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ਮਨਸਾ ਮਾਰਿ ਸਚਿ ਸਮਾਣੀ ॥
मनसा मारि सचि समाणी ॥
जब बुद्धि मन की अभिलाषा को नष्ट करके सत्य में समा गई
ਇਨਿ ਮਨਿ ਡੀਠੀ ਸਭ ਆਵਣ ਜਾਣੀ ॥
इनि मनि डीठी सभ आवण जाणी ॥
तो इस मन ने देख लिया कि यह सृष्टि जन्मती एवं मरती रहती है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੇ ਸਦਾ ਮਨੁ ਨਿਹਚਲੁ ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਾਸਾ ਪਾਵਣਿਆ ॥੩॥
सतिगुरु सेवे सदा मनु निहचलु निज घरि वासा पावणिआ ॥३॥
जो व्यक्ति हमेशा ही सतगुरु के उपदेशों में मन लगाता है, उसका मन हमेशा शांत रहता है और अपने अन्तःकरण में प्रभु के एहसास का अनुभव होता है॥३॥
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਰਿਦੈ ਦਿਖਾਇਆ ॥
गुर कै सबदि रिदै दिखाइआ ॥
गुरु के शब्द ने मुझे प्रभु मेरे हृदय में ही दिखा दिये हैं
ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਸਬਦਿ ਜਲਾਇਆ ॥
माइआ मोहु सबदि जलाइआ ॥
और मेरे अन्तर्मन में से माया के मोह को जला दिया है।
ਸਚੋ ਸਚਾ ਵੇਖਿ ਸਾਲਾਹੀ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਸਚੁ ਪਾਵਣਿਆ ॥੪॥
सचो सचा वेखि सालाही गुर सबदी सचु पावणिआ ॥४॥
सत्य-प्रभु के दर्शन करके अब मैं उस सत्य-परमात्मा की ही महिमा-स्तुति करता रहता हूँ। वह सत्य गुरु के शब्द द्वारा ही मिलता है॥४॥
ਜੋ ਸਚਿ ਰਾਤੇ ਤਿਨ ਸਚੀ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ॥
जो सचि राते तिन सची लिव लागी ॥
जो व्यक्ति सत्य-परमेश्वर के प्रेम में मग्न हो जाते हैं, उनकी प्रभु में सुरति लग जाती है।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਮਾਲਹਿ ਸੇ ਵਡਭਾਗੀ ॥
हरि नामु समालहि से वडभागी ॥
वह व्यक्ति बड़े भाग्यशाली हैं, जो हरि-नाम का सिमरन करते हैं।
ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਆਪਿ ਮਿਲਾਏ ਸਤਸੰਗਤਿ ਸਚੁ ਗੁਣ ਗਾਵਣਿਆ ॥੫॥
सचै सबदि आपि मिलाए सतसंगति सचु गुण गावणिआ ॥५॥
सत्य-परमेश्वर उन्हें स्वयं ही अपने साथ मिला लेता है, जो सत्संग में मिलकर सत्य-परमेश्वर का गुणगान करते हैं ॥५॥
ਲੇਖਾ ਪੜੀਐ ਜੇ ਲੇਖੇ ਵਿਚਿ ਹੋਵੈ ॥
लेखा पड़ीऐ जे लेखे विचि होवै ॥
परमात्मा को वर्णित नहीं किया जा सकता, उसका वर्णन तभी सम्भव है, यदि वह किसी वर्णन में आता हो।
ਓਹੁ ਅਗਮੁ ਅਗੋਚਰੁ ਸਬਦਿ ਸੁਧਿ ਹੋਵੈ ॥
ओहु अगमु अगोचरु सबदि सुधि होवै ॥
वह तो अगम्य एवं अगोचर है तथा उसे केवल गुरु के शब्द से ही प्राप्त किया जा सकता है।
ਅਨਦਿਨੁ ਸਚ ਸਬਦਿ ਸਾਲਾਹੀ ਹੋਰੁ ਕੋਇ ਨ ਕੀਮਤਿ ਪਾਵਣਿਆ ॥੬॥
अनदिनु सच सबदि सालाही होरु कोइ न कीमति पावणिआ ॥६॥
जो जीव सदा गुरु की सत्य वाणी द्वारा उसकी महिमा-स्तुति करता रहता है वही उस परमेश्वर को जानता है, अन्य कोई भी उसका मूल्यांकन नहीं कर सकता ॥६॥
ਪੜਿ ਪੜਿ ਥਾਕੇ ਸਾਂਤਿ ਨ ਆਈ ॥
पड़ि पड़ि थाके सांति न आई ॥
कई विद्वान ग्रंथ पढ़-पढ़कर थक चुके हैं परन्तु उन्हें शान्ति प्राप्त नहीं हुई।
ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਜਾਲੇ ਸੁਧਿ ਨ ਕਾਈ ॥
त्रिसना जाले सुधि न काई ॥
वे तृष्णाग्नि में ही जलते रहे और प्रभु बारे कोई ज्ञान नहीं मिला।
ਬਿਖੁ ਬਿਹਾਝਹਿ ਬਿਖੁ ਮੋਹ ਪਿਆਸੇ ਕੂੜੁ ਬੋਲਿ ਬਿਖੁ ਖਾਵਣਿਆ ॥੭॥
बिखु बिहाझहि बिखु मोह पिआसे कूड़ु बोलि बिखु खावणिआ ॥७॥
ऐसा जीव बस सांसारिक धन के मोह में डूबा रहता है और इस जहर की तृष्णा में लिप्त रहता है। वह तरह-तरह के झूठ बोलकर सांसारिक धन के इस जहर को पीता रहता है। ॥७॥
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਏਕੋ ਜਾਣਾ ॥
गुर परसादी एको जाणा ॥
जिस व्यक्ति ने गुरु की कृपा से एक परमेश्वर को जाना है,
ਦੂਜਾ ਮਾਰਿ ਮਨੁ ਸਚਿ ਸਮਾਣਾ ॥
दूजा मारि मनु सचि समाणा ॥
उसका मन माया के मोह को नष्ट करके सत्य में समा गया है।
ਨਾਨਕ ਏਕੋ ਨਾਮੁ ਵਰਤੈ ਮਨ ਅੰਤਰਿ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਪਾਵਣਿਆ ॥੮॥੧੭॥੧੮॥
नानक एको नामु वरतै मन अंतरि गुर परसादी पावणिआ ॥८॥१७॥१८॥
हे नानक ! जिसके मन में एक परमात्मा ही प्रवृत हो रहा है, गुरु की कृपा से वहीं भगवान् को प्राप्त करता है ॥८॥१७॥१८॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੩ ॥
माझ महला ३ ॥
माझ महला, तीसरे गुरु द्वारा रचित ३ ॥
ਵਰਨ ਰੂਪ ਵਰਤਹਿ ਸਭ ਤੇਰੇ ॥
वरन रूप वरतहि सभ तेरे ॥
हे प्रभु ! जगत् में विभिन्न वर्ण एवं रूप वाले जितने भी जीव है, वह तेरे ही रूप हैं और तू स्वयं ही उन में प्रवृत्त हो रहा है।
ਮਰਿ ਮਰਿ ਜੰਮਹਿ ਫੇਰ ਪਵਹਿ ਘਣੇਰੇ ॥
मरि मरि जमहि फेर पवहि घणेरे ॥
ये समस्त जीव बार-बार जन्मते एवं मरते रहते हैं और इन्हें जन्म-मरण के अधिकतर चक्र पड़े रहते हैं।
ਤੂੰ ਏਕੋ ਨਿਹਚਲੁ ਅਗਮ ਅਪਾਰਾ ਗੁਰਮਤੀ ਬੂਝ ਬੁਝਾਵਣਿਆ ॥੧॥
तूं एको निहचलु अगम अपारा गुरमती बूझ बुझावणिआ ॥१॥
लेकिन हे ईश्वर ! एक तू ही अमर, अगम्य एवं अपरंपार है और इस तथ्य का ज्ञान जीवों को तू गुरु उपदेश द्वारा ही देता है।॥१॥
ਹਉ ਵਾਰੀ ਜੀਉ ਵਾਰੀ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਵਣਿਆ ॥
हउ वारी जीउ वारी राम नामु मंनि वसावणिआ ॥
मैं उन पर तन-मन से न्यौछावर हूँ, जो राम नाम को अपने हृदय में बसाते हैं।
ਤਿਸੁ ਰੂਪੁ ਨ ਰੇਖਿਆ ਵਰਨੁ ਨ ਕੋਈ ਗੁਰਮਤੀ ਆਪਿ ਬੁਝਾਵਣਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तिसु रूपु न रेखिआ वरनु न कोई गुरमती आपि बुझावणिआ ॥१॥ रहाउ ॥
प्रभु का कोई भी रूप-रंग आकार-प्रकार अथवा वर्ण नहीं है। वह स्वयं ही गुरु उपदेश द्वारा जीवों को ज्ञान प्रदान करता है॥१॥ रहाउ ॥
ਸਭ ਏਕਾ ਜੋਤਿ ਜਾਣੈ ਜੇ ਕੋਈ ॥
सभ एका जोति जाणै जे कोई ॥
समस्त जीवों में एक प्रभु की ही ज्योति विद्यमान है परन्तु इस भेद को कोई विरला ही जानता है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿਐ ਪਰਗਟੁ ਹੋਈ ॥
सतिगुरु सेविऐ परगटु होई ॥
सतगुरु की सेवा करने से यह ज्योति मनुष्य के हृदय में प्रगट हो जाती है अर्थात् उसे अपने हृदय में ही प्रभु प्रकाश के प्रत्यक्ष दर्शन हो जाते हैं।
ਗੁਪਤੁ ਪਰਗਟੁ ਵਰਤੈ ਸਭ ਥਾਈ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਮਿਲਾਵਣਿਆ ॥੨॥
गुपतु परगटु वरतै सभ थाई जोती जोति मिलावणिआ ॥२॥
भगवान् अप्रत्यक्ष एवं प्रत्यक्ष रूप में सर्वत्र विद्यमान हैं एवं मनुष्य की ज्योति प्रभु की परम ज्योति में विलीन हो जाती है।॥२॥
ਤਿਸਨਾ ਅਗਨਿ ਜਲੈ ਸੰਸਾਰਾ ॥
तिसना अगनि जलै संसारा ॥
सारा संसार तृष्णा की अग्नि में जल रहा है।
ਲੋਭੁ ਅਭਿਮਾਨੁ ਬਹੁਤੁ ਅਹੰਕਾਰਾ ॥
लोभु अभिमानु बहुतु अहंकारा ॥
जीवों में लोभ, अभिमान तथा अहंकार अधिकतर बढ़ रहा है।
ਮਰਿ ਮਰਿ ਜਨਮੈ ਪਤਿ ਗਵਾਏ ਅਪਣੀ ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਵਣਿਆ ॥੩॥
मरि मरि जनमै पति गवाए अपणी बिरथा जनमु गवावणिआ ॥३॥
जीब बार-बार मरता और जन्म लेता है तथा अपनी प्रतिष्ठा गंवाता है। इस तरह वह अपना अनमोल जीवन व्यर्थ ही गंवा देता है॥३॥
ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਕੋ ਵਿਰਲਾ ਬੂਝੈ ॥
गुर का सबदु को विरला बूझै ॥
कोई विरला पुरुष ही गुरु के शब्द को समझता है।
ਆਪੁ ਮਾਰੇ ਤਾ ਤ੍ਰਿਭਵਣੁ ਸੂਝੈ ॥
आपु मारे ता त्रिभवणु सूझै ॥
जब मनुष्य अपने अहंकार को नष्ट कर देता है, तब उसको तीनों लोकों का ज्ञान हो जाता है।
ਫਿਰਿ ਓਹੁ ਮਰੈ ਨ ਮਰਣਾ ਹੋਵੈ ਸਹਜੇ ਸਚਿ ਸਮਾਵਣਿਆ ॥੪॥
फिरि ओहु मरै न मरणा होवै सहजे सचि समावणिआ ॥४॥
तब मनुष्य न तो आध्यात्मिक रूप से मरता है, न ही पुनः ऐसी मृत्यु का अनुभव करता है, अपितु अदृश्य रूप से शाश्वत ईश्वर में लीन रहता है। ॥४॥
ਮਾਇਆ ਮਹਿ ਫਿਰਿ ਚਿਤੁ ਨ ਲਾਏ ॥
माइआ महि फिरि चितु न लाए ॥
तब वह अपना मन मोह-माया में नहीं लगाता और
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਸਦ ਰਹੈ ਸਮਾਏ ॥
गुर कै सबदि सद रहै समाए ॥
गुरु की वाणी में सदैव लीन हुआ रहता है।
ਸਚੁ ਸਲਾਹੇ ਸਭ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਸਚੋ ਸਚੁ ਸੁਹਾਵਣਿਆ ॥੫॥
सचु सलाहे सभ घट अंतरि सचो सचु सुहावणिआ ॥५॥
वह सत्य परमेश्वर की ही महिमा-स्तुति करता है जो सर्वव्यापक है। उसे ऐसा प्रतीत होता है कि एक सत्य-परमेश्वर ही सब में शोभायमान हो रहा है॥५॥
ਸਚੁ ਸਾਲਾਹੀ ਸਦਾ ਹਜੂਰੇ ॥
सचु सालाही सदा हजूरे ॥
मैं सत्य-परमेश्वर की ही सराहना करता रहता हूँ और उसे ही सदैव प्रत्यक्ष समझता हूँ।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰੇ ॥
गुर कै सबदि रहिआ भरपूरे ॥
गुरु के शब्द द्वारा मुझे प्रभु सारे जगत् में ही विद्यमान लगता है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਸਚੁ ਨਦਰੀ ਆਵੈ ਸਚੇ ਹੀ ਸੁਖੁ ਪਾਵਣਿਆ ॥੬॥
गुर परसादी सचु नदरी आवै सचे ही सुखु पावणिआ ॥६॥
सत्य-परमेश्वर के गुरु की कृपा से ही दर्शन होते हैं और सत्य-परमेश्वर से ही सुख प्राप्त होता है॥६॥
ਸਚੁ ਮਨ ਅੰਦਰਿ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇ ॥
सचु मन अंदरि रहिआ समाइ ॥
सत्य-परमेश्वर प्रत्येक जीव के मन में समाया हुआ है।
ਸਦਾ ਸਚੁ ਨਿਹਚਲੁ ਆਵੈ ਨ ਜਾਇ ॥
सदा सचु निहचलु आवै न जाइ ॥
वह सत्य-परमेश्वर सदैव अमर है और जन्म-मरण में कभी नहीं आता।
ਸਚੇ ਲਾਗੈ ਸੋ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਗੁਰਮਤੀ ਸਚਿ ਸਮਾਵਣਿਆ ॥੭॥
सचे लागै सो मनु निरमलु गुरमती सचि समावणिआ ॥७॥
जो मन सत्य-परमेश्वर के साथ प्रेम करता है, वह निर्मल हो जाता है और गुरु उपदेश द्वारा सत्य में ही समाया रहता है ॥७॥
ਸਚੁ ਸਾਲਾਹੀ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥
सचु सालाही अवरु न कोई ॥
मैं तो एक परमेश्वर की ही सराहना करता रहता हूँ तथा किसी अन्य की पूजा नहीं करता।
ਜਿਤੁ ਸੇਵਿਐ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥
जितु सेविऐ सदा सुखु होई ॥
जिसकी सेवा करने से सदैव ही सुख मिलता रहता है।