Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1117

Page 1117

ਜਾਗਾਤੀਆ ਉਪਾਵ ਸਿਆਣਪ ਕਰਿ ਵੀਚਾਰੁ ਡਿਠਾ ਭੰਨਿ ਬੋਲਕਾ ਸਭਿ ਉਠਿ ਗਇਆ ॥ जागातीआ उपाव सिआणप करि वीचारु डिठा भंनि बोलका सभि उठि गइआ ॥ धन-दान लेने वाले पुरोहितों ने उपाय, बुद्धिमत्ता कर सब गोलक उठवा लिए।
ਤ੍ਰਿਤੀਆ ਆਏ ਸੁਰਸਰੀ ਤਹ ਕਉਤਕੁ ਚਲਤੁ ਭਇਆ ॥੫॥ त्रितीआ आए सुरसरी तह कउतकु चलतु भइआ ॥५॥ इस तरह वे गंगा (हरिद्वार) आए और वहाँ उन्होंने विचित्र लीला रची॥ ५॥
ਮਿਲਿ ਆਏ ਨਗਰ ਮਹਾ ਜਨਾ ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਓਟ ਗਹੀ ॥ मिलि आए नगर महा जना गुर सतिगुर ओट गही ॥ फिर नगर के प्रतिष्ठित व्यक्ति मिलकर गुरु जी के पास आए और उनका आसरा ग्रहण किया।
ਗੁਰੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਗੁਰੁ ਗੋਵਿਦੁ ਪੁਛਿ ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਕੀਤਾ ਸਹੀ ॥ गुरु सतिगुरु गुरु गोविदु पुछि सिम्रिति कीता सही ॥ जब उन्होंने ईश्वर के बारे में अपनी जिज्ञासा व्यक्त की तो गुरु जी ने स्मृतियों के आधार पर उन्हें संतुष्टि प्रदान की।
ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਸਾਸਤ੍ਰ ਸਭਨੀ ਸਹੀ ਕੀਤਾ ਸੁਕਿ ਪ੍ਰਹਿਲਾਦਿ ਸ੍ਰੀਰਾਮਿ ਕਰਿ ਗੁਰ ਗੋਵਿਦੁ ਧਿਆਇਆ ॥ सिम्रिति सासत्र सभनी सही कीता सुकि प्रहिलादि स्रीरामि करि गुर गोविदु धिआइआ ॥ गुरु जी ने स्मृतियों एवं शास्त्रों के आधार पर तथ्य बताया कि शुकदेव, भक्त प्रहलाद एवं श्री रामचन्द्र जी ने क्योंकर ईश्वर की सत्ता मानकर उसका ध्यान किया और
ਦੇਹੀ ਨਗਰਿ ਕੋਟਿ ਪੰਚ ਚੋਰ ਵਟਵਾਰੇ ਤਿਨ ਕਾ ਥਾਉ ਥੇਹੁ ਗਵਾਇਆ ॥ देही नगरि कोटि पंच चोर वटवारे तिन का थाउ थेहु गवाइआ ॥ देह रूपी नगर किले में कामादिक पाँच चोरों को चकनाचूर कर दिया।
ਕੀਰਤਨ ਪੁਰਾਣ ਨਿਤ ਪੁੰਨ ਹੋਵਹਿ ਗੁਰ ਬਚਨਿ ਨਾਨਕਿ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਲਹੀ ॥ कीरतन पुराण नित पुंन होवहि गुर बचनि नानकि हरि भगति लही ॥ वहाँ नित्य प्रभुकीर्तन, पुराणों की कथा और दान-पुण्य हो रहा था, नानक का कथन है कि गुरु के वचन से उनको प्रभु-भक्ति प्राप्त हुई।
ਮਿਲਿ ਆਏ ਨਗਰ ਮਹਾ ਜਨਾ ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਓਟ ਗਹੀ ॥੬॥੪॥੧੦॥ मिलि आए नगर महा जना गुर सतिगुर ओट गही ॥६॥४॥१०॥ नगर के कुलीन पुरुष मिलकर गुरु जी के सान्निध्य में आए और उनका आसरा पाया॥ ६॥ ४॥ १०॥तुखारी महला ४॥
ਤੁਖਾਰੀ ਛੰਤ ਮਹਲਾ ੫ तुखारी छंत महला ५ तुखारी छंत महला ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ वह अद्वितीय परमेश्वर जिसका वाचक ओम् है, केवल (ऑकार स्वरूप) एक है, सतगुरु की कृपा से प्राप्त होता है।
ਘੋਲਿ ਘੁਮਾਈ ਲਾਲਨਾ ਗੁਰਿ ਮਨੁ ਦੀਨਾ ॥ घोलि घुमाई लालना गुरि मनु दीना ॥ हे स्वामी ! मैं तुम पर कोटि-कोटि कुर्बान जाता हूँ, गुरु द्वारा मैंने यह मन तुझे अर्पण कर दिया है।
ਸੁਣਿ ਸਬਦੁ ਤੁਮਾਰਾ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਭੀਨਾ ॥ सुणि सबदु तुमारा मेरा मनु भीना ॥ तुम्हारा शब्द सुनकर मेरा मन भीग गया है,"
ਇਹੁ ਮਨੁ ਭੀਨਾ ਜਿਉ ਜਲ ਮੀਨਾ ਲਾਗਾ ਰੰਗੁ ਮੁਰਾਰਾ ॥ इहु मनु भीना जिउ जल मीना लागा रंगु मुरारा ॥ यह मन तेरे प्रेम में ऐसे भीग गया है, जैसे मछली का जल से प्रेम होता है।
ਕੀਮਤਿ ਕਹੀ ਨ ਜਾਈ ਠਾਕੁਰ ਤੇਰਾ ਮਹਲੁ ਅਪਾਰਾ ॥ कीमति कही न जाई ठाकुर तेरा महलु अपारा ॥ हे प्रभु ! तेरा घर अपार है, इसकी कीमत आँकी नहीं जा सकती।
ਸਗਲ ਗੁਣਾ ਕੇ ਦਾਤੇ ਸੁਆਮੀ ਬਿਨਉ ਸੁਨਹੁ ਇਕ ਦੀਨਾ ॥ सगल गुणा के दाते सुआमी बिनउ सुनहु इक दीना ॥ हे सर्वगुणों के दाता, स्वामी ! दीन की एक विनय सुनो,"
ਦੇਹੁ ਦਰਸੁ ਨਾਨਕ ਬਲਿਹਾਰੀ ਜੀਅੜਾ ਬਲਿ ਬਲਿ ਕੀਨਾ ॥੧॥ देहु दरसु नानक बलिहारी जीअड़ा बलि बलि कीना ॥१॥ नानक तुझ पर बलिहारी जाता है, अपने दर्शन प्रदान करो, यह प्राण भी तुझ पर न्यौछावर हैं।॥ १॥
ਇਹੁ ਤਨੁ ਮਨੁ ਤੇਰਾ ਸਭਿ ਗੁਣ ਤੇਰੇ ॥ इहु तनु मनु तेरा सभि गुण तेरे ॥ यह तन-मन, सब गुण तेरी देन है,"
ਖੰਨੀਐ ਵੰਞਾ ਦਰਸਨ ਤੇਰੇ ॥ खंनीऐ वंञा दरसन तेरे ॥ तेरे दर्शन पाने के लिए टुकड़े-टुकड़े होने के लिए भी तैयार हूँ।
ਦਰਸਨ ਤੇਰੇ ਸੁਣਿ ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ਨਿਮਖ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਪੇਖਿ ਜੀਵਾ ॥ दरसन तेरे सुणि प्रभ मेरे निमख द्रिसटि पेखि जीवा ॥ हे मेरे प्रभु ! सुनो, पल भर तुझे देखकर ही में जीवन पाता हूँ।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਸੁਨੀਜੈ ਤੇਰਾ ਕਿਰਪਾ ਕਰਹਿ ਤ ਪੀਵਾ ॥ अम्रित नामु सुनीजै तेरा किरपा करहि त पीवा ॥ तेरा अमृत नाम सुना जाता है, अगर तेरी कृपा हो जाए तो मैं भी पान कर सकता हूँ।
ਆਸ ਪਿਆਸੀ ਪਿਰ ਕੈ ਤਾਈ ਜਿਉ ਚਾਤ੍ਰਿਕੁ ਬੂੰਦੇਰੇ ॥ आस पिआसी पिर कै ताई जिउ चात्रिकु बूंदेरे ॥ जैसे पपीहा स्वाति-बूंद के लिए प्यासा होता है, वैसे ही जीव-स्त्री प्रभु की आशा में प्यासी बनी हुई है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜੀਅੜਾ ਬਲਿਹਾਰੀ ਦੇਹੁ ਦਰਸੁ ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ॥੨॥ कहु नानक जीअड़ा बलिहारी देहु दरसु प्रभ मेरे ॥२॥ नानक का कथन है कि हे मेरे प्रभु ! मुझे दर्शन प्रदान करो, क्योंकि यह प्राण भी तुझ पर न्यौछावर हैं।॥ २॥
ਤੂ ਸਾਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਸਾਹੁ ਅਮਿਤਾ ॥ तू साचा साहिबु साहु अमिता ॥ हे परमेश्वर, तू परम सत्य है, संसार का मालिक है, अमित साहूकार है।
ਤੂ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਪਿਆਰਾ ਪ੍ਰਾਨ ਹਿਤ ਚਿਤਾ ॥ तू प्रीतमु पिआरा प्रान हित चिता ॥ तू प्रियतम प्यारा तो हमें दिल एवं जान से भी बहुत प्यारा है।
ਪ੍ਰਾਨ ਸੁਖਦਾਤਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਤਾ ਸਗਲ ਰੰਗ ਬਨਿ ਆਏ ॥ प्रान सुखदाता गुरमुखि जाता सगल रंग बनि आए ॥ प्राणों को सुख देने वाले प्रभु का बोध गुरु से ही होता है, सब रंग-तमाशे उसके ही बनाए हुए हैं।
ਸੋਈ ਕਰਮੁ ਕਮਾਵੈ ਪ੍ਰਾਣੀ ਜੇਹਾ ਤੂ ਫੁਰਮਾਏ ॥ सोई करमु कमावै प्राणी जेहा तू फुरमाए ॥ प्राणी वही कर्म करता है, जैसा तू आदेश करता है।
ਜਾ ਕਉ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੀ ਜਗਦੀਸੁਰਿ ਤਿਨਿ ਸਾਧਸੰਗਿ ਮਨੁ ਜਿਤਾ ॥ जा कउ क्रिपा करी जगदीसुरि तिनि साधसंगि मनु जिता ॥ जिस पर जगदीश्वर ने कृपा की है, उसने साधु-संगत में मन को जीत लिया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜੀਅੜਾ ਬਲਿਹਾਰੀ ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਤਉ ਦਿਤਾ ॥੩॥ कहु नानक जीअड़ा बलिहारी जीउ पिंडु तउ दिता ॥३॥ नानक का कथन है कि यह प्राण भी तुम पर कुर्बान हैं, क्योंकि यह आत्मा-शरीर सब तेरी देन है॥३॥
ਨਿਰਗੁਣੁ ਰਾਖਿ ਲੀਆ ਸੰਤਨ ਕਾ ਸਦਕਾ ॥ निरगुणु राखि लीआ संतन का सदका ॥ संत पुरुषों के सदके मुझ गुणविहीन को परमात्मा ने बचा लिया है,"
ਸਤਿਗੁਰਿ ਢਾਕਿ ਲੀਆ ਮੋਹਿ ਪਾਪੀ ਪੜਦਾ ॥ सतिगुरि ढाकि लीआ मोहि पापी पड़दा ॥ सतगुरु ने मुझ जैसे पापी का पर्दा ढक लिया है।
ਢਾਕਨਹਾਰੇ ਪ੍ਰਭੂ ਹਮਾਰੇ ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਨ ਸੁਖਦਾਤੇ ॥ ढाकनहारे प्रभू हमारे जीअ प्रान सुखदाते ॥ आत्मा एवं प्राणों को सुख देने वाला प्रभु ही हमारे पाप-अपराध ढकने वाला है।
ਅਬਿਨਾਸੀ ਅਬਿਗਤ ਸੁਆਮੀ ਪੂਰਨ ਪੁਰਖ ਬਿਧਾਤੇ ॥ अबिनासी अबिगत सुआमी पूरन पुरख बिधाते ॥ वह अविनाशी, अव्यक्त, संसार का स्वामी, पूर्ण परमपुरुष विधाता है।
ਉਸਤਤਿ ਕਹਨੁ ਨ ਜਾਇ ਤੁਮਾਰੀ ਕਉਣੁ ਕਹੈ ਤੂ ਕਦ ਕਾ ॥ उसतति कहनु न जाइ तुमारी कउणु कहै तू कद का ॥ हे प्रभु ! तेरी प्रशंसा कही नहीं जा सकती (अर्थात् तेरी प्रशंसा का कोई अंत नहीं), कौन कह सकता है कि तू कँहा कँहा व्याप्त है।
ਨਾਨਕ ਦਾਸੁ ਤਾ ਕੈ ਬਲਿਹਾਰੀ ਮਿਲੈ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਨਿਮਕਾ ॥੪॥੧॥੧੧॥ नानक दासु ता कै बलिहारी मिलै नामु हरि निमका ॥४॥१॥११॥ दास नानक उस गुरु पर बलिहारी है, जिससे हरिनाम मिल जाता है॥४॥१॥११॥


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