Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 461

Page 461

ਨਿਧਿ ਸਿਧਿ ਚਰਣ ਗਹੇ ਤਾ ਕੇਹਾ ਕਾੜਾ ॥ यदि निधियों, सिद्धियों के स्वामी प्रभु के चरण पकड़ लिए हैं तो अब कैसी चिंता हो सकती है।
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਵਸਿ ਜਿਸੈ ਸੋ ਪ੍ਰਭੂ ਅਸਾੜਾ ॥ जिसके वश में सब कुछ है वही मेरा प्रभु है।
ਗਹਿ ਭੁਜਾ ਲੀਨੇ ਨਾਮ ਦੀਨੇ ਕਰੁ ਧਾਰਿ ਮਸਤਕਿ ਰਾਖਿਆ ॥ मुझे भुजा से पकड़ कर उसने अपना नाम प्रदान किया है और मेरे माथे पर अपना हाथ रखकर मेरी रक्षा की है।
ਸੰਸਾਰ ਸਾਗਰੁ ਨਹ ਵਿਆਪੈ ਅਮਿਉ ਹਰਿ ਰਸੁ ਚਾਖਿਆ ॥ यह संसार-सागर मुझे प्रभावित नहीं करता, क्योंकि मैंने अमृत समान हरि रस चखा है।
ਸਾਧਸੰਗੇ ਨਾਮ ਰੰਗੇ ਰਣੁ ਜੀਤਿ ਵਡਾ ਅਖਾੜਾ ॥ सत्संगति एवं नाम के प्रेम द्वारा मैंने संसार की रणभूमि में बुराई पर विजय का बड़ा युद्ध जीत लिया है।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਸਰਣਿ ਸੁਆਮੀ ਬਹੁੜਿ ਜਮਿ ਨ ਉਪਾੜਾ ॥੪॥੩॥੧੨॥ नानक प्रार्थना करते हैं कि जगत के स्वामी प्रभु की शरण लेने से यमदूत दोबारा पीड़ित नहीं करते॥ ४॥ ३॥ १२॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु:५ ॥
ਦਿਨੁ ਰਾਤਿ ਕਮਾਇਅੜੋ ਸੋ ਆਇਓ ਮਾਥੈ ॥ मनुष्य दिन-रात जो भी शुभाशुभ कर्म करता है, वह उसके माथे पर लेख बन जाता है।
ਜਿਸੁ ਪਾਸਿ ਲੁਕਾਇਦੜੋ ਸੋ ਵੇਖੀ ਸਾਥੈ ॥ जिस परमात्मा से वह पापों को छिपाता है, वह उसके साथ ही बैठा उसके कर्मो को देख रहा है।
ਸੰਗਿ ਦੇਖੈ ਕਰਣਹਾਰਾ ਕਾਇ ਪਾਪੁ ਕਮਾਈਐ ॥ विश्व के रचयिता प्रभु उसके साथ है और उसके कर्मों को देखते हैं, फिर वह पाप कर्म क्यों करता है ?
ਸੁਕ੍ਰਿਤੁ ਕੀਜੈ ਨਾਮੁ ਲੀਜੈ ਨਰਕਿ ਮੂਲਿ ਨ ਜਾਈਐ ॥ यदि हम शुभ कर्म करें, प्रभु का नाम स्मरण करें तो कदापि नरक में नहीं जाएँगे।
ਆਠ ਪਹਰ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਿਮਰਹੁ ਚਲੈ ਤੇਰੈ ਸਾਥੇ ॥ हे मानव ! आठ प्रहर हरि के नाम का भजन करते रहो, क्योंकि यही तेरे साथ जाएगा।
ਭਜੁ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਸਦਾ ਨਾਨਕ ਮਿਟਹਿ ਦੋਖ ਕਮਾਤੇ ॥੧॥ हे नानक ! सत्संगति में सदा प्रभु का भजन करते रहो, तेरे किए हुए पाप कर्म मिट जाएँगे।॥ १॥
ਵਲਵੰਚ ਕਰਿ ਉਦਰੁ ਭਰਹਿ ਮੂਰਖ ਗਾਵਾਰਾ ॥ हे मूर्ख गंवार ! तू छल-कपट करके अपना पेट भरता है।
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਦੇ ਰਹਿਆ ਹਰਿ ਦੇਵਣਹਾਰਾ ॥ दाता प्रभु तुझे सब कुछ दिए जा रहे हैं।
ਦਾਤਾਰੁ ਸਦਾ ਦਇਆਲੁ ਸੁਆਮੀ ਕਾਇ ਮਨਹੁ ਵਿਸਾਰੀਐ ॥ सबके दाता स्वामी सदा ही दयालु है तो फिर हम अपने मन से उसे क्यों विस्मृत करें ?
ਮਿਲੁ ਸਾਧਸੰਗੇ ਭਜੁ ਨਿਸੰਗੇ ਕੁਲ ਸਮੂਹਾ ਤਾਰੀਐ ॥ साधु की संगति में मिलकर निर्भय होकर प्रभु का भजन करते रहो, इस तरह तेरी समूह कुल का उद्धार हो जाएगा।
ਸਿਧ ਸਾਧਿਕ ਦੇਵ ਮੁਨਿ ਜਨ ਭਗਤ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰਾ ॥ प्रभु-नाम ही सिद्ध, साधक, देवतों, मुनिजन एवं भक्तों का आधार है।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਸਦਾ ਭਜੀਐ ਪ੍ਰਭੁ ਏਕੁ ਕਰਣੈਹਾਰਾ ॥੨॥ नानक प्रार्थना करते हैं कि प्रभु ही सृष्टि के रचयिता हैं इसलिए सदा उसी का भजन करना चाहिए॥ २॥
ਖੋਟੁ ਨ ਕੀਚਈ ਪ੍ਰਭੁ ਪਰਖਣਹਾਰਾ ॥ हे जीव ! किसी से छल-कपट मत कर, क्योंकि प्रभु ही परख करने वाले हैं।
ਕੂੜੁ ਕਪਟੁ ਕਮਾਵਦੜੇ ਜਨਮਹਿ ਸੰਸਾਰਾ ॥ जो झूठ एवं कपट के कर्म करते हैं, वे इस संसार में दोबारा जन्म लेते हैं।
ਸੰਸਾਰੁ ਸਾਗਰੁ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹੀ ਤਰਿਆ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹੀ ਏਕੁ ਧਿਆਇਆ ॥ जिसने एक ईश्वर का सिमरन किया है, वह इस संसार-सागर से पार हो गया है।
ਤਜਿ ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਅਨਿੰਦ ਨਿੰਦਾ ਪ੍ਰਭ ਸਰਣਾਈ ਆਇਆ ॥ वह काम, क्रोध एवं लोगों की निन्दा करना त्याग कर प्रभु की शरण में आ गया है।
ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਰਵਿਆ ਸੁਆਮੀ ਊਚ ਅਗਮ ਅਪਾਰਾ ॥ सर्वोच्च, अगम्य एवं अपार दुनिया का मालिक जल, धरती एवं गगन में सर्वव्यापक है।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਟੇਕ ਜਨ ਕੀ ਚਰਣ ਕਮਲ ਅਧਾਰਾ ॥੩॥ नानक प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर अपने भक्तजनों का आश्रय हैं और उसके चरण-कमल ही उनका आधार है॥ ३॥
ਪੇਖੁ ਹਰਿਚੰਦਉਰੜੀ ਅਸਥਿਰੁ ਕਿਛੁ ਨਾਹੀ ॥ हे प्राणी ! देख, यह जगत् राजा हरिचंद की नगरी के समान है और कोई भी वस्तु स्थिर नहीं।
ਮਾਇਆ ਰੰਗ ਜੇਤੇ ਸੇ ਸੰਗਿ ਨ ਜਾਹੀ ॥ जितने भी माया के रंग हैं, वे प्राणी के संग नहीं जाते।
ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਸਾਥੀ ਸਦਾ ਤੇਰੈ ਦਿਨਸੁ ਰੈਣਿ ਸਮਾਲੀਐ ॥ केवल हरि ही तेरा साथी है जो सदा तेरे साथ है, इसलिए दिन-रात उसका भजन करते रहो।
ਹਰਿ ਏਕ ਬਿਨੁ ਕਛੁ ਅਵਰੁ ਨਾਹੀ ਭਾਉ ਦੁਤੀਆ ਜਾਲੀਐ ॥ हरि के बिना दूसरा कोई भी तेरा नहीं, इसलिए तुझे द्वैतभाव को जला देना चाहिए।
ਮੀਤੁ ਜੋਬਨੁ ਮਾਲੁ ਸਰਬਸੁ ਪ੍ਰਭੁ ਏਕੁ ਕਰਿ ਮਨ ਮਾਹੀ ॥ अपने मन में समझ ले कि एक प्रभु ही तेरा मित्र, तेरा यौवन, तेरा धन एवं सर्वस्व है।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕੁ ਵਡਭਾਗਿ ਪਾਈਐ ਸੂਖਿ ਸਹਜਿ ਸਮਾਹੀ ॥੪॥੪॥੧੩॥ नानक प्रार्थना करते हैं कि किस्मत से जो मनुष्य प्रभु को पा लेता है, वह सहज सुख में समा जाता है॥ ४॥ ४॥ १३॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ਛੰਤ ਘਰੁ ੮ राग आसा, पंचम गुरु, छंद, आठवीं ताल: ८
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਕਮਲਾ ਭ੍ਰਮ ਭੀਤਿ ਕਮਲਾ ਭ੍ਰਮ ਭੀਤਿ ਹੇ ਤੀਖਣ ਮਦ ਬਿਪਰੀਤਿ ਹੇ ਅਵਧ ਅਕਾਰਥ ਜਾਤ ॥ कमला (माया) भ्रम की दीवार है, यह भ्रम की दीवार बड़ी तीक्ष्ण है और इसका नशा विपरीत करने वाला है, इससे जुड़ कर मानव-जन्म व्यर्थ ही चला जाता है।
ਗਹਬਰ ਬਨ ਘੋਰ ਗਹਬਰ ਬਨ ਘੋਰ ਹੇ ਗ੍ਰਿਹ ਮੂਸਤ ਮਨ ਚੋਰ ਹੇ ਦਿਨਕਰੋ ਅਨਦਿਨੁ ਖਾਤ ॥ यह माया घना और भयंकर वन है, मन रूपी चोर घर को लूटते जा रहे हैं और दिनकर (सूर्य) हमारी आयु नित्य खाए जा रहे हैं।
ਦਿਨ ਖਾਤ ਜਾਤ ਬਿਹਾਤ ਪ੍ਰਭ ਬਿਨੁ ਮਿਲਹੁ ਪ੍ਰਭ ਕਰੁਣਾ ਪਤੇ ॥ हे करुणापति प्रभु ! मुझे मिलो। आपके बिना यह जीवन के दिन बीतते जा रहे हैं और जीवन गुजरता जा रहा है,


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