Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 285

Page 285

ਜਿਸ ਕੀ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਸੁ ਕਰਣੈਹਾਰੁ ॥ जिसकी यह सृष्टि है, वही उसका सृजनहार है।
ਅਵਰ ਨ ਬੂਝਿ ਕਰਤ ਬੀਚਾਰੁ ॥ उस परमेश्वर के अतिरिक्त किसी और को इस ब्रह्मांड का रक्षक मत समझो।
ਕਰਤੇ ਕੀ ਮਿਤਿ ਨ ਜਾਨੈ ਕੀਆ ॥ सृजनकर्ता का विस्तार, उसका उत्पन्न किया हुआ जीव नहीं जान सकता।
ਨਾਨਕ ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੋ ਵਰਤੀਆ ॥੭॥ हे नानक ! जो कुछ उसे लुभाता है, केवल वही होता है। ७॥
ਬਿਸਮਨ ਬਿਸਮ ਭਏ ਬਿਸਮਾਦ ॥ प्रभु के अद्भुत, आश्चर्यजनक चमत्कार देखकर मैं चकित हो गया हूँ।
ਜਿਨਿ ਬੂਝਿਆ ਤਿਸੁ ਆਇਆ ਸ੍ਵਾਦ ॥ जो प्रभु की महिमा को समझता है, वही आनन्द प्राप्त करता है।
ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਰੰਗਿ ਰਾਚਿ ਜਨ ਰਹੇ ॥ प्रभु के सेवक उसके प्रेम में लीन रहते हैं।
ਗੁਰ ਕੈ ਬਚਨਿ ਪਦਾਰਥ ਲਹੇ ॥ गुरु के उपदेश द्वारा वह (नाम) पदार्थ को प्राप्त कर लेते हैं।
ਓਇ ਦਾਤੇ ਦੁਖ ਕਾਟਨਹਾਰ ॥ वह दानी एवं दुःख दूर करने वाले हैं।
ਜਾ ਕੈ ਸੰਗਿ ਤਰੈ ਸੰਸਾਰ ॥ उनकी संगति में संसार का कल्याण हो जाता है।
ਜਨ ਕਾ ਸੇਵਕੁ ਸੋ ਵਡਭਾਗੀ ॥ ऐसे सेवकों का सेवक सौभाग्यशाली है।
ਜਨ ਕੈ ਸੰਗਿ ਏਕ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ॥ उसके सेवक की संगति में मनुष्य की वृति एक ईश्वर से लग जाती है।
ਗੁਨ ਗੋਬਿਦ ਕੀਰਤਨੁ ਜਨੁ ਗਾਵੈ ॥ प्रभु का सेवक उसकी गुणस्तुति एवं भजन गायन करता है।
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਨਾਨਕ ਫਲੁ ਪਾਵੈ ॥੮॥੧੬॥ हे नानक ! गुरु की कृपा से वह फल प्राप्त कर लेता है॥ ८॥ १६॥
ਸਲੋਕੁ ॥ श्लोक ॥
ਆਦਿ ਸਚੁ ਜੁਗਾਦਿ ਸਚੁ ॥ भगवान सृष्टि-रचना से पहले सत्य था, युगों के प्रारम्भ में भी सत्य था,
ਹੈ ਭਿ ਸਚੁ ਨਾਨਕ ਹੋਸੀ ਭਿ ਸਚੁ ॥੧॥ अब वर्तमान में उसी का अस्तित्व है। हे नानक ! भविष्य में भी उस सत्यस्वरूप भगवान् का अस्तित्व होगा ॥१॥
ਅਸਟਪਦੀ ॥ अष्टपदी॥
ਚਰਨ ਸਤਿ ਸਤਿ ਪਰਸਨਹਾਰ ॥ प्रभु के चरण सत्य हैं और सत्य है वह जो उसके चरण-स्पर्श करता है।
ਪੂਜਾ ਸਤਿ ਸਤਿ ਸੇਵਦਾਰ ॥ उसकी पूजा सत्य है एवं उसकी पूजा करने वाला भी सत्य है।
ਦਰਸਨੁ ਸਤਿ ਸਤਿ ਪੇਖਨਹਾਰ ॥ उसके दर्शन सत्य हैं और दर्शन करने वाला भी सत्य है।
ਨਾਮੁ ਸਤਿ ਸਤਿ ਧਿਆਵਨਹਾਰ ॥ उसका नाम सत्य है और वह भी सत्य है जो इसका ध्यान करता है।
ਆਪਿ ਸਤਿ ਸਤਿ ਸਭ ਧਾਰੀ ॥ वह स्वयं सत्यस्वरूप है, सत्य है वह प्रत्येक वस्तु जिसे उसने सहारा दिया हुआ है।
ਆਪੇ ਗੁਣ ਆਪੇ ਗੁਣਕਾਰੀ ॥ वह स्वयं ही गुण है और स्वयं ही गुणकारी है।
ਸਬਦੁ ਸਤਿ ਸਤਿ ਪ੍ਰਭੁ ਬਕਤਾ ॥ प्रभु की वाणी सत्य है और वह सत्य वक्ता है जो उसके गुणों का यशोगान करता है।
ਸੁਰਤਿ ਸਤਿ ਸਤਿ ਜਸੁ ਸੁਨਤਾ ॥ वह कान सत्य हैं जो सद्पुरुष का यशोगान सुनते हैं।
ਬੁਝਨਹਾਰ ਕਉ ਸਤਿ ਸਭ ਹੋਇ ॥ जो प्रभु को समझता है, उसके लिए सब सत्य ही है।
ਨਾਨਕ ਸਤਿ ਸਤਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਇ ॥੧॥ हे नानक ! वह प्रभु सदा सर्वदा सत्य है॥ १॥
ਸਤਿ ਸਰੂਪੁ ਰਿਦੈ ਜਿਨਿ ਮਾਨਿਆ ॥ जो मनुष्य अपने हृदय में सत्यस्वरूप परमात्मा पर आस्था धारण करता है,
ਕਰਨ ਕਰਾਵਨ ਤਿਨਿ ਮੂਲੁ ਪਛਾਨਿਆ ॥ वह सब कुछ करने वाले एवं कराने वाले (सृष्टि के) मूल को समझ लेता है।
ਜਾ ਕੈ ਰਿਦੈ ਬਿਸ੍ਵਾਸੁ ਪ੍ਰਭ ਆਇਆ ॥ जिसके हृदय में प्रभु का विश्वास प्रवेश कर गया है,
ਤਤੁ ਗਿਆਨੁ ਤਿਸੁ ਮਨਿ ਪ੍ਰਗਟਾਇਆ ॥ उसके मन में तत्व ज्ञान प्रत्यक्ष होता है।
ਭੈ ਤੇ ਨਿਰਭਉ ਹੋਇ ਬਸਾਨਾ ॥ डर को त्याग कर वह निडर होकर रहता है
ਜਿਸ ਤੇ ਉਪਜਿਆ ਤਿਸੁ ਮਾਹਿ ਸਮਾਨਾ ॥ और जिससे वह उत्पन्न हुआ था, उस में ही समा जाता है।
ਬਸਤੁ ਮਾਹਿ ਲੇ ਬਸਤੁ ਗਡਾਈ ॥ जब एक वस्तु अपनी प्रकार की दूसरी वस्तु से मिल जाती है
ਤਾ ਕਉ ਭਿੰਨ ਨ ਕਹਨਾ ਜਾਈ ॥ तो वह इससे भिन्न नहीं कही जा सकती।
ਬੂਝੈ ਬੂਝਨਹਾਰੁ ਬਿਬੇਕ ॥ इस विचार को कोई विवेकी पुरूष ही समझता है।
ਨਾਰਾਇਨ ਮਿਲੇ ਨਾਨਕ ਏਕ ॥੨॥ हे नानक ! जो प्राणी नारायण से मिल चुके हैं, वे उसके साथ एक हो चुके हैं।॥ २॥
ਠਾਕੁਰ ਕਾ ਸੇਵਕੁ ਆਗਿਆਕਾਰੀ ॥ भगवान् का सेवक उसका आज्ञाकारी होता है।
ਠਾਕੁਰ ਕਾ ਸੇਵਕੁ ਸਦਾ ਪੂਜਾਰੀ ॥ भगवान् का सेवक सदा उसकी ही पूजा करता रहता है।
ਠਾਕੁਰ ਕੇ ਸੇਵਕ ਕੈ ਮਨਿ ਪਰਤੀਤਿ ॥ ईश्वर के सेवक के मन में आस्था होती है।
ਠਾਕੁਰ ਕੇ ਸੇਵਕ ਕੀ ਨਿਰਮਲ ਰੀਤਿ ॥ प्रभु के सेवक का जीवन-आचरण पवित्र होता है।
ਠਾਕੁਰ ਕਉ ਸੇਵਕੁ ਜਾਨੈ ਸੰਗਿ ॥ प्रभु का सेवक जानता है कि उसका स्वामी सदैव उसके साथ है।
ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਸੇਵਕੁ ਨਾਮ ਕੈ ਰੰਗਿ ॥ परमेश्वर का सेवक उसके नाम की प्रीति में बसता है।
ਸੇਵਕ ਕਉ ਪ੍ਰਭ ਪਾਲਨਹਾਰਾ ॥ अपने सेवक का प्रभु पालन-पोषणहार है।
ਸੇਵਕ ਕੀ ਰਾਖੈ ਨਿਰੰਕਾਰਾ ॥ निरंकार प्रभु अपने सेवक की प्रतिष्ठा रखता है।
ਸੋ ਸੇਵਕੁ ਜਿਸੁ ਦਇਆ ਪ੍ਰਭੁ ਧਾਰੈ ॥ वही सेवक है, जिस पर प्रभु दया करता है।
ਨਾਨਕ ਸੋ ਸੇਵਕੁ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਸਮਾਰੈ ॥੩॥ हे नानक ! वह सेवक प्रत्येक श्वास से ईश्वर को स्मरण करता रहता है ॥ ३ ॥
ਅਪੁਨੇ ਜਨ ਕਾ ਪਰਦਾ ਢਾਕੈ ॥ परमात्मा अपने सेवक का पद रखता है।
ਅਪਨੇ ਸੇਵਕ ਕੀ ਸਰਪਰ ਰਾਖੈ ॥ वह अपने सेवक की निश्चित ही प्रतिष्ठा रखता है।
ਅਪਨੇ ਦਾਸ ਕਉ ਦੇਇ ਵਡਾਈ ॥ प्रभु अपने सेवक को मान-सम्मान प्रदान करता है।
ਅਪਨੇ ਸੇਵਕ ਕਉ ਨਾਮੁ ਜਪਾਈ ॥ अपने सेवक से वह अपने नाम का जाप करवाता है।
ਅਪਨੇ ਸੇਵਕ ਕੀ ਆਪਿ ਪਤਿ ਰਾਖੈ ॥ अपने सेवक की वह स्वयं ही लाज रखता है।
ਤਾ ਕੀ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਕੋਇ ਨ ਲਾਖੈ ॥ उसकी गति एवं अनुमान को कोई नहीं जानता।
ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਸੇਵਕ ਕਉ ਕੋ ਨ ਪਹੂਚੈ ॥ कोई भी व्यक्ति प्रभु के सेवक की बराबरी नहीं कर सकता।
ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਸੇਵਕ ਊਚ ਤੇ ਊਚੇ ॥ ईश्वर के सेवक सर्वोच्च हैं।
ਜੋ ਪ੍ਰਭਿ ਅਪਨੀ ਸੇਵਾ ਲਾਇਆ ॥ प्रभु जिसको अपनी सेवा में लगाता है,
ਨਾਨਕ ਸੋ ਸੇਵਕੁ ਦਹ ਦਿਸਿ ਪ੍ਰਗਟਾਇਆ ॥੪॥ हे नानक ! वह सेवक दसों दिशाओं में लोकप्रिय हो जाता है ॥४॥
ਨੀਕੀ ਕੀਰੀ ਮਹਿ ਕਲ ਰਾਖੈ ॥ यदि प्रभु छोटी-सी चींटी में शक्ति भर दे तो
ਭਸਮ ਕਰੈ ਲਸਕਰ ਕੋਟਿ ਲਾਖੈ ॥ वह लाखों, करोड़ों लश्करों को भस्म बना सकती है।
ਜਿਸ ਕਾ ਸਾਸੁ ਨ ਕਾਢਤ ਆਪਿ ॥ जिस प्राणी का श्वास परमेश्वर स्वयं नहीं निकालता,
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