Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1171

Page 1171

ਕਾਹੇ ਕਲਰਾ ਸਿੰਚਹੁ ਜਨਮੁ ਗਵਾਵਹੁ ॥ काहे कलरा सिंचहु जनमु गवावहु ॥ अरे भाई ! तुम्हारा जन्म बेकार ही जा रहा है, क्यों बंजर भूमि सींच रहा है।
ਕਾਚੀ ਢਹਗਿ ਦਿਵਾਲ ਕਾਹੇ ਗਚੁ ਲਾਵਹੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ काची ढहगि दिवाल काहे गचु लावहु ॥१॥ रहाउ ॥ शरीर रूपी कच्ची दीवार नष्ट हो जाएगी, क्यों इस पर धार्मिक दिखावे का चूना लगा रहे हो॥१॥ रहाउ॥
ਕਰ ਹਰਿਹਟ ਮਾਲ ਟਿੰਡ ਪਰੋਵਹੁ ਤਿਸੁ ਭੀਤਰਿ ਮਨੁ ਜੋਵਹੁ ॥ कर हरिहट माल टिंड परोवहु तिसु भीतरि मनु जोवहु ॥ अपने हाथों से सेवा को कुएं से निकालने वाला रहट और उसकी माला और उसके भीतर मन को बैल बनाकर जोतने के लिए लगा दो।
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਸਿੰਚਹੁ ਭਰਹੁ ਕਿਆਰੇ ਤਉ ਮਾਲੀ ਕੇ ਹੋਵਹੁ ॥੨॥ अम्रितु सिंचहु भरहु किआरे तउ माली के होवहु ॥२॥ नाम रूपी अमृत जल से क्यारियों को सींचोगे तो ही ईश्वर रूपी बागबां के बनोगे॥२॥
ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਦੁਇ ਕਰਹੁ ਬਸੋਲੇ ਗੋਡਹੁ ਧਰਤੀ ਭਾਈ ॥ कामु क्रोधु दुइ करहु बसोले गोडहु धरती भाई ॥ हे भाई ! काम क्रोध को दो खुरपे बनाओ, इसका उपयोग करते हुए अवगुणों को निकालकर गुणों को धारण कर लो और शरीर रूपी भूमि में गुडाई करो।
ਜਿਉ ਗੋਡਹੁ ਤਿਉ ਤੁਮ੍ ਸੁਖ ਪਾਵਹੁ ਕਿਰਤੁ ਨ ਮੇਟਿਆ ਜਾਈ ॥੩॥ जिउ गोडहु तिउ तुम्ह सुख पावहु किरतु न मेटिआ जाई ॥३॥ ज्यों ज्यों गुडाई करोगे (अवगुण-विकारों को निकालकर) त्यों त्यों तुम सुख प्राप्त करोगे। इस प्रकार तुम्हारी मेहनत बेकार नहीं जा सकती॥३॥
ਬਗੁਲੇ ਤੇ ਫੁਨਿ ਹੰਸੁਲਾ ਹੋਵੈ ਜੇ ਤੂ ਕਰਹਿ ਦਇਆਲਾ ॥ बगुले ते फुनि हंसुला होवै जे तू करहि दइआला ॥ हे दयासागर ! यदि तू दया कर दे तो जीव बगुले से हंस बन जाता है।
ਪ੍ਰਣਵਤਿ ਨਾਨਕੁ ਦਾਸਨਿ ਦਾਸਾ ਦਇਆ ਕਰਹੁ ਦਇਆਲਾ ॥੪॥੧॥੯॥ प्रणवति नानकु दासनि दासा दइआ करहु दइआला ॥४॥१॥९॥ नानक दासों का दास मानते हुए विनती करता है कि हे दयालु ईश्वर ! हम पर अपनी दया करो॥४॥१॥६॥
ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੧ ਹਿੰਡੋਲ ॥ बसंतु महला १ हिंडोल ॥ बसंतु महला १ हिंडोल॥
ਸਾਹੁਰੜੀ ਵਥੁ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਸਾਝੀ ਪੇਵਕੜੈ ਧਨ ਵਖੇ ॥ साहुरड़ी वथु सभु किछु साझी पेवकड़ै धन वखे ॥ ससुराल से मिली सभी वस्तुएँ सबके लिए बराबर होती हैं, पर जीव रूपी स्त्री इहलोक में भिन्नता करती है।
ਆਪਿ ਕੁਚਜੀ ਦੋਸੁ ਨ ਦੇਊ ਜਾਣਾ ਨਾਹੀ ਰਖੇ ॥੧॥ आपि कुचजी दोसु न देऊ जाणा नाही रखे ॥१॥ वह स्वयं अच्छा काम नहीं करती, स्वयं को दोष नहीं देती और वस्तु को संभाल कर नहीं रखती॥१॥
ਮੇਰੇ ਸਾਹਿਬਾ ਹਉ ਆਪੇ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਣੀ ॥ मेरे साहिबा हउ आपे भरमि भुलाणी ॥ हे मेरे मालिक ! मैं स्वयं ही भ्रम में भूली हुई हूँ,
ਅਖਰ ਲਿਖੇ ਸੇਈ ਗਾਵਾ ਅਵਰ ਨ ਜਾਣਾ ਬਾਣੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ अखर लिखे सेई गावा अवर न जाणा बाणी ॥१॥ रहाउ ॥ जो भाग्य में लिखा है, वही गा रही हूँ, अन्य वाणी बोलना नहीं जानती॥१॥ रहाउ॥
ਕਢਿ ਕਸੀਦਾ ਪਹਿਰਹਿ ਚੋਲੀ ਤਾਂ ਤੁਮ੍ ਜਾਣਹੁ ਨਾਰੀ ॥ कढि कसीदा पहिरहि चोली तां तुम्ह जाणहु नारी ॥ हे जीव रूपी नारी ! अगर हरिनाम रूपी कसीदे की कढाई का प्रेम रूपी परिधान धारण किया जाए तो ही तुम्हें सम्मान मिलेगा।
ਜੇ ਘਰੁ ਰਾਖਹਿ ਬੁਰਾ ਨ ਚਾਖਹਿ ਹੋਵਹਿ ਕੰਤ ਪਿਆਰੀ ॥੨॥ जे घरु राखहि बुरा न चाखहि होवहि कंत पिआरी ॥२॥ यदि इहलोक रूपी घर में अच्छाई को संभाल कर रखोगी और बुराई से दूर रहोगी तो ही प्रभु को प्यारी लगोगी॥२॥
ਜੇ ਤੂੰ ਪੜਿਆ ਪੰਡਿਤੁ ਬੀਨਾ ਦੁਇ ਅਖਰ ਦੁਇ ਨਾਵਾ ॥ जे तूं पड़िआ पंडितु बीना दुइ अखर दुइ नावा ॥ हे जीव ! अगर तू पढ़ा लिखा है, पण्डित एवं चतुर है तो भी हरि नाम रूपी दो अक्षर ही पार करवाने वाले हैं।
ਪ੍ਰਣਵਤਿ ਨਾਨਕੁ ਏਕੁ ਲੰਘਾਏ ਜੇ ਕਰਿ ਸਚਿ ਸਮਾਵਾਂ ॥੩॥੨॥੧੦॥ प्रणवति नानकु एकु लंघाए जे करि सचि समावां ॥३॥२॥१०॥ नानक विनती करते हैं कि यदि परम सत्य की स्तुति में लीन हो जाऊँ तो केवल वही संसार-सागर से लंघा सकता है॥३॥२॥ १०॥
ਬਸੰਤੁ ਹਿੰਡੋਲ ਮਹਲਾ ੧ ॥ बसंतु हिंडोल महला १ ॥ बसंतु हिंडोल महला १॥
ਰਾਜਾ ਬਾਲਕੁ ਨਗਰੀ ਕਾਚੀ ਦੁਸਟਾ ਨਾਲਿ ਪਿਆਰੋ ॥ राजा बालकु नगरी काची दुसटा नालि पिआरो ॥ मन रूपो राजा छोटे से बच्चे की तरह नादान है, इसकी तन रूपी नगरी भी कच्ची है और काम, क्रोध, लोभ रूपी दुष्टों से प्रेम बना हुआ है।
ਦੁਇ ਮਾਈ ਦੁਇ ਬਾਪਾ ਪੜੀਅਹਿ ਪੰਡਿਤ ਕਰਹੁ ਬੀਚਾਰੋ ॥੧॥ दुइ माई दुइ बापा पड़ीअहि पंडित करहु बीचारो ॥१॥ इसकी दो माताएँ एवं दो पिता बतलाए जाते हैं, हे पण्डित जी ! इस बात पर चिंतन करो॥१॥
ਸੁਆਮੀ ਪੰਡਿਤਾ ਤੁਮ੍ ਦੇਹੁ ਮਤੀ ॥ सुआमी पंडिता तुम्ह देहु मती ॥ हे पण्डित स्वामी ! तुम यह शिक्षा प्रदान करो कि
ਕਿਨ ਬਿਧਿ ਪਾਵਉ ਪ੍ਰਾਨਪਤੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ किन बिधि पावउ प्रानपती ॥१॥ रहाउ ॥ सच्चा परमेश्वर किस विधि से प्राप्त हो सकता है॥१॥ रहाउ॥
ਭੀਤਰਿ ਅਗਨਿ ਬਨਾਸਪਤਿ ਮਉਲੀ ਸਾਗਰੁ ਪੰਡੈ ਪਾਇਆ ॥ भीतरि अगनि बनासपति मउली सागरु पंडै पाइआ ॥ वनस्पति में अग्नि होने के बावजूद भी वह हरित रहती है और सागर बहुत बड़ा होकर भी अपनी सीमा पार नहीं करता, जैसे गठरी बांध दी गई हो।
ਚੰਦੁ ਸੂਰਜੁ ਦੁਇ ਘਰ ਹੀ ਭੀਤਰਿ ਐਸਾ ਗਿਆਨੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥੨॥ चंदु सूरजु दुइ घर ही भीतरि ऐसा गिआनु न पाइआ ॥२॥ शान्ति रूपी चांद एवं क्रोध रूपी सूर्य दोनों ही एक घर में रहते हैं, ऐसा ज्ञान प्राप्त नहीं किया॥२॥
ਰਾਮ ਰਵੰਤਾ ਜਾਣੀਐ ਇਕ ਮਾਈ ਭੋਗੁ ਕਰੇਇ ॥ राम रवंता जाणीऐ इक माई भोगु करेइ ॥ ईश्वर का उपासक वही माना जाता है, जो एक माई का भोग कर लेता है,
ਤਾ ਕੇ ਲਖਣ ਜਾਣੀਅਹਿ ਖਿਮਾ ਧਨੁ ਸੰਗ੍ਰਹੇਇ ॥੩॥ ता के लखण जाणीअहि खिमा धनु संग्रहेइ ॥३॥ उसके लक्षण यही माने जाते हैं कि वह क्षमाभावना रूपी धन संग्रह करता हो॥३॥
ਕਹਿਆ ਸੁਣਹਿ ਨ ਖਾਇਆ ਮਾਨਹਿ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹਾ ਹੀ ਸੇਤੀ ਵਾਸਾ ॥ कहिआ सुणहि न खाइआ मानहि तिन्हा ही सेती वासा ॥ मनुष्य का लाचार मन इन इन्द्रियों के संग रहता है, जिनको उपदेश दिया जाए तो ध्यान नहीं देती और जितनी भी तृप्ति करवाई जाए, एहसानमंद नहीं होती।
ਪ੍ਰਣਵਤਿ ਨਾਨਕੁ ਦਾਸਨਿ ਦਾਸਾ ਖਿਨੁ ਤੋਲਾ ਖਿਨੁ ਮਾਸਾ ॥੪॥੩॥੧੧॥ प्रणवति नानकु दासनि दासा खिनु तोला खिनु मासा ॥४॥३॥११॥ गुरु नानक स्वयं को दासों का दास मानते हुए विनय करते हैं कि मन पल में ही बड़ा हो जाता है और पल में ही छोटा हो जाता है॥४॥ ३॥ ११॥
ਬਸੰਤੁ ਹਿੰਡੋਲ ਮਹਲਾ ੧ ॥ बसंतु हिंडोल महला १ ॥ बसंतु हिंडोल महला १॥
ਸਾਚਾ ਸਾਹੁ ਗੁਰੂ ਸੁਖਦਾਤਾ ਹਰਿ ਮੇਲੇ ਭੁਖ ਗਵਾਏ ॥ साचा साहु गुरू सुखदाता हरि मेले भुख गवाए ॥ गुरु सच्चा शाह है, सुख प्रदान करने वाला है। वह हर लालसा को दूर कर परमात्मा से मिला देता है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ਅਨਦਿਨੁ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਏ ॥੧॥ करि किरपा हरि भगति द्रिड़ाए अनदिनु हरि गुण गाए ॥१॥ वह कृपा करके परमात्मा की भक्ति करवाता है और हर समय परमात्मा के ही गुण गाता है॥१॥
ਮਤ ਭੂਲਹਿ ਰੇ ਮਨ ਚੇਤਿ ਹਰੀ ॥ मत भूलहि रे मन चेति हरी ॥ हे मन ! परमात्मा का स्मरण करो, उसे मत भुलाओ।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਮੁਕਤਿ ਨਾਹੀ ਤ੍ਰੈ ਲੋਈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਈਐ ਨਾਮੁ ਹਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ बिनु गुर मुकति नाही त्रै लोई गुरमुखि पाईऐ नामु हरी ॥१॥ रहाउ ॥ गुरु के बिना तीनों लोकों में मुक्ति नहीं हो सकती और प्रभु का नाम गुरु से ही प्राप्त होता है॥१॥ रहाउ॥
ਬਿਨੁ ਭਗਤੀ ਨਹੀ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਈਐ ਬਿਨੁ ਭਾਗਾ ਨਹੀ ਭਗਤਿ ਹਰੀ ॥ बिनु भगती नही सतिगुरु पाईऐ बिनु भागा नही भगति हरी ॥ भक्ति के बिना सतगुरु प्राप्त नहीं होता और भाग्य के बिना ईश्वर की भक्ति भी नहीं हो सकती।
ਬਿਨੁ ਭਾਗਾ ਸਤਸੰਗੁ ਨ ਪਾਈਐ ਕਰਮਿ ਮਿਲੈ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਹਰੀ ॥੨॥ बिनु भागा सतसंगु न पाईऐ करमि मिलै हरि नामु हरी ॥२॥ भाग्य के बिना सत्संग भी प्राप्त नहीं होता और परमात्मा का नाम प्रारब्ध से ही मिलता है।॥२॥
ਘਟਿ ਘਟਿ ਗੁਪਤੁ ਉਪਾਏ ਵੇਖੈ ਪਰਗਟੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੰਤ ਜਨਾ ॥ घटि घटि गुपतु उपाए वेखै परगटु गुरमुखि संत जना ॥ संसार को उत्पन्न एवं देखभाल करने वाला प्रभु घट घट में गुप्त रूप से व्याप्त है, वह गुरमुख भक्तजनों के सन्मुख प्रगट हो जाता है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਰਹਿ ਸੁ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਭੀਨੇ ਹਰਿ ਜਲੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਮਨਾ ॥੩॥ हरि हरि करहि सु हरि रंगि भीने हरि जलु अम्रित नामु मना ॥३॥ जो ईश्वर का भजन करते हैं, उसके रंग में ही निमग्न रहते हैं उनके मन में हरिनामामृत ही बसा रहता है।॥३॥


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