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ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਣ ਗਾਈਅਹਿ ਨੀਤ ॥
कहु नानक गुण गाईअहि नीत ॥
हे नानक ! नित्य ही भगवान् के गुण गाने चाहिए,"
ਮੁਖ ਊਜਲ ਹੋਇ ਨਿਰਮਲ ਚੀਤ ॥੪॥੧੯॥
मुख ऊजल होइ निरमल चीत ॥४॥१९॥
क्योंकि गुणगान करने से सत्य के दरबार में मुख उज्ज्वल तथा चित्त निर्मल हो जाता है।॥ ४॥ १६॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਨਉ ਨਿਧਿ ਤੇਰੈ ਸਗਲ ਨਿਧਾਨ ॥
नउ निधि तेरै सगल निधान ॥
हे जगत के मालिक ! आपके घर में नवनिधियाँ एवं समस्त भण्डार हैं।
ਇਛਾ ਪੂਰਕੁ ਰਖੈ ਨਿਦਾਨ ॥੧॥
इछा पूरकु रखै निदान ॥१॥
आप जीवों की इच्छाएँ पूरी करने वाले एवं उनकी रक्षा करने वाले हैं॥ १॥
ਤੂੰ ਮੇਰੋ ਪਿਆਰੋ ਤਾ ਕੈਸੀ ਭੂਖਾ ॥
तूं मेरो पिआरो ता कैसी भूखा ॥
जब आप मेरे प्रियतम है तो कैसी भूख रहेगी।
ਤੂੰ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਲਗੈ ਨ ਦੂਖਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तूं मनि वसिआ लगै न दूखा ॥१॥ रहाउ ॥
जब आप मेरे हृदय में निवास करते हैं तो कोई भी दु:ख मुझे स्पर्श नहीं कर सकता ॥ १॥ रहाउ ॥
ਜੋ ਤੂੰ ਕਰਹਿ ਸੋਈ ਪਰਵਾਣੁ ॥
जो तूं करहि सोई परवाणु ॥
जो कुछ आप करते हो वही मुझे स्वीकार है।
ਸਾਚੇ ਸਾਹਿਬ ਤੇਰਾ ਸਚੁ ਫੁਰਮਾਣੁ ॥੨॥
साचे साहिब तेरा सचु फुरमाणु ॥२॥
हे शाश्वत स्वामी, आपकी आज्ञा भी शाश्वत और अटल है॥ २॥
ਜਾ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਤਾ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥
जा तुधु भावै ता हरि गुण गाउ ॥
हे हरि ! जब तुझे अच्छा लगता है तो मैं आपका गुणगान करता हूँ।
ਤੇਰੈ ਘਰਿ ਸਦਾ ਸਦਾ ਹੈ ਨਿਆਉ ॥੩॥
तेरै घरि सदा सदा है निआउ ॥३॥
आपके घर में सदैव ही न्याय है॥ ३॥
ਸਾਚੇ ਸਾਹਿਬ ਅਲਖ ਅਭੇਵ ॥
साचे साहिब अलख अभेव ॥
हे सच्चे मालिक ! आप अलक्ष्य एवं अपरंपार है।
ਨਾਨਕ ਲਾਇਆ ਲਾਗਾ ਸੇਵ ॥੪॥੨੦॥
नानक लाइआ लागा सेव ॥४॥२०॥
आपके द्वारा प्रेरित नानक आपकी सेवा भक्ति में लगा हुआ है॥ ४ ॥ २०॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਨਿਕਟਿ ਜੀਅ ਕੈ ਸਦ ਹੀ ਸੰਗਾ ॥
निकटि जीअ कै सद ही संगा ॥
भगवान् जीव के बिल्कुल निकट है और सदैव ही उसके साथ रहते हैं।
ਕੁਦਰਤਿ ਵਰਤੈ ਰੂਪ ਅਰੁ ਰੰਗਾ ॥੧॥
कुदरति वरतै रूप अरु रंगा ॥१॥
उसकी कुदरत समस्त रूपों एवं रंगों में कार्यशील है॥ १॥
ਕਰ੍ਹੈ ਨ ਝੁਰੈ ਨਾ ਮਨੁ ਰੋਵਨਹਾਰਾ ॥
कर्है न झुरै ना मनु रोवनहारा ॥
मेरा मन न तो दुःखी होता है, न ही पश्चाताप करता और न ही रोता है क्योंकि
ਅਵਿਨਾਸੀ ਅਵਿਗਤੁ ਅਗੋਚਰੁ ਸਦਾ ਸਲਾਮਤਿ ਖਸਮੁ ਹਮਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अविनासी अविगतु अगोचरु सदा सलामति खसमु हमारा ॥१॥ रहाउ ॥
मेरा स्वामी अदृश्य है, अनश्वर है और सबसे परे है, वह संसार की किसी भी विपत्ति से भयभीत नहीं होता - क्योंकि वह जानता है कि वह सदा-सुरक्षित है।॥ १॥ रहाउ॥
ਤੇਰੇ ਦਾਸਰੇ ਕਉ ਕਿਸ ਕੀ ਕਾਣਿ ॥
तेरे दासरे कउ किस की काणि ॥
हे मेरे मालिक ! आपके तुच्छ दास को किसी के आश्रय की आवश्यकता नहीं रहती।
ਜਿਸ ਕੀ ਮੀਰਾ ਰਾਖੈ ਆਣਿ ॥੨॥
जिस की मीरा राखै आणि ॥२॥
हे मेरे मालिक ! उसकी मान-प्रतिष्ठा की आप स्वयं रक्षा करते हैं॥ २॥
ਜੋ ਲਉਡਾ ਪ੍ਰਭਿ ਕੀਆ ਅਜਾਤਿ ॥
जो लउडा प्रभि कीआ अजाति ॥
जिस सेवक को मालिक ने जाति-पाति के बन्धनों से रहित कर दिया है,"
ਤਿਸੁ ਲਉਡੇ ਕਉ ਕਿਸ ਕੀ ਤਾਤਿ ॥੩॥
तिसु लउडे कउ किस की ताति ॥३॥
उस सेवक को किसी की इर्ष्या का डर नहीं रहता॥ ३॥
ਵੇਮੁਹਤਾਜਾ ਵੇਪਰਵਾਹੁ ॥
वेमुहताजा वेपरवाहु ॥
ईश्वर किसी पर निर्भर नहीं है; वह स्वयं में पूर्ण है और समस्त चिंताओं से परे है।
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਕਹਹੁ ਗੁਰ ਵਾਹੁ ॥੪॥੨੧॥
नानक दास कहहु गुर वाहु ॥४॥२१॥
हे नानक ! उस सर्वोच्च परमेश्वर की स्तुति करो॥ ४॥ २१॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਹਰਿ ਰਸੁ ਛੋਡਿ ਹੋਛੈ ਰਸਿ ਮਾਤਾ ॥
हरि रसु छोडि होछै रसि माता ॥
मनुष्य हरि-रस को त्यागकर तुच्छ रसों में मस्त रहता है।
ਘਰ ਮਹਿ ਵਸਤੁ ਬਾਹਰਿ ਉਠਿ ਜਾਤਾ ॥੧॥
घर महि वसतु बाहरि उठि जाता ॥१॥
नाम रूपी वस्तु उसके हृदय-घर में ही व्याप्त है परन्तु उसे खोजने हेतु बाहर भागता रहता है॥ १॥
ਸੁਨੀ ਨ ਜਾਈ ਸਚੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਕਾਥਾ ॥
सुनी न जाई सचु अम्रित काथा ॥
ऐसे मनुष्य से सत्य की अमृत कथा सुनी नहीं जाती।
ਰਾਰਿ ਕਰਤ ਝੂਠੀ ਲਗਿ ਗਾਥਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
रारि करत झूठी लगि गाथा ॥१॥ रहाउ ॥
वह तो झूठी कहानियों से जुड़कर झगड़ा करता रहता है॥ १॥ रहाउ॥
ਵਜਹੁ ਸਾਹਿਬ ਕਾ ਸੇਵ ਬਿਰਾਨੀ ॥
वजहु साहिब का सेव बिरानी ॥
विकारी मनुष्य ऐसा है जो खाता तो परमात्मा का दिया हुआ परन्तु सेवा किसी दूसरे की करता है।
ਐਸੇ ਗੁਨਹ ਅਛਾਦਿਓ ਪ੍ਰਾਨੀ ॥੨॥
ऐसे गुनह अछादिओ प्रानी ॥२॥
ऐसे गुनाहों से प्राणी आच्छादित रहता है॥ २॥
ਤਿਸੁ ਸਿਉ ਲੂਕ ਜੋ ਸਦ ਹੀ ਸੰਗੀ ॥
तिसु सिउ लूक जो सद ही संगी ॥
वह अपनी भूलें उससे छिपाता है, जो हमेशा ही उसके साथ है।
ਕਾਮਿ ਨ ਆਵੈ ਸੋ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਮੰਗੀ ॥੩॥
कामि न आवै सो फिरि फिरि मंगी ॥३॥
जो उसके किसी काम नहीं, उसकी वह बार-बार माँग करता है॥ ३॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਦੀਨ ਦਇਆਲਾ ॥
कहु नानक प्रभ दीन दइआला ॥
नानक कहते हैं कि हे दीनदयाल प्रभु !
ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਕਰਿ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਾ ॥੪॥੨੨॥
जिउ भावै तिउ करि प्रतिपाला ॥४॥२२॥
जैसे आपको अच्छा लगता है, वैसे ही मेरा पोषण करो॥ ४॥ २२॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु:५ ॥
ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਨ ਧਨੁ ਹਰਿ ਕੋ ਨਾਮੁ ॥
जीअ प्रान धनु हरि को नामु ॥
हरि का नाम ही मन तथा प्राणों हेतु सच्या धन है।
ਈਹਾ ਊਹਾਂ ਉਨ ਸੰਗਿ ਕਾਮੁ ॥੧॥
ईहा ऊहां उन संगि कामु ॥१॥
लोक-परलोक में यही धन जीव के काम आता है॥ १॥
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਨਾਮ ਅਵਰੁ ਸਭੁ ਥੋਰਾ ॥
बिनु हरि नाम अवरु सभु थोरा ॥
हरि के नाम बिना अन्य सब कुछ थोड़ा ही है क्योंकि
ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਅਘਾਵੈ ਹਰਿ ਦਰਸਨਿ ਮਨੁ ਮੋਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
त्रिपति अघावै हरि दरसनि मनु मोरा ॥१॥ रहाउ ॥
मेरा मन हरि के दर्शन करने से तृप्त एवं संतुष्ट हो जाता है॥ १॥ रहाउ॥
ਭਗਤਿ ਭੰਡਾਰ ਗੁਰਬਾਣੀ ਲਾਲ ॥
भगति भंडार गुरबाणी लाल ॥
गुरुवाणी प्रभु-भक्ति के रत्नों का भण्डार है।
ਗਾਵਤ ਸੁਨਤ ਕਮਾਵਤ ਨਿਹਾਲ ॥੨॥
गावत सुनत कमावत निहाल ॥२॥
इसको गाने, सुनने एवं उसके अनुरूप आचरण करने से मनुष्य प्रसन्न हो जाता है॥ २॥
ਚਰਣ ਕਮਲ ਸਿਉ ਲਾਗੋ ਮਾਨੁ ॥
चरण कमल सिउ लागो मानु ॥
मेरा मन तो हरि के चरण-कमल से ही लगा हुआ है।
ਸਤਿਗੁਰਿ ਤੂਠੈ ਕੀਨੋ ਦਾਨੁ ॥੩॥
सतिगुरि तूठै कीनो दानु ॥३॥
मुझ पर अपनी प्रसन्नता द्वारा सतगुरु ने मुझे यह दान दिया है॥ ३॥
ਨਾਨਕ ਕਉ ਗੁਰਿ ਦੀਖਿਆ ਦੀਨ੍ਹ੍ਹ ॥
नानक कउ गुरि दीखिआ दीन्ह ॥
नानक को गुरु ने यह दीक्षा दी है कि
ਪ੍ਰਭ ਅਬਿਨਾਸੀ ਘਟਿ ਘਟਿ ਚੀਨ੍ਹ੍ਹ ॥੪॥੨੩॥
प्रभ अबिनासी घटि घटि चीन्ह ॥४॥२३॥
उस अविनाशी प्रभु को प्रत्येक हृदय में देख॥ ४॥ २३॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਅਨਦ ਬਿਨੋਦ ਭਰੇਪੁਰਿ ਧਾਰਿਆ ॥
अनद बिनोद भरेपुरि धारिआ ॥
संसार के समस्त लीला सर्वव्यापक प्रभु ने रचे हुए हैं।
ਅਪੁਨਾ ਕਾਰਜੁ ਆਪਿ ਸਵਾਰਿਆ ॥੧॥
अपुना कारजु आपि सवारिआ ॥१॥
वह अपना कार्य स्वयं ही संवारता है॥ १॥
ਪੂਰ ਸਮਗ੍ਰੀ ਪੂਰੇ ਠਾਕੁਰ ਕੀ ॥
पूर समग्री पूरे ठाकुर की ॥
पूर्ण ठाकुर की यह सृष्टि रूपी सामग्री भी पूर्ण है।
ਭਰਿਪੁਰਿ ਧਾਰਿ ਰਹੀ ਸੋਭ ਜਾ ਕੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भरिपुरि धारि रही सोभ जा की ॥१॥ रहाउ ॥
उसकी शोभा दुनिया में भरपूर होकर हर जगह फैली हुई है॥ १॥ रहाउ॥
ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਜਾ ਕੀ ਨਿਰਮਲ ਸੋਇ ॥
नामु निधानु जा की निरमल सोइ ॥
जिस परमात्मा की शोभा बड़ी निर्मल है, उसका नाम जीवों के लिए खजाना है।
ਆਪੇ ਕਰਤਾ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥੨॥
आपे करता अवरु न कोइ ॥२॥
प्रभु स्वयं ही दुनिया के रचयिता हैं, दूसरा कोई भी नहीं है॥ २॥
ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭਿ ਤਾ ਕੈ ਹਾਥਿ ॥
जीअ जंत सभि ता कै हाथि ॥
सृष्टि के समस्त जीव-जन्तु उसके वश में हैं।
ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਪ੍ਰਭੁ ਸਭ ਕੈ ਸਾਥਿ ॥੩॥
रवि रहिआ प्रभु सभ कै साथि ॥३॥
प्रभु सर्वव्यापी है और प्रत्येक जीव-जन्तु के साथ है॥ ३॥