Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1134

Page 1134

ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਹਰਿ ਭਜੁ ਸੁਰਤਿ ਸਮਾਇਣੁ ॥੧॥ गुर सबदी हरि भजु सुरति समाइणु ॥१॥ गुरु उपदेश द्वारा एकाग्रचित होकर परमेश्वर का भजन करो॥१॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਹਰਿ ਭਜੁ ਨਾਮੁ ਨਰਾਇਣੁ ॥ मेरे मन हरि भजु नामु नराइणु ॥ हे मेरे मन ! नारायण-स्वरूप हरि-नाम का भजन-संकीर्तन करो।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ਸੁਖਦਾਤਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਭਵਜਲੁ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਤਰਾਇਣੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हरि हरि क्रिपा करे सुखदाता गुरमुखि भवजलु हरि नामि तराइणु ॥१॥ रहाउ ॥ यद्यपि सुखदाता ईश्वर कृपा कर दे तो गुरु के माध्यम से उसका नाम संसार-सागर से पार करवा देता है॥१॥ रहाउ॥
ਸੰਗਤਿ ਸਾਧ ਮੇਲਿ ਹਰਿ ਗਾਇਣੁ ॥ संगति साध मेलि हरि गाइणु ॥ साधुओं की संगत में मिलकर प्रभु का यशगान होता है और
ਗੁਰਮਤੀ ਲੇ ਰਾਮ ਰਸਾਇਣੁ ॥੨॥ गुरमती ले राम रसाइणु ॥२॥ गुरु के निर्देशानुसार राम नाम रूपी औषधि प्राप्त की जा सकती है।॥२॥
ਗੁਰ ਸਾਧੂ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਗਿਆਨ ਸਰਿ ਨਾਇਣੁ ॥ गुर साधू अम्रित गिआन सरि नाइणु ॥ गुरु-साधु के अमृत ज्ञान रूपी सरोवर में स्नान करो,
ਸਭਿ ਕਿਲਵਿਖ ਪਾਪ ਗਏ ਗਾਵਾਇਣੁ ॥੩॥ सभि किलविख पाप गए गावाइणु ॥३॥ इससे सभी पाप-दोष दूर हो जाते हैं।॥३॥
ਤੂ ਆਪੇ ਕਰਤਾ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਧਰਾਇਣੁ ॥ तू आपे करता स्रिसटि धराइणु ॥ हे ईश्वर ! तू ही बनानेवाला है और सृष्टि को सहारा देने वाला है।
ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਮੇਲਿ ਤੇਰਾ ਦਾਸ ਦਸਾਇਣੁ ॥੪॥੧॥ जनु नानकु मेलि तेरा दास दसाइणु ॥४॥१॥ नानक की विनती है कि मुझे अपने संग मिला लो, क्योंकि वह तो तेरे दासों का भी दास है॥४॥१॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੪ ॥ भैरउ महला ४ ॥ भैरउ महला ४॥
ਬੋਲਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਫਲ ਸਾ ਘਰੀ ॥ बोलि हरि नामु सफल सा घरी ॥ वही सफल घड़ी है, जब ईश्वर का संकीर्तन होता है।
ਗੁਰ ਉਪਦੇਸਿ ਸਭਿ ਦੁਖ ਪਰਹਰੀ ॥੧॥ गुर उपदेसि सभि दुख परहरी ॥१॥ गुरु के उपदेश से सब दुख दूर हो जाते हैं।॥१॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਹਰਿ ਭਜੁ ਨਾਮੁ ਨਰਹਰੀ ॥ मेरे मन हरि भजु नामु नरहरी ॥ हे मेरे मन ! परमेश्वर का भजन करो,
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਮੇਲਹੁ ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਸਤਸੰਗਤਿ ਸੰਗਿ ਸਿੰਧੁ ਭਉ ਤਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ करि किरपा मेलहु गुरु पूरा सतसंगति संगि सिंधु भउ तरी ॥१॥ रहाउ ॥ अगर वह कृपा कर दे तो पूर्ण गुरु से मिलाप हो जाता है, सत्संगति में संसार-समुद्र से उद्धार हो जाता है।॥१॥ रहाउ॥
ਜਗਜੀਵਨੁ ਧਿਆਇ ਮਨਿ ਹਰਿ ਸਿਮਰੀ ॥ जगजीवनु धिआइ मनि हरि सिमरी ॥ हे मन ! संसार के जीवन प्रभु का चिंतन कर ले,
ਕੋਟ ਕੋਟੰਤਰ ਤੇਰੇ ਪਾਪ ਪਰਹਰੀ ॥੨॥ कोट कोटंतर तेरे पाप परहरी ॥२॥ तेरे करोड़ों पाप दूर हो जाएँगे॥२॥
ਸਤਸੰਗਤਿ ਸਾਧ ਧੂਰਿ ਮੁਖਿ ਪਰੀ ॥ सतसंगति साध धूरि मुखि परी ॥ अगर सत्संगति में साधु की चरण-धूल मुँह-माथे पर लग जाए तो
ਇਸਨਾਨੁ ਕੀਓ ਅਠਸਠਿ ਸੁਰਸਰੀ ॥੩॥ इसनानु कीओ अठसठि सुरसरी ॥३॥ उससे अड़सठ गंगा स्नान का फल प्राप्त हो जाता है।॥३॥
ਹਮ ਮੂਰਖ ਕਉ ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਕਰੀ ॥ हम मूरख कउ हरि किरपा करी ॥ नानक की विनती है कि हे प्रभु ! मुझ मूर्ख पर कृपा करो;
ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਤਾਰਿਓ ਤਾਰਣ ਹਰੀ ॥੪॥੨॥ जनु नानकु तारिओ तारण हरी ॥४॥२॥ इस संसार-सागर से पार उतार दो॥४॥२॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੪ ॥ भैरउ महला ४ ॥ भैरउ महला ४॥
ਸੁਕ੍ਰਿਤੁ ਕਰਣੀ ਸਾਰੁ ਜਪਮਾਲੀ ॥ सुक्रितु करणी सारु जपमाली ॥ शुभ कर्म करना ही जप माला है,
ਹਿਰਦੈ ਫੇਰਿ ਚਲੈ ਤੁਧੁ ਨਾਲੀ ॥੧॥ हिरदै फेरि चलै तुधु नाली ॥१॥ इसे हृदय में फेरते चलो अर्थात् शुभ कर्म करो; इसी का फल प्राप्त होगा॥१॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਬਨਵਾਲੀ ॥ हरि हरि नामु जपहु बनवाली ॥ ईश्वर का नाम जपो,
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਮੇਲਹੁ ਸਤਸੰਗਤਿ ਤੂਟਿ ਗਈ ਮਾਇਆ ਜਮ ਜਾਲੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ करि किरपा मेलहु सतसंगति तूटि गई माइआ जम जाली ॥१॥ रहाउ ॥ अगर कृपा कर सत्संगत में मिला दे तो माया का यम जाल टूट जाता है।॥१॥ रहाउ॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੇਵਾ ਘਾਲ ਜਿਨਿ ਘਾਲੀ ॥ गुरमुखि सेवा घाल जिनि घाली ॥ जिसने गुरु की सेवा की है,
ਤਿਸੁ ਘੜੀਐ ਸਬਦੁ ਸਚੀ ਟਕਸਾਲੀ ॥੨॥ तिसु घड़ीऐ सबदु सची टकसाली ॥२॥ उस सच्ची टकसाल में शब्द के स्फोट से उसका जीवन संवर गया है॥२॥
ਹਰਿ ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਗੁਰਿ ਅਗਮ ਦਿਖਾਲੀ ॥ हरि अगम अगोचरु गुरि अगम दिखाली ॥ ईश्वर अगम्य-अगोचर है और गुरु ने उसका दर्शन करवा दिया है,
ਵਿਚਿ ਕਾਇਆ ਨਗਰ ਲਧਾ ਹਰਿ ਭਾਲੀ ॥੩॥ विचि काइआ नगर लधा हरि भाली ॥३॥ इस प्रकार शरीर रूपी नगर में ही उसे पा लिया है॥ ३॥
ਹਮ ਬਾਰਿਕ ਹਰਿ ਪਿਤਾ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲੀ ॥ ਜਨ ਨਾਨਕ ਤਾਰਹੁ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲੀ ॥੪॥੩॥ हम बारिक हरि पिता प्रतिपाली ॥ जन नानक तारहु नदरि निहाली ॥४॥३॥ हम ईश्वर की संतान हैं, वह पिता की तरह हमारा पोषण करता है। नानक का कथन है कि यदि प्रभु की करुणा-दृष्टि हो जाए तो जीव संसार-सागर से पार हो जाता है॥४॥३॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੪ ॥ भैरउ महला ४ ॥ भैरउ महला ४॥
ਸਭਿ ਘਟ ਤੇਰੇ ਤੂ ਸਭਨਾ ਮਾਹਿ ॥ सभि घट तेरे तू सभना माहि ॥ हे परमेश्वर ! सब शरीर तेरे हैं, तू सर्वव्यापक है और
ਤੁਝ ਤੇ ਬਾਹਰਿ ਕੋਈ ਨਾਹਿ ॥੧॥ तुझ ते बाहरि कोई नाहि ॥१॥ तुझ से बाहर कोई नहीं॥१॥
ਹਰਿ ਸੁਖਦਾਤਾ ਮੇਰੇ ਮਨ ਜਾਪੁ ॥ हरि सुखदाता मेरे मन जापु ॥ हे मेरे मन ! सुखदाता परमेश्वर का जाप करो;
ਹਉ ਤੁਧੁ ਸਾਲਾਹੀ ਤੂ ਮੇਰਾ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਬਾਪੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हउ तुधु सालाही तू मेरा हरि प्रभु बापु ॥१॥ रहाउ ॥ हे प्रभु ! मैं तेरी प्रशंसा करता हूँ, तू ही मेरा पिता है॥१॥ रहाउ॥
ਜਹ ਜਹ ਦੇਖਾ ਤਹ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਇ ॥ जह जह देखा तह हरि प्रभु सोइ ॥ जहाँ देखता हूँ, वहाँ प्रभु ही है।
ਸਭ ਤੇਰੈ ਵਸਿ ਦੂਜਾ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥੨॥ सभ तेरै वसि दूजा अवरु न कोइ ॥२॥ सब तेरे वश में है, दूसरा अन्य कोई नहीं॥२॥
ਜਿਸ ਕਉ ਤੁਮ ਹਰਿ ਰਾਖਿਆ ਭਾਵੈ ॥ जिस कउ तुम हरि राखिआ भावै ॥ हे प्रभु ! जिसे तुम स्वेच्छा से बचाते हो,
ਤਿਸ ਕੈ ਨੇੜੈ ਕੋਇ ਨ ਜਾਵੈ ॥੩॥ तिस कै नेड़ै कोइ न जावै ॥३॥ उसके निकट कोई दुरात्मा भी नहीं जाती॥३॥
ਤੂ ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਸਭ ਤੈ ਭਰਪੂਰਿ ॥ तू जलि थलि महीअलि सभ तै भरपूरि ॥ सागर, भूमि व आसमान सबमें तू ही व्याप्त है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਜਪਿ ਹਾਜਰਾ ਹਜੂਰਿ ॥੪॥੪॥ जन नानक हरि जपि हाजरा हजूरि ॥४॥४॥ नानक का कथन है कि हे हरि ! जाप करने से तू साक्षात् दिखाई देता है॥ ४॥४॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੪ ਘਰੁ ੨ भैरउ महला ४ घरु २ भैरउ महला ४ घरु २
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਹਰਿ ਕਾ ਸੰਤੁ ਹਰਿ ਕੀ ਹਰਿ ਮੂਰਤਿ ਜਿਸੁ ਹਿਰਦੈ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਮੁਰਾਰਿ ॥ हरि का संतु हरि की हरि मूरति जिसु हिरदै हरि नामु मुरारि ॥ ईश्वर का भक्त तो ईश्वर की मूर्ति समान है, जिसके हृदय में हरिनाम ही बसा रहता है।
ਮਸਤਕਿ ਭਾਗੁ ਹੋਵੈ ਜਿਸੁ ਲਿਖਿਆ ਸੋ ਗੁਰਮਤਿ ਹਿਰਦੈ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਰਿ ॥੧॥ मसतकि भागु होवै जिसु लिखिआ सो गुरमति हिरदै हरि नामु सम्हारि ॥१॥ जिसका उत्तम भाग्य हो, वह गुरु-मतानुसार हरिनाम स्मरण करता है॥१॥


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