Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1383

Page 1383

ਗੋਰਾਂ ਸੇ ਨਿਮਾਣੀਆ ਬਹਸਨਿ ਰੂਹਾਂ ਮਲਿ ॥ इन बेचारी कब्रों पर रूहें हक जमाकर बैठ गई हैं।
ਆਖੀਂ ਸੇਖਾ ਬੰਦਗੀ ਚਲਣੁ ਅਜੁ ਕਿ ਕਲਿ ॥੯੭॥ हे शेख फरीद ! रब की बंदगी कर लो, क्योंकि आज या कल चले जाना है॥६७ ॥
ਫਰੀਦਾ ਮਉਤੈ ਦਾ ਬੰਨਾ ਏਵੈ ਦਿਸੈ ਜਿਉ ਦਰੀਆਵੈ ਢਾਹਾ ॥ बाबा फरीद कहते हैं- मौत का बांध भी ऐसा दिखाई दे रहा है, जैसे दरिया का किनारा कभी भी टूट जाता है।
ਅਗੈ ਦੋਜਕੁ ਤਪਿਆ ਸੁਣੀਐ ਹੂਲ ਪਵੈ ਕਾਹਾਹਾ ॥ आगे तप्त अग्नि का नरक सुना जाता है, जहाँ दुष्ट-पापियों की हाहाकार मची हुई है।
ਇਕਨਾ ਨੋ ਸਭ ਸੋਝੀ ਆਈ ਇਕਿ ਫਿਰਦੇ ਵੇਪਰਵਾਹਾ ॥ किसी को तो सब सूझ हो गई है (कि यहाँ नेक बनकर रहना है) तो कई बेपरवाह होकर फिर रहे हैं।
ਅਮਲ ਜਿ ਕੀਤਿਆ ਦੁਨੀ ਵਿਚਿ ਸੇ ਦਰਗਹ ਓਗਾਹਾ ॥੯੮॥ जो अच्छे-बुरे कर्म किसी ने दुनिया में किए होते हैं, वही रब के दरबार में गवाह बनते ॥६८ ॥
ਫਰੀਦਾ ਦਰੀਆਵੈ ਕੰਨ੍ਹ੍ਹੈ ਬਗੁਲਾ ਬੈਠਾ ਕੇਲ ਕਰੇ ॥ हे फरीद ! दरिया के किनारे पर बैठा हुआ जीव रूपी बगुला मौज-मेले करता है,
ਕੇਲ ਕਰੇਦੇ ਹੰਝ ਨੋ ਅਚਿੰਤੇ ਬਾਜ ਪਏ ॥ मौज-मस्तियां करते हुए उसे अचानक ही बाज दबोच लेता है।
ਬਾਜ ਪਏ ਤਿਸੁ ਰਬ ਦੇ ਕੇਲਾਂ ਵਿਸਰੀਆਂ ॥ रब की मर्जी से मौत रूपी बाज शिकजे में ले लेता है और उसे सब खेल-तमाशे भूल जाते हैं।
ਜੋ ਮਨਿ ਚਿਤਿ ਨ ਚੇਤੇ ਸਨਿ ਸੋ ਗਾਲੀ ਰਬ ਕੀਆਂ ॥੯੯॥ इसी तरह जो मन में याद तक नहीं होता, रब वही कर देता है॥ ६६ ॥
ਸਾਢੇ ਤ੍ਰੈ ਮਣ ਦੇਹੁਰੀ ਚਲੈ ਪਾਣੀ ਅੰਨਿ ॥ साढ़े तीन मन का शरीर भोजन-पानी की मदद से चलता है।
ਆਇਓ ਬੰਦਾ ਦੁਨੀ ਵਿਚਿ ਵਤਿ ਆਸੂਣੀ ਬੰਨ੍ਹ੍ਹਿ ॥ दुनिया में व्यक्ति बहुत सारी आशाएँ लेकर आया था।
ਮਲਕਲ ਮਉਤ ਜਾਂ ਆਵਸੀ ਸਭ ਦਰਵਾਜੇ ਭੰਨਿ ॥ मौत का फरिश्ता शरीर के सब दरवाजे तोड़कर आ जाता है।
ਤਿਨ੍ਹ੍ਹਾ ਪਿਆਰਿਆ ਭਾਈਆਂ ਅਗੈ ਦਿਤਾ ਬੰਨ੍ਹ੍ਹਿ ॥ मरणोपरांत व्यक्ति के प्यारे भाई, रिश्तेदार दाह-संस्कार के लिए अर्थों पर बांध देते हैं।
ਵੇਖਹੁ ਬੰਦਾ ਚਲਿਆ ਚਹੁ ਜਣਿਆ ਦੈ ਕੰਨ੍ਹ੍ਹਿ ॥ फिर देखो व्यक्ति की तकदीर चार सज्जनों के कधे पर चला जा रहा है।
ਫਰੀਦਾ ਅਮਲ ਜਿ ਕੀਤੇ ਦੁਨੀ ਵਿਚਿ ਦਰਗਹ ਆਏ ਕੰਮਿ ॥੧੦੦॥ हे फरीद ! दुनिया में जो अच्छे-बुरे कर्म किए होते हैं, वही रब के दरबार में उसके काम आते हैं।॥१०० ॥
ਫਰੀਦਾ ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹ ਪੰਖੀਆ ਜੰਗਲਿ ਜਿੰਨ੍ਹ੍ਹਾ ਵਾਸੁ ॥ फरीद जी कहते हैं कि मैं उन पक्षियों पर कुर्बान जाता हूँ, जो जंगल में रहते हैं।
ਕਕਰੁ ਚੁਗਨਿ ਥਲਿ ਵਸਨਿ ਰਬ ਨ ਛੋਡਨਿ ਪਾਸੁ ॥੧੦੧॥ वे ककर चुगते हैं, जमीन पर रहते हैं लेकिन रब की याद को नहीं छोड़ते॥१०१॥
ਫਰੀਦਾ ਰੁਤਿ ਫਿਰੀ ਵਣੁ ਕੰਬਿਆ ਪਤ ਝੜੇ ਝੜਿ ਪਾਹਿ ॥ बाबा फरीद कहते हैं कि (प्रकृति के नियमानुसार) मौसम बदल गया है (जवानी के बाद बुढ़ापा आ गया है), वृक्ष (रूपी शरीर) कांप रहा है, पतझड़ के कारण पते गिर रहे हैं।
ਚਾਰੇ ਕੁੰਡਾ ਢੂੰਢੀਆਂ ਰਹਣੁ ਕਿਥਾਊ ਨਾਹਿ ॥੧੦੨॥ मैंने चारों दिशाएँ ढूंढकर देख ली हैं परन्तु कहीं भी स्थिरता नहीं ॥१०२ ॥
ਫਰੀਦਾ ਪਾੜਿ ਪਟੋਲਾ ਧਜ ਕਰੀ ਕੰਬਲੜੀ ਪਹਿਰੇਉ ॥ हे फरीद ! मैं रेशमी कपड़े को फाड़कर टुकड़े-टुकड़े कर दूँ और मामूली कवल ऊपर ले लूं।
ਜਿਨ੍ਹ੍ਹੀ ਵੇਸੀ ਸਹੁ ਮਿਲੈ ਸੇਈ ਵੇਸ ਕਰੇਉ ॥੧੦੩॥ जिस वेश से मेरा मालिक मिलता है, मैं वही धारण करने के लिए तैयार हूँ॥ १०३॥
ਮਃ ੩ ॥ महला ३॥
ਕਾਇ ਪਟੋਲਾ ਪਾੜਤੀ ਕੰਬਲੜੀ ਪਹਿਰੇਇ ॥ गुरु अमरदास जी उपरोक्त श्लोक का उत्तर देते हैं- हे जीव-स्त्री ! रेशमी वस्त्र को क्यों फाड़ रही हो, मामूली कम्बल भी किसलिए पहन रही हो ?
ਨਾਨਕ ਘਰ ਹੀ ਬੈਠਿਆ ਸਹੁ ਮਿਲੈ ਜੇ ਨੀਅਤਿ ਰਾਸਿ ਕਰੇਇ ॥੧੦੪॥ गुरु नानक फुरमाते हैं कि यदि दिल को साफ किया जाए तो परमात्मा घर बैठे ही मिल जाता है॥१०४ ॥
ਮਃ ੫ ॥ महला ५ ॥
ਫਰੀਦਾ ਗਰਬੁ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹਾ ਵਡਿਆਈਆ ਧਨਿ ਜੋਬਨਿ ਆਗਾਹ ॥ पंचम गुरु संबोधन करते हैं- हे फरीद ! जिन लोगों को धन-दौलत, शोहरत एवं जवानी का अहंकार होता है,
ਖਾਲੀ ਚਲੇ ਧਣੀ ਸਿਉ ਟਿਬੇ ਜਿਉ ਮੀਹਾਹੁ ॥੧੦੫॥ वे परमात्मा के नाम से खाली ही चले जाते हैं, जैसे बरसात होने से ऊँचे टीले पानी के बिना सूखे रहते हैं।॥ १०५॥
ਫਰੀਦਾ ਤਿਨਾ ਮੁਖ ਡਰਾਵਣੇ ਜਿਨਾ ਵਿਸਾਰਿਓਨੁ ਨਾਉ ॥ हे फरीद ! उनके मुँह (राक्षसों सरीखे) बहुत भयानक हैं, जिन्होंने परमात्मा का नाम भुला दिया है।
ਐਥੈ ਦੁਖ ਘਣੇਰਿਆ ਅਗੈ ਠਉਰ ਨ ਠਾਉ ॥੧੦੬॥ ऐसे व्यक्ति संसार में अनेकों दुख भोगते ही हैं, परलोक में भी उनको कोई ठिकाना नहीं मिलता ॥१०६॥
ਫਰੀਦਾ ਪਿਛਲ ਰਾਤਿ ਨ ਜਾਗਿਓਹਿ ਜੀਵਦੜੋ ਮੁਇਓਹਿ ॥ फरीद जी कहते हैं, हे मनुष्य ! यदि भोर के समय नहीं जागे (बंदगी न की) तो समझो जीते जी भी मृत हो।
ਜੇ ਤੈ ਰਬੁ ਵਿਸਾਰਿਆ ਤ ਰਬਿ ਨ ਵਿਸਰਿਓਹਿ ॥੧੦੭॥ यदि तूने रब को भुला दिया है तो रब ने तुझे नहीं भुलाया (वह तेरा हर काम देख रहा है।॥१०७॥
ਮਃ ੫ ॥ महला ५॥
ਫਰੀਦਾ ਕੰਤੁ ਰੰਗਾਵਲਾ ਵਡਾ ਵੇਮੁਹਤਾਜੁ ॥ गुरु अर्जुन देव जी संबोधित करते हैं-हे फरीद ! मालिक बड़ा रंगीला है, स्वाधीन है।
ਅਲਹ ਸੇਤੀ ਰਤਿਆ ਏਹੁ ਸਚਾਵਾਂ ਸਾਜੁ ॥੧੦੮॥ अल्लाह की बंदगी में लीन रहना यही सच्चा श्रृंगार है॥१०८ ॥
ਮਃ ੫ ॥ महला ५ ॥
ਫਰੀਦਾ ਦੁਖੁ ਸੁਖੁ ਇਕੁ ਕਰਿ ਦਿਲ ਤੇ ਲਾਹਿ ਵਿਕਾਰੁ ॥ हे फरीद ! दुख-सुख को एक समान मानो और दिल से बुराइयों को निकाल दो।
ਅਲਹ ਭਾਵੈ ਸੋ ਭਲਾ ਤਾਂ ਲਭੀ ਦਰਬਾਰੁ ॥੧੦੯॥ जो अल्लाह को मंजूर है, उसे ही भला मानो तो ही तुझे दरबार में इज्जत मिलेगी ॥१०६॥
ਮਃ ੫ ॥ महला ५॥
ਫਰੀਦਾ ਦੁਨੀ ਵਜਾਈ ਵਜਦੀ ਤੂੰ ਭੀ ਵਜਹਿ ਨਾਲਿ ॥ गुरु अर्जुन देव जी संबोधित करते हैं- हे फरीद ! दुनिया के लोग माया के साथ ही क्रियाशील हैं और तू भी साथ ही नाच रहा है।
ਸੋਈ ਜੀਉ ਨ ਵਜਦਾ ਜਿਸੁ ਅਲਹੁ ਕਰਦਾ ਸਾਰ ॥੧੧੦॥ परन्तु जिसकी अल्लाह संभाल करता है, वह जीव निर्लिप्त रहता है ॥११० ॥
ਮਃ ੫ ॥ महला ५॥
ਫਰੀਦਾ ਦਿਲੁ ਰਤਾ ਇਸੁ ਦੁਨੀ ਸਿਉ ਦੁਨੀ ਨ ਕਿਤੈ ਕੰਮਿ ॥ हे फरीद ! दिल इस दुनियादारी में लीन है, परन्तु दुनिया किसी काम नहीं आती।


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