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                    ਰੂਪਵੰਤੁ ਸੋ ਚਤੁਰੁ ਸਿਆਣਾ ॥
                   
                    
                                              
                        केवल वही मनुष्य सुन्दर, चतुर एवं बुद्धिमान है,
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜਿਨਿ ਜਨਿ ਮਾਨਿਆ ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਭਾਣਾ ॥੨॥
                   
                    
                                              
                        जो व्यक्ति प्रसन्नतापूर्वक प्रभु की इच्छा को स्वीकार करता है॥ २॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜਗ ਮਹਿ ਆਇਆ ਸੋ ਪਰਵਾਣੁ ॥
                   
                    
                                              
                        इस दुनिया में उसका जन्म ही सफल होता है,
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਘਟਿ ਘਟਿ ਅਪਣਾ ਸੁਆਮੀ ਜਾਣੁ ॥੩॥
                   
                    
                                              
                        जो सर्वव्यापक प्रभु को जान लेता है॥ ३॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਾ ਕੇ ਪੂਰਨ ਭਾਗ ॥
                   
                    
                                              
                        हे नानक ! जिसके भाग्य पूर्ण हैं,
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਰਿ ਚਰਣੀ ਤਾ ਕਾ ਮਨੁ ਲਾਗ ॥੪॥੯੦॥੧੫੯॥
                   
                    
                                              
                        वही व्यक्ति ईश्वर के चरणों में अपने मन को लगाता है ॥४॥९०॥१५९॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
                   
                    
                                              
                        राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਰਿ ਕੇ ਦਾਸ ਸਿਉ ਸਾਕਤ ਨਹੀ ਸੰਗੁ ॥
                   
                    
                                              
                        नास्तिक या माया का उपासक भगवान् के भक्त की संगति नहीं करता।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਓਹੁ ਬਿਖਈ ਓਸੁ ਰਾਮ ਕੋ ਰੰਗੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
                   
                    
                                              
                        क्योंकि वह नास्तिक विषयों का प्रेमी होता है और उस भक्त को प्रभु का रंग चढ़ा होता है॥ १ ॥ रहाउ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਨ ਅਸਵਾਰ ਜੈਸੇ ਤੁਰੀ ਸੀਗਾਰੀ ॥
                   
                    
                                              
                        उनका मिलन ऐसे है, जैसे अनाड़ी घुड़सवार के लिए एक सुसज्जित घोड़ी हो।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜਿਉ ਕਾਪੁਰਖੁ ਪੁਚਾਰੈ ਨਾਰੀ ॥੧॥
                   
                    
                                              
                        जैसे कोई नपुंसक किसी नारी को प्रेम करता है॥ १॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਬੈਲ ਕਉ ਨੇਤ੍ਰਾ ਪਾਇ ਦੁਹਾਵੈ ॥
                   
                    
                                              
                        नास्तिक और आस्तिक का मिलन ऐसा है जैसे कोई व्यक्ति बछड़े द्वारा बैल दुहता हो।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗਊ ਚਰਿ ਸਿੰਘ ਪਾਛੈ ਪਾਵੈ ॥੨॥
                   
                    
                                              
                        जैसे गाय पर सवार होकर व्यक्ति शेर का पीछा करता है॥ २ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗਾਡਰ ਲੇ ਕਾਮਧੇਨੁ ਕਰਿ ਪੂਜੀ ॥
                   
                    
                                              
                        जैसे कोई व्यक्ति भेड़ लेकर उसे कामधेनु समझकर पूजा-अर्चना करने लगे अथवा
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਉਦੇ ਕਉ ਧਾਵੈ ਬਿਨੁ ਪੂੰਜੀ ॥੩॥
                   
                    
                                              
                        जैसे धन-दौलत के बिना व्यक्ति सौदा खरीदने के लिए जाता है॥ ३॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਜਪਿ ਚੀਤ ॥
                   
                    
                                              
                        हे नानक ! अपने मन में राम नाम का जाप कर।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਿਮਰਿ ਸੁਆਮੀ ਹਰਿ ਸਾ ਮੀਤ ॥੪॥੯੧॥੧੬੦॥
                   
                    
                                              
                        तू मित्र जैसे स्वामी प्रभु की आराधना कर ॥४॥९१॥१६०॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
                   
                    
                                              
                        राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਾ ਮਤਿ ਨਿਰਮਲ ਕਹੀਅਤ ਧੀਰ ॥
                   
                    
                                              
                        हे भाई ! वही बुद्धि निर्मल एवं धैर्यवान कही जाती है,
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਰਾਮ ਰਸਾਇਣੁ ਪੀਵਤ ਬੀਰ ॥੧॥
                   
                    
                                              
                        जो राम के अमृत नाम का पान करती है॥ १॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਰਿ ਕੇ ਚਰਣ ਹਿਰਦੈ ਕਰਿ ਓਟ ॥
                   
                    
                                              
                        अपने हृदय में ईश्वर के चरणों का सहारा ले।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜਨਮ ਮਰਣ ਤੇ ਹੋਵਤ ਛੋਟ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
                   
                    
                                              
                        इस तरह जन्म-मरण से तुझे मुक्ति प्राप्त हो जाएगी।॥१॥ रहाउ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸੋ ਤਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਜਿਤੁ ਉਪਜੈ ਨ ਪਾਪੁ ॥
                   
                    
                                              
                        वही शरीर निर्मल है, जिसके भीतर पाप उत्पन्न नहीं होता।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਰਾਮ ਰੰਗਿ ਨਿਰਮਲ ਪਰਤਾਪੁ ॥੨॥
                   
                    
                                              
                        राम के प्रेम रंग से व्यक्ति का निर्मल प्रताप बढ़ता जाता है।॥ २॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਾਧਸੰਗਿ ਮਿਟਿ ਜਾਤ ਬਿਕਾਰ ॥
                   
                    
                                              
                        संतों की संगति में रहने से मनुष्य के पाप नष्ट हो जाते हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਭ ਤੇ ਊਚ ਏਹੋ ਉਪਕਾਰ ॥੩॥
                   
                    
                                              
                        संतों की संगति का यही सर्वोच्च उपकार है॥ ३॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਰਾਤੇ ਗੋਪਾਲ ॥
                   
                    
                                              
                        जो गोपाल के प्रेमा-भक्ति के रंग में मग्न रहते हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਨਕ ਜਾਚੈ ਸਾਧ ਰਵਾਲ ॥੪॥੯੨॥੧੬੧॥
                   
                    
                                              
                        नानक ऐसे संतों की चरण-धूलि की याचना करते हैं ॥४॥९२॥१६१॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
                   
                    
                                              
                        राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਐਸੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਗੋਵਿੰਦ ਸਿਉ ਲਾਗੀ ॥
                   
                    
                                              
                        मुझे गोविन्द से ऐसा प्रेम हो गया है कि
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮੇਲਿ ਲਏ ਪੂਰਨ ਵਡਭਾਗੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
                   
                    
                                              
                        उसने मुझे अपने साथ मिला लिया है और मैं पूर्ण भाग्यशाली हो गया हूँ ॥ १॥ रहाउ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਭਰਤਾ ਪੇਖਿ ਬਿਗਸੈ ਜਿਉ ਨਾਰੀ ॥
                   
                    
                                              
                        जैसे पत्नी अपने पति को देख कर हर्षित होती है,
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਤਿਉ ਹਰਿ ਜਨੁ ਜੀਵੈ ਨਾਮੁ ਚਿਤਾਰੀ ॥੧॥
                   
                    
                                              
                        वैसे ही प्रभु का सेवक उसके नाम को उच्चारण करने से आत्मिक प्रसन्नतापूर्वक जीता है॥ १॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਪੂਤ ਪੇਖਿ ਜਿਉ ਜੀਵਤ ਮਾਤਾ ॥
                   
                    
                                              
                        जैसे अपने पुत्र को देखकर माता जीवन ग्रहण करती है,
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਓਤਿ ਪੋਤਿ ਜਨੁ ਹਰਿ ਸਿਉ ਰਾਤਾ ॥੨॥
                   
                    
                                              
                        वैसे ही प्रभु का भक्त परमात्मा के प्रेम में मग्न रहता है।॥ २ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਲੋਭੀ ਅਨਦੁ ਕਰੈ ਪੇਖਿ ਧਨਾ ॥
                   
                    
                                              
                        जैसे कोई लोभी व्यक्ति धन को देख कर प्रसन्नता व्यक्त करता है,
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜਨ ਚਰਨ ਕਮਲ ਸਿਉ ਲਾਗੋ ਮਨਾ ॥੩॥
                   
                    
                                              
                        वैसे ही प्रभु के भक्त का मन प्रभु के चरण कमलों से लगा रहता है॥ ३ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਬਿਸਰੁ ਨਹੀ ਇਕੁ ਤਿਲੁ ਦਾਤਾਰ ॥ ਨਾਨਕ ਕੇ ਪ੍ਰਭ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰ ॥੪॥੯੩॥੧੬੨॥
                   
                    
                                              
                        हे मेरे दाता ! तुम मुझे क्षण भर के लिए विस्मृत न हों। नानक का प्रभु उसके प्राणों का सहारा है॥ ४ ॥९३॥ १६२ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
                   
                    
                                              
                        राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਰਾਮ ਰਸਾਇਣਿ ਜੋ ਜਨ ਗੀਧੇ ॥
                   
                    
                                              
                        जो भक्त राम के अमृत नाम में लीन हुए हैं,
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਚਰਨ ਕਮਲ ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤੀ ਬੀਧੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
                   
                    
                                              
                        वह उसके चरण-कमलों की प्रेमा-भक्ति में बंधे हुए हैं।॥ १ ॥ रहाउ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਆਨ ਰਸਾ ਦੀਸਹਿ ਸਭਿ ਛਾਰੁ ॥
                   
                    
                                              
                        ऐसे भक्तों को दूसरे भोग-विलास राख के तुल्य दिखाई देते हैं ।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਨਿਹਫਲ ਸੰਸਾਰ ॥੧॥
                   
                    
                                              
                        भगवान् के नाम के बिना इस दुनिया में जन्म लेना निष्फल है॥ १॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਅੰਧ ਕੂਪ ਤੇ ਕਾਢੇ ਆਪਿ ॥
                   
                    
                                              
                        ईश्वर स्वयं ही मनुष्य को अज्ञानता के अंधे कुएँ से बाहर निकाल देता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗੁਣ ਗੋਵਿੰਦ ਅਚਰਜ ਪਰਤਾਪ ॥੨॥
                   
                    
                                              
                        परमेश्वर की स्तुति अद्भुत और महिमामय है।॥ २॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਵਣਿ ਤ੍ਰਿਣਿ ਤ੍ਰਿਭਵਣਿ ਪੂਰਨ ਗੋਪਾਲ ॥
                   
                    
                                              
                        वनों, वनस्पति एवं तीनों लोकों में गोपाल सर्वव्यापक है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਬ੍ਰਹਮ ਪਸਾਰੁ ਜੀਅ ਸੰਗਿ ਦਇਆਲ ॥੩॥
                   
                    
                                              
                        सृष्टि में ब्रह्म का ही प्रसार है और भगवान् जीवों के साथ दयालु दिखाई देता है॥ ३॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸਾ ਕਥਨੀ ਸਾਰੁ ॥
                   
                    
                                              
                        हे नानक ! केवल वही वाणी श्रेष्ठ है,
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਾਨਿ ਲੇਤੁ ਜਿਸੁ ਸਿਰਜਨਹਾਰੁ ॥੪॥੯੪॥੧੬੩॥
                   
                    
                                              
                        जिसे स्वयं विधाता स्वीकार कर लेते हैं॥ ४ ॥ ९४ ॥ १६३॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
                   
                    
                                              
                        राग गौड़ी, पाँचवें गुरु:  ५ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਿਤਪ੍ਰਤਿ ਨਾਵਣੁ ਰਾਮ ਸਰਿ ਕੀਜੈ ॥
                   
                    
                                              
                        प्रतिदिन राम नाम का सिमरन कीजिए जैसे कि आप राम नाम के सरोवर में  स्नान कर रहे हो।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਝੋਲਿ ਮਹਾ ਰਸੁ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਜੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
                   
                    
                                              
                        हरि के नाम अमृत के महारस का प्रेमपूर्वक पान कीजिए॥ १॥ रहाउ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਿਰਮਲ ਉਦਕੁ ਗੋਵਿੰਦ ਕਾ ਨਾਮ ॥
                   
                    
                                              
                        गोविन्द के नाम का जल बड़ा निर्मल है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਜਨੁ ਕਰਤ ਪੂਰਨ ਸਭਿ ਕਾਮ ॥੧॥
                   
                    
                                              
                        उसमें स्नान करने से सारे मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं।॥ १॥