Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 468

Page 468

ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟੇ ਸੋ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ॥ जो सतगुरु से मिलता है, उसे सुख प्राप्त होता है
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ॥ और हरि का नाम वह अपने मन में बसा लेता है।
ਨਾਨਕ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਸੋ ਪਾਏ ॥ हे नानक ! प्रभु की कृपा-दृष्टि से सब कुछ प्राप्त हो जाता है।
ਆਸ ਅੰਦੇਸੇ ਤੇ ਨਿਹਕੇਵਲੁ ਹਉਮੈ ਸਬਦਿ ਜਲਾਏ ॥੨॥ आशा-चिंता से वह निर्लिप्त हो जाता है और ब्रह्म-शब्द द्वारा वह अहंकार को जला देता है॥ २ ॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी॥
ਭਗਤ ਤੇਰੈ ਮਨਿ ਭਾਵਦੇ ਦਰਿ ਸੋਹਨਿ ਕੀਰਤਿ ਗਾਵਦੇ ॥ हे प्रभु ! तेरे मन को भक्त बहुत प्यारे लगते हैं, जो तेरे द्वार पर भजन-कीर्तन गाते हुए बहुत सुन्दर लगते हैं।
ਨਾਨਕ ਕਰਮਾ ਬਾਹਰੇ ਦਰਿ ਢੋਅ ਨ ਲਹਨ੍ਹ੍ਹੀ ਧਾਵਦੇ ॥ हे नानक ! भाग्यहीन लोगों को प्रभु की कृपा-दृष्टि के बिना उसके दर पर शरण नहीं मिलती और वे भटकते रहते हैं।
ਇਕਿ ਮੂਲੁ ਨ ਬੁਝਨ੍ਹ੍ਹਿ ਆਪਣਾ ਅਣਹੋਦਾ ਆਪੁ ਗਣਾਇਦੇ ॥ कुछ लोग अपने मूल (प्रभु) को नहीं पहचानते और व्यर्थ ही अपना अहंकार दिखाते हैं।
ਹਉ ਢਾਢੀ ਕਾ ਨੀਚ ਜਾਤਿ ਹੋਰਿ ਉਤਮ ਜਾਤਿ ਸਦਾਇਦੇ ॥ हे प्रभु! मैं निम्न जाति का तुच्छ मिस्त्री हूँ, शेष अपने आपको उत्तम जाति के कहलवाते हैं।
ਤਿਨ੍ਹ੍ਹ ਮੰਗਾ ਜਿ ਤੁਝੈ ਧਿਆਇਦੇ ॥੯॥ हे प्रभु! मैं उनकी संगति माँगता हूँ, जो तेरा ध्यान-मनन करते हैं।॥ ६॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥ श्लोक महला १॥
ਕੂੜੁ ਰਾਜਾ ਕੂੜੁ ਪਰਜਾ ਕੂੜੁ ਸਭੁ ਸੰਸਾਰੁ ॥ राजा झूठ है, प्रजा झूठ है यह सारा संसार ही झूठ है,
ਕੂੜੁ ਮੰਡਪ ਕੂੜੁ ਮਾੜੀ ਕੂੜੁ ਬੈਸਣਹਾਰੁ ॥ राजाओं के मंडप और महल झूठ एवं छल ही हैं,
ਕੂੜੁ ਸੁਇਨਾ ਕੂੜੁ ਰੁਪਾ ਕੂੜੁ ਪੈਨ੍ਹ੍ਹਣਹਾਰੁ ॥ सोना-चांदी झूठा है और इसे पहनने वाला कपट ही है।
ਕੂੜੁ ਕਾਇਆ ਕੂੜੁ ਕਪੜੁ ਕੂੜੁ ਰੂਪੁ ਅਪਾਰੁ ॥ यह काया, वस्त्र एवं अपार रूप सभी झूठे हैं।
ਕੂੜੁ ਮੀਆ ਕੂੜੁ ਬੀਬੀ ਖਪਿ ਹੋਏ ਖਾਰੁ ॥ पति और पत्नी का रिश्ता बहुत कम समय का है, जिसे दोनों ही वासनाओं में फंसकर बर्बाद करते हैं।
ਕੂੜਿ ਕੂੜੈ ਨੇਹੁ ਲਗਾ ਵਿਸਰਿਆ ਕਰਤਾਰੁ ॥ झूठा मनुष्य झूठ से प्रेम करता है और करतार प्रभु को विस्मृत कर देता है।
ਕਿਸੁ ਨਾਲਿ ਕੀਚੈ ਦੋਸਤੀ ਸਭੁ ਜਗੁ ਚਲਣਹਾਰੁ ॥ मैं किसके साथ दोस्ती करूं ? क्योंकि यह संसार नाशवान है।
ਕੂੜੁ ਮਿਠਾ ਕੂੜੁ ਮਾਖਿਉ ਕੂੜੁ ਡੋਬੇ ਪੂਰੁ ॥ झुठ मीठा गुड़ है, झूठ मीठा मधु है, झूठ ही झुण्डों के झुण्ड जीवों को नरक में डुबो रहा है।
ਨਾਨਕੁ ਵਖਾਣੈ ਬੇਨਤੀ ਤੁਧੁ ਬਾਝੁ ਕੂੜੋ ਕੂੜੁ ॥੧॥ नानक प्रभु के समक्ष प्रार्थना करता हुआ कहता है कि हे परम-सत्य ! तेरे बिना यह सारा संसार झूठा ही है॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥ महला १॥
ਸਚੁ ਤਾ ਪਰੁ ਜਾਣੀਐ ਜਾ ਰਿਦੈ ਸਚਾ ਹੋਇ ॥ सत्य तो तभी जाना जाता है यदि सत्य मनुष्य के हृदय में हो।
ਕੂੜ ਕੀ ਮਲੁ ਉਤਰੈ ਤਨੁ ਕਰੇ ਹਛਾ ਧੋਇ ॥ उसकी झूठ की मैल उतर जाती है और वह अपने तन को शुद्ध कर लेता है।
ਸਚੁ ਤਾ ਪਰੁ ਜਾਣੀਐ ਜਾ ਸਚਿ ਧਰੇ ਪਿਆਰ सत्य तो ही जाना जाता है यदि मनुष्य सत्य (प्रभु) से प्रेम करे।
ਨਾਉ ਸੁਣਿ ਮਨੁ ਰਹਸੀਐ ਤਾ ਪਾਏ ਮੋਖ ਦੁਆਰੁ ॥ जब प्रभु नाम को सुनकर मन प्रसन्न हो जाता है तो जीव मोक्ष द्वार प्राप्त कर लेता है।
ਸਚੁ ਤਾ ਪਰੁ ਜਾਣੀਐ ਜਾ ਜੁਗਤਿ ਜਾਣੈ ਜੀਉ ॥ सत्य का बोध तभी होता है यदि मनुष्य प्रभु-मिलन की युक्ति समझ लेता है।
ਧਰਤਿ ਕਾਇਆ ਸਾਧਿ ਕੈ ਵਿਚਿ ਦੇਇ ਕਰਤਾ ਬੀਉ ॥ शरीर रूपी धरती को संवार कर वह इसमें कर्ता प्रभु के नाम का बीज बो देता है।
ਸਚੁ ਤਾ ਪਰੁ ਜਾਣੀਐ ਜਾ ਸਿਖ ਸਚੀ ਲੇਇ ॥ सत्य तो ही जाना जा सकता है, जब वह सच्ची शिक्षा प्राप्त करता है।
ਦਇਆ ਜਾਣੈ ਜੀਅ ਕੀ ਕਿਛੁ ਪੁੰਨੁ ਦਾਨੁ ਕਰੇਇ ॥ वह जीवों पर दया करता है ओर यथाशक्ति अनुसार दान-पुण्य करता है।
ਸਚੁ ਤਾਂ ਪਰੁ ਜਾਣੀਐ ਜਾ ਆਤਮ ਤੀਰਥਿ ਕਰੇ ਨਿਵਾਸੁ ॥ सत्य तो ही जाना जा सकता है, जब वह अपनी आत्मा के तीर्थ-स्थान में निवास करता हो।
ਸਤਿਗੁਰੂ ਨੋ ਪੁਛਿ ਕੈ ਬਹਿ ਰਹੈ ਕਰੇ ਨਿਵਾਸੁ ॥ ॥ वह सतगुरु से पूछकर, उपदेश प्राप्त करके, बैठता एवं निवास करता है।
ਸਚੁ ਸਭਨਾ ਹੋਇ ਦਾਰੂ ਪਾਪ ਕਢੈ ਧੋਇ ॥ सत्य सबके लिए एक औषधि है, यह पाप को दूर करके बाहर निकाल देता है।
ਨਾਨਕੁ ਵਖਾਣੈ ਬੇਨਤੀ ਜਿਨ ਸਚੁ ਪਲੈ ਹੋਇ ॥੨॥ नानक उनके समक्ष विनती करता है, जिनके दामन में सत्य विद्यमान है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥
ਦਾਨੁ ਮਹਿੰਡਾ ਤਲੀ ਖਾਕੁ ਜੇ ਮਿਲੈ ਤ ਮਸਤਕਿ ਲਾਈਐ ॥ मेरा मन संतों की चरण-धूल का दान मांगता है, यदि यह मिल जाए तो मैं इसे अपने मस्तक पर लगाऊँ।
ਕੂੜਾ ਲਾਲਚੁ ਛਡੀਐ ਹੋਇ ਇਕ ਮਨਿ ਅਲਖੁ ਧਿਆਈਐ ॥ झूठा लालच छोड़कर हमें एक मन होकर भगवान का ध्यान करना चाहिए।
ਫਲੁ ਤੇਵੇਹੋ ਪਾਈਐ ਜੇਵੇਹੀ ਕਾਰ ਕਮਾਈਐ ॥ जैसा कर्म हम करते हैं वैसा ही फल हमें प्राप्त होता है।
ਜੇ ਹੋਵੈ ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਤਾ ਧੂੜਿ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹਾ ਦੀ ਪਾਈਐ ॥ यदि प्रारम्भ से ऐसा कर्म लिखा हो तो मनुष्य को संतों की चरणों की धूल प्राप्त हो जाती है।
ਮਤਿ ਥੋੜੀ ਸੇਵ ਗਵਾਈਐ ॥੧੦॥ अल्पबुद्धि के फलस्वरूप हम सेवा के फल को गंवा लेते हैं॥ १० ॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥ श्लोक महला १॥
ਸਚਿ ਕਾਲੁ ਕੂੜੁ ਵਰਤਿਆ ਕਲਿ ਕਾਲਖ ਬੇਤਾਲ ॥ अब सत्य का अकाल पड़ गया है अर्थात् सत्य लुप्त हो गया है एवं झूठ का प्रसार प्रचलित है, इस कलियुग की कालिख ने लोगों को बेताल बना दिया है।
ਬੀਉ ਬੀਜਿ ਪਤਿ ਲੈ ਗਏ ਅਬ ਕਿਉ ਉਗਵੈ ਦਾਲਿ ॥ जिन्होंने प्रभु-नाम का बीज बोया था वह मान-प्रतिष्ठा से (जगत से) गए हैं, परन्तु अब टूटा हुआ (नाम का) बीज कैसे अंकुरित हो सकता है ?
ਜੇ ਇਕੁ ਹੋਇ ਤ ਉਗਵੈ ਰੁਤੀ ਹੂ ਰੁਤਿ ਹੋਇ ॥ यदि बीज सम्पूर्ण हो और ऋतु भी सुहावनी हो तो यह अंकुरित हो सकता है।
ਨਾਨਕ ਪਾਹੈ ਬਾਹਰਾ ਕੋਰੈ ਰੰਗੁ ਨ ਸੋਇ ॥ हे नानक ! यदि लाग का प्रयोग न किया जाए तो नवीन वस्त्र रंगा नहीं जा सकता।
ਭੈ ਵਿਚਿ ਖੁੰਬਿ ਚੜਾਈਐ ਸਰਮੁ ਪਾਹੁ ਤਨਿ ਹੋਇ ॥ यदि शरीर पर लज्जा की लाग लगा दी जाए तो यह प्रभु के भय में पापों से धुलकर उज्ज्वल हो जाती है।
ਨਾਨਕ ਭਗਤੀ ਜੇ ਰਪੈ ਕੂੜੈ ਸੋਇ ਨ ਕੋਇ ॥੧॥ हे नानक ! यदि मनुष्य प्रभु-भक्ति से रंगा जाए तो झूठ इसे निकट भी स्पर्श नहीं कर सकता ॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥ महला १॥
ਲਬੁ ਪਾਪੁ ਦੁਇ ਰਾਜਾ ਮਹਤਾ ਕੂੜੁ ਹੋਆ ਸਿਕਦਾਰੁ ॥ लोभ एवं पाप दोनों ही राजा तथा मंत्री हैं और झूठ चौधरी बना बैठा है।
ਕਾਮੁ ਨੇਬੁ ਸਦਿ ਪੁਛੀਐ ਬਹਿ ਬਹਿ ਕਰੇ ਬੀਚਾਰੁ ॥ वासना उनके मुख्य सलाहकार की तरह है, वे उनसे सलाह मांगते हैं और फिर एक साथ बैठकर जनता को मूर्ख बनाने के विभिन्न तरीकों पर विचार-विमर्श करते हैं।
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