Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1300

Page 1300

ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ कानड़ा महला ५ ॥ कानड़ा महला ५ ॥
ਸਾਧ ਸਰਨਿ ਚਰਨ ਚਿਤੁ ਲਾਇਆ ॥ साध सरनि चरन चितु लाइआ ॥ साधु महापुरुष के चरण-कमल में मन लगाया है।
ਸੁਪਨ ਕੀ ਬਾਤ ਸੁਨੀ ਪੇਖੀ ਸੁਪਨਾ ਨਾਮ ਮੰਤ੍ਰੁ ਸਤਿਗੁਰੂ ਦ੍ਰਿੜਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सुपन की बात सुनी पेखी सुपना नाम मंत्रु सतिगुरू द्रिड़ाइआ ॥१॥ रहाउ ॥ मैंने दुनिया के सपना होने की बात सुनी थी, अब सच्चे गुरु ने नाम उपदेश दिया तो सच्चाई को देख लिया है कि यह सपना ही है॥१॥रहाउ॥
ਨਹ ਤ੍ਰਿਪਤਾਨੋ ਰਾਜ ਜੋਬਨਿ ਧਨਿ ਬਹੁਰਿ ਬਹੁਰਿ ਫਿਰਿ ਧਾਇਆ ॥ नह त्रिपतानो राज जोबनि धनि बहुरि बहुरि फिरि धाइआ ॥ राज्य, यौवन, धन-दौलत इत्यादि से व्यक्ति तृप्त नहीं होता और बार-बार अधिकाधिक पाने की लालसा करता है।
ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਸਭ ਬੁਝੀ ਹੈ ਸਾਂਤਿ ਪਾਈ ਗੁਨ ਗਾਇਆ ॥੧॥ सुखु पाइआ त्रिसना सभ बुझी है सांति पाई गुन गाइआ ॥१॥ परमात्मा के गुणगान से शान्ति प्राप्त होती है, सब तृष्णा बुझ जाती है और सुख ही सुख मिलता है॥१॥
ਬਿਨੁ ਬੂਝੇ ਪਸੂ ਕੀ ਨਿਆਈ ਭ੍ਰਮਿ ਮੋਹਿ ਬਿਆਪਿਓ ਮਾਇਆ ॥ बिनु बूझे पसू की निआई भ्रमि मोहि बिआपिओ माइआ ॥ सत्य को समझे बिना जीव पशु की तरह है और भ्रम, मोह एवं माया में ही व्याप्त रहता है।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਜਮ ਜੇਵਰੀ ਕਾਟੀ ਨਾਨਕ ਸਹਜਿ ਸਮਾਇਆ ॥੨॥੧੦॥ साधसंगि जम जेवरी काटी नानक सहजि समाइआ ॥२॥१०॥ हे नानक ! साधु पुरुष के साथ हमारी मृत्यु की जंजीर कट गई है और स्वाभाविक ही सत्य में लीन हो गया हूँ॥२॥१०॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ कानड़ा महला ५ ॥ कानड़ा महला ५ ॥
ਹਰਿ ਕੇ ਚਰਨ ਹਿਰਦੈ ਗਾਇ ॥ हरि के चरन हिरदै गाइ ॥ परमात्मा के चरणों का हृदय में स्तुतिगान करो,
ਸੀਤਲਾ ਸੁਖ ਸਾਂਤਿ ਮੂਰਤਿ ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਨਿਤ ਧਿਆਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सीतला सुख सांति मूरति सिमरि सिमरि नित धिआइ ॥१॥ रहाउ ॥ शीतल सुख शान्ति की मूर्ति प्रभु का नित्य स्मरण करो॥१॥रहाउ॥
ਸਗਲ ਆਸ ਹੋਤ ਪੂਰਨ ਕੋਟਿ ਜਨਮ ਦੁਖੁ ਜਾਇ ॥੧॥ सगल आस होत पूरन कोटि जनम दुखु जाइ ॥१॥ इसके फलस्वरूप सब आशाएँ पूर्ण होती हैं और करोड़ों जन्मों के दुख दूर हो जाते हैं।॥१॥
ਪੁੰਨ ਦਾਨ ਅਨੇਕ ਕਿਰਿਆ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਸਮਾਇ ॥ पुंन दान अनेक किरिआ साधू संगि समाइ ॥ साधुजनों के साथ दान-पुण्य एवं अनेक कर्मों का फल है।
ਤਾਪ ਸੰਤਾਪ ਮਿਟੇ ਨਾਨਕ ਬਾਹੁੜਿ ਕਾਲੁ ਨ ਖਾਇ ॥੨॥੧੧॥ ताप संताप मिटे नानक बाहुड़ि कालु न खाइ ॥२॥११॥ हे नानक ! इस तरह सब ताप-संताप मिट जाते हैं और पुनः मृत्यु भी ग्रास नहीं बनाती॥२॥११॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੩ कानड़ा महला ५ घरु ३ कानड़ा महला ५ घरु ३
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਕਥੀਐ ਸੰਤਸੰਗਿ ਪ੍ਰਭ ਗਿਆਨੁ ॥ कथीऐ संतसंगि प्रभ गिआनु ॥ संत-महापुरुषों के साथ प्रभु का ज्ञान कथन करना चाहिए।
ਪੂਰਨ ਪਰਮ ਜੋਤਿ ਪਰਮੇਸੁਰ ਸਿਮਰਤ ਪਾਈਐ ਮਾਨੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ पूरन परम जोति परमेसुर सिमरत पाईऐ मानु ॥१॥ रहाउ ॥ पूर्ण परम ज्योति परमेश्वर का सुमिरन (स्मरण) करने से मान-सम्मान प्राप्त होता है॥१॥रहाउ॥
ਆਵਤ ਜਾਤ ਰਹੇ ਸ੍ਰਮ ਨਾਸੇ ਸਿਮਰਤ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ॥ आवत जात रहे स्रम नासे सिमरत साधू संगि ॥ साधुओं के साथ भगवान का स्मरण करने से आवागमन दूर हो जाता है और हर श्रम नष्ट हो जाता है।
ਪਤਿਤ ਪੁਨੀਤ ਹੋਹਿ ਖਿਨ ਭੀਤਰਿ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਕੈ ਰੰਗਿ ॥੧॥ पतित पुनीत होहि खिन भीतरि पारब्रहम कै रंगि ॥१॥ परब्रह्म के रंग में लीन होने वाले पापी भी पल में पावन हो जाते हैं।॥१॥
ਜੋ ਜੋ ਕਥੈ ਸੁਨੈ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਤਾ ਕੀ ਦੁਰਮਤਿ ਨਾਸ ॥ जो जो कथै सुनै हरि कीरतनु ता की दुरमति नास ॥ जो-जो हरि-कीर्तन सुनता या कथन करता, उसकी दुर्मति नाश हो जाती है।
ਸਗਲ ਮਨੋਰਥ ਪਾਵੈ ਨਾਨਕ ਪੂਰਨ ਹੋਵੈ ਆਸ ॥੨॥੧॥੧੨॥ सगल मनोरथ पावै नानक पूरन होवै आस ॥२॥१॥१२॥ हे नानक ! वह सभी मनोरथ प्राप्त करता है और उसकी हर आशा पूर्ण होती है॥२॥१॥१२॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ कानड़ा महला ५ ॥ कानड़ा महला ५ ॥
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਨਿਧਿ ਹਰਿ ਕੋ ਨਾਮ ॥ साधसंगति निधि हरि को नाम ॥ साधु पुरुषों की संगत में सुखों का भण्डार हरिनाम है,
ਸੰਗਿ ਸਹਾਈ ਜੀਅ ਕੈ ਕਾਮ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ संगि सहाई जीअ कै काम ॥१॥ रहाउ ॥ यही सच्चा साथी एवं सहायक है, जो जीव के काम आता है।१॥रहाउ॥
ਸੰਤ ਰੇਨੁ ਨਿਤਿ ਮਜਨੁ ਕਰੈ ॥ संत रेनु निति मजनु करै ॥ नित्य संतों की चरणरज में स्नान करना चाहिए,
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਕਿਲਬਿਖ ਹਰੈ ॥੧॥ जनम जनम के किलबिख हरै ॥१॥ इससे जन्म-जन्मांतर के पाप खत्म हो जाते हैं।॥१॥
ਸੰਤ ਜਨਾ ਕੀ ਊਚੀ ਬਾਨੀ ॥ संत जना की ऊची बानी ॥ संतजनों की वाणी बहुत ऊँची है,
ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਤਰੇ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਾਨੀ ॥੨॥੨॥੧੩॥ सिमरि सिमरि तरे नानक प्रानी ॥२॥२॥१३॥ हे नानक ! स्मरण करने वाला प्राणी संसार-समुद्र से पार हो जाता है॥२॥२॥१३॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ कानड़ा महला ५ ॥ कानड़ा महला ५ ॥
ਸਾਧੂ ਹਰਿ ਹਰੇ ਗੁਨ ਗਾਇ ॥ साधू हरि हरे गुन गाइ ॥ हे साधु पुरुषो ! परमात्मा का गुण-गान करो।
ਮਾਨ ਤਨੁ ਧਨੁ ਪ੍ਰਾਨ ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਸਿਮਰਤ ਦੁਖੁ ਜਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मान तनु धनु प्रान प्रभ के सिमरत दुखु जाइ ॥१॥ रहाउ ॥ मान-सम्मान, तन, धन, प्रण सब यही है और प्रभु के स्मरण से सब दुख दूर हो जाते हैं।॥१॥रहाउ॥
ਈਤ ਊਤ ਕਹਾ ਲੋੁਭਾਵਹਿ ਏਕ ਸਿਉ ਮਨੁ ਲਾਇ ॥੧॥ ईत ऊत कहा लोभावहि एक सिउ मनु लाइ ॥१॥ इधर-उधर क्यों लोभ करते हो, एक ईश्वर में मन लगाओ॥१॥
ਮਹਾ ਪਵਿਤ੍ਰ ਸੰਤ ਆਸਨੁ ਮਿਲਿ ਸੰਗਿ ਗੋਬਿਦੁ ਧਿਆਇ ॥੨॥ महा पवित्र संत आसनु मिलि संगि गोबिदु धिआइ ॥२॥ संतों का स्थान महा पवित्र है, इनके साथ मिलकर ईश्वर का चिंतन करो॥२॥
ਸਗਲ ਤਿਆਗਿ ਸਰਨਿ ਆਇਓ ਨਾਨਕ ਲੇਹੁ ਮਿਲਾਇ ॥੩॥੩॥੧੪॥ सगल तिआगि सरनि आइओ नानक लेहु मिलाइ ॥३॥३॥१४॥ नानक की विनती है कि मैं सब त्याग कर शरण में आया हूँ, साथ मिला लो॥३॥३॥१४॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ कानड़ा महला ५ ॥ कानड़ा महला ५ ॥
ਪੇਖਿ ਪੇਖਿ ਬਿਗਸਾਉ ਸਾਜਨ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪਨਾ ਇਕਾਂਤ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ पेखि पेखि बिगसाउ साजन प्रभु आपना इकांत ॥१॥ रहाउ ॥ मैं अपने सज्जन प्रभु को देख-देख कर खुशी मनाता हूँ॥१॥रहाउ॥
ਆਨਦਾ ਸੁਖ ਸਹਜ ਮੂਰਤਿ ਤਿਸੁ ਆਨ ਨਾਹੀ ਭਾਂਤਿ ॥੧॥ आनदा सुख सहज मूरति तिसु आन नाही भांति ॥१॥ वह आनंद एवं परम सुख की मूर्ति है, उसके अलावा अन्य कुछ भी अच्छा नहीं लगता॥१॥
ਸਿਮਰਤ ਇਕ ਬਾਰ ਹਰਿ ਹਰਿ ਮਿਟਿ ਕੋਟਿ ਕਸਮਲ ਜਾਂਤਿ ॥੨॥ सिमरत इक बार हरि हरि मिटि कोटि कसमल जांति ॥२॥ एक बार परमात्मा का स्मरण करने से करोड़ों पाप-दोष मिट जाते हैं।॥२॥


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