Guru Granth Sahib Translation Project

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Page 42

ਓਨੀ ਚਲਣੁ ਸਦਾ ਨਿਹਾਲਿਆ ਹਰਿ ਖਰਚੁ ਲੀਆ ਪਤਿ ਪਾਇ ॥ वह सदैव मृत्यु को अपने नेत्रों के समक्ष रखते हैं और प्रवास हेतु व्यय के लिए परमेश्वर के नाम की राशि एकत्र करते हैं, जिससे इहलोक और परलोक दोनों लोकों में उन्हें मान-यश प्राप्त होता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਦਰਗਹ ਮੰਨੀਅਹਿ ਹਰਿ ਆਪਿ ਲਏ ਗਲਿ ਲਾਇ ॥੨॥ गुरमुख जीवों की प्रभु के दरबार में भरपूर प्रशंसा होती है। ईश्वर इन जीवों को आलिंगन में ले लेता है॥ २॥
ਗੁਰਮੁਖਾ ਨੋ ਪੰਥੁ ਪਰਗਟਾ ਦਰਿ ਠਾਕ ਨ ਕੋਈ ਪਾਇ ॥ गुरमुख जीवों हेतु यह मार्ग प्रत्यक्ष है। ईश्वर के दरबार में प्रवेश करने में कोई बाधा नहीं आती।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਲਾਹਨਿ ਨਾਮੁ ਮਨਿ ਨਾਮਿ ਰਹਨਿ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥ वे सदैव हरिनाम का यशगान करते हैं, उनके नाम में चित्त को भीतर रखते हैं तथा नित्य हरिनाम के यश में लिवलीन रहते हैं।
ਅਨਹਦ ਧੁਨੀ ਦਰਿ ਵਜਦੇ ਦਰਿ ਸਚੈ ਸੋਭਾ ਪਾਇ ॥੩॥ प्रभु के दर पर अनाहत ध्वनि होती है, जो गुरमुख प्राणी प्रभु आश्रय में पहुँचते हैं तथा प्रभु के सच्चे दरबार में सम्मान प्राप्त करते हैं।॥ ३॥
ਜਿਨੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਸਲਾਹਿਆ ਤਿਨਾ ਸਭ ਕੋ ਕਹੈ ਸਾਬਾਸਿ ॥ जो गुरमुख प्राणी गुरुओं द्वारा प्रभु का यशोगान करते हैं, उन्हें सबकी प्रशंसा प्राप्त होती है।
ਤਿਨ ਕੀ ਸੰਗਤਿ ਦੇਹਿ ਪ੍ਰਭ ਮੈ ਜਾਚਿਕ ਕੀ ਅਰਦਾਸਿ ॥ हे मेरे परमेश्वर ! मुझे उन पवित्र आत्माओं की संगति प्रदान करो, मैं तेरा याचक यही वंदना करता हूँ।
ਨਾਨਕ ਭਾਗ ਵਡੇ ਤਿਨਾ ਗੁਰਮੁਖਾ ਜਿਨ ਅੰਤਰਿ ਨਾਮੁ ਪਰਗਾਸਿ ॥੪॥੩੩॥੩੧॥੬॥੭੦॥ हे नानक ! उन गुरमुख प्राणियों के बड़े सौभाग्य हैं, जिनके हृदय के भीतर भगवान के नाम का प्रकाश उज्ज्वल है ॥४॥३३॥३१॥६॥७०॥
ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੧ ॥ श्रीरागु महला ५ घरु १ ॥
ਕਿਆ ਤੂ ਰਤਾ ਦੇਖਿ ਕੈ ਪੁਤ੍ਰ ਕਲਤ੍ਰ ਸੀਗਾਰ ॥ हे मूर्ख ! तुम अपने पुत्रों, स्त्री व सांसारिक पदार्थों को देखकर इतने मुग्ध क्यों हो रहे हो ?
ਰਸ ਭੋਗਹਿ ਖੁਸੀਆ ਕਰਹਿ ਮਾਣਹਿ ਰੰਗ ਅਪਾਰ ॥ तू संसार के विभिन्न रस भोग रहा है, हर्ष, आनंद तथा अनंत स्वादों में रत हो।
ਬਹੁਤੁ ਕਰਹਿ ਫੁਰਮਾਇਸੀ ਵਰਤਹਿ ਹੋਇ ਅਫਾਰ ॥ तुम बहुत सारे आदेश प्रदान करते हो और लोगों से अहंभाव से व्यवहार करते हो।
ਕਰਤਾ ਚਿਤਿ ਨ ਆਵਈ ਮਨਮੁਖ ਅੰਧ ਗਵਾਰ ॥੧॥ कर्ता-पुरुष परमात्मा तुझे स्मरण नहीं होता, इसलिए तुम मनमुख, अज्ञानी एवं गंवार हो।॥१॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਸੁਖਦਾਤਾ ਹਰਿ ਸੋਇ ॥ हे मेरे मन ! वास्तविक सुख-समृद्धि प्रदान करने वाला वह भगवान है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਪਾਈਐ ਕਰਮਿ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मनुष्य के सुकर्मों द्वारा ही उसे गुरु मिलता है और गुरु की अपार कृपा से ही परमेश्वर प्राप्त होता है।॥१॥ रहाउ॥
ਕਪੜਿ ਭੋਗਿ ਲਪਟਾਇਆ ਸੁਇਨਾ ਰੁਪਾ ਖਾਕੁ ॥ हे मूर्ख ! तुम सुन्दर वस्त्र पहनने, नाना प्रकार के व्यंजन सेवन करने तथा सोने-चांदी के आभूषण व सम्पति इत्यादि एकत्र करने में लगे हो।
ਹੈਵਰ ਗੈਵਰ ਬਹੁ ਰੰਗੇ ਕੀਏ ਰਥ ਅਥਾਕ ॥ तुम अश्व, हाथी तथा अनेक प्रकार के रथ इत्यादि तुम्हारे पास हैं। वह न थकने वाली गाड़ियों जमा करता है।
ਕਿਸ ਹੀ ਚਿਤਿ ਨ ਪਾਵਹੀ ਬਿਸਰਿਆ ਸਭ ਸਾਕ ॥ तुम इस वैभव में इतना खो गए हो कि तुमने अपने समस्त सगे-संबंधियों की भी उपेक्षा कर दी है भाव उन्हें भूल बैठे हो।
ਸਿਰਜਣਹਾਰਿ ਭੁਲਾਇਆ ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਨਾਪਾਕ ॥੨॥ उसने इस सृष्टि के रचनाकार प्रभु को विस्मृत कर दिया है और उस प्रभु नाम के बिना वह अपवित्र है॥ २॥
ਲੈਦਾ ਬਦ ਦੁਆਇ ਤੂੰ ਮਾਇਆ ਕਰਹਿ ਇਕਤ ॥ लोगों की बद-दुआएँ ले-लेकर तुमने इतनी धनराशि जमा कर ली है।
ਜਿਸ ਨੋ ਤੂੰ ਪਤੀਆਇਦਾ ਸੋ ਸਣੁ ਤੁਝੈ ਅਨਿਤ ॥ जिन संबंधियों की प्रसन्नता हेतु तुम यह सब करते हो, वे भी तुम्हारे सहित नश्वर हैं।
ਅਹੰਕਾਰੁ ਕਰਹਿ ਅਹੰਕਾਰੀਆ ਵਿਆਪਿਆ ਮਨ ਕੀ ਮਤਿ ॥ हे अहंकारी मनुष्य ! तुम अभिमान करते हो तथा धमण्ड में लीन होकर मन-मति पर चलते हो।
ਤਿਨਿ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪਿ ਭੁਲਾਇਆ ਨਾ ਤਿਸੁ ਜਾਤਿ ਨ ਪਤਿ ॥੩॥ जिस प्राणी ने कुमार्ग पर चलकर प्रभु को विस्मृत कर दिया है, उसकी न तो कोई जाति है और न ही कोई मान-सम्मान ॥३॥
ਸਤਿਗੁਰਿ ਪੁਰਖਿ ਮਿਲਾਇਆ ਇਕੋ ਸਜਣੁ ਸੋਇ ॥ सतगुरु ने कृपावश उस परम-पुरुष से मुझे मिला दिया है जो कि मेरा अद्वितीय मित्र तथा एकमात्र सहारा है।
ਹਰਿ ਜਨ ਕਾ ਰਾਖਾ ਏਕੁ ਹੈ ਕਿਆ ਮਾਣਸ ਹਉਮੈ ਰੋਇ ॥ प्रभु-भक्तों का एक परमेश्वर ही रक्षक है। अहंकारी मनुष्य अहंकारवश व्यर्थ क्यों विलाप करते रहते हो।
ਜੋ ਹਰਿ ਜਨ ਭਾਵੈ ਸੋ ਕਰੇ ਦਰਿ ਫੇਰੁ ਨ ਪਾਵੈ ਕੋਇ ॥ परमेश्वर वही करता है, जो कुछ भक्तों को अच्छा लगता है। ईश्वर के दरबार से भगवान के भक्तों को कोई लौटा नहीं सकता।
ਨਾਨਕ ਰਤਾ ਰੰਗਿ ਹਰਿ ਸਭ ਜਗ ਮਹਿ ਚਾਨਣੁ ਹੋਇ ॥੪॥੧॥੭੧॥ हे नानक ! जो मानव जीव भगवान के प्रेम रंग में मग्न हैं वह सम्पूर्ण संसार में प्रकाश पुंज बन जाता है ॥ ४॥ १ ॥ ७१ ॥
ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ श्रीरागु महला ५ ॥
ਮਨਿ ਬਿਲਾਸੁ ਬਹੁ ਰੰਗੁ ਘਣਾ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਭੂਲਿ ਖੁਸੀਆ ॥ हे मानव ! तेरा मन आनंद-उल्लास, गहरे तथा अनेकों विलास मनाने तथा नेत्रों के दृश्यों के रस में डूबा होने के कारण जीवन का मनोरथ भूल गया है।
ਛਤ੍ਰਧਾਰ ਬਾਦਿਸਾਹੀਆ ਵਿਚਿ ਸਹਸੇ ਪਰੀਆ ॥੧॥ छत्रपति बादशाह जिन्हें सिंहासन प्राप्त हुआ हैं, वह भी संशय में पड़े हुए हैं।॥ १॥
ਭਾਈ ਰੇ ਸੁਖੁ ਸਾਧਸੰਗਿ ਪਾਇਆ ॥ हे भाई ! सत्संग के भीतर बड़ा सुख प्राप्त होता है।
ਲਿਖਿਆ ਲੇਖੁ ਤਿਨਿ ਪੁਰਖਿ ਬਿਧਾਤੈ ਦੁਖੁ ਸਹਸਾ ਮਿਟਿ ਗਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ उस विधाता ने जिस पुरुष का शुभ भाग्य लिख दिया है उसकी समस्त चिंताएँ मिट जाती हैं॥१॥ रहाउ ॥
ਜੇਤੇ ਥਾਨ ਥਨੰਤਰਾ ਤੇਤੇ ਭਵਿ ਆਇਆ ॥ चाहे संसार के सुन्दर से सुन्दर स्थानों पर चाहे घूम-घूम कर भ्रमण कर लिया हो,
ਧਨ ਪਾਤੀ ਵਡ ਭੂਮੀਆ ਮੇਰੀ ਮੇਰੀ ਕਰਿ ਪਰਿਆ ॥੨॥ धन के स्वामी एवं बड़े-बड़े जमींदार ‘यह मेरी है, यह मेरी है' पुकारते हुए नश्वर हो गए हैं। २॥
ਹੁਕਮੁ ਚਲਾਏ ਨਿਸੰਗ ਹੋਇ ਵਰਤੈ ਅਫਰਿਆ ॥ वे निर्भय होकर आदेश जारी करते हैं तथा अहंकारवश होकर समस्त कार्य करते हैं।
ਸਭੁ ਕੋ ਵਸਗਤਿ ਕਰਿ ਲਇਓਨੁ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਖਾਕੁ ਰਲਿਆ ॥੩॥ उसने सारे वश में कर लिए हैं, परन्तु हरि-नाम के बिना वे मिट्टी में मिल जाते हैं।॥ ३॥
ਕੋਟਿ ਤੇਤੀਸ ਸੇਵਕਾ ਸਿਧ ਸਾਧਿਕ ਦਰਿ ਖਰਿਆ ॥ प्रभु के दरबार में तेतीस करोड़ देवी-देवता, सिद्ध इत्यादि कर्मचारियों तथा अभ्यासी अनुचरों की भाँति खड़े थे
ਗਿਰੰਬਾਰੀ ਵਡ ਸਾਹਬੀ ਸਭੁ ਨਾਨਕ ਸੁਪਨੁ ਥੀਆ ॥੪॥੨॥੭੨॥ और जो पहाड़ों, समुद्रों पर साम्राज्य कायम करके शासन करते थे, हे नानक ! ये सारे ही स्वप्न हो गए हैं॥ ४॥ २॥ ७२ ॥
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