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ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी॥
ਦੋਵੈ ਤਰਫਾ ਉਪਾਈਓਨੁ ਵਿਚਿ ਸਕਤਿ ਸਿਵ ਵਾਸਾ ॥
(लोक-परलोक) दोनों मार्गों को उत्पन्न करके जीव रूपी शिव का शक्ति रूपी माया में निवास कर दिया है।
ਸਕਤੀ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਇਓ ਫਿਰਿ ਜਨਮਿ ਬਿਨਾਸਾ ॥
माया रूपी शक्ति द्वारा किसी ने भी सत्य को प्राप्त नहीं किया और वह पुनः जन्मता-मरता है।
ਗੁਰਿ ਸੇਵਿਐ ਸਾਤਿ ਪਾਈਐ ਜਪਿ ਸਾਸ ਗਿਰਾਸਾ ॥
साँस-ग्रास हर पल गुरु की सेवा और नाम जपने से शान्ति प्राप्त होती है।
ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਸਾਸਤ ਸੋਧਿ ਦੇਖੁ ਊਤਮ ਹਰਿ ਦਾਸਾ ॥
शास्त्रों एवं स्मृतियों का विश्लेषण करके देख लिया है, जिनका परिणाम यही है केि परमात्मा के दास ही उत्तम हैं।
ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਕੋ ਥਿਰੁ ਨਹੀ ਨਾਮੇ ਬਲਿ ਜਾਸਾ ॥੧੦॥
हे नानक ! नाम के बिना कोई स्थिर नहीं, अतः हरि-नाम पर ही कुर्बान जाता हूँ॥ १०॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੩ ॥
श्लोक महला ३॥
ਹੋਵਾ ਪੰਡਿਤੁ ਜੋਤਕੀ ਵੇਦ ਪੜਾ ਮੁਖਿ ਚਾਰਿ ॥
यदि पण्डित एवं ज्योतिषी बन कर मुँह से चार वेदों का पाठ करे,
ਨਵ ਖੰਡ ਮਧੇ ਪੂਜੀਆ ਅਪਣੈ ਚਜਿ ਵੀਚਾਰਿ ॥
चाहे अपने आचरण एवं विचारों के कारण पृथ्वी के नौ खण्डों में पूजनीय हो जाए।
ਮਤੁ ਸਚਾ ਅਖਰੁ ਭੁਲਿ ਜਾਇ ਚਉਕੈ ਭਿਟੈ ਨ ਕੋਇ ॥
मगर इस सच्ची बात को भूलना नहीं चाहिए कि चौके को स्पर्श करने से दूषित नहीं होता,
ਝੂਠੇ ਚਉਕੇ ਨਾਨਕਾ ਸਚਾ ਏਕੋ ਸੋਇ ॥੧॥
अपितु हे नानक ! चौके तो झूठे हैं, एक परमात्मा ही सच्चा है॥ १॥
ਮਃ ੩ ॥
महला ३॥
ਆਪਿ ਉਪਾਏ ਕਰੇ ਆਪਿ ਆਪੇ ਨਦਰਿ ਕਰੇਇ ॥
वह स्वयं ही उत्पन्न करता है, करने वाला भी वह स्वयं ही है और स्वयं ही कृपा-दृष्टि करता है।
ਆਪੇ ਦੇ ਵਡਿਆਈਆ ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸਚਾ ਸੋਇ ॥੨॥
हे नानक ! वह सच्चा परमेश्वर स्वयं ही बड़ाई प्रदान करता है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी॥
ਕੰਟਕੁ ਕਾਲੁ ਏਕੁ ਹੈ ਹੋਰੁ ਕੰਟਕੁ ਨ ਸੂਝੈ ॥
एक काल ही सबसे दुःखदायक है, उसके अलावा अन्य कोई दुखदाई नहीं सूझता।
ਅਫਰਿਓ ਜਗ ਮਹਿ ਵਰਤਦਾ ਪਾਪੀ ਸਿਉ ਲੂਝੈ ॥
समूचे जगत् में अटल बना हुआ यह कार्यशील है और पापी लोगों को दण्ड देता है।
ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਹਰਿ ਭੇਦੀਐ ਹਰਿ ਜਪਿ ਹਰਿ ਬੂਝੈ ॥
जो व्यक्ति शब्द-गुरु द्वारा हरि में लीन रहता है, वह हरि को जपकर उसे बूझ लेता है।
ਸੋ ਹਰਿ ਸਰਣਾਈ ਛੁਟੀਐ ਜੋ ਮਨ ਸਿਉ ਜੂਝੈ ॥
जो मन से जूझता है, वह भगवान् की शरण में आकर यमों से छूट जाता है।
ਮਨਿ ਵੀਚਾਰਿ ਹਰਿ ਜਪੁ ਕਰੇ ਹਰਿ ਦਰਗਹ ਸੀਝੈ ॥੧੧॥
जो मन में विचार करके भगवान का जाप करता है,उसके दरबार में स्वीकार हो जाता है। ११॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥
श्लोक महला १॥
ਹੁਕਮਿ ਰਜਾਈ ਸਾਖਤੀ ਦਰਗਹ ਸਚੁ ਕਬੂਲੁ ॥
ईश्वर की रज़ा एवं हुक्म से ही सृष्टि-रचना हुई है और उसके दरबार में सत्य ही स्वीकार होता है।
ਸਾਹਿਬੁ ਲੇਖਾ ਮੰਗਸੀ ਦੁਨੀਆ ਦੇਖਿ ਨ ਭੂਲੁ ॥
हे जीव ! दुनिया को देखकर भुलावे में मत पड़, क्योंकेि मालिक तो किए कर्मों का ही हिसाब माँगता है।
ਦਿਲ ਦਰਵਾਨੀ ਜੋ ਕਰੇ ਦਰਵੇਸੀ ਦਿਲੁ ਰਾਸਿ ॥
फकीरी वही करता है, जो अपने दिल को विकारों की तरफ जाने से रोके और दिल को हमेशा शुद्ध रखे।
ਇਸਕ ਮੁਹਬਤਿ ਨਾਨਕਾ ਲੇਖਾ ਕਰਤੇ ਪਾਸਿ ॥੧॥
हे नानक ! परमात्मा से इश्क-मुहब्बत करने का हिसाब उस कर्ता के पास ही है॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥
महला १॥
ਅਲਗਉ ਜੋਇ ਮਧੂਕੜਉ ਸਾਰੰਗਪਾਣਿ ਸਬਾਇ ॥
हे नानक ! जब जीव रूपी भँवरा निर्लिप्त होकर सबमें ईश्वर को पाता है,
ਹੀਰੈ ਹੀਰਾ ਬੇਧਿਆ ਨਾਨਕ ਕੰਠਿ ਸੁਭਾਇ ॥੨॥
तो उसका हीरे रूपी मन प्रभु रूपी हीरे से बिंध जाता है और सहज-स्वभाव प्रभु उसके मन में अवस्थित हो जाता है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी॥
ਮਨਮੁਖ ਕਾਲੁ ਵਿਆਪਦਾ ਮੋਹਿ ਮਾਇਆ ਲਾਗੇ ॥
मोह-माया में लीन मनमुखी जीव को काल सताता रहता है।
ਖਿਨ ਮਹਿ ਮਾਰਿ ਪਛਾੜਸੀ ਭਾਇ ਦੂਜੈ ਠਾਗੇ ॥
द्वैतभाव द्वारा ठगे गए जीव को काल क्षण में पछाड़ कर समाप्त कर देता है।
ਫਿਰਿ ਵੇਲਾ ਹਥਿ ਨ ਆਵਈ ਜਮ ਕਾ ਡੰਡੁ ਲਾਗੇ ॥
जब यम का दण्ड प्राप्त होता है तो पुनः सुनहरी अवसर नहीं मिलता।
ਤਿਨ ਜਮ ਡੰਡੁ ਨ ਲਗਈ ਜੋ ਹਰਿ ਲਿਵ ਜਾਗੇ ॥
जो परमात्मा में ध्यान लगाकर जाग्रत रहते हैं, उन्हें यम का दण्ड स्पर्श नहीं करता।
ਸਭ ਤੇਰੀ ਤੁਧੁ ਛਡਾਵਣੀ ਸਭ ਤੁਧੈ ਲਾਗੇ ॥੧੨॥
हे ईश्वर ! सारी दुनिया तेरी ही पैदा की हुई है, तूने ही इसे मुक्त करवाना है और सभी तेरी स्तुति में लगे हुए हैं।॥ १२॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥
श्लोक महला १॥
ਸਰਬੇ ਜੋਇ ਅਗਛਮੀ ਦੂਖੁ ਘਨੇਰੋ ਆਥਿ ॥
सबमें अविनाशी ईश्वर को देखो, धन-दौलत के साथ मोह लगाने से दुख ही दुख मिलते हैं।
ਕਾਲਰੁ ਲਾਦਸਿ ਸਰੁ ਲਾਘਣਉ ਲਾਭੁ ਨ ਪੂੰਜੀ ਸਾਥਿ ॥੧॥
हे मानव ! तूने संसार-सागर में से पार होना है, किन्तु अपने साथ जाने के लिए पाप रूपी कल्लर बेकार ही लाद लिया है, मगर नाम रूपी पूंजी को छोड़कर यह पूंजी ले जाने में कोई लाभ नहीं है।१॥
ਮਃ ੧ ॥
महला १॥
ਪੂੰਜੀ ਸਾਚਉ ਨਾਮੁ ਤੂ ਅਖੁਟਉ ਦਰਬੁ ਅਪਾਰੁ ॥
हे मानव ! सत्य-नाम की पूंजी संचय कर, यही अक्षय अपार धन है।
ਨਾਨਕ ਵਖਰੁ ਨਿਰਮਲਉ ਧੰਨੁ ਸਾਹੁ ਵਾਪਾਰੁ ॥੨॥
नानक का कथन है कि यह नाम रूपी पदार्थ पवित्र है और इसका व्यापार करने वाला साहूकार भी धन्य है॥ २॥
ਮਃ ੧ ॥
महला १॥
ਪੂਰਬ ਪ੍ਰੀਤਿ ਪਿਰਾਣਿ ਲੈ ਮੋਟਉ ਠਾਕੁਰੁ ਮਾਣਿ ॥
हे जीव ! ईश्वर से अपनी पूर्व जन्म की प्रीति को पहचान ले और उसके प्रेम का आनंद प्राप्त कर,
ਮਾਥੈ ਊਭੈ ਜਮੁ ਮਾਰਸੀ ਨਾਨਕ ਮੇਲਣੁ ਨਾਮਿ ॥੩॥
अन्यथा सिर पर खड़ा यम तुझे प्रताड़ित करेगा, हे नानक ! परमात्मा से मिलाप उसके नाम द्वारा ही होता है। ३॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी॥
ਆਪੇ ਪਿੰਡੁ ਸਵਾਰਿਓਨੁ ਵਿਚਿ ਨਵ ਨਿਧਿ ਨਾਮੁ ॥
परमात्मा ने स्वयं ही मानव शरीर को सुन्दर बनाया है एवं उसमें नौ निधियाँ प्रदान करने वाला नाम स्थापित किया है।
ਇਕਿ ਆਪੇ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਇਅਨੁ ਤਿਨ ਨਿਹਫਲ ਕਾਮੁ ॥
किसी को उसने स्वयं ही भ्रम में भुलाया हुआ है, उसका प्रत्येक कार्य निष्फल हो गया है।
ਇਕਨੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੁਝਿਆ ਹਰਿ ਆਤਮ ਰਾਮੁ ॥
किसी ने गुरु के सान्निध्य में आत्मा में परमात्मा के रहस्य को समझ लिया है।
ਇਕਨੀ ਸੁਣਿ ਕੈ ਮੰਨਿਆ ਹਰਿ ਊਤਮ ਕਾਮੁ ॥
किसी ने ईश्वर का यश सुनकर निष्ठापूर्वक उसका ही मनन किया है, जो एक सर्वोत्तम कार्य है।
ਅੰਤਰਿ ਹਰਿ ਰੰਗੁ ਉਪਜਿਆ ਗਾਇਆ ਹਰਿ ਗੁਣ ਨਾਮੁ ॥੧੩॥
जिसके मन में प्रेम-रंग उत्पन्न हो गया है, उसने परमात्मा के नाम का ही गुणगान किया है॥ १३॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥
श्लोक महला १॥