Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 224

Page 224

ਨਰ ਨਿਹਕੇਵਲ ਨਿਰਭਉ ਨਾਉ ॥ प्राणी निर्भय प्रभु का नाम स्मरण करके पवित्र एवं निडर हो जाता है।
ਅਨਾਥਹ ਨਾਥ ਕਰੇ ਬਲਿ ਜਾਉ ॥ प्रभु निराश्रितों को आश्रयवान बना देता है। मैं उस पर कुर्बान जाता हूँ।
ਪੁਨਰਪਿ ਜਨਮੁ ਨਾਹੀ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥੫॥ उसकी गुणस्तुति करने से मनुष्य इस संसार में पुनः जन्म नहीं लेता॥ ५॥
ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਏਕੋ ਜਾਣੈ ॥ जो भीतर एवं बाहर एक ईश्वर को पहचानता है
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦੇ ਆਪੁ ਪਛਾਣੈ ॥ और जो गुरु के शब्द द्वारा अपने आपको समझता है,
ਸਾਚੈ ਸਬਦਿ ਦਰਿ ਨੀਸਾਣੈ ॥੬॥ प्रभु के दरबार में उस पर सत्यनाम का चिन्ह विद्यमान होता है॥ ६॥
ਸਬਦਿ ਮਰੈ ਤਿਸੁ ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਾਸਾ ॥ जो शब्द पर मरता है, उसका निवास सदा ही आत्मस्वरूप में रहता है।
ਆਵੈ ਨ ਜਾਵੈ ਚੂਕੈ ਆਸਾ ॥ उसकी तृष्णा मिट जाती है और वह जीवन-मृत्यु के चक्र में नहीं पड़ता।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਕਮਲੁ ਪਰਗਾਸਾ ॥੭॥ गुरु के शब्द द्वारा उसका ह्रदय कमल प्रफुल्लित हो जाता है॥ ७ ॥
ਜੋ ਦੀਸੈ ਸੋ ਆਸ ਨਿਰਾਸਾ ॥ जो कोई भी दिखाई देता है, वह आशा, निराशा,
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਬਿਖੁ ਭੂਖ ਪਿਆਸਾ ॥ कामचेष्टा, क्रोध, माया की भूख का प्यासा है।
ਨਾਨਕ ਬਿਰਲੇ ਮਿਲਹਿ ਉਦਾਸਾ ॥੮॥੭॥ हे नानक ! कोई विरला जगत् का त्यागी ही प्रभु को मिलता है॥ ८ ॥ ७॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥ गउड़ी महला १ ॥
ਐਸੋ ਦਾਸੁ ਮਿਲੈ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥ ऐसे सेवक को मिलने से सुख प्राप्त होता है एवं
ਦੁਖੁ ਵਿਸਰੈ ਪਾਵੈ ਸਚੁ ਸੋਈ ॥੧॥ दुख दूर हो जाता है, जिसने सत्य स्वरूप ईश्वर को पा लिया है ॥ १॥
ਦਰਸਨੁ ਦੇਖਿ ਭਈ ਮਤਿ ਪੂਰੀ ॥ उसके दर्शन करने से मेरी बुद्धि पूर्ण हो गई है।
ਅਠਸਠਿ ਮਜਨੁ ਚਰਨਹ ਧੂਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ उसकी चरण-धूलि अठसठ तीर्थों का स्नान है॥ १॥ रहाउ॥
ਨੇਤ੍ਰ ਸੰਤੋਖੇ ਏਕ ਲਿਵ ਤਾਰਾ ॥ एक ईश्वर में सुरति लगाने से मेरे नेत्र संतुष्ट हो गए हैं।
ਜਿਹਵਾ ਸੂਚੀ ਹਰਿ ਰਸ ਸਾਰਾ ॥੨॥ हरि रस से मेरी जिव्हा शुद्ध हो गई है॥ २॥
ਸਚੁ ਕਰਣੀ ਅਭ ਅੰਤਰਿ ਸੇਵਾ ॥ मेरी करनी सत्य है और मेरे हृदय में प्रभु की सेवा विद्यमान है।
ਮਨੁ ਤ੍ਰਿਪਤਾਸਿਆ ਅਲਖ ਅਭੇਵਾ ॥੩॥ अलक्ष्य तथा अकल्पनीय प्रभु से मेरा मन संतुष्ट हो गया है। ३॥
ਜਹ ਜਹ ਦੇਖਉ ਤਹ ਤਹ ਸਾਚਾ ॥ जहाँ कहीं भी मैं देखता हूँ, वहीं मैं सत्य स्वरूप ईश्वर के दर्शन करता हूँ।
ਬਿਨੁ ਬੂਝੇ ਝਗਰਤ ਜਗੁ ਕਾਚਾ ॥੪॥ प्रभु की सूझ के बिना मिथ्या संसार विवाद करता है॥ ४ ॥
ਗੁਰੁ ਸਮਝਾਵੈ ਸੋਝੀ ਹੋਈ ॥ जब गुरु उपदेश प्रदान करते हैं तो सूझ प्राप्त हो जाती है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਵਿਰਲਾ ਬੂਝੈ ਕੋਈ ॥੫॥ कोई विरला गुरमुख ही प्रभु को पहचानता है॥ ५ ॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਰਾਖਹੁ ਰਖਵਾਲੇ ॥ हे रखवाले प्रभु ! कृपा करके हमारी रक्षा करो।
ਬਿਨੁ ਬੂਝੇ ਪਸੂ ਭਏ ਬੇਤਾਲੇ ॥੬॥ प्रभु की सूझ बिना प्राणी पशु एवं प्रेत वृति हो रहे हैं।॥ ६॥
ਗੁਰਿ ਕਹਿਆ ਅਵਰੁ ਨਹੀ ਦੂਜਾ ॥ गुरु जी ने कहा है, ईश्वर बिना दूसरा कोई नहीं।
ਕਿਸੁ ਕਹੁ ਦੇਖਿ ਕਰਉ ਅਨ ਪੂਜਾ ॥੭॥ बताइये दूसरा किस को देखें और किस की पूजा करू॥ ७॥
ਸੰਤ ਹੇਤਿ ਪ੍ਰਭਿ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਧਾਰੇ ॥ संतजनों हेतु ईश्वर ने तीन लोक स्थापित किए हैं।
ਆਤਮੁ ਚੀਨੈ ਸੁ ਤਤੁ ਬੀਚਾਰੇ ॥੮॥ जो अपने आत्म-स्वरूप को समझता है, वह वास्तविकता को समझ लेता है ॥८॥
ਸਾਚੁ ਰਿਦੈ ਸਚੁ ਪ੍ਰੇਮ ਨਿਵਾਸ ॥ जिसके हृदय में सत्य निवास करता है, ईश्वर का प्रेम उसके हृदय में ही रहता है।
ਪ੍ਰਣਵਤਿ ਨਾਨਕ ਹਮ ਤਾ ਕੇ ਦਾਸ ॥੯॥੮॥ नानक प्रार्थना करता है - मैं भी उसका दास हूँ ॥६॥८॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥ गउड़ी महला १ ॥
ਬ੍ਰਹਮੈ ਗਰਬੁ ਕੀਆ ਨਹੀ ਜਾਨਿਆ ॥ ब्रह्मा ने अभिमान किया (कि मैं महान हूँ फिर कमल नाभि से कैसे पैदा हो सकता हूँ) उसने भगवान की महिमा को नहीं समझा।
ਬੇਦ ਕੀ ਬਿਪਤਿ ਪੜੀ ਪਛੁਤਾਨਿਆ ॥ जब उसका घमंड तोड़ने के लिए उस पर वेदों के चुराए जाने की विपदा पड़ी तो उसने पश्चाताप किया।
ਜਹ ਪ੍ਰਭ ਸਿਮਰੇ ਤਹੀ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ॥੧॥ जब उसने ईश्वर को स्मरण किया तो उसे आस्था हुई कि ईश्वर ही महान है। १॥
ਐਸਾ ਗਰਬੁ ਬੁਰਾ ਸੰਸਾਰੈ ॥ दुनिया में अहंकार का विकार बहुत बुरा है।
ਜਿਸੁ ਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਤਿਸੁ ਗਰਬੁ ਨਿਵਾਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जिसे गुरु जी मिल जाते हैं, वह उसका अहंकार दूर कर देते हैं॥ १॥ रहाउ॥
ਬਲਿ ਰਾਜਾ ਮਾਇਆ ਅਹੰਕਾਰੀ ॥ राजा बलि को धन-दौलत का बहुत अभिमान था।
ਜਗਨ ਕਰੈ ਬਹੁ ਭਾਰ ਅਫਾਰੀ ॥ उसने बहुत सारे यज्ञ किए, अहंकारवश बड़ा घमंडी हो गया।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਪੂਛੇ ਜਾਇ ਪਇਆਰੀ ॥੨॥ अपने गुरु शुक्राचार्य से पूछे बिना ही उसने विष्णु अवतार भगवान वामन को दान देना स्वीकार कर लिया था। जिसके कारण उसको पाताल में जाना पड़ा ॥ २॥
ਹਰੀਚੰਦੁ ਦਾਨੁ ਕਰੈ ਜਸੁ ਲੇਵੈ ॥ राजा हरिश्चन्द्र ने बहुत दान किया और बड़ा यश प्राप्त किया।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਇ ਅਭੇਵੈ ॥ लेकिन गुरु के बिना उसको ईश्वर के अन्त का पता न लगा।
ਆਪਿ ਭੁਲਾਇ ਆਪੇ ਮਤਿ ਦੇਵੈ ॥੩॥ प्रभु स्वयं ही गुमराह करता है और स्वयं ही ज्ञान प्रदान करता है॥ ३॥
ਦੁਰਮਤਿ ਹਰਣਾਖਸੁ ਦੁਰਾਚਾਰੀ ॥ दुर्बुद्धि हिरण्यकशिपु बड़ा अत्याचारी शासक था।
ਪ੍ਰਭੁ ਨਾਰਾਇਣੁ ਗਰਬ ਪ੍ਰਹਾਰੀ ॥ नारायण स्वयं ही अहंकारियों का अहंकार नाश करने वाला है।
ਪ੍ਰਹਲਾਦ ਉਧਾਰੇ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ॥੪॥ कृपा के घर नारायण ने नृसिंह अवतार धारण करके अपने भक्त प्रहलाद का उद्धार किया था॥ ४॥
ਭੂਲੋ ਰਾਵਣੁ ਮੁਗਧੁ ਅਚੇਤਿ ॥ मूर्ख एवं चेतना रहित रावण ने प्रभु को विस्मृत कर दिया।
ਲੂਟੀ ਲੰਕਾ ਸੀਸ ਸਮੇਤਿ ॥ उसकी सोने की लंका लुट गई और उसका सिर भी कट गया।
ਗਰਬਿ ਗਇਆ ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਹੇਤਿ ॥੫॥ अहंकारवश गुरु की शरण लिए बिना रावण का विनाश हुआ था॥ ५ ॥
ਸਹਸਬਾਹੁ ਮਧੁ ਕੀਟ ਮਹਿਖਾਸਾ ॥ हजार भुजाओं वाले सहस्त्रबाहु का परशुराम ने वध किया, मधु तथा कैटभ का विष्णु ने वध किया, महिषासुर का माता दुर्गा के हाथों वध हुआ,
ਹਰਣਾਖਸੁ ਲੇ ਨਖਹੁ ਬਿਧਾਸਾ ॥ हिरण्यकशिपु का नृसिंह भगवान ने नाखुनों से वध किया।
ਦੈਤ ਸੰਘਾਰੇ ਬਿਨੁ ਭਗਤਿ ਅਭਿਆਸਾ ॥੬॥ ये समस्त दानव-राक्षस प्रभु की भक्ति से विहीन होने के कारण मारे गए॥ ६ ॥
ਜਰਾਸੰਧਿ ਕਾਲਜਮੁਨ ਸੰਘਾਰੇ ॥ जरासंध तथा कालयवन प्रभु द्वारा नष्ट किए गए।
ਰਕਤਬੀਜੁ ਕਾਲੁਨੇਮੁ ਬਿਦਾਰੇ ॥ रक्तबीज (माता दुर्गा के हाथों) मारा गया तथा कालनेमि भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से मारा गया
ਦੈਤ ਸੰਘਾਰਿ ਸੰਤ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥੭॥ ईश्वर ने राक्षसों का वध करके ऋषि-मुनियों की रक्षा की।॥ ७ ॥
ਆਪੇ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਬਦੁ ਬੀਚਾਰੇ ॥ ईश्वर स्वयं ही गुरु रूप होकर अपने नाम की आराधना करता है।


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