ ਬੋਲਿਐ ਤਨੁ ਮਨੁ ਫਿਕਾ ਹੋਇ ॥ हे नानक ! फीका बोलने से तन-मन दोनों ही फीके (शुष्क) हो जाते हैं।
ਫਿਕੋ ਫਿਕਾ ਸਦੀਐ ਫਿਕੇ ਫਿਕੀ ਸੋਇ ॥ कड़वा बोलने वाला दुनिया में कटुभाषी ही मशहूर हो जाता है और लोग भी उसके कड़वे वचनों से ही याद करते हैं।
ਫਿਕਾ ਦਰਗਹ ਸਟੀਐ ਮੁਹਿ ਥੁਕਾ ਫਿਕੇ ਪਾਇ ॥ कड़वे स्वभाव वाला जीव प्रभु के दरबार में दुत्कार दिया जाता है और कटुभाषी के मुँह पर थूक ही पड़ता है।
ਫਿਕਾ ਮੂਰਖੁ ਆਖੀਐ ਪਾਣਾ ਲਹੈ ਸਜਾਇ ॥੧॥ कटुभाषी मनुष्य मूर्ख कहा जाता है और उसे दण्ड के तौर पर जूते पड़ते हैं।॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥ महला १॥
ਅੰਦਰਹੁ ਝੂਠੇ ਪੈਜ ਬਾਹਰਿ ਦੁਨੀਆ ਅੰਦਰਿ ਫੈਲੁ ॥ मन से झूठे पर बाहर से सत्यवादी होने का दिखावा करने वाले दुनिया में पाखण्ड ही बनाए रखते हैं।
ਅਠਸਠਿ ਤੀਰਥ ਜੇ ਨਾਵਹਿ ਉਤਰੈ ਨਾਹੀ ਮੈਲੁ ॥ चाहे वे अड़सठ तीर्थों का स्नान कर लें परन्तु फिर भी उनकी मन की मैल दूर नहीं होती।
ਜਿਨ੍ਹ੍ਹ ਪਟੁ ਅੰਦਰਿ ਬਾਹਰਿ ਗੁਦੜੁ ਤੇ ਭਲੇ ਸੰਸਾਰਿ ॥ इस दुनिया में वही लोग भले हैं, जिनके मन में रेश्म की तरह कोमलता है, चाहे बाहर से उन्होंने शरीर पर फटे-पुराने ही कपड़े पहने हुए हैं।
ਤਿਨ੍ਹ੍ਹ ਨੇਹੁ ਲਗਾ ਰਬ ਸੇਤੀ ਦੇਖਨ੍ਹ੍ਹੇ ਵੀਚਾਰਿ ॥ उनका भगवान से बहुत प्रेम है और उसके दर्शनों का ध्यान धारण करते हैं।
ਰੰਗਿ ਹਸਹਿ ਰੰਗਿ ਰੋਵਹਿ ਚੁਪ ਭੀ ਕਰਿ ਜਾਹਿ ॥ प्रभु के प्रेम में वे हँसते हैं, प्रेम में ही रोते हैं और चुप भी हो जाते हैं।
ਪਰਵਾਹ ਨਾਹੀ ਕਿਸੈ ਕੇਰੀ ਬਾਝੁ ਸਚੇ ਨਾਹ ॥ वह अपने सत्यस्वरूप परमेश्वर के अतिरिक्त किसी की भी परवाह नहीं करते।
ਦਰਿ ਵਾਟ ਉਪਰਿ ਖਰਚੁ ਮੰਗਾ ਜਬੈ ਦੇਇ ਤ ਖਾਹਿ ॥ भु-द्वार के मार्ग पर बैठे हुए वह भोजन की याचना करते हैं और जब वह देता है तो ही खाते ।
ਦੀਬਾਨੁ ਏਕੋ ਕਲਮ ਏਕਾ ਹਮਾ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾ ਮੇਲੁ ॥ परमात्मा की कचहरी एक है और एक ही उसकी जीवों की किस्मत लिखने की तूलिका है। हमारा और तुम्हारा वहाँ मेल होता है अर्थात् छोटे-बड़े का मेल होता है।
ਦਰਿ ਲਏ ਲੇਖਾ ਪੀੜਿ ਛੁਟੈ ਨਾਨਕਾ ਜਿਉ ਤੇਲੁ ॥੨॥ प्रभु के दरबार में कर्मों का लेखा-जोखा किया जाता है। हे नानक ! अपराधी मनुष्य कोल्हू में तेल वाले बीजों की तरह पीसे जाते हैं। २॥


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