Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1353

Page 1353

ਅਸਥਿਰੁ ਜੋ ਮਾਨਿਓ ਦੇਹ ਸੋਤਉ ਤੇਰਉ ਹੋਇ ਹੈ ਖੇਹ ॥ असथिरु जो मानिओ देह सो तउ तेरउ होइ है खेह ॥ जिस शरीर को तूने स्थिर मान लिया है, उसने तो मिट्टी हो जाना है।
ਕਿਉ ਨ ਹਰਿ ਕੋ ਨਾਮੁ ਲੇਹਿ ਮੂਰਖ ਨਿਲਾਜ ਰੇ ॥੧॥ किउ न हरि को नामु लेहि मूरख निलाज रे ॥१॥ हे बेशर्म मूर्ख ! परमात्मा का नाम क्यों नहीं जप रहे॥ १॥
ਰਾਮ ਭਗਤਿ ਹੀਏ ਆਨਿ ਛਾਡਿ ਦੇ ਤੈ ਮਨ ਕੋ ਮਾਨੁ ॥ राम भगति हीए आनि छाडि दे तै मन को मानु ॥ तू राम की भक्ति को अपने हृदय में बसा ले और मन का अभिमान छोड़ दे !
ਨਾਨਕ ਜਨ ਇਹ ਬਖਾਨਿ ਜਗ ਮਹਿ ਬਿਰਾਜੁ ਰੇ ॥੨॥੪॥ नानक जन इह बखानि जग महि बिराजु रे ॥२॥४॥ नानक यही बात कहते हैं कि भक्ति करके संसार में भला जीवन गुजरो ॥ २॥४॥
ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥ केवल एक है, उसका नाम सत्य है, वही संसार को बनाने वाला है, वह सर्वशक्तिमान है, वह भय से रहित है, वह वैर भावना से परे है, वह कालातीत ब्रह्म मूर्ति चिरजीवी है, वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त है, वह स्वतः प्रगट हुआ है, गुरु की कृपा से प्राप्त होता है।
ਸਲੋਕ ਸਹਸਕ੍ਰਿਤੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥ सलोक सहसक्रिती महला १ ॥ सलोक सहसक्रिती महला १ ॥
ਪੜਿੑ ਪੁਸ੍ਤਕ ਸੰਧਿਆ ਬਾਦੰ ॥ पड़्हि पुस्तक संधिआ बादं ॥ पण्डित लोग धर्म ग्रंथों का पाठ-पठन करते हैं, संध्या की वन्दना-आरती करते हैं।
ਸਿਲ ਪੂਜਸਿ ਬਗੁਲ ਸਮਾਧੰ ॥ सिल पूजसि बगुल समाधं ॥ पत्थर की मूर्ति को भगवान मानकर पूजा-अर्चना करते हैं और बगुलों की तरह समाधि लगाते हैं।
ਮੁਖਿ ਝੂਠੁ ਬਿਭੂਖਨ ਸਾਰੰ ॥ मुखि झूठु बिभूखन सारं ॥ वे मुँह से झूठ बोलकरं लोहे को भी स्वर्ण का आभूषण बताते हैं
ਤ੍ਰੈਪਾਲ ਤਿਹਾਲ ਬਿਚਾਰੰ ॥ त्रैपाल तिहाल बिचारं ॥ वे प्रतिदिन तीनों समय गायत्री मंत्र का जाप करते हैं।
ਗਲਿ ਮਾਲਾ ਤਿਲਕ ਲਿਲਾਟੰ ॥ गलि माला तिलक लिलाटं ॥ वे गले में माला एवं माथे पर तिलक लगाते हैं।
ਦੁਇ ਧੋਤੀ ਬਸਤ੍ਰ ਕਪਾਟੰ ॥ दुइ धोती बसत्र कपाटं ॥ वे दुहरी धोती एवं वस्त्र धारण करते हैं।
ਜੋ ਜਾਨਸਿ ਬ੍ਰਹਮੰ ਕਰਮੰ ॥ जो जानसि ब्रहमं करमं ॥ लेकिन जो व्यक्ति परमात्मा की भक्ति को ही उत्तम कर्म मानते हैं,
ਸਭ ਫੋਕਟ ਨਿਸਚੈ ਕਰਮੰ ॥ सभ फोकट निसचै करमं ॥ निश्चय ही जान लो उनके लिए अन्य सब कर्म व्यर्थ हैं।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਨਿਸਚੌ ਧਿ੍ਾਵੈ ॥ कहु नानक निसचौ िध्यावै ॥ गुरु नानक का फुरमान है कि उचित तो यही है कि निश्चय रखकर ईश्वर का ध्यान किया जाए,
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਬਾਟ ਨ ਪਾਵੈ ॥੧॥ बिनु सतिगुर बाट न पावै ॥१॥ लेकिन सच्चे गुरु के बिना यह रास्ता प्राप्त नहीं होता॥ १॥
ਨਿਹਫਲੰ ਤਸੵ ਜਨਮਸੵ ਜਾਵਦ ਬ੍ਰਹਮ ਨ ਬਿੰਦਤੇ ॥ निहफलं तस्य जनमस्य जावद ब्रहम न बिंदते ॥ जब तक मनुष्य परब्रह्म को नहीं मानता, उसकी उपासना नहीं करता, उसका जन्म निष्फल है।
ਸਾਗਰੰ ਸੰਸਾਰਸੵ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਤਰਹਿ ਕੇ ॥ सागरं संसारस्य गुर परसादी तरहि के ॥ इस संसार-सागर से कोई गुरु की कृपा से ही पार होता है।
ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਮਰਥੁ ਹੈ ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਬੀਚਾਰਿ ॥ करण कारण समरथु है कहु नानक बीचारि ॥ नानक का यही विचार है कि वह सर्व करने-करवाने में पूर्ण समर्थ है।
ਕਾਰਣੁ ਕਰਤੇ ਵਸਿ ਹੈ ਜਿਨਿ ਕਲ ਰਖੀ ਧਾਰਿ ॥੨॥ कारणु करते वसि है जिनि कल रखी धारि ॥२॥ पूरा संसार उस बनाने वाले के वश में है, जो सर्व-शक्तियों में परिपूर्ण है॥ २॥
ਜੋਗ ਸਬਦੰ ਗਿਆਨ ਸਬਦੰ ਬੇਦ ਸਬਦੰ ਤ ਬ੍ਰਾਹਮਣਹ ॥ जोग सबदं गिआन सबदं बेद सबदं त ब्राहमणह ॥ योगियों का धर्म ज्ञान प्राप्त करना है, ब्राह्मणों का धर्म वेदों का अध्ययन करना (माना गया) है।
ਖਤ੍ਰੀ ਸਬਦੰ ਸੂਰ ਸਬਦੰ ਸੂਦ੍ਰ ਸਬਦੰ ਪਰਾ ਕ੍ਰਿਤਹ ॥ ख्यत्री सबदं सूर सबदं सूद्र सबदं परा क्रितह ॥ क्षत्रियों का धर्म शूरवीरता का कार्य करना है और शूद्रों का धर्म लोगों की सेवा बन गया है।
ਸਰਬ ਸਬਦੰ ਤ ਏਕ ਸਬਦੰ ਜੇ ਕੋ ਜਾਨਸਿ ਭੇਉ ॥ सरब सबदं त एक सबदं जे को जानसि भेउ ॥ परन्तु सर्वश्रेष्ठ धर्म यह है कि केवल ईश्वर की भक्ति की जाए।
ਨਾਨਕ ਤਾ ਕੋ ਦਾਸੁ ਹੈ ਸੋਈ ਨਿਰੰਜਨ ਦੇਉ ॥੩॥ नानक ता को दासु है सोई निरंजन देउ ॥३॥ जो मनुष्य इस भेद को जानता है, गुरु नानक फुरमाते हैं कि हमें उसकी दासता कबूल है और वस्तुतः वही परमात्मा का रूप है॥ ३॥
ਏਕ ਕ੍ਰਿਸ੍ਨੰ ਤ ਸਰਬ ਦੇਵਾ ਦੇਵ ਦੇਵਾ ਤ ਆਤਮਹ ॥ एक क्रिस्नं त सरब देवा देव देवा त आतमह ॥ सृष्टि का जन्मदाता, पोषक, संहारक एक परमेश्वर ही सब देवताओं का देवता और देवताओं की आत्मा है।
ਆਤਮੰ ਸ੍ਰੀ ਬਾਸ੍ਵਦੇਵਸ੍ ਜੇ ਕੋਈ ਜਾਨਸਿ ਭੇਵ ॥ आतमं स्री बास्वदेवस्य जे कोई जानसि भेव ॥ यदि कोई इस रहस्य को जानता है।
ਨਾਨਕ ਤਾ ਕੋ ਦਾਸੁ ਹੈ ਸੋਈ ਨਿਰੰਜਨ ਦੇਵ ॥੪॥ नानक ता को दासु है सोई निरंजन देव ॥४॥ गुरु नानक फुरमाते हैं कि हम तो उसके दास (बनने को तैयार) हैं, वही ईश्वर का रूप होता है॥ ४॥
ਸਲੋਕ ਸਹਸਕ੍ਰਿਤੀ ਮਹਲਾ ੫ सलोक सहसक्रिती महला ५ सलोक सहसक्रिती महला ५
ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥ वह अद्वैत परमेश्वर केवल (ऑकार स्वरूप) एक ही है, उसका नाम सत्य है।वह सृष्टि का रचनहार है, सर्वशक्तिमान है। वह भय से रहित है, वह निर्वेर है। वह भूत, भविष्य, वर्तमान से परे, कालातीत ब्रह्म मूर्ति अटल है।वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त है। वह स्वतः प्रकाशमान हुआ है, गुरु की कृपा से प्राप्त होता है।
ਕਤੰਚ ਮਾਤਾ ਕਤੰਚ ਪਿਤਾ ਕਤੰਚ ਬਨਿਤਾ ਬਿਨੋਦ ਸੁਤਹ ॥ कतंच माता कतंच पिता कतंच बनिता बिनोद सुतह ॥ माता-पिता कौन किसका है, पुत्र एवं पत्नी से मोह-प्रेम कहाँ साथ देते हैं ?
ਕਤੰਚ ਭ੍ਰਾਤ ਮੀਤ ਹਿਤ ਬੰਧਵ ਕਤੰਚ ਮੋਹ ਕੁਟੰਬੵਤੇ ॥ कतंच भ्रात मीत हित बंधव कतंच मोह कुट्मब्यते ॥ भाई, मित्र, शुभचिन्तक, रिश्तेदार एवं परिवार का मोह कहाँ साथ निभाता है।
ਕਤੰਚ ਚਪਲ ਮੋਹਨੀ ਰੂਪੰ ਪੇਖੰਤੇ ਤਿਆਗੰ ਕਰੋਤਿ ॥ कतंच चपल मोहनी रूपं पेखंते तिआगं करोति ॥ चंचल माया मोहित करती रहती है, यह भी देखते-देखते साथ छोड़ जाती है।
ਰਹੰਤ ਸੰਗ ਭਗਵਾਨ ਸਿਮਰਣ ਨਾਨਕ ਲਬਧੵੰ ਅਚੁਤ ਤਨਹ ॥੧॥ रहंत संग भगवान सिमरण नानक लबध्यं अचुत तनह ॥१॥ गुरु नानक का फुरमान है कि भगवान का सिमरन ही साथ रहता है, जो महात्मा एवं भक्तजनों से ही प्राप्त होता है॥ १॥


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