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ਰਾਮ ਨਾਮ ਕੀ ਗਤਿ ਨਹੀ ਜਾਨੀ ਕੈਸੇ ਉਤਰਸਿ ਪਾਰਾ ॥੧॥
राम नाम की महत्ता को जाना ही नहीं, फिर कैसे पार हो सकते हो।॥ १॥
ਜੀਅ ਬਧਹੁ ਸੁ ਧਰਮੁ ਕਰਿ ਥਾਪਹੁ ਅਧਰਮੁ ਕਹਹੁ ਕਤ ਭਾਈ ॥
यज्ञ करते समय बलि देने के लिए -हत्या को तुम धर्म कहते हो, हे भाई ! फिर बताओ अधर्म क्या है?
ਆਪਸ ਕਉ ਮੁਨਿਵਰ ਕਰਿ ਥਾਪਹੁ ਕਾ ਕਉ ਕਹਹੁ ਕਸਾਈ ॥੨॥
ऐसा करके भी तुम खुद को मुनि कहलवाते हो तो फिर कसाई केिसे कहते हो।॥ २॥
ਮਨ ਕੇ ਅੰਧੇ ਆਪਿ ਨ ਬੂਝਹੁ ਕਾਹਿ ਬੁਝਾਵਹੁ ਭਾਈ ॥
हे मन के अन्धे ! स्वयं तो तुम कुछ समझते ही नहीं, फिर किसी अन्य को क्या ज्ञान दे सकते हो।
ਮਾਇਆ ਕਾਰਨ ਬਿਦਿਆ ਬੇਚਹੁ ਜਨਮੁ ਅਬਿਰਥਾ ਜਾਈ ॥੩॥
तुम धन-दौलत के लिए विद्या को बेचते हो और इस तरह तुम्हारा जन्म व्यर्थ ही जा रहा है॥ ३॥
ਨਾਰਦ ਬਚਨ ਬਿਆਸੁ ਕਹਤ ਹੈ ਸੁਕ ਕਉ ਪੂਛਹੁ ਜਾਈ ॥
देवर्षि नारद एवं व्यास भी यही वचन कहता है और इस संदर्भ में चाहे शुकदेव से भी विश्लेषण किया जा सकता है।
ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਰਾਮੈ ਰਮਿ ਛੂਟਹੁ ਨਾਹਿ ਤ ਬੂਡੇ ਭਾਈ ॥੪॥੧॥
हे भाई ! कबीर भी एक यही सत्य कहते हैं कि राम का नाम जपने से ही छुटकारा हो सकता है, अन्यथा भवसागर में ही डूबोगे॥ ४॥ १॥
ਬਨਹਿ ਬਸੇ ਕਿਉ ਪਾਈਐ ਜਉ ਲਉ ਮਨਹੁ ਨ ਤਜਹਿ ਬਿਕਾਰ ॥
जब तक मन में से कामादिक विकारों को छोड़ा नहीं जा सकता, फिर वन में जाकर बसने से भी भगवान को कैसे पाया जा सकता है।
ਜਿਹ ਘਰੁ ਬਨੁ ਸਮਸਰਿ ਕੀਆ ਤੇ ਪੂਰੇ ਸੰਸਾਰ ॥੧॥
जिसने अपने घर एवं वन को एक समान समझ लिया है, वही व्यक्ति संसार में पूर्ण त्यागी है॥ १॥
ਸਾਰ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ਰਾਮਾ ॥
राम-नाम का सिमरन करने से ही परम-सुख हासिल होता है,
ਰੰਗਿ ਰਵਹੁ ਆਤਮੈ ਰਾਮ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अतः अपने हृदय में ही प्रेमपूर्वक राम को जपते रहो॥ १॥ रहाउ॥
ਜਟਾ ਭਸਮ ਲੇਪਨ ਕੀਆ ਕਹਾ ਗੁਫਾ ਮਹਿ ਬਾਸੁ ॥
किसी ने लम्बी जटाएँ रखकर, शरीर में भस्म का लेपन करके गुफा में निवास कर लिया है, परन्तु इसका क्या लाभ ?
ਮਨੁ ਜੀਤੇ ਜਗੁ ਜੀਤਿਆ ਜਾਂ ਤੇ ਬਿਖਿਆ ਤੇ ਹੋਇ ਉਦਾਸੁ ॥੨॥
जिसने अपने मन को जीत लिया है, उसने तो समझो सारे जगत् को ही जीत लिया है और वह विषय-विकारों से विरक्त हो जाता है॥ २॥
ਅੰਜਨੁ ਦੇਇ ਸਭੈ ਕੋਈ ਟੁਕੁ ਚਾਹਨ ਮਾਹਿ ਬਿਡਾਨੁ ॥
हर कोई अपनी आँखों में सुरमा लगाता है किन्तु हरेक इन्सान की भावना में थोड़ा अन्तर अवश्य होता है।(कोई अपनी ऑखों की ज्योति बढ़ाने एवं कोई सुन्दर दिखने के लिए ऑखों में सुरमा डालता है) ।
ਗਿਆਨ ਅੰਜਨੁ ਜਿਹ ਪਾਇਆ ਤੇ ਲੋਇਨ ਪਰਵਾਨੁ ॥੩॥
जिसने अपनी ऑखों में ज्ञान रूपी सुरमा डाला है, वही ऑखें वास्तव में स्वीकार होती हैं।॥ ३॥
ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਅਬ ਜਾਨਿਆ ਗੁਰਿ ਗਿਆਨੁ ਦੀਆ ਸਮਝਾਇ ॥
हे कबीर ! अब मैंने सत्य को जान लिया है, गुरु ने मुझे ज्ञान देकर समझा दिया है।
ਅੰਤਰਗਤਿ ਹਰਿ ਭੇਟਿਆ ਅਬ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਕਤਹੂ ਨ ਜਾਇ ॥੪॥੨॥
मुझे मेरे अन्तर्मन में ही परमात्मा मिल गया है, अतः अब मेरा मन कहीं भी नहीं भटकता॥ ४॥ २॥
ਰਿਧਿ ਸਿਧਿ ਜਾ ਕਉ ਫੁਰੀ ਤਬ ਕਾਹੂ ਸਿਉ ਕਿਆ ਕਾਜ ॥
जिसे ऋद्धियों-सिद्धियों पाने का ख्याल लगा हुआ है, तो उसे भला किसी से क्या वास्ता हो सकता है।
ਤੇਰੇ ਕਹਨੇ ਕੀ ਗਤਿ ਕਿਆ ਕਹਉ ਮੈ ਬੋਲਤ ਹੀ ਬਡ ਲਾਜ ॥੧॥
तेरी कही बातों के बारे में क्या कहूँ? मुझे तो बात करते भी बहुत शर्म महसूस होती है॥ १॥
ਰਾਮੁ ਜਿਹ ਪਾਇਆ ਰਾਮ ॥
जिसने राम को पा लिया है,
ਤੇ ਭਵਹਿ ਨ ਬਾਰੈ ਬਾਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
उसे द्वार-द्वार पर भटकना नहीं पड़ता॥ १॥ रहाउ॥
ਝੂਠਾ ਜਗੁ ਡਹਕੈ ਘਨਾ ਦਿਨ ਦੁਇ ਬਰਤਨ ਕੀ ਆਸ ॥
दो दिन व्यवहार की आशा लेकर यह झूठा जगत बहुत भटकता रहता है।
ਰਾਮ ਉਦਕੁ ਜਿਹ ਜਨ ਪੀਆ ਤਿਹਿ ਬਹੁਰਿ ਨ ਭਈ ਪਿਆਸ ॥੨॥
जिसने राम-नाम रूपी जल पी लिया है, उसे पुनः कोई प्यास नहीं लगती॥ २॥
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਜਿਹ ਬੂਝਿਆ ਆਸਾ ਤੇ ਭਇਆ ਨਿਰਾਸੁ ॥
गुरु की कृपा से जिसने इस रहस्य को बूझ लिया है, वह आशाओं को छोड़कर निर्लिप्त हो गया है।
ਸਭੁ ਸਚੁ ਨਦਰੀ ਆਇਆ ਜਉ ਆਤਮ ਭਇਆ ਉਦਾਸੁ ॥੩॥
जब अन्तर्मन विरक्त हो गया तो उसे सब ओर सत्य ही नजर आया है॥ ३॥
ਰਾਮ ਨਾਮ ਰਸੁ ਚਾਖਿਆ ਹਰਿ ਨਾਮਾ ਹਰ ਤਾਰਿ ॥
जिसने मुक्तिदाता ईश्वर का नाम जपा है, वह पार हो गया है।
ਕਹੁ ਕਬੀਰ ਕੰਚਨੁ ਭਇਆ ਭ੍ਰਮੁ ਗਇਆ ਸਮੁਦ੍ਰੈ ਪਾਰਿ ॥੪॥੩॥
हे कबीर ! वह मनुष्य स्वर्ण की तरह हो गया है, उसका भ्रम मिट गया है और वह संसार-समुद्र से पार हो गया है॥ ४॥ ३॥
ਉਦਕ ਸਮੁੰਦ ਸਲਲ ਕੀ ਸਾਖਿਆ ਨਦੀ ਤਰੰਗ ਸਮਾਵਹਿਗੇ ॥
जैसे समुद्र का पानी समुद्र में एवं लहरें नदी में विलीन हो जाती हैं, वैसे ही हम परम-सत्य में समाहित हो जाएँगे।
ਸੁੰਨਹਿ ਸੁੰਨੁ ਮਿਲਿਆ ਸਮਦਰਸੀ ਪਵਨ ਰੂਪ ਹੋਇ ਜਾਵਹਿਗੇ ॥੧॥
जब शून्य (परमात्मा) में शून्य (आत्मा) मिल जाएगा तो हम समदर्शीं पवन रूप हो जाएँगे।॥ १॥
ਬਹੁਰਿ ਹਮ ਕਾਹੇ ਆਵਹਿਗੇ ॥
फिर दुनिया में हम क्योंकर आएँगे ?
ਆਵਨ ਜਾਨਾ ਹੁਕਮੁ ਤਿਸੈ ਕਾ ਹੁਕਮੈ ਬੁਝਿ ਸਮਾਵਹਿਗੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जन्म-मरण तो परमात्मा के हुक्म में ही होता है और उसके हुक्म को बूझकर उसमें ही समा जाएँगे॥ १॥ रहाउ॥
ਜਬ ਚੂਕੈ ਪੰਚ ਧਾਤੁ ਕੀ ਰਚਨਾ ਐਸੇ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਵਹਿਗੇ ॥
जब पंच तत्वों (पृथ्वी, आकाश, अग्नि, पवन, जल) की रचना विनष्ट हो जाएगी तो इस तरह सब भ्रम मिट जाएगा।
ਦਰਸਨੁ ਛੋਡਿ ਭਏ ਸਮਦਰਸੀ ਏਕੋ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਹਿਗੇ ॥੨॥
छदम् दर्शन एवं पाखण्डों को छोड़कर हम समदर्शी होकर एक ईश्वर के नाम का ध्यान करते रहेंगे। २॥
ਜਿਤ ਹਮ ਲਾਏ ਤਿਤ ਹੀ ਲਾਗੇ ਤੈਸੇ ਕਰਮ ਕਮਾਵਹਿਗੇ ॥
भगवान् हमें जिधर लगाएगा, उधर ही लगे रहेंगे और वैसे ही कर्म करते रहेंगे।
ਹਰਿ ਜੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ਜਉ ਅਪਨੀ ਤੌ ਗੁਰ ਕੇ ਸਬਦਿ ਸਮਾਵਹਿਗੇ ॥੩॥
यदि परमात्मा अपनी कृपा कर दे तो गुरु के शब्द में समाहित हो जाएँगे॥ ३॥
ਜੀਵਤ ਮਰਹੁ ਮਰਹੁ ਫੁਨਿ ਜੀਵਹੁ ਪੁਨਰਪਿ ਜਨਮੁ ਨ ਹੋਈ ॥
अगर जिन्दा रहते हुए विषय-विकारों की तरफ से मर जाओ तो मरकर पुनः जीवित बन जाओ, इस प्रकार बार-बार जन्म-मरण नहीं होगा।