Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 226

Page 226

ਪਰ ਘਰਿ ਚੀਤੁ ਮਨਮੁਖਿ ਡੋਲਾਇ ॥ स्वेच्छाचारी इन्सान का मन पराई नारी की लालसा करता है।
ਗਲਿ ਜੇਵਰੀ ਧੰਧੈ ਲਪਟਾਇ ॥ उसकी गर्दन पर मृत्यु का फँदा होता है और वह सांसारिक विवादों में फंसा रहता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਛੂਟਸਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇ ॥੫॥ गुरमुख की ईश्वर की गुणस्तुति करने से मुक्ति हो जाती है॥ ५॥
ਜਿਉ ਤਨੁ ਬਿਧਵਾ ਪਰ ਕਉ ਦੇਈ ॥ जिस प्रकार एक आचरणहीन नारी, जो अपना तन पराए पुरुष को अर्पित कर देती हैं
ਕਾਮਿ ਦਾਮਿ ਚਿਤੁ ਪਰ ਵਸਿ ਸੇਈ ॥ और भोगविलास अथवा धन की खातिर जिसका मन दूसरे के वश में हो जाता है,
ਬਿਨੁ ਪਿਰ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਨ ਕਬਹੂੰ ਹੋਈ ॥੬॥ उसे अपने पति बिना संतोष नहीं होता। द्वैत भाव वाला मनुष्य वैसा ही है॥ ६॥
ਪੜਿ ਪੜਿ ਪੋਥੀ ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਪਾਠਾ ॥ प्राणी ग्रंथों का अध्ययन करता है, स्मृतियों का पाठ करता है
ਬੇਦ ਪੁਰਾਣ ਪੜੈ ਸੁਣਿ ਥਾਟਾ ॥ और वेदों, पुराणों एवं दूसरी रचनाओं का अध्ययन करता उसे सुनता है।
ਬਿਨੁ ਰਸ ਰਾਤੇ ਮਨੁ ਬਹੁ ਨਾਟਾ ॥੭॥ परन्तु नाम-रस के साथ अनुरक्त हुए बिना मन बहुत डोलता है॥ ७ ॥
ਜਿਉ ਚਾਤ੍ਰਿਕ ਜਲ ਪ੍ਰੇਮ ਪਿਆਸਾ ॥ जैसे चात्रिक का वर्षा की बूंदों के साथ प्रेम एवं उल्लास है,"
ਜਿਉ ਮੀਨਾ ਜਲ ਮਾਹਿ ਉਲਾਸਾ ॥ जैसे मछली जल में प्रसन्न होती है,
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪੀ ਤ੍ਰਿਪਤਾਸਾ ॥੮॥੧੧॥ वैसे ही नानक हरि रस का पान करके तृप्त हो गया है॥ ८॥ ११॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥ गउड़ी महला १ ॥
ਹਠੁ ਕਰਿ ਮਰੈ ਨ ਲੇਖੈ ਪਾਵੈ ॥ जो व्यक्ति हठ करके मरता है, वह स्वीकार नहीं होता,
ਵੇਸ ਕਰੈ ਬਹੁ ਭਸਮ ਲਗਾਵੈ ॥ चाहे वह धार्मिक वेशभूषा पहन ले अथवा अपने शरीर पर अधिकतर विभूति लगा ले।
ਨਾਮੁ ਬਿਸਾਰਿ ਬਹੁਰਿ ਪਛੁਤਾਵੈ ॥੧॥ प्रभु नाम को विस्मृत करके वह अंततः पश्चाताप करता है॥ १॥
ਤੂੰ ਮਨਿ ਹਰਿ ਜੀਉ ਤੂੰ ਮਨਿ ਸੂਖ ॥ हे भाई ! तू पारब्रह्म प्रभु की आराधना कर और अपने मन में आत्मिक सुख प्राप्त कर।
ਨਾਮੁ ਬਿਸਾਰਿ ਸਹਹਿ ਜਮ ਦੂਖ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ प्रभु के नाम को विस्मृत करके तू मृत्यु का कष्ट सहन करेगा ॥ १॥ रहाउ॥
ਚੋਆ ਚੰਦਨ ਅਗਰ ਕਪੂਰਿ ॥ चन्दन, अगर, कपूर, इत्र इत्यादि सुगन्धियां एवं
ਮਾਇਆ ਮਗਨੁ ਪਰਮ ਪਦੁ ਦੂਰਿ ॥ सांसारिक पदार्थों की मस्ती मनुष्य को परम पद से बहुत दूर ले जाती है।
ਨਾਮਿ ਬਿਸਾਰਿਐ ਸਭੁ ਕੂੜੋ ਕੂਰਿ ॥੨॥ प्रभु नाम को विस्मृत करके वह तमाम झूठों का झूठा अर्थात् व्यर्थ हो जाता है॥ २॥
ਨੇਜੇ ਵਾਜੇ ਤਖਤਿ ਸਲਾਮੁ ॥ नेजे, बैंड बाजे, राजसिंघासन एवं दूसरों से नमस्कारे
ਅਧਕੀ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਵਿਆਪੈ ਕਾਮੁ ॥ लालसा को बढ़ाते हैं और प्राणी कामवासना में लीन हो जाता है।
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਜਾਚੇ ਭਗਤਿ ਨ ਨਾਮੁ ॥੩॥ भगवान के दर से मांगे बिना उसकी भक्ति एवं नाम प्राप्त नहीं होते ॥ ३॥
ਵਾਦਿ ਅਹੰਕਾਰਿ ਨਾਹੀ ਪ੍ਰਭ ਮੇਲਾ ॥ वाद-विवाद एवं अहंकार के कारण प्रभु से मिलन नहीं होता।
ਮਨੁ ਦੇ ਪਾਵਹਿ ਨਾਮੁ ਸੁਹੇਲਾ ॥ अपने मन को प्रभु के समक्ष अर्पित करने से मनुष्य सुखदायक नाम को प्राप्त कर लेता है।
ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਅਗਿਆਨੁ ਦੁਹੇਲਾ ॥੪॥ अज्ञानता द्वारा प्राणी दूसरे की चाहत में उलझ जाता है, जो उसे बहुत दुखी कर देती है॥ ४ ॥
ਬਿਨੁ ਦਮ ਕੇ ਸਉਦਾ ਨਹੀ ਹਾਟ ॥ जैसे मूल्य बिना दुकान से सौदा प्राप्त नहीं किया जा सकता।
ਬਿਨੁ ਬੋਹਿਥ ਸਾਗਰ ਨਹੀ ਵਾਟ ॥ जैसे जहाज के बिना सागर की यात्रा नहीं की जा सकती।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਸੇਵੇ ਘਾਟੇ ਘਾਟਿ ॥੫॥ वैसे ही गुरु की सेवा बिना आत्मिक पूंजी की दृष्टि से नुक्सान ही नुक्सान होता है॥ ५ ॥
ਤਿਸ ਕਉ ਵਾਹੁ ਵਾਹੁ ਜਿ ਵਾਟ ਦਿਖਾਵੈ ॥ (हे भाई !) वह गुरु धन्य, धन्य है, जो सही जीवन मार्ग दिखाता है।
ਤਿਸ ਕਉ ਵਾਹੁ ਵਾਹੁ ਜਿ ਸਬਦੁ ਸੁਣਾਵੈ ॥ वह गुरु धन्य, धन्य है, जो मुझे शब्द सुनाता है।
ਤਿਸ ਕਉ ਵਾਹੁ ਵਾਹੁ ਜਿ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਵੈ ॥੬॥ (हे भाई !) धन्य, धन्य है उसको जो मुझे ईश्वर के मिलन में मिलाता है॥ ६॥
ਵਾਹੁ ਵਾਹੁ ਤਿਸ ਕਉ ਜਿਸ ਕਾ ਇਹੁ ਜੀਉ ॥ धन्य, धन्य है उसको जिसका यह अमूल्य जीवन है।
ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਮਥਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਉ ॥ गुरु के शब्द से नाम अमृत का जाप एवं पान कर।
ਨਾਮ ਵਡਾਈ ਤੁਧੁ ਭਾਣੈ ਦੀਉ ॥੭॥ हे प्रभु ! नाम की शोभा तेरी इच्छा द्वारा प्रदान होती है।॥ ७॥
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਕਿਉ ਜੀਵਾ ਮਾਇ ॥ हे मेरी माता ! प्रभु नाम के बिना मैं किस तरह जीवित रह सकता हूँ।
ਅਨਦਿਨੁ ਜਪਤੁ ਰਹਉ ਤੇਰੀ ਸਰਣਾਇ ॥ हे प्रभु ! रात-दिन मैं नाम-स्मरण करता हूँ और तेरी शरणागत रहता हूँ।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਪਤਿ ਪਾਇ ॥੮॥੧੨॥ हे नानक ! प्रभु नाम में मग्न होने से मनुष्य मान-सम्मान प्राप्त कर लेता है॥ ८ ॥ १२ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥ गउड़ी महला १ ॥
ਹਉਮੈ ਕਰਤ ਭੇਖੀ ਨਹੀ ਜਾਨਿਆ ॥ अहंकार में प्रवृत्त होने से मनुष्य ईश्वर को नहीं जानता, चाहे वह कोई धार्मिक वेष धारण कर ले।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਭਗਤਿ ਵਿਰਲੇ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ॥੧॥ कोई विरला पुरुष ही है, जिसका मन गुरु के आश्रय द्वारा प्रभु की भक्ति करने से तृप्त हुआ है॥ १॥
ਹਉ ਹਉ ਕਰਤ ਨਹੀ ਸਚੁ ਪਾਈਐ ॥ अहंत्व (मैं, मेरी) की करनी से सत्य (ईश्वर) प्राप्त नहीं होता।
ਹਉਮੈ ਜਾਇ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जब मनुष्य का अहंकार निवृत्त हो जाता है तो उसे परम पद प्राप्त हो जाता है। १॥ रहाउ॥
ਹਉਮੈ ਕਰਿ ਰਾਜੇ ਬਹੁ ਧਾਵਹਿ ॥ राजा (अपनी शक्ति का) बहुत अहंकार करते हैं और इसलिए दूसरे राज्यों पर आक्रमण करते हैं।
ਹਉਮੈ ਖਪਹਿ ਜਨਮਿ ਮਰਿ ਆਵਹਿ ॥੨॥ अहंकारवश वे बर्बाद हो जाते हैं और परिणामस्वरूप जन्म-मरण के चक्र में पड़कर पुनः (संसार में) उत्पन्न होते हैं।॥ २॥
ਹਉਮੈ ਨਿਵਰੈ ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰੈ ॥ गुरु के शब्द का चिन्तन करने से (मनुष्य का) अहंकार निवृत्त हो जाता है।
ਚੰਚਲ ਮਤਿ ਤਿਆਗੈ ਪੰਚ ਸੰਘਾਰੈ ॥੩॥ ऐसा व्यक्ति अपने चंचल मन पर अंकुश लगाता है और पाँच (कामादिक) विकारों का संहार करता है॥ ३॥
ਅੰਤਰਿ ਸਾਚੁ ਸਹਜ ਘਰਿ ਆਵਹਿ ॥ जिस व्यक्ति के हृदय में सत्य नाम विद्यमान है, वह सहज घर में पहुँच जाता है।
ਰਾਜਨੁ ਜਾਣਿ ਪਰਮ ਗਤਿ ਪਾਵਹਿ ॥੪॥ प्रभु पातशाह को समझकर वह परमगति प्राप्त कर लेता है॥ ४॥
ਸਚੁ ਕਰਣੀ ਗੁਰੁ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਵੈ ॥ गुरु जी उसकी दुविधा दूर कर देते हैं, जिसके कर्म शुभ (सच्चे) हैं।
ਨਿਰਭਉ ਕੈ ਘਰਿ ਤਾੜੀ ਲਾਵੈ ॥੫॥ वह निर्भय ईश्वर के चरणों में अपनी वृति लगाता है॥ ५ ॥
ਹਉ ਹਉ ਕਰਿ ਮਰਣਾ ਕਿਆ ਪਾਵੈ ॥ जो (मैं, मैं) अभिमान एवं घमण्ड करता हुआ प्राण त्याग देता है, वह क्या कर्म करता है ?
ਪੂਰਾ ਗੁਰੁ ਭੇਟੇ ਸੋ ਝਗਰੁ ਚੁਕਾਵੈ ॥੬॥ लेकिन जो पूर्ण गुरु से मिलता है, वह अपने तमाम वाद-विवाद मिटा लेता है॥ ६॥
ਜੇਤੀ ਹੈ ਤੇਤੀ ਕਿਹੁ ਨਾਹੀ ॥ जो कुछ भी है, वह वास्तव में कुछ भी नहीं।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਗਿਆਨ ਭੇਟਿ ਗੁਣ ਗਾਹੀ ॥੭॥ गुरमुख ज्ञान प्राप्त करके ईश्वर की गुणस्तुति करते रहते हैं॥ ७॥


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