Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 188

Page 188

ਮਾਨੁ ਮਹਤੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭੁ ਤੇਰੇ ॥੪॥੪੦॥੧੦੯॥ गुरु नानक का कथन है कि हे दयालु परमात्मा ! मुझे प्रतिष्ठा एवं मान-सम्मान आपके ही दिए हुए हैं॥ ४ ॥ ४० ॥ १०९॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग गौड़ी, पांचवें गुरु द्वारा: ५ ॥
ਜਾ ਕਉ ਤੁਮ ਭਏ ਸਮਰਥ ਅੰਗਾ ॥ हे सर्वशक्तिमान स्वामी ! आप जिस व्यक्ति की सहायता करते हैं,"
ਤਾ ਕਉ ਕਛੁ ਨਾਹੀ ਕਾਲੰਗਾ ॥੧॥ उसे कोई भी कलंक नहीं लग सकता॥ १॥
ਮਾਧਉ ਜਾ ਕਉ ਹੈ ਆਸ ਤੁਮਾਰੀ ॥ हे माधो ! जिसकी आशा आप से है,"
ਤਾ ਕਉ ਕਛੁ ਨਾਹੀ ਸੰਸਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ उसे संसार की तृष्णा लेशमात्र भी नहीं रहती।॥ १॥ रहाउll
ਜਾ ਕੈ ਹਿਰਦੈ ਠਾਕੁਰੁ ਹੋਇ ॥ जिसके हृदय में जगत् के ठाकुर निवास करते हैं,
ਤਾ ਕਉ ਸਹਸਾ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥੨॥ उसको कोई भी दुःख-दर्द स्पर्श नहीं कर सकता॥ २॥
ਜਾ ਕਉ ਤੁਮ ਦੀਨੀ ਪ੍ਰਭ ਧੀਰ ॥ हे सर्वेश्वर प्रभु ! जिसे आप अपना धैर्य प्रदान करते हैं,"
ਤਾ ਕੈ ਨਿਕਟਿ ਨ ਆਵੈ ਪੀਰ ॥੩॥ उसके निकट कोई भी पीड़ा नहीं आतीII ३ll
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਮੈ ਸੋ ਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ॥ नानक कहते हैं कि मुझे वह गुरु प्राप्त हुआ है,
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪੂਰਨ ਦੇਖਾਇਆ ॥੪॥੪੧॥੧੧੦॥ जिसने मुझे पूर्ण पारब्रह्म प्रभु के दर्शन करवा दिए हैंI॥ ४ ॥ ४१ ॥ ११० ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग गौड़ी, पांचवें गुरु द्वारा:५ ॥
ਦੁਲਭ ਦੇਹ ਪਾਈ ਵਡਭਾਗੀ ॥ यह दुर्लभ मानव-देहि सौभाग्य से प्राप्त हुई है।
ਨਾਮੁ ਨ ਜਪਹਿ ਤੇ ਆਤਮ ਘਾਤੀ ॥੧॥ जो ईश्वर का नाम-स्मरण नहीं करते, वे आध्यात्मिक आत्मघाती हैं।॥ १॥
ਮਰਿ ਨ ਜਾਹੀ ਜਿਨਾ ਬਿਸਰਤ ਰਾਮ ॥ जो व्यक्ति राम को विस्मृत करते हैं, वह मृत्यु को क्यों नहीं प्राप्त होते ?
ਨਾਮ ਬਿਹੂਨ ਜੀਵਨ ਕਉਨ ਕਾਮ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ नाम के बिना यह जीवन किस काम का है ॥ १ ॥ रहाउ ॥
ਖਾਤ ਪੀਤ ਖੇਲਤ ਹਸਤ ਬਿਸਥਾਰ ॥ खाना-पीना, खेलना- हँसना इत्यादि साधन आडम्बर हैं,
ਕਵਨ ਅਰਥ ਮਿਰਤਕ ਸੀਗਾਰ ॥੨॥ क्योंकि यह मृतक को आभूषणों से सज्जित करने के समान हैं।॥ २॥
ਜੋ ਨ ਸੁਨਹਿ ਜਸੁ ਪਰਮਾਨੰਦਾ ॥ जो व्यक्ति परमानंद प्रभु का यश नहीं सुनता,
ਪਸੁ ਪੰਖੀ ਤ੍ਰਿਗਦ ਜੋਨਿ ਤੇ ਮੰਦਾ ॥੩॥ वह पशु-पक्षियों, रेंगने वाले जीवों की योनियों से भी बुरा है॥ ३॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰਿ ਮੰਤ੍ਰੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਆ ॥ हे नानक ! गुरु ने मेरे भीतर नाम मंत्र सुदृढ़ कर दिया है।
ਕੇਵਲ ਨਾਮੁ ਰਿਦ ਮਾਹਿ ਸਮਾਇਆ ॥੪॥੪੨॥੧੧੧॥ केवल नाम ही मेरे हृदय में लीन रहता है॥ ४॥ ४२॥ १११॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग गौड़ी, पांचवें गुरु द्वारा: ५ ॥
ਕਾ ਕੀ ਮਾਈ ਕਾ ਕੋ ਬਾਪ ॥ न कोई किसी की माता है और न कोई किसी का पिता है।
ਨਾਮ ਧਾਰੀਕ ਝੂਠੇ ਸਭਿ ਸਾਕ ॥੧॥ ये सारे रिश्ते नाममात्र एवं झूठे हैं।॥ १॥
ਕਾਹੇ ਕਉ ਮੂਰਖ ਭਖਲਾਇਆ ॥ हे मूर्ख ! तू किसके लिए दुहाई दे रहा है?
ਮਿਲਿ ਸੰਜੋਗਿ ਹੁਕਮਿ ਤੂੰ ਆਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ भगवान की आज्ञा एवं संयोगवश तू इस दुनिया में आया है॥ १ ॥ रहाउ ॥
ਏਕਾ ਮਾਟੀ ਏਕਾ ਜੋਤਿ ॥ समस्त प्राणियों में एक ही मिट्टी है और एक ही ब्रह्म-ज्योति है।
ਏਕੋ ਪਵਨੁ ਕਹਾ ਕਉਨੁ ਰੋਤਿ ॥੨॥ सब में एक ही प्राण हैं, जिसके द्वारा जीव श्वास लेते एवं जीवित रहते हैं। अतः किसी के दुनिया से चले जाने से हम क्यों विलाप करें ? ॥ २॥
ਮੇਰਾ ਮੇਰਾ ਕਰਿ ਬਿਲਲਾਹੀ ॥ लोग 'मेरा मेरा' कहकर विलाप करते हैं।
ਮਰਣਹਾਰੁ ਇਹੁ ਜੀਅਰਾ ਨਾਹੀ ॥੩॥ परन्तु यह आत्मा नश्वर नहीं ॥ ३॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰਿ ਖੋਲੇ ਕਪਾਟ ॥ हे नानक ! गुरु ने जिनके कपाट खोल दिए हैं,
ਮੁਕਤੁ ਭਏ ਬਿਨਸੇ ਭ੍ਰਮ ਥਾਟ ॥੪॥੪੩॥੧੧੨॥ वे मुक्त हो गए हैं और उनका भ्रम का नाश हो गया है ॥४॥४३॥११२॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग गौड़ी, पांचवें गुरु द्वारा: ५ ॥
ਵਡੇ ਵਡੇ ਜੋ ਦੀਸਹਿ ਲੋਗ ॥ जितने भी बड़े-बड़े धनवान लोग दिखाई देते हैं,
ਤਿਨ ਕਉ ਬਿਆਪੈ ਚਿੰਤਾ ਰੋਗ ॥੧॥ उनको चिन्ता का रोग लगा रहता है॥ १॥
ਕਉਨ ਵਡਾ ਮਾਇਆ ਵਡਿਆਈ ॥ माया की प्रशंसा के कारण कोई भी मनुष्य बड़ा नहीं बनता ?
ਸੋ ਵਡਾ ਜਿਨਿ ਰਾਮ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ वही महान है जिसने राम से वृति लगाई है॥ १॥ रहाउ॥
ਭੂਮੀਆ ਭੂਮਿ ਊਪਰਿ ਨਿਤ ਲੁਝੈ ॥ भूमि का स्वामी मनुष्य भूमि के लिए दूसरों से लड़ाई-झगड़ा करता है।
ਛੋਡਿ ਚਲੈ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਨਹੀ ਬੁਝੈ ॥੨॥ लेकिन जिसके लिए वह लड़ता है, वह सारी भूमि यहीं छोड़कर चला जाता है परन्तु उसकी तृष्णा नहीं मिटती ॥ २ ॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਇਹੁ ਤਤੁ ਬੀਚਾਰਾ ॥ हे नानक ! वास्तविक बात जिस पर मैंने विचार किया है,
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਭਜਨ ਨਾਹੀ ਛੁਟਕਾਰਾ ॥੩॥੪੪॥੧੧੩॥ वह यह है कि भगवान के भजन के बिना किसी को भी मुक्ति नहीं मिलती॥ ३॥ ४४॥ ११३॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग गौड़ी, पांचवें गुरु द्वारा: ५ ॥
ਪੂਰਾ ਮਾਰਗੁ ਪੂਰਾ ਇਸਨਾਨੁ ॥ प्रभु प्राप्ति हेतु नाम-मार्ग पूर्ण सही है और नाम-सिमरन ही पूर्ण तीर्थ-स्नान है
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਪੂਰਾ ਹਿਰਦੈ ਨਾਮੁ ॥੧॥ जिस व्यक्ति के हृदय में नाम का निवास हो जाता है, उसका सब कुछ पूर्ण हो जाता है। ॥ १॥
ਪੂਰੀ ਰਹੀ ਜਾ ਪੂਰੈ ਰਾਖੀ ॥ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਕੀ ਸਰਣਿ ਜਨ ਤਾਕੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ उस पूर्ण ब्रह्म ने उसकी पूर्ण प्रतिष्ठा रख ली; जब सेवक ने अपने स्वामी पारब्रह्म की शरण ली ॥ १॥ रहाउ॥
ਪੂਰਾ ਸੁਖੁ ਪੂਰਾ ਸੰਤੋਖੁ ॥ सेवक को पूर्ण सुख एवं पूर्ण संतोष प्राप्त हो गया है।
ਪੂਰਾ ਤਪੁ ਪੂਰਨ ਰਾਜੁ ਜੋਗੁ ॥੨॥ नाम-सिमरन ही पूर्ण तपस्या और पूर्ण राज योग है॥२॥
ਹਰਿ ਕੈ ਮਾਰਗਿ ਪਤਿਤ ਪੁਨੀਤ ॥ भगवान् के मार्ग पर चलने वाला पापी भी पवित्र हो जाता है
ਪੂਰੀ ਸੋਭਾ ਪੂਰਾ ਲੋਕੀਕ ॥੩॥ और वह लोक-परलोक में पूर्ण शोभा प्राप्त करता है तथा लोगों से उसका व्यवहार भी अच्छा हो जाता है।॥३॥
ਕਰਣਹਾਰੁ ਸਦ ਵਸੈ ਹਦੂਰਾ ॥ ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਮੇਰਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ॥੪॥੪੫॥੧੧੪॥ सृजनहार प्रभु सदैव उसके निकट निवास करते हैं। हे नानक ! मेरे सतगुरु पूर्ण है॥ ४॥ ४५॥ ११४॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग गौड़ी, पांचवें गुरु द्वारा: ५ ॥
ਸੰਤ ਕੀ ਧੂਰਿ ਮਿਟੇ ਅਘ ਕੋਟ ॥ गुरु की शिक्षाओं का विनम्रतापूर्वक पालन करने से लाखों पाप मिट जाते हैं।


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