Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1191

Page 1191

ਲਬੁ ਅਧੇਰਾ ਬੰਦੀਖਾਨਾ ਅਉਗਣ ਪੈਰਿ ਲੁਹਾਰੀ ॥੩॥ लबु अधेरा बंदीखाना अउगण पैरि लुहारी ॥३॥ लालच मनुष्य के लिए घोर अंधेरा एवं कैदखाना है और उसके पैर में अवगुणों की बेड़ी पड़ी हुई है॥३॥
ਪੂੰਜੀ ਮਾਰ ਪਵੈ ਨਿਤ ਮੁਦਗਰ ਪਾਪੁ ਕਰੇ ਕੋੁਟਵਾਰੀ ॥ पूंजी मार पवै नित मुदगर पापु करे कोटवारी ॥ मनुष्य की दौलत यह है कि हर रोज मुदगरों की मार पड़ रही है और पाप कोतवाल का कार्य करता है।
ਭਾਵੈ ਚੰਗਾ ਭਾਵੈ ਮੰਦਾ ਜੈਸੀ ਨਦਰਿ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੀ ॥੪॥ भावै चंगा भावै मंदा जैसी नदरि तुम्हारी ॥४॥ हे ईश्वर ! जैसी तुम्हारी कृपा-दृष्टि होती है, वैसा ही मनुष्य हो जाता है, अगर तुझे अच्छा लगे तो मनुष्य अच्छा बन जाता है और अगर बुरा लगे तो वह बुरा इन्सान बन जाता है।॥४॥
ਆਦਿ ਪੁਰਖ ਕਉ ਅਲਹੁ ਕਹੀਐ ਸੇਖਾਂ ਆਈ ਵਾਰੀ ॥ आदि पुरख कउ अलहु कहीऐ सेखां आई वारी ॥ अब इस कलियुग में मुसलमानों का शासन आ गया है, आदिपुरुष परमेश्वर को अल्लाह' कहा जा रहा है।
ਦੇਵਲ ਦੇਵਤਿਆ ਕਰੁ ਲਾਗਾ ਐਸੀ ਕੀਰਤਿ ਚਾਲੀ ॥੫॥ देवल देवतिआ करु लागा ऐसी कीरति चाली ॥५॥ ऐसी प्रथा चल पड़ी है कि देवताओं के मन्दिरों पर टैक्स लगाया जा रहा है।॥५॥
ਕੂਜਾ ਬਾਂਗ ਨਿਵਾਜ ਮੁਸਲਾ ਨੀਲ ਰੂਪ ਬਨਵਾਰੀ ॥ कूजा बांग निवाज मुसला नील रूप बनवारी ॥ हे इंश्वर ! मुसलमानों ने हाथ में कूजा ले लिया है, बांग दी जा रही है, नमाज पढ़ी जा रही है, मुसल्ला नजर आ रहा है, लोगों ने नीली वेशभूषा धारण कर ली है और
ਘਰਿ ਘਰਿ ਮੀਆ ਸਭਨਾਂ ਜੀਆਂ ਬੋਲੀ ਅਵਰ ਤੁਮਾਰੀ ॥੬॥ घरि घरि मीआ सभनां जीआं बोली अवर तुमारी ॥६॥ सब ओर अल्लाह-हू-अकबर हो रहा है, घर-घर में मियाँ जी मियाँ जी कहा जा रहा है, और सब लोगों की बोली (उर्दू) बदल गई है॥६॥
ਜੇ ਤੂ ਮੀਰ ਮਹੀਪਤਿ ਸਾਹਿਬੁ ਕੁਦਰਤਿ ਕਉਣ ਹਮਾਰੀ ॥ जे तू मीर महीपति साहिबु कुदरति कउण हमारी ॥ हे मालिक ! तू सम्पूर्ण विश्व का बादशाह है, यदि यह (मुसलमानी राज्य) तेरी मर्जी है, तो हम जीवों की क्या जुर्रत है?
ਚਾਰੇ ਕੁੰਟ ਸਲਾਮੁ ਕਰਹਿਗੇ ਘਰਿ ਘਰਿ ਸਿਫਤਿ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੀ ॥੭॥ चारे कुंट सलामु करहिगे घरि घरि सिफति तुम्हारी ॥७॥ चारों दिशाएँ तुझे सलाम करती हैं और घर-घर में तेरी प्रशंसा का गान हो रहा है।॥७॥
ਤੀਰਥ ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਪੁੰਨ ਦਾਨ ਕਿਛੁ ਲਾਹਾ ਮਿਲੈ ਦਿਹਾੜੀ ॥ तीरथ सिम्रिति पुंन दान किछु लाहा मिलै दिहाड़ी ॥ तीर्थ-यात्रा, स्मृतियों के पाठ एवं दान-पुण्य से तो कुछ दिन भर का लाभ मिलता है,
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਵਡਿਆਈ ਮੇਕਾ ਘੜੀ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲੀ ॥੮॥੧॥੮॥ नानक नामु मिलै वडिआई मेका घड़ी सम्हाली ॥८॥१॥८॥ मगर गुरु नानक साहिब का फुरमान है कि यदि परमात्मा के नाम का घड़ी भर सिमरन किया जाए तो ही सच्ची बड़ाई प्राप्त होती है॥८॥१॥८॥
ਬਸੰਤੁ ਹਿੰਡੋਲੁ ਘਰੁ ੨ ਮਹਲਾ ੪ बसंतु हिंडोलु घरु २ महला ४ बसंतु हिंडोलु महला १ घरु ४
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਕਾਂਇਆ ਨਗਰਿ ਇਕੁ ਬਾਲਕੁ ਵਸਿਆ ਖਿਨੁ ਪਲੁ ਥਿਰੁ ਨ ਰਹਾਈ ॥ कांइआ नगरि इकु बालकु वसिआ खिनु पलु थिरु न रहाई ॥ शरीर रूपी नगर में मन रूपी एक नादान बालक रहता है, जो पल भर भी टिक कर नहीं रहता।
ਅਨਿਕ ਉਪਾਵ ਜਤਨ ਕਰਿ ਥਾਕੇ ਬਾਰੰ ਬਾਰ ਭਰਮਾਈ ॥੧॥ अनिक उपाव जतन करि थाके बारं बार भरमाई ॥१॥ इसके लिए अनेक उपाय इस्तेमाल कर थक गए हैं परन्तु बार-बार यह भटकता है॥१॥
ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ ਬਾਲਕੁ ਇਕਤੁ ਘਰਿ ਆਣੁ ॥ मेरे ठाकुर बालकु इकतु घरि आणु ॥ हे मेरे ठाकुर ! इस बालक को तुम ही स्थिर रख सकते हो।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਤ ਪੂਰਾ ਪਾਈਐ ਭਜੁ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਨੀਸਾਣੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सतिगुरु मिलै त पूरा पाईऐ भजु राम नामु नीसाणु ॥१॥ रहाउ ॥ अगर सतगुरु से साक्षात्कार हो जाए तो पूर्ण परमेश्वर प्राप्त होता है। राम नाम का भजन करो, यही सच्चा रास्ता है॥१॥रहाउ॥।
ਇਹੁ ਮਿਰਤਕੁ ਮੜਾ ਸਰੀਰੁ ਹੈ ਸਭੁ ਜਗੁ ਜਿਤੁ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਨਹੀ ਵਸਿਆ ॥ इहु मिरतकु मड़ा सरीरु है सभु जगु जितु राम नामु नही वसिआ ॥ अगर शरीर में राम नाम नहीं बसा तो यह मुर्दा और मिट्टी की ढेरी है। पूरा संसार नाम के बिना लाश समान है।
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਗੁਰਿ ਉਦਕੁ ਚੁਆਇਆ ਫਿਰਿ ਹਰਿਆ ਹੋਆ ਰਸਿਆ ॥੨॥ राम नामु गुरि उदकु चुआइआ फिरि हरिआ होआ रसिआ ॥२॥ जब गुरु राम नाम रूपी जल मुँह में डालता है तो यह पुनः हरा भरा हो जाता है॥२॥
ਮੈ ਨਿਰਖਤ ਨਿਰਖਤ ਸਰੀਰੁ ਸਭੁ ਖੋਜਿਆ ਇਕੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਚਲਤੁ ਦਿਖਾਇਆ ॥ मै निरखत निरखत सरीरु सभु खोजिआ इकु गुरमुखि चलतु दिखाइआ ॥ मैंने जांच पड़ताल कर पूरे शरीर को खोजा है और गुरु ने मुझे एक कौतुक दिखाया है कि
ਬਾਹਰੁ ਖੋਜਿ ਮੁਏ ਸਭਿ ਸਾਕਤ ਹਰਿ ਗੁਰਮਤੀ ਘਰਿ ਪਾਇਆ ॥੩॥ बाहरु खोजि मुए सभि साकत हरि गुरमती घरि पाइआ ॥३॥ बाहर खोजते हुए सभी मायावी जीव मर खप गए हैं मगर गुरु की धारणा का अनुसरण करते हुए प्रभु को हृदय-घर में ही पा लिया है॥३॥
ਦੀਨਾ ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਭਏ ਹੈ ਜਿਉ ਕ੍ਰਿਸਨੁ ਬਿਦਰ ਘਰਿ ਆਇਆ ॥ दीना दीन दइआल भए है जिउ क्रिसनु बिदर घरि आइआ ॥ ईश्वर निर्धनों पर ऐसे दयालु होता है, ज्यों श्रीकृष्ण विदुर के घर आया था।
ਮਿਲਿਓ ਸੁਦਾਮਾ ਭਾਵਨੀ ਧਾਰਿ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਆਗੈ ਦਾਲਦੁ ਭੰਜਿ ਸਮਾਇਆ ॥੪॥ मिलिओ सुदामा भावनी धारि सभु किछु आगै दालदु भंजि समाइआ ॥४॥ जब सुदामा श्रद्धा भावना से श्रीकृष्ण से मिला तो उन्होंने सब चीजें उसके घर पहुँचाकर सुदामा की गरीबी को दूर किया था ॥४॥
ਰਾਮ ਨਾਮ ਕੀ ਪੈਜ ਵਡੇਰੀ ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰਿ ਆਪਿ ਰਖਾਈ ॥ राम नाम की पैज वडेरी मेरे ठाकुरि आपि रखाई ॥ राम नाम का भजन करने वाले की प्रतिष्ठा बहुत बड़ी है और मेरे मालिक ने स्वयं उसकी रक्षा की है।
ਜੇ ਸਭਿ ਸਾਕਤ ਕਰਹਿ ਬਖੀਲੀ ਇਕ ਰਤੀ ਤਿਲੁ ਨ ਘਟਾਈ ॥੫॥ जे सभि साकत करहि बखीली इक रती तिलु न घटाई ॥५॥ यदि सभी मायावी जीव चुगली एवं निन्दा करते रहे तो फिर भी एक तिल भर उसकी शोभा में कमी नहीं आती ॥५॥
ਜਨ ਕੀ ਉਸਤਤਿ ਹੈ ਰਾਮ ਨਾਮਾ ਦਹ ਦਿਸਿ ਸੋਭਾ ਪਾਈ ॥ जन की उसतति है राम नामा दह दिसि सोभा पाई ॥ राम नाम का भजन करने वाला भक्त ही प्रशंसा का पात्र है और वह संसार भर में शोभा प्राप्त करता है,
ਨਿੰਦਕੁ ਸਾਕਤੁ ਖਵਿ ਨ ਸਕੈ ਤਿਲੁ ਅਪਣੈ ਘਰਿ ਲੂਕੀ ਲਾਈ ॥੬॥ निंदकु साकतु खवि न सकै तिलु अपणै घरि लूकी लाई ॥६॥ मगर निन्दा करने वाला मायावी जीव भक्त की शोभा बदाश्त नहीं करता और तृष्णा की अग्नि में जलता रहता है॥ ६ ॥
ਜਨ ਕਉ ਜਨੁ ਮਿਲਿ ਸੋਭਾ ਪਾਵੈ ਗੁਣ ਮਹਿ ਗੁਣ ਪਰਗਾਸਾ ॥ जन कउ जनु मिलि सोभा पावै गुण महि गुण परगासा ॥ ईश्वर का भक्त अन्य भक्तगणों से मिलकर शोभा पाता है और उसके गुणों में और भी बढ़ौत्तरी होती है।
ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ ਕੇ ਜਨ ਪ੍ਰੀਤਮ ਪਿਆਰੇ ਜੋ ਹੋਵਹਿ ਦਾਸਨਿ ਦਾਸਾ ॥੭॥ मेरे ठाकुर के जन प्रीतम पिआरे जो होवहि दासनि दासा ॥७॥ जो ईश्वर के दासों के दास बन जाते हैं, वही भक्त मेरे प्रभु को प्यारे लगते हैं।॥७॥
ਆਪੇ ਜਲੁ ਅਪਰੰਪਰੁ ਕਰਤਾ ਆਪੇ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਵੈ ॥ आपे जलु अपर्मपरु करता आपे मेलि मिलावै ॥ अपरंपार कर्ता आप ही जल है और स्वयं ही गुरुमुखों से मिलाता है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਹਜਿ ਮਿਲਾਏ ਜਿਉ ਜਲੁ ਜਲਹਿ ਸਮਾਵੈ ॥੮॥੧॥੯॥ नानक गुरमुखि सहजि मिलाए जिउ जलु जलहि समावै ॥८॥१॥९॥ हे नानक ! वह स्वाभाविक ही गुरु के संपर्क में मिला लेता है, ज्यों जल जल में विलीन हो जाता है॥ ८ ॥ १॥ ६ ॥


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