Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 288

Page 288

ਰਚਿ ਰਚਨਾ ਅਪਨੀ ਕਲ ਧਾਰੀ ॥ रचि रचना अपनी कल धारी ॥ सृष्टि की रचना करके प्रभु ने उसमें अपनी शक्ति का संचार कर दिया है।
ਅਨਿਕ ਬਾਰ ਨਾਨਕ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥੮॥੧੮॥ अनिक बार नानक बलिहारी ॥८॥१८॥ हे नानक ! मैं अनेक बार उस (प्रभु) पर बलिहारी जाता हूँ ॥८॥१८॥
ਸਲੋਕੁ ॥ सलोकु ॥ श्लोक ॥
ਸਾਥਿ ਨ ਚਾਲੈ ਬਿਨੁ ਭਜਨ ਬਿਖਿਆ ਸਗਲੀ ਛਾਰੁ ॥ साथि न चालै बिनु भजन बिखिआ सगली छारु ॥ हे प्राणी ! भगवान् के भजन के अतिरिक्त कुछ भी साथ नहीं जाता, सभी विषय-विकार धूल समान हैं।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਕਮਾਵਨਾ ਨਾਨਕ ਇਹੁ ਧਨੁ ਸਾਰੁ ॥੧॥ हरि हरि नामु कमावना नानक इहु धनु सारु ॥१॥ हे नानक ! हरि-परमेश्वर के नाम-स्मरण की कमाई करना ही अति उत्तम धन है॥१॥
ਅਸਟਪਦੀ ॥ असटपदी ॥ अष्टपदी ॥
ਸੰਤ ਜਨਾ ਮਿਲਿ ਕਰਹੁ ਬੀਚਾਰੁ ॥ संत जना मिलि करहु बीचारु ॥ संतजनों की संगति में मिलकर यही विचार करो।
ਏਕੁ ਸਿਮਰਿ ਨਾਮ ਆਧਾਰੁ ॥ एकु सिमरि नाम आधारु ॥ एक ईश्वर को स्मरण करो और नाम का सहारा लो।
ਅਵਰਿ ਉਪਾਵ ਸਭਿ ਮੀਤ ਬਿਸਾਰਹੁ ॥ अवरि उपाव सभि मीत बिसारहु ॥ हे मेरे मित्र ! दूसरे सभी प्रयास भुला दो।
ਚਰਨ ਕਮਲ ਰਿਦ ਮਹਿ ਉਰਿ ਧਾਰਹੁ ॥ चरन कमल रिद महि उरि धारहु ॥ ईश्वर के चरण कमल अपने मन एवं हृदय में बसाओ।
ਕਰਨ ਕਾਰਨ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਸਮਰਥੁ ॥ करन कारन सो प्रभु समरथु ॥ वह ईश्वर समस्त कार्य करने व जीव से करवाने में सामर्थ्य रखते हैं।
ਦ੍ਰਿੜੁ ਕਰਿ ਗਹਹੁ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਵਥੁ ॥ द्रिड़ु करि गहहु नामु हरि वथु ॥ ईश्वर के नाम रूपी वस्तु को दृढ़ करके पकड़ लो।
ਇਹੁ ਧਨੁ ਸੰਚਹੁ ਹੋਵਹੁ ਭਗਵੰਤ ॥ इहु धनु संचहु होवहु भगवंत ॥ इस (प्रभु के नाम रूपी) धन को एकत्रित करो और भाग्यशाली बन जाओ।
ਸੰਤ ਜਨਾ ਕਾ ਨਿਰਮਲ ਮੰਤ ॥ संत जना का निरमल मंत ॥ संतजनों का मंत्र पवित्र-पावन है।
ਏਕ ਆਸ ਰਾਖਹੁ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥ एक आस राखहु मन माहि ॥ एक ईश्वर की आशा अपने मन में रखो !
ਸਰਬ ਰੋਗ ਨਾਨਕ ਮਿਟਿ ਜਾਹਿ ॥੧॥ सरब रोग नानक मिटि जाहि ॥१॥ हे नानक ! इस तरह तेरे समस्त रोग मिट जाएँगे।॥ १ ॥
ਜਿਸੁ ਧਨ ਕਉ ਚਾਰਿ ਕੁੰਟ ਉਠਿ ਧਾਵਹਿ ॥ जिसु धन कउ चारि कुंट उठि धावहि ॥ हे मित्र ! जिस धन हेतु तू चारों ओर भागता-फिरता है,
ਸੋ ਧਨੁ ਹਰਿ ਸੇਵਾ ਤੇ ਪਾਵਹਿ ॥ सो धनु हरि सेवा ते पावहि ॥ वह धन तुझे ईश्वर की सेवा से प्राप्त होगा।
ਜਿਸੁ ਸੁਖ ਕਉ ਨਿਤ ਬਾਛਹਿ ਮੀਤ ॥ जिसु सुख कउ नित बाछहि मीत ॥ हे मेरे मित्र ! जिस सुख की तू नित्य इच्छा करता है,
ਸੋ ਸੁਖੁ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਪਰੀਤਿ ॥ सो सुखु साधू संगि परीति ॥ वह सुख तुझे संतों की संगति में प्रेम करने से मिलेगा।
ਜਿਸੁ ਸੋਭਾ ਕਉ ਕਰਹਿ ਭਲੀ ਕਰਨੀ ॥ जिसु सोभा कउ करहि भली करनी ॥ जिस शोभा के लिए तू शुभ कर्म करता है,
ਸਾ ਸੋਭਾ ਭਜੁ ਹਰਿ ਕੀ ਸਰਨੀ ॥ सा सोभा भजु हरि की सरनी ॥ वह शोभा भगवान् की शरण में जाने से मिलती है।
ਅਨਿਕ ਉਪਾਵੀ ਰੋਗੁ ਨ ਜਾਇ ॥ अनिक उपावी रोगु न जाइ ॥ जो रोग अनेक प्रयासों से नहीं मिटता,
ਰੋਗੁ ਮਿਟੈ ਹਰਿ ਅਵਖਧੁ ਲਾਇ ॥ रोगु मिटै हरि अवखधु लाइ ॥ वह रोग हरि नाम रूपी औषधि लेने से मिट जाता है।
ਸਰਬ ਨਿਧਾਨ ਮਹਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ॥ सरब निधान महि हरि नामु निधानु ॥ सभी खजानों में ईश्वर का नाम सर्वश्रेष्ठ खजाना है।
ਜਪਿ ਨਾਨਕ ਦਰਗਹਿ ਪਰਵਾਨੁ ॥੨॥ जपि नानक दरगहि परवानु ॥२॥ हे नानक ! उसके नाम का जाप कर, ईश्वर के दरबार में स्वीकार हो जाओगे ॥२॥
ਮਨੁ ਪਰਬੋਧਹੁ ਹਰਿ ਕੈ ਨਾਇ ॥ मनु परबोधहु हरि कै नाइ ॥ अपने मन को भगवान् के नाम द्वारा जगाओ।
ਦਹ ਦਿਸਿ ਧਾਵਤ ਆਵੈ ਠਾਇ ॥ दह दिसि धावत आवै ठाइ ॥ दसों दिशाओं में भटकता हुआ यह मन इस तरह अपने गृह आ जाएगा।
ਤਾ ਕਉ ਬਿਘਨੁ ਨ ਲਾਗੈ ਕੋਇ ॥ ता कउ बिघनु न लागै कोइ ॥ उसे कोई संकट नहीं आता
ਜਾ ਕੈ ਰਿਦੈ ਬਸੈ ਹਰਿ ਸੋਇ ॥ जा कै रिदै बसै हरि सोइ ॥ जिसके हृदय में वह ईश्वर बसता है,
ਕਲਿ ਤਾਤੀ ਠਾਂਢਾ ਹਰਿ ਨਾਉ ॥ कलि ताती ठांढा हरि नाउ ॥ यह कलियुग गर्म (अग्नि) है और हरि का नाम शीतल है।
ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਸਦਾ ਸੁਖ ਪਾਉ ॥ सिमरि सिमरि सदा सुख पाउ ॥ उसे सदैव स्मरण करो एवं सुख पाओ।
ਭਉ ਬਿਨਸੈ ਪੂਰਨ ਹੋਇ ਆਸ ॥ भउ बिनसै पूरन होइ आस ॥ नाम-सिमरन से भय नाश हो जाता है और आशा पूर्ण हो जाती है।
ਭਗਤਿ ਭਾਇ ਆਤਮ ਪਰਗਾਸ ॥ भगति भाइ आतम परगास ॥ प्रभु की भक्ति के साथ प्रेम करने से आत्मा उज्ज्वल हो जाती है।
ਤਿਤੁ ਘਰਿ ਜਾਇ ਬਸੈ ਅਬਿਨਾਸੀ ॥ तितु घरि जाइ बसै अबिनासी ॥ जो नाम-स्मरण करता है, उसके हृदय-घर में अनश्वर प्रभु आ बसते हैं।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਕਾਟੀ ਜਮ ਫਾਸੀ ॥੩॥ कहु नानक काटी जम फासी ॥३॥ हे नानक ! (नाम का जाप करने से) यम की फाँसी कट जाती है॥ ३॥
ਤਤੁ ਬੀਚਾਰੁ ਕਹੈ ਜਨੁ ਸਾਚਾ ॥ ततु बीचारु कहै जनु साचा ॥ वो ही सच्चा मनुष्य है, जो सार-तत्व के स्मरण का उपदेश देता है।
ਜਨਮਿ ਮਰੈ ਸੋ ਕਾਚੋ ਕਾਚਾ ॥ जनमि मरै सो काचो काचा ॥ वह बिल्कुल कच्चा (झूठा) है, जो आवागमन (जन्म-मरण के चक्र) में पड़ता है।
ਆਵਾ ਗਵਨੁ ਮਿਟੈ ਪ੍ਰਭ ਸੇਵ ॥ आवा गवनु मिटै प्रभ सेव ॥ प्रभु की सेवा से आवागमन मिट जाता है।
ਆਪੁ ਤਿਆਗਿ ਸਰਨਿ ਗੁਰਦੇਵ ॥ आपु तिआगि सरनि गुरदेव ॥ अपना अहंकार त्याग दे और गुरुदेव की शरण ले।
ਇਉ ਰਤਨ ਜਨਮ ਕਾ ਹੋਇ ਉਧਾਰੁ ॥ इउ रतन जनम का होइ उधारु ॥ इस तरह अनमोल जीवन का उद्धार हो जाता है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਸਿਮਰਿ ਪ੍ਰਾਨ ਆਧਾਰੁ ॥ हरि हरि सिमरि प्रान आधारु ॥ हरि-परमेश्वर की आराधना कर, जो तेरे प्राणों का आधार है।
ਅਨਿਕ ਉਪਾਵ ਨ ਛੂਟਨਹਾਰੇ ॥ अनिक उपाव न छूटनहारे ॥ अनेक उपाय करने से छुटकारा नहीं होता।
ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਸਾਸਤ ਬੇਦ ਬੀਚਾਰੇ ॥ सिम्रिति सासत बेद बीचारे ॥ चाहे स्मृतियों, शास्त्रों व वेदों का विचार करके देख लो।
ਹਰਿ ਕੀ ਭਗਤਿ ਕਰਹੁ ਮਨੁ ਲਾਇ ॥ हरि की भगति करहु मनु लाइ ॥ मन लगाकर केवल भगवान् की भक्ति ही करो।
ਮਨਿ ਬੰਛਤ ਨਾਨਕ ਫਲ ਪਾਇ ॥੪॥ मनि बंछत नानक फल पाइ ॥४॥ हे नानक ! (जो भक्ति करता है) उसे मनोवांछित फल मिलता है॥४॥
ਸੰਗਿ ਨ ਚਾਲਸਿ ਤੇਰੈ ਧਨਾ ॥ संगि न चालसि तेरै धना ॥ धन-दौलत तेरे साथ नहीं जाने वाला,
ਤੂੰ ਕਿਆ ਲਪਟਾਵਹਿ ਮੂਰਖ ਮਨਾ ॥ तूं किआ लपटावहि मूरख मना ॥ हे मूर्ख मन ! फिर तू क्यों इससे लिपटा हुआ है।
ਸੁਤ ਮੀਤ ਕੁਟੰਬ ਅਰੁ ਬਨਿਤਾ ॥ सुत मीत कुट्मब अरु बनिता ॥ पुत्र, मित्र, परिवार एवं पत्नी,
ਇਨ ਤੇ ਕਹਹੁ ਤੁਮ ਕਵਨ ਸਨਾਥਾ ॥ इन ते कहहु तुम कवन सनाथा ॥ इनमें से तू बता कौन तेरा सहायक है ?
ਰਾਜ ਰੰਗ ਮਾਇਆ ਬਿਸਥਾਰ ॥ राज रंग माइआ बिसथार ॥ राज्य, भोग एवं धन-दौलत का विस्तार
ਇਨ ਤੇ ਕਹਹੁ ਕਵਨ ਛੁਟਕਾਰ ॥ इन ते कहहु कवन छुटकार ॥ इनमें से बता कौन कब बचा है ?
ਅਸੁ ਹਸਤੀ ਰਥ ਅਸਵਾਰੀ ॥ असु हसती रथ असवारी ॥ अश्व, हाथी एवं रथों की सवारी करनी
ਝੂਠਾ ਡੰਫੁ ਝੂਠੁ ਪਾਸਾਰੀ ॥ झूठा ड्मफु झूठु पासारी ॥ यह सब झूठा आडम्बर है।
ਜਿਨਿ ਦੀਏ ਤਿਸੁ ਬੁਝੈ ਨ ਬਿਗਾਨਾ ॥ जिनि दीए तिसु बुझै न बिगाना ॥ मूर्ख पुरुष उस परमात्मा को नहीं जानता, जिसने ये समस्त पदार्थ दिए हैं।
ਨਾਮੁ ਬਿਸਾਰਿ ਨਾਨਕ ਪਛੁਤਾਨਾ ॥੫॥ नामु बिसारि नानक पछुताना ॥५॥ हे नानक ! नाम को भुला कर प्राणी अन्त में पश्चाताप करता है॥ ५ ॥
ਗੁਰ ਕੀ ਮਤਿ ਤੂੰ ਲੇਹਿ ਇਆਨੇ ॥ गुर की मति तूं लेहि इआने ॥ हे मूर्ख मनुष्य ! तू गुरु की शिक्षा ले।
ਭਗਤਿ ਬਿਨਾ ਬਹੁ ਡੂਬੇ ਸਿਆਨੇ ॥ भगति बिना बहु डूबे सिआने ॥ प्रभु की भक्ति के बिना बड़े बुद्धिमान लोग भी डूब गए हैं।
ਹਰਿ ਕੀ ਭਗਤਿ ਕਰਹੁ ਮਨ ਮੀਤ ॥ हरि की भगति करहु मन मीत ॥ हे मेरे मित्र ! अपने मन में भगवान् की भक्ति कर,
ਨਿਰਮਲ ਹੋਇ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੋ ਚੀਤ ॥ निरमल होइ तुम्हारो चीत ॥ उससे तेरा मन निर्मल हो जाएगा।
ਚਰਨ ਕਮਲ ਰਾਖਹੁ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥ चरन कमल राखहु मन माहि ॥ प्रभु के चरण कमल अपने हृदय में बसा,


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