Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 356

Page 356

ਆਪੁ ਬੀਚਾਰਿ ਮਾਰਿ ਮਨੁ ਦੇਖਿਆ ਤੁਮ ਸਾ ਮੀਤੁ ਨ ਅਵਰੁ ਕੋਈ ॥ आपु बीचारि मारि मनु देखिआ तुम सा मीतु न अवरु कोई ॥ हे प्रभु ! मैंने स्वयं अपने नियन्त्रण मन से भलीभांति विचार करके यह देखा है कि आपके जैसा मित्र अन्य कोई नहीं।
ਜਿਉ ਤੂੰ ਰਾਖਹਿ ਤਿਵ ਹੀ ਰਹਣਾ ਦੁਖੁ ਸੁਖੁ ਦੇਵਹਿ ਕਰਹਿ ਸੋਈ ॥੩॥ जिउ आपं राखहि तिव ही रहणा दुखु सुखु देवहि करहि सोई ॥३॥ हे प्रभु ! जैसे आप मुझे रखते हैं, मैं वैसे ही रहता हूँ। दुःख-सुख प्रदान करने वाला आप ही है। जो आप करते हैं, वही होता है॥ ३॥
ਆਸਾ ਮਨਸਾ ਦੋਊ ਬਿਨਾਸਤ ਤ੍ਰਿਹੁ ਗੁਣ ਆਸ ਨਿਰਾਸ ਭਈ ॥ आसा मनसा दोऊ बिनासत त्रिहु गुण आस निरास भई ॥ मैंने आशा एवं तृष्णा दोनों को मिटा दिए हैं और त्रिगुणात्मक माया की आशा भी छोड़ दी है।
ਤੁਰੀਆਵਸਥਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਈਐ ਸੰਤ ਸਭਾ ਕੀ ਓਟ ਲਹੀ ॥੪॥ तुरीआवसथा गुरमुखि पाईऐ संत सभा की ओट लही ॥४॥ सत्संगति की शरण लेकर एवं गुरुमुख बनकर ही तुरीयावस्था प्राप्त होती है।॥ ४॥
ਗਿਆਨ ਧਿਆਨ ਸਗਲੇ ਸਭਿ ਜਪ ਤਪ ਜਿਸੁ ਹਰਿ ਹਿਰਦੈ ਅਲਖ ਅਭੇਵਾ ॥ गिआन धिआन सगले सभि जप तप जिसु हरि हिरदै अलख अभेवा ॥ जिसके हृदय में अलक्ष्य एवं भेद रहित प्रभु बसते हैं, उसके पास जप, तप, ज्ञान-ध्यान इत्यादि सब कुछ होता है।
ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਮਨੁ ਰਾਤਾ ਗੁਰਮਤਿ ਪਾਏ ਸਹਜ ਸੇਵਾ ॥੫॥੨੨॥ नानक राम नामि मनु राता गुरमति पाए सहज सेवा ॥५॥२२॥ हे नानक ! जिसका मन राम-नाम में मग्न है, वह गुरु की मति द्वारा प्रभु की सेवा करके सहज अवस्था प्राप्त कर लेता है॥ ५॥ २२॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ਪੰਚਪਦੇ ॥ आसा महला १ पंचपदे ॥ राग आसा, पंच-पाद (पांच पंक्तियाँ), प्रथम गुरु,: ॥
ਮੋਹੁ ਕੁਟੰਬੁ ਮੋਹੁ ਸਭ ਕਾਰ ॥ मोहु कुट्मबु मोहु सभ कार ॥ मोह जीव के मन में परिवार के प्रति ममता पैदा करता है। मोह ही जगत का कार्य चला रहा है।
ਮੋਹੁ ਤੁਮ ਤਜਹੁ ਸਗਲ ਵੇਕਾਰ ॥੧॥ मोहु तुम तजहु सगल वेकार ॥१॥ मोह मन में विकार पैदा करता है, इसलिए मोह को त्याग दीजिए ॥ १॥
ਮੋਹੁ ਅਰੁ ਭਰਮੁ ਤਜਹੁ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਬੀਰ ॥ मोहु अरु भरमु तजहु तुम्ह बीर ॥ हे भाई ! मोह एवं दुविधा निवृत कर दो,"
ਸਾਚੁ ਨਾਮੁ ਰਿਦੇ ਰਵੈ ਸਰੀਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ साचु नामु रिदे रवै सरीर ॥१॥ रहाउ ॥ तभी तुम्हारी आत्मा एवं शरीर में परमात्मा का सत्यनाम बसा रहेगा। १॥ रहाउ॥
ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਜਾ ਨਵ ਨਿਧਿ ਪਾਈ ॥ सचु नामु जा नव निधि पाई ॥ जब मनुष्य सत्यनाम की नवनिधि प्राप्त कर लेता है
ਰੋਵੈ ਪੂਤੁ ਨ ਕਲਪੈ ਮਾਈ ॥੨॥ रोवै पूतु न कलपै माई ॥२॥ तो उसके बच्चे रोते नहीं और माता भी दु:खी नहीं होती ॥ २॥
ਏਤੁ ਮੋਹਿ ਡੂਬਾ ਸੰਸਾਰੁ ॥ एतु मोहि डूबा संसारु ॥ इस मोह में समूचा जगत डूबा हुआ है और
ਗੁਰਮੁਖਿ ਕੋਈ ਉਤਰੈ ਪਾਰਿ ॥੩॥ गुरमुखि कोई उतरै पारि ॥३॥ गुरुमुख बनकर ही कोई इससे पार उतर सकता है॥ ३ ॥
ਏਤੁ ਮੋਹਿ ਫਿਰਿ ਜੂਨੀ ਪਾਹਿ ॥ एतु मोहि फिरि जूनी पाहि ॥ इस मोह के कारण ही जीव बार-बार योनियों में आता है।
ਮੋਹੇ ਲਾਗਾ ਜਮ ਪੁਰਿ ਜਾਹਿ ॥੪॥ मोहे लागा जम पुरि जाहि ॥४॥ मोह में लिप्त हुआ जीव यमपुरी को जाता है॥ ४॥
ਗੁਰ ਦੀਖਿਆ ਲੇ ਜਪੁ ਤਪੁ ਕਮਾਹਿ ॥ गुर दीखिआ ले जपु तपु कमाहि ॥ जो व्यक्ति गुरु की दीक्षा प्राप्त करके भी जप एवं तप करता है,"
ਨਾ ਮੋਹੁ ਤੂਟੈ ਨਾ ਥਾਇ ਪਾਹਿ ॥੫॥ ना मोहु आपटै ना थाइ पाहि ॥५॥ उसका न सांसारिक मोह टूटता है और न ही वह सत्य के दरबार में स्वीकृत होता है॥ ५ ॥
ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਤਾ ਏਹੁ ਮੋਹੁ ਜਾਇ ॥ नदरि करे ता एहु मोहु जाइ ॥ यदि प्रभु अपनी कृपादृष्टि धारण करे तो यह मोह दूर हो जाता है।
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਸਿਉ ਰਹੈ ਸਮਾਇ ॥੬॥੨੩॥ नानक हरि सिउ रहै समाइ ॥६॥२३॥ हे नानक ! ऐसा जीव प्रभु में लीन हुआ रहता है॥ ६॥ २३॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥ आसा महला १ ॥ राग आसा, प्रथम गुरु,: १ ॥
ਆਪਿ ਕਰੇ ਸਚੁ ਅਲਖ ਅਪਾਰੁ ॥ आपि करे सचु अलख अपारु ॥ अलक्ष्य एवं अपार सत्य पुंज परमात्मा ही सबकुछ करते हैं।
ਹਉ ਪਾਪੀ ਤੂੰ ਬਖਸਣਹਾਰੁ ॥੧॥ हउ पापी आपं बखसणहारु ॥१॥ हे प्रभु ! मैं तो पापी हूँ परन्तु आप क्षमाशील है॥ १॥
ਤੇਰਾ ਭਾਣਾ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਹੋਵੈ ॥ तेरा भाणा सभु किछु होवै ॥ हे प्रभु ! आपकी इच्छा से ही सबकुछ होता है।
ਮਨਹਠਿ ਕੀਚੈ ਅੰਤਿ ਵਿਗੋਵੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मनहठि कीचै अंति विगोवै ॥१॥ रहाउ ॥ जो मनुष्य मन के हठ द्वारा कार्य करता है, वह अन्तः नष्ट हो जाता है॥ १॥ रहाउ ॥
ਮਨਮੁਖ ਕੀ ਮਤਿ ਕੂੜਿ ਵਿਆਪੀ ॥ मनमुख की मति कूड़ि विआपी ॥ मनमुख पुरुष की बुद्धि में सदा झूठ भरा रहता है।
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਸਿਮਰਣ ਪਾਪਿ ਸੰਤਾਪੀ ॥੨॥ बिनु हरि सिमरण पापि संतापी ॥२॥ हरि के सिमरन के बिना वह पापों के कारण बहुत दुःखी होता है॥ २॥
ਦੁਰਮਤਿ ਤਿਆਗਿ ਲਾਹਾ ਕਿਛੁ ਲੇਵਹੁ ॥ दुरमति तिआगि लाहा किछु लेवहु ॥ हे प्राणी ! दुर्मति को त्यागकर कुछ लाभ प्राप्त कर लो।
ਜੋ ਉਪਜੈ ਸੋ ਅਲਖ ਅਭੇਵਹੁ ॥੩॥ जो उपजै सो अलख अभेवहु ॥३॥ जो भी पैदा हुआ है, वह अनिर्वचनीय, भेदरहित स्वामी के द्वारा ही हुआ है॥ ३॥
ਐਸਾ ਹਮਰਾ ਸਖਾ ਸਹਾਈ ॥ ऐसा हमरा सखा सहाई ॥ मेरा सखा ईश्वर ऐसे सहायक हैं कि
ਗੁਰ ਹਰਿ ਮਿਲਿਆ ਭਗਤਿ ਦ੍ਰਿੜਾਈ ॥੪॥ गुर हरि मिलिआ भगति द्रिड़ाई ॥४॥ वह गुरु रूप में मुझे मिले और उसने भक्ति भाव को मेरे हृदय में सुदृढ़ कर दिया है॥ ४॥
ਸਗਲੀ ਸਉਦੀ ਤੋਟਾ ਆਵੈ ॥ सगलीं सउदीं तोटा आवै ॥ दूसरे सांसारिक सौदों में मनुष्य को हानी ही उठानी पड़ती है।
ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਮਨਿ ਭਾਵੈ ॥੫॥੨੪॥ नानक राम नामु मनि भावै ॥५॥२४॥ हे नानक ! मेरे मन को राम का नाम ही अच्छा लगता है॥ ५ ॥ २४ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ਚਉਪਦੇ ॥ आसा महला १ चउपदे ॥ राग आसा, चार-पाद (चार पंक्तियाँ), प्रथम गुरु,:॥
ਵਿਦਿਆ ਵੀਚਾਰੀ ਤਾਂ ਪਰਉਪਕਾਰੀ ॥ विदिआ वीचारी तां परउपकारी ॥ यदि विद्या का विचार-मनन किया जाए तो ही परोपकारी बना जा सकता है।
ਜਾਂ ਪੰਚ ਰਾਸੀ ਤਾਂ ਤੀਰਥ ਵਾਸੀ ॥੧॥ जां पंच रासी तां तीरथ वासी ॥१॥ यदि काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार को वश में कर लिया जाए तो ही जीव तीर्थ वासी कहा जा सकता है॥ १॥
ਘੁੰਘਰੂ ਵਾਜੈ ਜੇ ਮਨੁ ਲਾਗੈ ॥ घुंघरू वाजै जे मनु लागै ॥ यदि मेरा मन प्रभु-सिमरन में लगता है तो हृदय में धुंघरू जैसा अनहद शब्द बजता है।
ਤਉ ਜਮੁ ਕਹਾ ਕਰੇ ਮੋ ਸਿਉ ਆਗੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ तउ जमु कहा करे मो सिउ आगै ॥१॥ रहाउ ॥ फिर परलोक में यमराज मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता ॥ १॥ रहाउ॥
ਆਸ ਨਿਰਾਸੀ ਤਉ ਸੰਨਿਆਸੀ ॥ आस निरासी तउ संनिआसी ॥ जब मैंने सब आशाएँ त्याग दीं तो मैं संन्यासी बन गया।
ਜਾਂ ਜਤੁ ਜੋਗੀ ਤਾਂ ਕਾਇਆ ਭੋਗੀ ॥੨॥ जां जतु जोगी तां काइआ भोगी ॥२॥ जब मैंने योगी वाला यतीत्व धारण कर लिया तो मैं अपनी काया को भोगने वाला अच्छा गृहस्थी बन गया ॥ २॥
ਦਇਆ ਦਿਗੰਬਰੁ ਦੇਹ ਬੀਚਾਰੀ ॥ दइआ दिग्मबरु देह बीचारी ॥ जब मैं अपने शरीर को विकारों से बचाने के बारे में विचार करता हूँ तो मैं जीवों पर दया करने वाला दिगम्बर हूँ।
ਆਪਿ ਮਰੈ ਅਵਰਾ ਨਹ ਮਾਰੀ ॥੩॥ आपि मरै अवरा नह मारी ॥३॥ जब मैं अपने अभिमान को खत्म करता हूँ तो मैं अहिंसक हूँ अर्थात् दूसरे जीवों को न मारने वाला हूँ ॥ ३॥
ਏਕੁ ਤੂ ਹੋਰਿ ਵੇਸ ਬਹੁਤੇਰੇ ॥ एकु आप होरि वेस बहुतेरे ॥ हे प्रभु ! एक आप ही है और तेरे अनेक वेश हैं।
ਨਾਨਕੁ ਜਾਣੈ ਚੋਜ ਨ ਤੇਰੇ ॥੪॥੨੫॥ नानकु जाणै चोज न तेरे ॥४॥२५॥ दास नानक, आपकी आश्चर्यजनक लीला को नहीं समझ सकते। ॥ ४॥ २५॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥ आसा महला १ ॥ राग आसा, प्रथम गुरु,:१ ॥
ਏਕ ਨ ਭਰੀਆ ਗੁਣ ਕਰਿ ਧੋਵਾ ॥ एक न भरीआ गुण करि धोवा ॥ मैं किसी एक अवगुण से ही नहीं भरी हूँ, जो मैं अपने अन्तर्मन में गुण उत्पन्न करके उस एक अवगुण को धोकर स्वच्छ हो जाऊँगी अर्थात् मुझ में अनेक अवगुण भरे हुए हैं।
ਮੇਰਾ ਸਹੁ ਜਾਗੈ ਹਉ ਨਿਸਿ ਭਰਿ ਸੋਵਾ ॥੧॥ मेरा सहु जागै हउ निसि भरि सोवा ॥१॥ मेरा प्रियतम-प्रभु जागते रहते हैं और मैं सारी रात (मोह निद्रा में) सोती रहती हूँ॥ १॥
ਇਉ ਕਿਉ ਕੰਤ ਪਿਆਰੀ ਹੋਵਾ ॥ इउ किउ कंत पिआरी होवा ॥ इस तरह मैं अपने कांत-प्रभु की प्रियतमा कैसे हो सकती हूँ?
ਸਹੁ ਜਾਗੈ ਹਉ ਨਿਸ ਭਰਿ ਸੋਵਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सहु जागै हउ निस भरि सोवा ॥१॥ रहाउ ॥ मेरा पति-प्रभु जागते रहते हैं और मैं सारी रात सोती रहती हूँ॥ १॥ रहाउ॥


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