Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1215

Page 1215

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सारग महला ५ ॥ सारग महला ५ ॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਮਨਹਿ ਆਧਾਰੋ ॥ अम्रित नामु मनहि आधारो ॥ परमात्मा का अमृत नाम मन का अवलंब है।
ਜਿਨ ਦੀਆ ਤਿਸ ਕੈ ਕੁਰਬਾਨੈ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਨਮਸਕਾਰੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जिन दीआ तिस कै कुरबानै गुर पूरे नमसकारो ॥१॥ रहाउ ॥ जिसने यह दिया है, उस पर कुर्बान हूँ और पूर्ण गुरु को हमारा करबद्ध प्रणाम है॥१॥रहाउ॥।
ਬੂਝੀ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਸਹਜਿ ਸੁਹੇਲਾ ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਬਿਖੁ ਜਾਰੋ ॥ बूझी त्रिसना सहजि सुहेला कामु क्रोधु बिखु जारो ॥ स्वाभाविक सुख प्राप्त हुआ है, सारी तृष्णा बुझ गई है और काम-क्रोध के जहर को जला दिया है।
ਆਇ ਨ ਜਾਇ ਬਸੈ ਇਹ ਠਾਹਰ ਜਹ ਆਸਨੁ ਨਿਰੰਕਾਰੋ ॥੧॥ आइ न जाइ बसै इह ठाहर जह आसनु निरंकारो ॥१॥ अब आता जाता नहीं, उस ठिकाने में बस गया हूँ, जहाँ निरंकार विद्यमान है॥१॥
ਏਕੈ ਪਰਗਟੁ ਏਕੈ ਗੁਪਤਾ ਏਕੈ ਧੁੰਧੂਕਾਰੋ ॥ एकै परगटु एकै गुपता एकै धुंधूकारो ॥ केवल ऑकार ही प्रगट रूप में व्याप्त है, एक वही प्रच्छन्न रूप में विद्यमान है और निर्लिप्त होकर धुंध रूप में भी एकमात्र वही स्थित है।
ਆਦਿ ਮਧਿ ਅੰਤਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਈ ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸਾਚੁ ਬੀਚਾਰੋ ॥੨॥੩੧॥੫੪॥ आदि मधि अंति प्रभु सोई कहु नानक साचु बीचारो ॥२॥३१॥५४॥ नानक का सच्चा विचार है कि आदि, मध्य एवं अंत में वह प्रभु ही विद्यमान है॥२॥ ३१ ॥ ५४॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सारग महला ५ ॥ सारग महला ५ ॥
ਬਿਨੁ ਪ੍ਰਭ ਰਹਨੁ ਨ ਜਾਇ ਘਰੀ ॥ बिनु प्रभ रहनु न जाइ घरी ॥ प्रभु बिना घड़ी भर भी रहा नहीं जाता।
ਸਰਬ ਸੂਖ ਤਾਹੂ ਕੈ ਪੂਰਨ ਜਾ ਕੈ ਸੁਖੁ ਹੈ ਹਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सरब सूख ताहू कै पूरन जा कै सुखु है हरी ॥१॥ रहाउ ॥ जिसने परमात्मा को परम सुख समझा है, उसी के सर्व सुख पूर्ण हुए हैं।॥१॥रहाउ॥।
ਮੰਗਲ ਰੂਪ ਪ੍ਰਾਨ ਜੀਵਨ ਧਨ ਸਿਮਰਤ ਅਨਦ ਘਨਾ ॥ मंगल रूप प्रान जीवन धन सिमरत अनद घना ॥ प्राण, जीवन, धन, कल्याण रूप भगवान का स्मरण आनंद ही आनंद देने वाला है।
ਵਡ ਸਮਰਥੁ ਸਦਾ ਸਦ ਸੰਗੇ ਗੁਨ ਰਸਨਾ ਕਵਨ ਭਨਾ ॥੧॥ वड समरथु सदा सद संगे गुन रसना कवन भना ॥१॥ एकमात्र वही बड़ा है, सर्वशक्तिमान है, सदैव साथ है, इस जिव्हा से उसके किस-किस गुण का गान करूं ॥१॥
ਥਾਨ ਪਵਿਤ੍ਰਾ ਮਾਨ ਪਵਿਤ੍ਰਾ ਪਵਿਤ੍ਰ ਸੁਨਨ ਕਹਨਹਾਰੇ ॥ थान पवित्रा मान पवित्रा पवित्र सुनन कहनहारे ॥ वह स्थान पवित्र है, मान-सम्मान पवित्र है, तेरा यश सुनने एवं गाने वाले भी पवित्र हैं।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤੇ ਭਵਨ ਪਵਿਤ੍ਰਾ ਜਾ ਮਹਿ ਸੰਤ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੇ ॥੨॥੩੨॥੫੫॥ कहु नानक ते भवन पवित्रा जा महि संत तुम्हारे ॥२॥३२॥५५॥ नानक कथन करते हैं कि हे प्रभु ! जहाँ तुम्हारे संत रहते हैं, वह भवन भी पवित्र पावन है॥ २ ॥ ३२ ॥ ५५ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सारग महला ५ ॥ सारग महला ५ ॥
ਰਸਨਾ ਜਪਤੀ ਤੂਹੀ ਤੂਹੀ ॥ रसना जपती तूही तूही ॥ हे प्रभु ! यह रसना केवल तेरा ही नाम जपती है।
ਮਾਤ ਗਰਭ ਤੁਮ ਹੀ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਕ ਮ੍ਰਿਤ ਮੰਡਲ ਇਕ ਤੁਹੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मात गरभ तुम ही प्रतिपालक म्रित मंडल इक तुही ॥१॥ रहाउ ॥ माता के गर्भ में तुमने ही पालन-पोषण किया और मृत्युलोक में भी केवल तू ही बचाने वाला है॥१॥रहाउ॥।
ਤੁਮਹਿ ਪਿਤਾ ਤੁਮ ਹੀ ਫੁਨਿ ਮਾਤਾ ਤੁਮਹਿ ਮੀਤ ਹਿਤ ਭ੍ਰਾਤਾ ॥ तुमहि पिता तुम ही फुनि माता तुमहि मीत हित भ्राता ॥ तुम ही हमारे पिता हो, तुम ही हमारी माता हो और तुम ही हितचिंतक भाई हो।
ਤੁਮ ਪਰਵਾਰ ਤੁਮਹਿ ਆਧਾਰਾ ਤੁਮਹਿ ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਨਦਾਤਾ ॥੧॥ तुम परवार तुमहि आधारा तुमहि जीअ प्रानदाता ॥१॥ तुम ही परिवार हो, तुम्हारा ही आसरा है और तुम ही जीवन-प्राण देने वाले हो॥१॥
ਤੁਮਹਿ ਖਜੀਨਾ ਤੁਮਹਿ ਜਰੀਨਾ ਤੁਮ ਹੀ ਮਾਣਿਕ ਲਾਲਾ ॥ तुमहि खजीना तुमहि जरीना तुम ही माणिक लाला ॥ तुम ही खुशियों के भण्डार हो,तुम ही रत्न-जवाहर हो, तुम्हीं अमूल्य लाल-माणिक्य हो।
ਤੁਮਹਿ ਪਾਰਜਾਤ ਗੁਰ ਤੇ ਪਾਏ ਤਉ ਨਾਨਕ ਭਏ ਨਿਹਾਲਾ ॥੨॥੩੩॥੫੬॥ तुमहि पारजात गुर ते पाए तउ नानक भए निहाला ॥२॥३३॥५६॥ नानक का कथन है कि तुम्हीं पारिजात हो, जो गुरु से प्राप्त होते हो तो हम निहाल हो जाते हैं ॥ २ ॥ ३३ ॥ ५६ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सारग महला ५ ॥ सारग महला ५ ॥
ਜਾਹੂ ਕਾਹੂ ਅਪੁਨੋ ਹੀ ਚਿਤਿ ਆਵੈ ॥ जाहू काहू अपुनो ही चिति आवै ॥ जहाँ कहाँ (खुशी अथवा गम में) अपना शुभचिंतक ही याद आता है।
ਜੋ ਕਾਹੂ ਕੋ ਚੇਰੋ ਹੋਵਤ ਠਾਕੁਰ ਹੀ ਪਹਿ ਜਾਵੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जो काहू को चेरो होवत ठाकुर ही पहि जावै ॥१॥ रहाउ ॥ जो किसी का चेला होता है, वह मालिक के ही पास जाता है॥१॥रहाउ॥।
ਅਪਨੇ ਪਹਿ ਦੂਖ ਅਪਨੇ ਪਹਿ ਸੂਖਾ ਅਪੁਨੇ ਹੀ ਪਹਿ ਬਿਰਥਾ ॥ अपने पहि दूख अपने पहि सूखा अपुने ही पहि बिरथा ॥ दुख हो या सुख हो अपने (हितैषी) के सन्मुख ही इज़हार किया जाता है। चाहे दिल का हाल हो, वह अपने को ही बताया जाता है।
ਅਪੁਨੇ ਪਹਿ ਮਾਨੁ ਅਪੁਨੇ ਪਹਿ ਤਾਨਾ ਅਪਨੇ ਹੀ ਪਹਿ ਅਰਥਾ ॥੧॥ अपुने पहि मानु अपुने पहि ताना अपने ही पहि अरथा ॥१॥ अपने पर ही मान होता है, अपने को ही बल माना जाता है। कोई आवश्यकता हो तो अपने के पास ही आया जाता है॥१॥
ਕਿਨ ਹੀ ਰਾਜ ਜੋਬਨੁ ਧਨ ਮਿਲਖਾ ਕਿਨ ਹੀ ਬਾਪ ਮਹਤਾਰੀ ॥ किन ही राज जोबनु धन मिलखा किन ही बाप महतारी ॥ किसी ने राज्य, यौवन, धन-संपति को अपनी जरूरत मान लिया है और किसी को अपने माता-पिता का ही आसरा है।
ਸਰਬ ਥੋਕ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਪਾਏ ਪੂਰਨ ਆਸ ਹਮਾਰੀ ॥੨॥੩੪॥੫੭॥ सरब थोक नानक गुर पाए पूरन आस हमारी ॥२॥३४॥५७॥ हे नानक ! गुरु से मुझे सब चीजें प्राप्त हो गई हैं और मेरी सब कामनाएँ पूरी हो गई हैं।॥२॥ ३४॥ ५७ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सारग महला ५ ॥ सारग महला ५ ॥
ਝੂਠੋ ਮਾਇਆ ਕੋ ਮਦ ਮਾਨੁ ॥ झूठो माइआ को मद मानु ॥ धन-दौलत का अभिमान झूठा है।
ਧ੍ਰੋਹ ਮੋਹ ਦੂਰਿ ਕਰਿ ਬਪੁਰੇ ਸੰਗਿ ਗੋਪਾਲਹਿ ਜਾਨੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ध्रोह मोह दूरि करि बपुरे संगि गोपालहि जानु ॥१॥ रहाउ ॥ हे दीन मनुष्य ! अपना ईष्र्या-द्वेष व मोह दूर कर यह बात मान ले कि ईश्वर मेरे साथ ही है॥१॥रहाउ॥।
ਮਿਥਿਆ ਰਾਜ ਜੋਬਨ ਅਰੁ ਉਮਰੇ ਮੀਰ ਮਲਕ ਅਰੁ ਖਾਨ ॥ मिथिआ राज जोबन अरु उमरे मीर मलक अरु खान ॥ राज्य, यौवन, उमराव, मीर, मलिक और खान सब मिथ्या हैं।
ਮਿਥਿਆ ਕਾਪਰ ਸੁਗੰਧ ਚਤੁਰਾਈ ਮਿਥਿਆ ਭੋਜਨ ਪਾਨ ॥੧॥ मिथिआ कापर सुगंध चतुराई मिथिआ भोजन पान ॥१॥ सुन्दर कपड़े, सुगन्धियाँ, चतुराई, भोजन एवं पान भी झूठे हैं।॥१॥
ਦੀਨ ਬੰਧਰੋ ਦਾਸ ਦਾਸਰੋ ਸੰਤਹ ਕੀ ਸਾਰਾਨ ॥ दीन बंधरो दास दासरो संतह की सारान ॥ हे दीनबंधु ! मैं तेरे दासों का दास हूँ और संतों की शरण में रहता हूँ।
ਮਾਂਗਨਿ ਮਾਂਗਉ ਹੋਇ ਅਚਿੰਤਾ ਮਿਲੁ ਨਾਨਕ ਕੇ ਹਰਿ ਪ੍ਰਾਨ ॥੨॥੩੫॥੫੮॥ मांगनि मांगउ होइ अचिंता मिलु नानक के हरि प्रान ॥२॥३५॥५८॥ मैं तुझसे मांगता हूँ, निश्चिंत तेरी भक्ति ही चाहता हूँ। हे नानक के प्राण प्रभु ! मुझे मिलो ॥२॥ ३५ ॥ ५८ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सारग महला ५ ॥ सारग महला ५ ॥
ਅਪੁਨੀ ਇਤਨੀ ਕਛੂ ਨ ਸਾਰੀ ॥ अपुनी इतनी कछू न सारी ॥ मनुष्य ने अपना कुछ भी नहीं संवारा,
ਅਨਿਕ ਕਾਜ ਅਨਿਕ ਧਾਵਰਤਾ ਉਰਝਿਓ ਆਨ ਜੰਜਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ अनिक काज अनिक धावरता उरझिओ आन जंजारी ॥१॥ रहाउ ॥ अनेक कार्यों में भागदौड़ और अन्य जंजालों में ही उलझा रहा ॥१॥रहाउ॥।
ਦਿਉਸ ਚਾਰਿ ਕੇ ਦੀਸਹਿ ਸੰਗੀ ਊਹਾਂ ਨਾਹੀ ਜਹ ਭਾਰੀ ॥ दिउस चारि के दीसहि संगी ऊहां नाही जह भारी ॥ (सुख के समय में) चार दिन के जो साथी दिखाई देते हैं, भारी विपत्ति के समय ये भी साथ नहीं देते।


© 2025 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top