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ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਿਆ ਆਰਾਧਿਆ ਮੁਖਿ ਮਸਤਕਿ ਭਾਗੁ ਸਭਾਗਾ ॥
जिस मनुष्य के मुख एवं मस्तक पर सौभाग्य लिखा हुआ है, वह हरि-परमेश्वर का नाम जपता एवं आराधना करता है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ਮਨਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਮੀਠਾ ਲਾਇ ਜੀਉ ॥
ईश्वर ने नानक पर कृपा धारण की है और उसके मन को हरि-प्रभु मीठा लगने लगा है।
ਹਰਿ ਦਇਆ ਪ੍ਰਭ ਧਾਰਹੁ ਪਾਖਣ ਹਮ ਤਾਰਹੁ ਕਢਿ ਲੇਵਹੁ ਸਬਦਿ ਸੁਭਾਇ ਜੀਉ ॥੪॥੫॥੧੨॥
हे हरि-प्रभु ! दया करो, हम पत्थरों को पार लगा दो और अपने शब्द द्वारा सहजता से हमें दुनिया के मोह से निकाल लो॥ ४॥ ५॥ १२॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੪ ॥
राग आसा, चौथे गुरु: ४ ॥
ਮਨਿ ਨਾਮੁ ਜਪਾਨਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਮਨਿ ਭਾਨਾ ਹਰਿ ਭਗਤ ਜਨਾ ਮਨਿ ਚਾਉ ਜੀਉ ॥
भक्तजन अपने मन में भगवान् का नाम जपते हैं, उन्हें भगवान् का हरि-नाम मन में बहुत प्यारा लगता है, हरि के भक्तजनों में नाम जपने का ही चाव बना रहता है।
ਜੋ ਜਨ ਮਰਿ ਜੀਵੇ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਵੇ ਮਨਿ ਲਾਗਾ ਗੁਰਮਤਿ ਭਾਉ ਜੀਉ ॥
जो भक्त गुरु की शिक्षाओं का पालन करते हैं और भगवान् के प्रेम से परिपूर्ण रहते हैं, वे नाम के अमृत का सेवन कर आत्म-दंभ त्यागते हुए आध्यात्मिक रूप से जीवित रहते हैं।
ਮਨਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਭਾਉ ਗੁਰੁ ਕਰੇ ਪਸਾਉ ਜੀਵਨ ਮੁਕਤੁ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥
जिन पर गुरु की कृपा होती है, उनके मन में भगवान् का प्रेम खिल उठता है। वे सांसारिक कर्तव्यों का पालन करते हुए भी बंधनों से मुक्त होकर शांति से रहते हैं।
ਜੀਵਣਿ ਮਰਣਿ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸੁਹੇਲੇ ਮਨਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਿਰਦੈ ਸੋਈ ॥
हरि के नाम द्वारा उनका जीवन मरण सुखी बन जाता है और उनके मन एवं हृदय में परमात्मा ही निवास करता है।
ਮਨਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਵਸਿਆ ਗੁਰਮਤਿ ਹਰਿ ਰਸਿਆ ਹਰਿ ਹਰਿ ਰਸ ਗਟਾਕ ਪੀਆਉ ਜੀਉ ॥
जिन पर गुरु की कृपा होती है, उनके मन में भगवान् का प्रेम खिल उठता है। वे सांसारिक कर्तव्यों का पालन करते हुए भी बंधनों से मुक्त होकर शांति से रहते हैं।
ਮਨਿ ਨਾਮੁ ਜਪਾਨਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਮਨਿ ਭਾਨਾ ਹਰਿ ਭਗਤ ਜਨਾ ਮਨਿ ਚਾਉ ਜੀਉ ॥੧॥
भक्तजन तो अपने मन में भगवान् का नाम ही जपते रहते हैं, उन्हें भगवान् का हरि-नाम मन में बहुत भाता है, हरि के भक्तजनों में हरि-नाम जपने की तीव्र लालसा बनी रहती है॥ १॥
ਜਗਿ ਮਰਣੁ ਨ ਭਾਇਆ ਨਿਤ ਆਪੁ ਲੁਕਾਇਆ ਮਤ ਜਮੁ ਪਕਰੈ ਲੈ ਜਾਇ ਜੀਉ ॥
जगत में किसी भी प्राणी को मृत्यु अच्छी नहीं लगती, वे अपने आपको छिपाकर रखते हैं कि कहीं यमराज उन्हें पकड़ कर न ले जाए।
ਹਰਿ ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਏਕੋ ਇਹੁ ਜੀਅੜਾ ਰਖਿਆ ਨ ਜਾਇ ਜੀਉ ॥
हरि-प्रभु जीवों के भीतर एवं बाहर दुनिया में हर जगह बसता है, यह प्राण उस प्रभु से छिपाकर नहीं रखे जा सकते।
ਕਿਉ ਜੀਉ ਰਖੀਜੈ ਹਰਿ ਵਸਤੁ ਲੋੜੀਜੈ ਜਿਸ ਕੀ ਵਸਤੁ ਸੋ ਲੈ ਜਾਇ ਜੀਉ ॥
कोई अपनी आत्मा को कैसे बचा सकता है, जब वह ईश्वर की है और ईश्वर जब चाहे इसे वापस ले सकता है?
ਮਨਮੁਖ ਕਰਣ ਪਲਾਵ ਕਰਿ ਭਰਮੇ ਸਭਿ ਅਉਖਧ ਦਾਰੂ ਲਾਇ ਜੀਉ ॥
मनमुख मनुष्य पीड़ित होकर चिल्लाता हुआ भटकता है एवं सर्व प्रकार की औषधि करता रहता है।
ਜਿਸ ਕੀ ਵਸਤੁ ਪ੍ਰਭੁ ਲਏ ਸੁਆਮੀ ਜਨ ਉਬਰੇ ਸਬਦੁ ਕਮਾਇ ਜੀਉ ॥
यह प्राण जिस भगवान् की वस्तु है उसे ले जाता है, लेकिन भक्तजन शब्द की कमाई द्वारा संसार-सागर से पार हो जाते हैं।
ਜਗਿ ਮਰਣੁ ਨ ਭਾਇਆ ਨਿਤ ਆਪੁ ਲੁਕਾਇਆ ਮਤ ਜਮੁ ਪਕਰੈ ਲੈ ਜਾਇ ਜੀਉ ॥੨॥
जगत् में किसी भी मनुष्य को मृत्यु अच्छी नहीं लगती, वह नित्य अपने आपको छिपाकर रखता है कि कहीं यमदूत उसे पकड़ कर न ले जाए॥ २॥
ਧੁਰਿ ਮਰਣੁ ਲਿਖਾਇਆ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੋਹਾਇਆ ਜਨ ਉਬਰੇ ਹਰਿ ਹਰਿ ਧਿਆਨਿ ਜੀਉ ॥
गुरुमुखों को प्रारम्भ से लिखी हुई मृत्यु भी सुन्दरं लगी है, भक्तजन परमात्मा का ध्यान करके भवसागर में डूबने से बच गए हैं।
ਹਰਿ ਸੋਭਾ ਪਾਈ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਵਡਿਆਈ ਹਰਿ ਦਰਗਹ ਪੈਧੇ ਜਾਨਿ ਜੀਉ ॥
उन्होंने हरि-नाम द्वारा हरि के दर पर शोभा एवं बड़ाई प्राप्त की है, उन्होंने हरि के दरबार में जाकर अपना जन्म सफल कर लिया है।
ਹਰਿ ਦਰਗਹ ਪੈਧੇ ਹਰਿ ਨਾਮੈ ਸੀਧੇ ਹਰਿ ਨਾਮੈ ਤੇ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥
भगवान् के नाम का ध्यान करने से व्यक्ति दिव्य शांति का अनुभव करता है, अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को प्राप्त करता है, और अंततः ईश्वर की उपस्थिति में सम्मानित होता है।
ਜਨਮ ਮਰਣ ਦੋਵੈ ਦੁਖ ਮੇਟੇ ਹਰਿ ਰਾਮੈ ਨਾਮਿ ਸਮਾਇਆ ॥
उनका जन्म-मरण दोनों का दुःख मिट जाता है और वे परमात्मा के नाम में ही समा जाते हैं।
ਹਰਿ ਜਨ ਪ੍ਰਭੁ ਰਲਿ ਏਕੋ ਹੋਏ ਹਰਿ ਜਨ ਪ੍ਰਭੁ ਏਕ ਸਮਾਨਿ ਜੀਉ ॥
भक्तजन एवं प्रभु मिलकर एक रूप हो गए हैं, अतः भक्तजन एवं प्रभु एक समान ही हैं।
ਧੁਰਿ ਮਰਣੁ ਲਿਖਾਇਆ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੋਹਾਇਆ ਜਨ ਉਬਰੇ ਹਰਿ ਹਰਿ ਧਿਆਨਿ ਜੀਉ ॥੩॥
गुरुमुखों को प्रारम्भ से लिखी हुई मृत्यु भी सुन्दर लगी है, भक्तजन परमात्मा का ध्यान करके भवसागर से बच गए हैं।॥ ३॥
ਜਗੁ ਉਪਜੈ ਬਿਨਸੈ ਬਿਨਸਿ ਬਿਨਾਸੈ ਲਗਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਅਸਥਿਰੁ ਹੋਇ ਜੀਉ ॥
दुनिया उत्पन्न होती है और नाश हो जाती है और सदैव ही दुनिया का विनाश होता रहता है लेकिन गुरु द्वारा इन्सान स्थिर हो जाता है।
ਗੁਰੁ ਮੰਤ੍ਰੁ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ਹਰਿ ਰਸਕਿ ਰਸਾਏ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਹਰਿ ਮੁਖਿ ਚੋਇ ਜੀਉ ॥
गुरु जब भगवान् के नाम का मंत्र देते हैं, तो वह अमृत बनकर शिष्य के भीतर प्रवाहित होता है और दिव्य रस से उसका अंतःकरण भर जाता है।
ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸੁ ਪਾਇਆ ਮੁਆ ਜੀਵਾਇਆ ਫਿਰਿ ਬਾਹੁੜਿ ਮਰਣੁ ਨ ਹੋਈ ॥
प्रभु के अमर कर देने वाले अमृत रस को पाकर मृत प्राणी जीवित हो जाता है और वह फिर दोबारा नहीं मरता।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅਮਰ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਵੈ ਸੋਈ ॥
हरि-परमेश्वर के नाम से मनुष्य अमर पद प्राप्त कर लेता है और हरि के नाम में ही समा जाता है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ਟੇਕ ਹੈ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ਜੀਉ ॥
परमात्मा का नाम ही नानक का जीवनाधार एवं आश्रय है और नाम के बिना उसका कोई भी सहारा नहीं।
ਜਗੁ ਉਪਜੈ ਬਿਨਸੈ ਬਿਨਸਿ ਬਿਨਾਸੈ ਲਗਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਅਸਥਿਰੁ ਹੋਇ ਜੀਉ ॥੪॥੬॥੧੩॥
जीव संसार में बार-बार जन्म-मरण को भुगतता है, लेकिन गुरु की शिक्षा से भगवान का ध्यान करके वह माया से मुक्त हो सकता है। ॥ ४ ॥ ६॥ १३॥