Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1205

Page 1205

ਚਰਣੀ ਚਲਉ ਮਾਰਗਿ ਠਾਕੁਰ ਕੈ ਰਸਨਾ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਏ ॥੨॥ चरणी चलउ मारगि ठाकुर कै रसना हरि गुण गाए ॥२॥ मैं पैरों से मालिक के मार्ग पर चलता हूँ और जिह्म से प्रभु के गुण गाता हूँ॥२॥
ਦੇਖਿਓ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਸਰਬ ਮੰਗਲ ਰੂਪ ਉਲਟੀ ਸੰਤ ਕਰਾਏ ॥ देखिओ द्रिसटि सरब मंगल रूप उलटी संत कराए ॥ मैं अपनी आँखों से सर्व मंगल रूप देखता हूँ, संतों ने मेरा जीवन बदल दिया है।
ਪਾਇਓ ਲਾਲੁ ਅਮੋਲੁ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਛੋਡਿ ਨ ਕਤਹੂ ਜਾਏ ॥੩॥ पाइओ लालु अमोलु नामु हरि छोडि न कतहू जाए ॥३॥ मैंने हरिनाम रूपी अमूल्य रत्न पा लिया है, जिसे अब बिल्कुल नहीं छोड़ सकता ॥३॥
ਕਵਨ ਉਪਮਾ ਕਉਨ ਬਡਾਈ ਕਿਆ ਗੁਨ ਕਹਉ ਰੀਝਾਏ ॥ कवन उपमा कउन बडाई किआ गुन कहउ रीझाए ॥ परमात्मा की क्या उपमा वर्णन करूँ, कौन-सी महिमा एवं क्या गुण गाऊँ कि वह खुश हो जाए।
ਹੋਤ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਦੀਨ ਦਇਆ ਪ੍ਰਭ ਜਨ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਦਸਾਏ ॥੪॥੮॥ होत क्रिपाल दीन दइआ प्रभ जन नानक दास दसाए ॥४॥८॥ हे नानक ! दीनों पर दया करने वाला प्रभु सदैव अपने दासों पर कृपालु है॥४॥८॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सारग महला ५ ॥ सारग महला ५ ॥
ਓ‍ੁਇ ਸੁਖ ਕਾ ਸਿਉ ਬਰਨਿ ਸੁਨਾਵਤ ॥ ओइ सुख का सिउ बरनि सुनावत ॥ वह सुख किस तरह बताकर सुनाऊँ,
ਅਨਦ ਬਿਨੋਦ ਪੇਖਿ ਪ੍ਰਭ ਦਰਸਨ ਮਨਿ ਮੰਗਲ ਗੁਨ ਗਾਵਤ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ अनद बिनोद पेखि प्रभ दरसन मनि मंगल गुन गावत ॥१॥ रहाउ ॥ प्रभु के दर्शनों से खुशियाँ एवं उल्लास उत्पन्न हो जाता है और मन उसके ही गुण गाता है॥१॥रहाउ॥।
ਬਿਸਮ ਭਈ ਪੇਖਿ ਬਿਸਮਾਦੀ ਪੂਰਿ ਰਹੇ ਕਿਰਪਾਵਤ ॥ बिसम भई पेखि बिसमादी पूरि रहे किरपावत ॥ कृपालु प्रभु की अद्भुत लीलाओं को देखकर चकित हो गई हूँ।
ਪੀਓ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਅਮੋਲਕ ਜਿਉ ਚਾਖਿ ਗੂੰਗਾ ਮੁਸਕਾਵਤ ॥੧॥ पीओ अम्रित नामु अमोलक जिउ चाखि गूंगा मुसकावत ॥१॥ ज्यों गूगा व्यक्ति मिठाई खा कर अपनी खुशी का इजहार करता है, वैसे ही मैंने अमूल्य नाम अमृत का पान किया है।॥१॥
ਜੈਸੇ ਪਵਨੁ ਬੰਧ ਕਰਿ ਰਾਖਿਓ ਬੂਝ ਨ ਆਵਤ ਜਾਵਤ ॥ जैसे पवनु बंध करि राखिओ बूझ न आवत जावत ॥ जैसे प्राण-वायु को शरीर में बाँध कर रखा हुआ है और उसके आने जाने की खबर नहीं होती,
ਜਾ ਕਉ ਰਿਦੈ ਪ੍ਰਗਾਸੁ ਭਇਓ ਹਰਿ ਉਆ ਕੀ ਕਹੀ ਨ ਜਾਇ ਕਹਾਵਤ ॥੨॥ जा कउ रिदै प्रगासु भइओ हरि उआ की कही न जाइ कहावत ॥२॥ वैसे ही जिसके हृदय में परम-सत्य का प्रकाश होता है, उसकी कीर्ति का वर्णन नहीं किया जा सकता ॥२ ॥
ਆਨ ਉਪਾਵ ਜੇਤੇ ਕਿਛੁ ਕਹੀਅਹਿ ਤੇਤੇ ਸੀਖੇ ਪਾਵਤ ॥ आन उपाव जेते किछु कहीअहि तेते सीखे पावत ॥ अन्य जितने भी उपाय हैं, सबका इस्तेमाल कर लिया है।
ਅਚਿੰਤ ਲਾਲੁ ਗ੍ਰਿਹ ਭੀਤਰਿ ਪ੍ਰਗਟਿਓ ਅਗਮ ਜੈਸੇ ਪਰਖਾਵਤ ॥੩॥ अचिंत लालु ग्रिह भीतरि प्रगटिओ अगम जैसे परखावत ॥३॥ मेरा प्रभु नैसर्गिक हृदय घर में प्रगट हो गया है, ज्यों अगम को जानने का बल मिला है॥३॥
ਨਿਰਗੁਣ ਨਿਰੰਕਾਰ ਅਬਿਨਾਸੀ ਅਤੁਲੋ ਤੁਲਿਓ ਨ ਜਾਵਤ ॥ निरगुण निरंकार अबिनासी अतुलो तुलिओ न जावत ॥ वह निर्गुण निराकार, अविनाशी, अतुल्य है, उसकी महिमा की तुलना नहीं की जा सकती।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਅਜਰੁ ਜਿਨਿ ਜਰਿਆ ਤਿਸ ਹੀ ਕਉ ਬਨਿ ਆਵਤ ॥੪॥੯॥ कहु नानक अजरु जिनि जरिआ तिस ही कउ बनि आवत ॥४॥९॥ हे नानक ! जिसने अजरावस्था को प्राप्त कर लिया है, उसी को सफलता प्राप्त हुई है॥ ४ ॥६॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सारग महला ५ ॥ सारग महला ५ ॥
ਬਿਖਈ ਦਿਨੁ ਰੈਨਿ ਇਵ ਹੀ ਗੁਦਾਰੈ ॥ बिखई दिनु रैनि इव ही गुदारै ॥ विलासी पुरुष दिन-रात व्यर्थ ही गुजार देता है,
ਗੋਬਿੰਦੁ ਨ ਭਜੈ ਅਹੰਬੁਧਿ ਮਾਤਾ ਜਨਮੁ ਜੂਐ ਜਿਉ ਹਾਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गोबिंदु न भजै अह्मबुधि माता जनमु जूऐ जिउ हारै ॥१॥ रहाउ ॥ वह गोविंद का भजन नहीं करता और अहंकार में लीन रहकर अपनी जीवन बाजी को जुए में हार देता है॥१॥रहाउ॥।
ਨਾਮੁ ਅਮੋਲਾ ਪ੍ਰੀਤਿ ਨ ਤਿਸ ਸਿਉ ਪਰ ਨਿੰਦਾ ਹਿਤਕਾਰੈ ॥ नामु अमोला प्रीति न तिस सिउ पर निंदा हितकारै ॥ वह अमूल्य प्रभु-नाम से प्रेम नहीं करता और पराई निंदा को ही लाभदायक मानता है।
ਛਾਪਰੁ ਬਾਂਧਿ ਸਵਾਰੈ ਤ੍ਰਿਣ ਕੋ ਦੁਆਰੈ ਪਾਵਕੁ ਜਾਰੈ ॥੧॥ छापरु बांधि सवारै त्रिण को दुआरै पावकु जारै ॥१॥ वह तिनकों को संवार कर झोंपड़ी तैयार करता है और द्वार पर माया की अग्नि जला लेता है॥१॥
ਕਾਲਰ ਪੋਟ ਉਠਾਵੈ ਮੂੰਡਹਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਮਨ ਤੇ ਡਾਰੈ ॥ कालर पोट उठावै मूंडहि अम्रितु मन ते डारै ॥ वह सिर पर मिट्टी की पोटली उठा लेता है और अमृत को मन से निकाल देता है।
ਓਢੈ ਬਸਤ੍ਰ ਕਾਜਰ ਮਹਿ ਪਰਿਆ ਬਹੁਰਿ ਬਹੁਰਿ ਫਿਰਿ ਝਾਰੈ ॥੨॥ ओढै बसत्र काजर महि परिआ बहुरि बहुरि फिरि झारै ॥२॥ वह काजल में पड़े हुए वस्त्रों को पहनता है और बार-बार उनको झाड़ता है॥ २ ॥
ਕਾਟੈ ਪੇਡੁ ਡਾਲ ਪਰਿ ਠਾਢੌ ਖਾਇ ਖਾਇ ਮੁਸਕਾਰੈ ॥ काटै पेडु डाल परि ठाढौ खाइ खाइ मुसकारै ॥ जिस पेड़ की डाल पर खड़ा होता है, उस पेड़ को काट देता है और विषय-विकारों का सेवन कर मुस्कुराता है।
ਗਿਰਿਓ ਜਾਇ ਰਸਾਤਲਿ ਪਰਿਓ ਛਿਟੀ ਛਿਟੀ ਸਿਰ ਭਾਰੈ ॥੩॥ गिरिओ जाइ रसातलि परिओ छिटी छिटी सिर भारै ॥३॥ परिणामस्वरूप सिर के बल गिरता जाता है और रसातल में पड़ता है॥३॥
ਨਿਰਵੈਰੈ ਸੰਗਿ ਵੈਰੁ ਰਚਾਏ ਪਹੁਚਿ ਨ ਸਕੈ ਗਵਾਰੈ ॥ निरवैरै संगि वैरु रचाए पहुचि न सकै गवारै ॥ वह सज्जन पुरुषों से वैर करता है, लेकिन वह मूर्ख अपनी कोशिश में सफल नहीं होता।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੰਤਨ ਕਾ ਰਾਖਾ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਨਿਰੰਕਾਰੈ ॥੪॥੧੦॥ कहु नानक संतन का राखा पारब्रहमु निरंकारै ॥४॥१०॥ हे नानक ! निराकार परब्रह्म सदैव भक्तजनों की रक्षा करने वाला है॥ ४ ॥ १० ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सारग महला ५ ॥ सारग महला ५ ॥
ਅਵਰਿ ਸਭਿ ਭੂਲੇ ਭ੍ਰਮਤ ਨ ਜਾਨਿਆ ॥ अवरि सभि भूले भ्रमत न जानिआ ॥ अन्य सभी लोग भूले हुए हैं और उन्होंने सत्य को नहीं जाना।
ਏਕੁ ਸੁਧਾਖਰੁ ਜਾ ਕੈ ਹਿਰਦੈ ਵਸਿਆ ਤਿਨਿ ਬੇਦਹਿ ਤਤੁ ਪਛਾਨਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ एकु सुधाखरु जा कै हिरदै वसिआ तिनि बेदहि ततु पछानिआ ॥१॥ रहाउ ॥ जिसके हृदय में एक शुद्ध अक्षर ऑकार बस गया है, उसने वेदों के सार तत्व को पहचान लिया है॥ १॥ रहाउ ॥
ਪਰਵਿਰਤਿ ਮਾਰਗੁ ਜੇਤਾ ਕਿਛੁ ਹੋਈਐ ਤੇਤਾ ਲੋਗ ਪਚਾਰਾ ॥ परविरति मारगु जेता किछु होईऐ तेता लोग पचारा ॥ जितना भी प्रवृति-मार्ग अपनाया जाता है, उतना ही लोकाचार है।
ਜਉ ਲਉ ਰਿਦੈ ਨਹੀ ਪਰਗਾਸਾ ਤਉ ਲਉ ਅੰਧ ਅੰਧਾਰਾ ॥੧॥ जउ लउ रिदै नही परगासा तउ लउ अंध अंधारा ॥१॥ जब तक ह्रदय में सत्य का आलोक नहीं होता, तब तक ज्ञान का घोर अंधेरा ही बना रहता है।॥ १॥
ਜੈਸੇ ਧਰਤੀ ਸਾਧੈ ਬਹੁ ਬਿਧਿ ਬਿਨੁ ਬੀਜੈ ਨਹੀ ਜਾਂਮੈ ॥ जैसे धरती साधै बहु बिधि बिनु बीजै नही जांमै ॥ जिस प्रकार धरती पर अनेक प्रकार से सिंचाई की जाए परन्तु बीज बोए बिना खेती नहीं जमती।
ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਈ ਹੈ ਤੁਟੈ ਨਾਹੀ ਅਭਿਮਾਨੈ ॥੨॥ राम नाम बिनु मुकति न होई है तुटै नाही अभिमानै ॥२॥ वैसे ही राम नाम के स्मरण बिना मुक्ति प्राप्त नहीं होती और न ही अभिमान समाप्त होता है।॥२॥
ਨੀਰੁ ਬਿਲੋਵੈ ਅਤਿ ਸ੍ਰਮੁ ਪਾਵੈ ਨੈਨੂ ਕੈਸੇ ਰੀਸੈ ॥ नीरु बिलोवै अति स्रमु पावै नैनू कैसे रीसै ॥ अगर सख्त मेहनत करके जल को बिलोया जाए, तो भी मक्खन प्राप्त नहीं होता।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਭੇਟੇ ਮੁਕਤਿ ਨ ਕਾਹੂ ਮਿਲਤ ਨਹੀ ਜਗਦੀਸੈ ॥੩॥ बिनु गुर भेटे मुकति न काहू मिलत नही जगदीसै ॥३॥ इसी प्रकार गुरु से साक्षात्कार के बिना मुक्ति प्राप्त नहीं होती और न ही परमेश्वर मिलता है।॥३॥


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