Guru Granth Sahib Translation Project

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Page 34

ਸਬਦਿ ਮੰਨਿਐ ਗੁਰੁ ਪਾਈਐ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਇ ॥ गुरु-उपदेश मान कर अंत:करण में से अभिमान समाप्त किया जा सकता है तथा सर्वश्रेष्ठ परमात्मा को प्राप्त किया जा सकता है।
ਅਨਦਿਨੁ ਭਗਤਿ ਕਰੇ ਸਦਾ ਸਾਚੇ ਕੀ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥ नित्यप्रति भक्ति करके स्थिर व सत्य-स्वरूप परमात्मा में लीन हुआ करो।
ਨਾਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਨਾਨਕ ਸਹਜਿ ਸਮਾਇ ॥੪॥੧੯॥੫੨॥ नानक देव जी कथन करते हैं कि जिस जीव के मन में नाम-पदार्थ बस गया, वह सहजावस्था में समा गया ॥ ४॥ १६॥ ५२ ॥
ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥ सिरीरागु महला ३ ॥
ਜਿਨੀ ਪੁਰਖੀ ਸਤਗੁਰੁ ਨ ਸੇਵਿਓ ਸੇ ਦੁਖੀਏ ਜੁਗ ਚਾਰਿ ॥ जिन व्यक्तियों ने सतगुरु की सेवा नहीं की वे चारों युगों में दुःखी रहते हैं।
ਘਰਿ ਹੋਦਾ ਪੁਰਖੁ ਨ ਪਛਾਣਿਆ ਅਭਿਮਾਨਿ ਮੁਠੇ ਅਹੰਕਾਰਿ ॥ उन्होंने हृदय रूपी घर में स्थिर परमात्मा को नहीं पहचाना, इसलिए वे अभिमान एवं अहंकार आदि विकारों में ग्रस्त होकर ठगे गए हैं।
ਸਤਗੁਰੂ ਕਿਆ ਫਿਟਕਿਆ ਮੰਗਿ ਥਕੇ ਸੰਸਾਰਿ ॥ जो व्यक्ति सतगुरु के धिक्कारे हुए हैं, वे संसार में माँग-माँग कर थक गए हैं।
ਸਚਾ ਸਬਦੁ ਨ ਸੇਵਿਓ ਸਭਿ ਕਾਜ ਸਵਾਰਣਹਾਰੁ ॥੧॥ उन्होंने उस सत्य स्वरूप परमात्मा का सिमरन नहीं किया, जो समस्त कार्य संवारने वाला है ॥१॥
ਮਨ ਮੇਰੇ ਸਦਾ ਹਰਿ ਵੇਖੁ ਹਦੂਰਿ ॥ हे मेरे मन ! तू हरि को सदैव प्रत्यक्ष ही देख।
ਜਨਮ ਮਰਨ ਦੁਖੁ ਪਰਹਰੈ ਸਬਦਿ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ यदि तुम परमात्मा को परिपूर्ण मान लो तो वह तुम्हें आवागमन के चक्र से मुक्त कर देगा ॥ १॥ रहाउ॥
ਸਚੁ ਸਲਾਹਨਿ ਸੇ ਸਚੇ ਸਚਾ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ॥ जो सत्य नाम का आश्रय लेकर सत्य की स्तुति करते हैं, वे ही सत्य हैं।
ਸਚੀ ਕਾਰ ਕਮਾਵਣੀ ਸਚੇ ਨਾਲਿ ਪਿਆਰੁ ॥ जिसने भक्ति रूपी सत्य कर्म किया है, उसका सत्य परमात्मा (वाहेगुरु) के साथ प्रेम है।
ਸਚਾ ਸਾਹੁ ਵਰਤਦਾ ਕੋਇ ਨ ਮੇਟਣਹਾਰੁ ॥ सत्य स्वरूप परमात्मा ही है, जिसका आदेश चलता है, उसके आदेश को कोई भी मिटा नहीं सकता।
ਮਨਮੁਖ ਮਹਲੁ ਨ ਪਾਇਨੀ ਕੂੜਿ ਮੁਠੇ ਕੂੜਿਆਰ ॥੨॥ स्वेच्छाचारी जीव परमात्मा के महल तक नहीं पहुँचते, वे असत्य जीव मार्ग में ही असत्य द्वारा लूटे जाते हैं।॥ २॥
ਹਉਮੈ ਕਰਤਾ ਜਗੁ ਮੁਆ ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਘੋਰ ਅੰਧਾਰੁ ॥ अभिमान करता हुआ सम्पूर्ण संसार नष्ट हो गया, गुरु के बिना इस संसार में अज्ञानता का घोर अंधकार बना रहता है।
ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਵਿਸਾਰਿਆ ਸੁਖਦਾਤਾ ਦਾਤਾਰੁ ॥ माया में लिप्त प्राणियों ने सुख प्रदान करने वाले परमात्मा को विस्मृत कर दिया है।
ਸਤਗੁਰੁ ਸੇਵਹਿ ਤਾ ਉਬਰਹਿ ਸਚੁ ਰਖਹਿ ਉਰ ਧਾਰਿ ॥ यदि प्राणी सतगुरु की सेवा करेगा, तथा सत्य नाम को हृदय में धारण करेगा, तभी इस अज्ञान रूपी अंधकार से उबर बाहर निकल सकेगा।
ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਹਰਿ ਪਾਈਐ ਸਚਿ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰਿ ॥੩॥ गुरु द्वारा प्रदत्त सत्य उपदेश का मनन करने से ही परमात्मा को प्राप्त किया जा सकता है॥ ३॥
ਸਤਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲਾ ਹਉਮੈ ਤਜਿ ਵਿਕਾਰ ॥ जीव सतगुरु की सेवा करके अहंकारादि विकारों का त्याग करता हुआ अपने हृदय को पवित्र करे।
ਆਪੁ ਛੋਡਿ ਜੀਵਤ ਮਰੈ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰ ॥ गुरु उपदेश द्वारा परमात्मा की गुणस्तुति का मनन करके अहंकार को त्याग कर विकारों से क्षीण हो जाता है।
ਧੰਧਾ ਧਾਵਤ ਰਹਿ ਗਏ ਲਾਗਾ ਸਾਚਿ ਪਿਆਰੁ ॥ जब सत्य के साथ प्रीत हो गई तो सांसारिक मोह-माया के धन्धों से निवृति मिल जाती है।
ਸਚਿ ਰਤੇ ਮੁਖ ਉਜਲੇ ਤਿਤੁ ਸਾਚੈ ਦਰਬਾਰਿ ॥੪॥ जो सत्य में अनुरक्त हैं, उनके मुँह उस सत्य परमात्मा के दरबार में उज्ज्वल होते हैं।॥ ४॥
ਸਤਗੁਰੁ ਪੁਰਖੁ ਨ ਮੰਨਿਓ ਸਬਦਿ ਨ ਲਗੋ ਪਿਆਰੁ ॥ जिन्होंने सतगुरु में श्रद्धा व्यक्त नहीं की, उनके उपदेश में प्रीत नहीं लगाई।
ਇਸਨਾਨੁ ਦਾਨੁ ਜੇਤਾ ਕਰਹਿ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਖੁਆਰੁ ॥ वे जितना भी तीर्थ-स्नान अथवा दान आदि कर लें, द्वैत-भाव के कारण वे अपमानित होते हैं।
ਹਰਿ ਜੀਉ ਆਪਣੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ਤਾ ਲਾਗੈ ਨਾਮ ਪਿਆਰੁ ॥ जब परमात्मा अपनी कृपा करता है, तभी नाम-सिमरन में प्रीत लगती है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਸਮਾਲਿ ਤੂ ਗੁਰ ਕੈ ਹੇਤਿ ਅਪਾਰਿ ॥੫॥੨੦॥੫੩॥ नानक देव जी कथन करते हैं कि हे जीव ! तुम गुरु के अपार प्रेम द्वारा परमात्मा के नाम का सिमरन किया कर ॥५॥२०॥५३॥
ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥ सिरीरागु महला ३ ॥
ਕਿਸੁ ਹਉ ਸੇਵੀ ਕਿਆ ਜਪੁ ਕਰੀ ਸਤਗੁਰ ਪੂਛਉ ਜਾਇ ॥ जब मैं अपने गुरु से जाकर पूछता हूँ कि किस की सेवा करूँ और कौन-सा जाप करूँ
ਸਤਗੁਰ ਕਾ ਭਾਣਾ ਮੰਨਿ ਲਈ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਇ ॥ तो आदेश मिलता है कि, "अपने अंतर्मन से अहंत्व का त्याग करके सतगुरु का आदेश मान लेना।"
ਏਹਾ ਸੇਵਾ ਚਾਕਰੀ ਨਾਮੁ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਇ ॥ सतगुरु का आदेश मानना ही वास्तविक सेवा एवं चाकरी है, इसके द्वारा ही मन में प्रभु का नाम बसता है।
ਨਾਮੈ ਹੀ ਤੇ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਸੁਹਾਇ ॥੧॥ ईश्वर के नाम सिमरन द्वारा ही सुखों की प्राप्ति होती है तथा सत्य नाम से ही जीव शोभायमान होता है॥ १॥
ਮਨ ਮੇਰੇ ਅਨਦਿਨੁ ਜਾਗੁ ਹਰਿ ਚੇਤਿ ॥ हे मेरे मन ! तुम दिन-रात प्रभु के चिन्तन में जागृत रहो।
ਆਪਣੀ ਖੇਤੀ ਰਖਿ ਲੈ ਕੂੰਜ ਪੜੈਗੀ ਖੇਤਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे जीव! तुम अपनी फसल अर्थात् अपनी आयु की रक्षा करो, ऐसा न हो कि राजहंस (वृद्धावस्था) शरीर पर आक्रमण करें और मृत्यु तुम्हें अपना ग्रास बना ले भाव समय रहते ही हरि नामका सिमरन कर लो।
ਮਨ ਕੀਆ ਇਛਾ ਪੂਰੀਆ ਸਬਦਿ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰਿ ॥ जिन्होंने ब्रह्म को परिपूर्ण माना है, उनकी सम्पूर्ण मनोकामनाएँ पूर्ण हुई हैं।
ਭੈ ਭਾਇ ਭਗਤਿ ਕਰਹਿ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਹਰਿ ਜੀਉ ਵੇਖੈ ਸਦਾ ਹਦੂਰਿ ॥ जो व्यक्ति परमात्मा का भय मानकर दिन-रात प्रेमा-भक्ति करते हैं, वे सदैव परमात्मा को प्रत्यक्ष देखते हैं।
ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਸਦਾ ਮਨੁ ਰਾਤਾ ਭ੍ਰਮੁ ਗਇਆ ਸਰੀਰਹੁ ਦੂਰਿ ॥ उनका मन परमात्मा की गुणस्तुति में स्थिर अनुरक्त रहता है, इसी से शरीर में से भ्रम दूर होता है।
ਨਿਰਮਲੁ ਸਾਹਿਬੁ ਪਾਇਆ ਸਾਚਾ ਗੁਣੀ ਗਹੀਰੁ ॥੨॥ यही जीव शुभ-गुण स्वरूप पवित्र खज़ाने वाले परमात्मा को प्राप्त करते हैं।॥ २॥
ਜੋ ਜਾਗੇ ਸੇ ਉਬਰੇ ਸੂਤੇ ਗਏ ਮੁਹਾਇ ॥ जो जीव मोह-माया से सुचेत रहते हैं, वे विकारों की मृत्यु से बच जाते हैं और जो अज्ञानता की निद्रा में सो जाते हैं, वे शुभ-गुण स्वरूप सम्पति को लुटा गए।
ਸਚਾ ਸਬਦੁ ਨ ਪਛਾਣਿਓ ਸੁਪਨਾ ਗਇਆ ਵਿਹਾਇ ॥ वे प्रभु की गुणस्तुति का सार नहीं पहचान पाते और उनका जीवन स्वप्न भाँति व्यतीत हो जाता है।
ਸੁੰਞੇ ਘਰ ਕਾ ਪਾਹੁਣਾ ਜਿਉ ਆਇਆ ਤਿਉ ਜਾਇ ॥ ऐसे जीव खाली घर के अतिथि की भाँति भूखे आते हैं और भूखे ही चले जाते हैं।
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