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ਗੁਰਮੁਖਿ ਜੀਵੈ ਮਰੈ ਪਰਵਾਣੁ ॥
गुरमुख भाव गुरु के अनुयायी को जीवन और मृत्यु दोनों में ईश्वर द्वारा स्वीकृति मिलती है।
ਆਰਜਾ ਨ ਛੀਜੈ ਸਬਦੁ ਪਛਾਣੁ ॥
जब से उसे गुरु उपदेश का ज्ञान हुआ है, उसका जीवन व्यर्थ नहीं गया।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਰੈ ਨ ਕਾਲੁ ਨ ਖਾਏ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਚਿ ਸਮਾਵਣਿਆ ॥੨॥
गुरु का अनुयायी सदैव ईश्वर के स्मरण में लीन रहता है, वह आध्यात्मिक रूप से जीवित रहता है तथा उसे मृत्यु का भय नहीं रहता। २॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਦਰਿ ਸੋਭਾ ਪਾਏ ॥
ऐसे गुरमुख ईश्वर के दरबार में बड़ी शोभा पाते हैं।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਏ ॥
गुरमुख अपने मन में से अहंकार को मिटा देता है।
ਆਪਿ ਤਰੈ ਕੁਲ ਸਗਲੇ ਤਾਰੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਨਮੁ ਸਵਾਰਣਿਆ ॥੩॥
गुरमुख जीव स्वयं भवसागर से पार हो जाता है और अपने समूचे वंश को भी पार कर लेता है और अपना जीवन संवार लेता है॥३॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਦੁਖੁ ਕਦੇ ਨ ਲਗੈ ਸਰੀਰਿ ॥
गुरु के अनुयायी को कभी कोई शारीरिक कष्ट महसूस नहीं होता।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਉਮੈ ਚੂਕੈ ਪੀਰ ॥
गुरमुख के अहंकार की वेदना-पीड़ा दूर हो जाती है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਫਿਰਿ ਮੈਲੁ ਨ ਲਾਗੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਹਜਿ ਸਮਾਵਣਿਆ ॥੪॥
गुरु का अनुयायी आध्यात्मिक शांति में लीन रहता है, उसका मन अहम् की मैल को दूर कर शुद्ध हो जाता है और अहंकार की गंदगी फिर कभी उससे चिपकती नहीं है। ॥४॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਵਡਿਆਈ ॥
गुरमुख ईश्वर के नाम की महिमा प्राप्त करता है
ਗੁਰਮੁਖਿ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਸੋਭਾ ਪਾਈ ॥
गुरमुख भगवान् का गुणानुवाद करता है और दुनिया में बड़ी शोभा प्राप्त करता है।
ਸਦਾ ਅਨੰਦਿ ਰਹੈ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਬਦੁ ਕਰਾਵਣਿਆ ॥੫॥
वह सदैव ही दिन-रात आनंदपूर्वक रहता है तथा दूसरों को गुरु के वचन के अनुसार आचरण करने के लिए सदैव प्रेरित करता रहता है। ॥५॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਅਨਦਿਨੁ ਸਬਦੇ ਰਾਤਾ ॥
गुरमुख रात-दिन दिव्य शब्द में मग्न रहता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜੁਗ ਚਾਰੇ ਹੈ ਜਾਤਾ ॥
गुरमुख चारों युगों में जाना जाता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਸਦਾ ਨਿਰਮਲੁ ਸਬਦੇ ਭਗਤਿ ਕਰਾਵਣਿਆ ॥੬॥
गुरमुख सदा निर्मल प्रभु का यशोगान करता है और शब्द द्वारा भगवान् की भक्ति करता रहता है।॥६॥
ਬਾਝੁ ਗੁਰੂ ਹੈ ਅੰਧ ਅੰਧਾਰਾ ॥
गुरु के बिना घनघोर अंधकार है।
ਜਮਕਾਲਿ ਗਰਠੇ ਕਰਹਿ ਪੁਕਾਰਾ ॥
यमदूत द्वारा जकड़े और पकड़े जाने पर मनुष्य जोर-जोर से चिल्लाते हैं।
ਅਨਦਿਨੁ ਰੋਗੀ ਬਿਸਟਾ ਕੇ ਕੀੜੇ ਬਿਸਟਾ ਮਹਿ ਦੁਖੁ ਪਾਵਣਿਆ ॥੭॥
वह रात-दिन दुर्गुणों से उत्पन्न रोगों के रोगी बने रहते हैं, जैसे विष्टा के कीड़े के समान दु:खी होते रहते हैं।॥७॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਪੇ ਕਰੇ ਕਰਾਏ ॥
गुरमुख स्वयं भी भगवान् की भक्ति करते एवं अन्यों से भी करवाते हैं।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਿਰਦੈ ਵੁਠਾ ਆਪਿ ਆਏ ॥
गुरमुख के हृदय में परमेश्वर स्वयं आकर निवास करते है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਮਿਲੈ ਵਡਿਆਈ ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਤੇ ਪਾਵਣਿਆ ॥੮॥੨੫॥੨੬॥
हे नानक ! प्रभु के नाम से महानता प्राप्त होती है। पूर्ण गुरु द्वारा ही परमात्मा का नाम पाया जाता है। ॥८॥२५॥२६॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੩ ॥
राग माझ, तीसरे गुरु द्वारा : ३ ॥
ਏਕਾ ਜੋਤਿ ਜੋਤਿ ਹੈ ਸਰੀਰਾ ॥
समस्त शरीरों में जो ज्योति विद्यमान है, वह ज्योति एक ही है अर्थात् एक ईश्वर की ज्योति सब में विद्यमान है।
ਸਬਦਿ ਦਿਖਾਏ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ॥
पूर्ण सतगुरु शब्द द्वारा मनुष्य को इस ज्योति के दर्शन करवा देते हैं।
ਆਪੇ ਫਰਕੁ ਕੀਤੋਨੁ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਆਪੇ ਬਣਤ ਬਣਾਵਣਿਆ ॥੧॥
विभिन्न शरीरों में ईश्वर ने स्वयं ही विविधता उत्पन्न की है और स्वयं ही जीवों के शरीर की रचना की है॥१॥
ਹਉ ਵਾਰੀ ਜੀਉ ਵਾਰੀ ਹਰਿ ਸਚੇ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਵਣਿਆ ॥
मैं उन पर तन-मन से न्यौछावर हूँ जो सत्यस्वरूप परमेश्वर का गुणगान करते हैं।
ਬਾਝੁ ਗੁਰੂ ਕੋ ਸਹਜੁ ਨ ਪਾਏ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਹਜਿ ਸਮਾਵਣਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरु की शिक्षा के बिना कोई भी व्यक्ति आध्यात्मिक संतुलन की स्थिति प्राप्त नहीं कर सकता; केवल गुरु का अनुयायी ही शांति और संतुलन की स्थिति में लीन रहता है। ॥१॥ रहाउ॥
ਤੂੰ ਆਪੇ ਸੋਹਹਿ ਆਪੇ ਜਗੁ ਮੋਹਹਿ ॥
हे प्रभु ! आप स्वयं ही सर्वत्र सुन्दर रूप में शोभा दे रहा है और स्वयं ही जगत् को मोहित कर रहे हैं ।
ਤੂੰ ਆਪੇ ਨਦਰੀ ਜਗਤੁ ਪਰੋਵਹਿ ॥
आपने स्वयं ही अपनी कृपा-दृष्टि से समूचे जगत् को मोह-माया में पिरोया हुआ है।
ਤੂੰ ਆਪੇ ਦੁਖੁ ਸੁਖੁ ਦੇਵਹਿ ਕਰਤੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਦੇਖਾਵਣਿਆ ॥੨॥
हे मेरे हरि-परमेश्वर ! आप स्वयं ही दु:ख और सुख प्रदान करते हो और गुरमुखों को हरि-दर्शन करवाते हो ॥२ ॥
ਆਪੇ ਕਰਤਾ ਕਰੇ ਕਰਾਏ ॥
जगत् का रचयिता प्रभु स्वयं ही सब कुछ करता और जीवों से करवाता है।
ਆਪੇ ਸਬਦੁ ਗੁਰ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ॥
प्रभु स्वयं गुरु का शब्द मनुष्य के हृदय में बसाते हैं।
ਸਬਦੇ ਉਪਜੈ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਾਣੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਖਿ ਸੁਣਾਵਣਿਆ ॥੩॥
शब्द से अमृत-वाणी उत्पन्न होती है। गुरमुख इस अमृत-वाणी को बोलकर दूसरों को सुनाते हैं।॥३॥
ਆਪੇ ਕਰਤਾ ਆਪੇ ਭੁਗਤਾ ॥
हरि-प्रभु स्वयं ही कर्ता और स्वयं ही जगत् के पदार्थों को भोगने वाला है।
ਬੰਧਨ ਤੋੜੇ ਸਦਾ ਹੈ ਮੁਕਤਾ ॥
भगवान् जिस व्यक्ति के बन्धनों को तोड़ देता है, वह हमेशा के लिए मुक्त हो जाता है।
ਸਦਾ ਮੁਕਤੁ ਆਪੇ ਹੈ ਸਚਾ ਆਪੇ ਅਲਖੁ ਲਖਾਵਣਿਆ ॥੪॥
सत्य स्वरूप परमेश्वर स्वयं भी माया के बन्धनों से हमेशा के लिए मुक्त है। वह अलक्ष्य परमेश्वर स्वयं ही अपने स्वरूप के दर्शन करवाता है॥४॥
ਆਪੇ ਮਾਇਆ ਆਪੇ ਛਾਇਆ ॥
परमेश्वर स्वयं ही माया है और स्वयं ही उस माया में प्रतिबिम्बित है।
ਆਪੇ ਮੋਹੁ ਸਭੁ ਜਗਤੁ ਉਪਾਇਆ ॥
उस प्रभु ने स्वयं ही माया के मोह को पैदा किया है और स्वयं ही जगत् की रचना की है।
ਆਪੇ ਗੁਣਦਾਤਾ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਆਪੇ ਆਖਿ ਸੁਣਾਵਣਿਆ ॥੫॥
परमेश्वर स्वयं ही गुणदाता और वह स्वयं ही अपने गुण गा रहा है। वह स्वयं ही अपने गुण बोलकर सुना रहा है॥५॥
ਆਪੇ ਕਰੇ ਕਰਾਏ ਆਪੇ ॥
प्रभु स्वयं प्राणियों का कर्ता है और उनसे कर्म करवाता है।
ਆਪੇ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪੇ ਆਪੇ ॥
परमात्मा स्वयं ही सृष्टि-रचना करता है और स्वयं ही सृष्टि का विनाश भी करता है।
ਤੁਝ ਤੇ ਬਾਹਰਿ ਕਛੂ ਨ ਹੋਵੈ ਤੂੰ ਆਪੇ ਕਾਰੈ ਲਾਵਣਿਆ ॥੬॥
हे प्रभु ! आपकी आज्ञा के बिना कुछ भी नहीं हो सकता। आपने स्वयं ही प्राणियों को विभिन्न कर्मों में लगाया हुआ है॥६॥
ਆਪੇ ਮਾਰੇ ਆਪਿ ਜੀਵਾਏ ॥
भगवान् स्वयं ही जीवों को मारता है और स्वयं ही उन्हें जीवित भी रखता है।
ਆਪੇ ਮੇਲੇ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਏ ॥
वह स्वयं ही जीवों को गुरु से मिलाता है और उन्हें गुरु के सम्पर्क में रखकर अपने साथ मिला लेता है।
ਸੇਵਾ ਤੇ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਹਜਿ ਸਮਾਵਣਿਆ ॥੭॥
गुरु की सेवा करने से मनुष्य को सदैव ही सुख प्राप्त होता है और गुरु की प्रेरणा से जीव सहज ही सत्य में समा जाता है ॥७॥