Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1264

Page 1264

ਹਰਿ ਬੋਲਹੁ ਗੁਰ ਕੇ ਸਿਖ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ਹਰਿ ਭਉਜਲੁ ਜਗਤੁ ਤਰਾਵੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हरि बोलहु गुर के सिख मेरे भाई हरि भउजलु जगतु तरावै ॥१॥ रहाउ ॥ हे मेरे भाई ! गुरु के शिष्यो, हरि का नामोच्चारण करो, यही भयानक संसार-सागर से तैराता है॥१॥रहाउ॥
ਜੋ ਗੁਰ ਕਉ ਜਨੁ ਪੂਜੇ ਸੇਵੇ ਸੋ ਜਨੁ ਮੇਰੇ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਭਾਵੈ ॥ जो गुर कउ जनु पूजे सेवे सो जनु मेरे हरि प्रभ भावै ॥ जो व्यक्ति गुरु की पूजा एवं सेवा करता है, वही मेरे प्रभु को प्रिय लगता है।
ਹਰਿ ਕੀ ਸੇਵਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਜਹੁ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਆਪਿ ਤਰਾਵੈ ॥੨॥ हरि की सेवा सतिगुरु पूजहु करि किरपा आपि तरावै ॥२॥ ईश्वर की उपासना करो, सबसे पहले सच्चे गुरु का पूजन करो, वह कृपा करके स्वयं संसार-सागर से तिरा देता है॥२॥
ਭਰਮਿ ਭੂਲੇ ਅਗਿਆਨੀ ਅੰਧੁਲੇ ਭ੍ਰਮਿ ਭ੍ਰਮਿ ਫੂਲ ਤੋਰਾਵੈ ॥ भरमि भूले अगिआनी अंधुले भ्रमि भ्रमि फूल तोरावै ॥ भ्रम में भूला हुआ अज्ञानांध अज्ञानी जीव मूर्तियों पर फूल भेंट करता है।
ਨਿਰਜੀਉ ਪੂਜਹਿ ਮੜਾ ਸਰੇਵਹਿ ਸਭ ਬਿਰਥੀ ਘਾਲ ਗਵਾਵੈ ॥੩॥ निरजीउ पूजहि मड़ा सरेवहि सभ बिरथी घाल गवावै ॥३॥ वह पत्थर की मूर्तियों की पूजा-अर्चना करता है, समाधियों पर शीश निवाता है और अपनी मेहनत व्यर्थ गंवा देता है॥३॥
ਬ੍ਰਹਮੁ ਬਿੰਦੇ ਸੋ ਸਤਿਗੁਰੁ ਕਹੀਐ ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਥਾ ਸੁਣਾਵੈ ॥ ब्रहमु बिंदे सो सतिगुरु कहीऐ हरि हरि कथा सुणावै ॥ जो ब्रह्म को जानता है, वही सच्चा गुरु कहलाता है और हरि की कथा सुनाता है।
ਤਿਸੁ ਗੁਰ ਕਉ ਛਾਦਨ ਭੋਜਨ ਪਾਟ ਪਟੰਬਰ ਬਹੁ ਬਿਧਿ ਸਤਿ ਕਰਿ ਮੁਖਿ ਸੰਚਹੁ ਤਿਸੁ ਪੁੰਨ ਕੀ ਫਿਰਿ ਤੋਟਿ ਨ ਆਵੈ ॥੪॥ तिसु गुर कउ छादन भोजन पाट पट्मबर बहु बिधि सति करि मुखि संचहु तिसु पुंन की फिरि तोटि न आवै ॥४॥ उस गुरु को अनेक प्रकार के भोजन, सुन्दर वस्त्र इत्यादि सर्वस्व अर्पण करो, उसे सत्य मानकर उसकी शिक्षाओं को ग्रहण करो, उस पुण्य से पुनः कोई कमी नहीं आएगी॥४॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਦੇਉ ਪਰਤਖਿ ਹਰਿ ਮੂਰਤਿ ਜੋ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਚਨ ਸੁਣਾਵੈ ॥ सतिगुरु देउ परतखि हरि मूरति जो अम्रित बचन सुणावै ॥ सच्चा गुरु साक्षात् परमात्मा की मूर्ति है, जो जिज्ञासुओं को अमृत वचन सुनाता है।
ਨਾਨਕ ਭਾਗ ਭਲੇ ਤਿਸੁ ਜਨ ਕੇ ਜੋ ਹਰਿ ਚਰਣੀ ਚਿਤੁ ਲਾਵੈ ॥੫॥੪॥ नानक भाग भले तिसु जन के जो हरि चरणी चितु लावै ॥५॥४॥ हे नानक ! उसी व्यक्ति के अहोभाग्य हैं, जो परमात्मा के चरणों में मन लगाता है॥५॥४॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੪ ॥ मलार महला ४ ॥ मलार महला ४ ॥
ਜਿਨ੍ ਕੈ ਹੀਅਰੈ ਬਸਿਓ ਮੇਰਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਤੇ ਸੰਤ ਭਲੇ ਭਲ ਭਾਂਤਿ ॥ जिन्ह कै हीअरै बसिओ मेरा सतिगुरु ते संत भले भल भांति ॥ जिनके हृदय में मेरा सतिगुरु बस गया है, वे संत पुरुष हर प्रकार से उत्तम एवं भले हैं।
ਤਿਨ੍ ਦੇਖੇ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਬਿਗਸੈ ਹਉ ਤਿਨ ਕੈ ਸਦ ਬਲਿ ਜਾਂਤ ॥੧॥ तिन्ह देखे मेरा मनु बिगसै हउ तिन कै सद बलि जांत ॥१॥ उनके दर्शनों से मेरा मन खिल उठता है और मैं इन महापुरुषों पर सदा कुर्बान जाता हूँ॥१॥
ਗਿਆਨੀ ਹਰਿ ਬੋਲਹੁ ਦਿਨੁ ਰਾਤਿ ॥ गिआनी हरि बोलहु दिनु राति ॥ उन ज्ञानियों के साथ दिन-रात हरि का नामोच्चारण करो।
ਤਿਨ੍ ਕੀ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਭੂਖ ਸਭ ਉਤਰੀ ਜੋ ਗੁਰਮਤਿ ਰਾਮ ਰਸੁ ਖਾਂਤਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ तिन्ह की त्रिसना भूख सभ उतरी जो गुरमति राम रसु खांति ॥१॥ रहाउ ॥ जो गुरु की शिक्षा द्वारा राम नाम रस का आस्वादन लेते हैं, उनकी तृष्णा एवं भूख सब उतर जाती है।॥१॥रहाउ॥
ਹਰਿ ਕੇ ਦਾਸ ਸਾਧ ਸਖਾ ਜਨ ਜਿਨ ਮਿਲਿਆ ਲਹਿ ਜਾਇ ਭਰਾਂਤਿ ॥ हरि के दास साध सखा जन जिन मिलिआ लहि जाइ भरांति ॥ ईश्वर के भक्त, साधुजन ही सच्चे मित्र हैं, जिनको मिलकर भ्रम-भ्रांति दूर हो जाती है।
ਜਿਉ ਜਲ ਦੁਧ ਭਿੰਨ ਭਿੰਨ ਕਾਢੈ ਚੁਣਿ ਹੰਸੁਲਾ ਤਿਉ ਦੇਹੀ ਤੇ ਚੁਣਿ ਕਾਢੈ ਸਾਧੂ ਹਉਮੈ ਤਾਤਿ ॥੨॥ जिउ जल दुध भिंन भिंन काढै चुणि हंसुला तिउ देही ते चुणि काढै साधू हउमै ताति ॥२॥ ज्यों हंस जल में से दूध को अलग-अलग कर देता है, वैसे ही साधु-महात्मा जन शरीर में से अभिमान की पीड़ा को निकाल देते हैं।॥२॥
ਜਿਨ ਕੈ ਪ੍ਰੀਤਿ ਨਾਹੀ ਹਰਿ ਹਿਰਦੈ ਤੇ ਕਪਟੀ ਨਰ ਨਿਤ ਕਪਟੁ ਕਮਾਂਤਿ ॥ जिन कै प्रीति नाही हरि हिरदै ते कपटी नर नित कपटु कमांति ॥ जिनके मन में परमात्मा का प्रेम नहीं होता, ऐसे कपटी लोग प्रतिदिन कपट करते हैं।
ਤਿਨ ਕਉ ਕਿਆ ਕੋਈ ਦੇਇ ਖਵਾਲੈ ਓਇ ਆਪਿ ਬੀਜਿ ਆਪੇ ਹੀ ਖਾਂਤਿ ॥੩॥ तिन कउ किआ कोई देइ खवालै ओइ आपि बीजि आपे ही खांति ॥३॥ ऐसे लोगों को भला कोई बुलाकर क्या देगा, क्या खिलाएगा। वे जो भी अच्छा बुरा बोते हैं, वही खाते हैं।॥३॥
ਹਰਿ ਕਾ ਚਿਹਨੁ ਸੋਈ ਹਰਿ ਜਨ ਕਾ ਹਰਿ ਆਪੇ ਜਨ ਮਹਿ ਆਪੁ ਰਖਾਂਤਿ ॥ हरि का चिहनु सोई हरि जन का हरि आपे जन महि आपु रखांति ॥ जो ईश्वर का गुण है, वही उसके भक्तों में है और ईश्वर भक्तों में ही स्वयं को स्थिर रखता है।
ਧਨੁ ਧੰਨੁ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕੁ ਸਮਦਰਸੀ ਜਿਨਿ ਨਿੰਦਾ ਉਸਤਤਿ ਤਰੀ ਤਰਾਂਤਿ ॥੪॥੫॥ धनु धंनु गुरू नानकु समदरसी जिनि निंदा उसतति तरी तरांति ॥४॥५॥ समदर्शी गुरु नानक धन्य एवं प्रशंसा के पात्र हैं, जिन्होंने निन्दा एवं स्तुति से मुक्त होकर अन्य लोगों को भी इससे पार कर दिया है॥४॥५॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੪ ॥ मलार महला ४ ॥ मलार महला ४ ॥
ਅਗਮੁ ਅਗੋਚਰੁ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਊਤਮੁ ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਜਪਿ ਲਇਆ ॥ अगमु अगोचरु नामु हरि ऊतमु हरि किरपा ते जपि लइआ ॥ अपहुँच, मन-वाणी से परे परमात्मा का नाम सर्वोत्तम है और उसकी कृपा से ही नाम का जाप किया है।
ਸਤਸੰਗਤਿ ਸਾਧ ਪਾਈ ਵਡਭਾਗੀ ਸੰਗਿ ਸਾਧੂ ਪਾਰਿ ਪਇਆ ॥੧॥ सतसंगति साध पाई वडभागी संगि साधू पारि पइआ ॥१॥ मैं भाग्यशाली हूँ, जो मुझे सच्चे साधु की संगत प्राप्त हुई, साधु की संगत में संसार-सागर से पार हो गया हूँ॥१॥
ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਅਨਦਿਨੁ ਅਨਦੁ ਭਇਆ ॥ मेरै मनि अनदिनु अनदु भइआ ॥ मेरे मन में आनंद ही आनंद हो गया है,
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਜਪਿਆ ਮੇਰੇ ਮਨ ਕਾ ਭ੍ਰਮੁ ਭਉ ਗਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुर परसादि नामु हरि जपिआ मेरे मन का भ्रमु भउ गइआ ॥१॥ रहाउ ॥ गुरु की कृपा से हरिनाम का जाप किया, जिससे मन का भ्रम एवं भय दूर हो गया॥१॥रहाउ॥
ਜਿਨ ਹਰਿ ਗਾਇਆ ਜਿਨ ਹਰਿ ਜਪਿਆ ਤਿਨ ਸੰਗਤਿ ਹਰਿ ਮੇਲਹੁ ਕਰਿ ਮਇਆ ॥ जिन हरि गाइआ जिन हरि जपिआ तिन संगति हरि मेलहु करि मइआ ॥ जिन्होंने परमात्मा का गुणगान किया है, हरिनाम जपा है, हे प्रभु! दया करके उनकी संगत में मिला दो।
ਤਿਨ ਕਾ ਦਰਸੁ ਦੇਖਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਦੁਖੁ ਹਉਮੈ ਰੋਗੁ ਗਇਆ ॥੨॥ तिन का दरसु देखि सुखु पाइआ दुखु हउमै रोगु गइआ ॥२॥ उनके दर्शन से परम-सुख प्राप्त होता है और अहम् एवं दुख का रोग दूर हो जाता है॥२॥
ਜੋ ਅਨਦਿਨੁ ਹਿਰਦੈ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਹਿ ਸਭੁ ਜਨਮੁ ਤਿਨਾ ਕਾ ਸਫਲੁ ਭਇਆ ॥ जो अनदिनु हिरदै नामु धिआवहि सभु जनमु तिना का सफलु भइआ ॥ जो दिन-रात हृदय में हरिनाम का ध्यान करते हैं, उनका पूरा जन्म सफल हो जाता है।
ਓਇ ਆਪਿ ਤਰੇ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਸਭ ਤਾਰੀ ਸਭੁ ਕੁਲੁ ਭੀ ਪਾਰਿ ਪਇਆ ॥੩॥ ओइ आपि तरे स्रिसटि सभ तारी सभु कुलु भी पारि पइआ ॥३॥ वे स्वयं तो पार होते ही हैं, सारी दुनिया को भी पार उतार देते हैं, और तो और उनकी समूची वंशावलि भी संसार-सागर से पार हो जाती है।॥३॥
ਤੁਧੁ ਆਪੇ ਆਪਿ ਉਪਾਇਆ ਸਭੁ ਜਗੁ ਤੁਧੁ ਆਪੇ ਵਸਿ ਕਰਿ ਲਇਆ ॥ तुधु आपे आपि उपाइआ सभु जगु तुधु आपे वसि करि लइआ ॥ हे सर्वेश्वर ! समूचा जग तूने स्वयं उत्पन्न किया है और स्वयं ही अपने वश में किया हुआ है।


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