Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1059

Page 1059

ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਸੁ ਸੋਝੀ ਪਾਏ ॥ जो गुरुमुख होता ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
ਹਉਮੈ ਮਾਇਆ ਭਰਮੁ ਗਵਾਏ ॥ वह मन में से अभिमान, माया एवं भ्रम को दूर कर देता है।
ਗੁਰ ਕੀ ਪਉੜੀ ਊਤਮ ਊਚੀ ਦਰਿ ਸਚੈ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇਦਾ ॥੭॥ गुरु रूपी सीढ़ी सबसे ऊँची एवं श्रेष्ठ है और गुरु सत्य के दर पर प्रभु के गुण गाता रहता है॥७॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਚੁ ਸੰਜਮੁ ਕਰਣੀ ਸਾਰੁ ॥ गुरमुख वह सत्य एवं संयम वाला जीवन-आचरण अपनाता है और
ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਏ ਮੋਖ ਦੁਆਰੁ ॥ उसे मोक्ष-द्वार प्राप्त हो जाता है
ਭਾਇ ਭਗਤਿ ਸਦਾ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ਆਪੁ ਗਵਾਇ ਸਮਾਇਦਾ ॥੮॥ प्रेम-भक्ति के रंग में सदा लीन रहता है और अहम् को मिटाकर सत्य में समाहित हो जाता है॥८॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਮਨੁ ਖੋਜਿ ਸੁਣਾਏ ॥ जो गुरुमुख होता है, वह मन को खोजकर नाम के बारे में दूसरों को सुनाता है।
ਸਚੈ ਨਾਮਿ ਸਦਾ ਲਿਵ ਲਾਏ ॥ वह सदा ही सत्य नाम में लगन लगाता है।
ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੋਈ ਕਰਸੀ ਜੋ ਸਚੇ ਮਨਿ ਭਾਇਦਾ ॥੯॥ जो परमात्मा को मंजूर है, वह वही करता है और जो सच्चे के मन को अच्छा लगता है॥ ९॥
ਜਾ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸਤਿਗੁਰੂ ਮਿਲਾਏ ॥ यदि उसे स्वीकार हो तो वह सतगुरु से मिला देता है।
ਜਾ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਾ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ॥ यदि उसे उपयुक्त लगे तो मन में नाम बसा देता है।
ਆਪਣੈ ਭਾਣੈ ਸਦਾ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ਭਾਣੈ ਮੰਨਿ ਵਸਾਇਦਾ ॥੧੦॥ वह स्वेच्छा में सदा ही रंग में लीन रहता है और स्वेच्छा से मन में आ बसता है॥ १०॥
ਮਨਹਠਿ ਕਰਮ ਕਰੇ ਸੋ ਛੀਜੈ ॥ जो व्यक्ति मन के हठ से कर्म करता है, वह बर्बाद हो जाता है।
ਬਹੁਤੇ ਭੇਖ ਕਰੇ ਨਹੀ ਭੀਜੈ ॥ नेक दिखावे करने से भी उसका मन प्रभु-रंग में नहीं भीगता।
ਬਿਖਿਆ ਰਾਤੇ ਦੁਖੁ ਕਮਾਵਹਿ ਦੁਖੇ ਦੁਖਿ ਸਮਾਇਦਾ ॥੧੧॥ वह विषय-विकारों में लीन रहकर दुख ही भोगता है और दुखों में ही समा जाता है॥ ११॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਸੁ ਸੁਖੁ ਕਮਾਏ ॥ जो गुरुमुख होता है, वह सुख ही हासिल करता है और
ਮਰਣ ਜੀਵਣ ਕੀ ਸੋਝੀ ਪਾਏ ॥ उसे जीवन-मृत्यु का ज्ञान हो जाता है।
ਮਰਣੁ ਜੀਵਣੁ ਜੋ ਸਮ ਕਰਿ ਜਾਣੈ ਸੋ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਭ ਭਾਇਦਾ ॥੧੨॥ जो जीवन-मृत्यु को बराबर समझता, वही जीव मेरे प्रभु को अच्छा लगता है॥ १२॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਰਹਿ ਸੁ ਹਹਿ ਪਰਵਾਣੁ ॥ जो गुरुमुख बनकर मृत्यु को प्राप्त होता है, वही ईश्वर को परवान होता है।
ਆਵਣ ਜਾਣਾ ਸਬਦੁ ਪਛਾਣੁ ॥ वह जन्म एवं मृत्यु को भी ईश्वर का हुक्म ही मानता है।
ਮਰੈ ਨ ਜੰਮੈ ਨਾ ਦੁਖੁ ਪਾਏ ਮਨ ਹੀ ਮਨਹਿ ਸਮਾਇਦਾ ॥੧੩॥ वह न ही मरता है, न ही जन्म लेता है, न ही दुख प्राप्त करता है, अपितु उसकी ज्योति परम-ज्योति में विलीन हो जाती है॥ १३॥
ਸੇ ਵਡਭਾਗੀ ਜਿਨੀ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ॥ वही खुशकिस्मत हैं, जिन्होंने सच्चे गुरु को पाया है।
ਹਉਮੈ ਵਿਚਹੁ ਮੋਹੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥ उन्होंने मन में से अभिमान एवं मोह को दूर कर दिया है।
ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਫਿਰਿ ਮੈਲੁ ਨ ਲਾਗੈ ਦਰਿ ਸਚੈ ਸੋਭਾ ਪਾਇਦਾ ॥੧੪॥ उनका मन निर्मल हो जाता है, फिर उन्हें अहम् की मैल नहीं लगती और वे सच्चे द्वार पर ही शोभा प्राप्त करते हैं॥ १४॥
ਆਪੇ ਕਰੇ ਕਰਾਏ ਆਪੇ ॥ करने एवं करवाने वाला स्वयं ईश्वर ही है।
ਆਪੇ ਵੇਖੈ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪੇ ॥ वह स्वयं ही देखभाल करता और बनाकर मिटा भी देता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੇਵਾ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਭ ਭਾਵੈ ਸਚੁ ਸੁਣਿ ਲੇਖੈ ਪਾਇਦਾ ॥੧੫॥ गुरुमुख की सेवा ही मेरे प्रभु को अच्छी लगती है और वह सत्य को सुनकर ही उसे परवान कर लेता है॥ १५॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਚੋ ਸਚੁ ਕਮਾਵੈ ॥ गुरुमुख सच्चा जीवन-आचरण अपनाता है,"
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਿਰਮਲੁ ਮੈਲੁ ਨ ਲਾਵੈ ॥ वह निर्मल ही रहता है और उसके मन को कोई मैल नहीं लगती।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਵੀਚਾਰੀ ਨਾਮੇ ਨਾਮਿ ਸਮਾਇਦਾ ॥੧੬॥੧॥੧੫॥ हे नानक ! हरि-नाम में रत चिंतनशील प्रभु-नाम में ही विलीन हो जाता है॥१६॥१॥१५॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੩ ॥ मारू महला ३॥
ਆਪੇ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਹੁਕਮਿ ਸਭ ਸਾਜੀ ॥ ईश्वर ने स्वयं ही अपने हुक्म से समूची सृष्टि का निर्माण किया है और
ਆਪੇ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪਿ ਨਿਵਾਜੀ ॥ स्वयं ही सब बनाया एवं नष्ट किया है।
ਆਪੇ ਨਿਆਉ ਕਰੇ ਸਭੁ ਸਾਚਾ ਸਾਚੇ ਸਾਚਿ ਮਿਲਾਇਦਾ ॥੧॥ वह सत्यस्वरूप सबके साथ न्याय करता है और सत्यवादियों को सत्य से मिला देता है॥ १॥
ਕਾਇਆ ਕੋਟੁ ਹੈ ਆਕਾਰਾ ॥ यह शरीर किला आकार है,"
ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਪਸਰਿਆ ਪਾਸਾਰਾ ॥ जिसमें माया का मोह फैला हुआ है।
ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਭਸਮੈ ਕੀ ਢੇਰੀ ਖੇਹੂ ਖੇਹ ਰਲਾਇਦਾ ॥੨॥ शब्द के बिना यह भस्म की ढेरी है और मिट्टी में ही मिल जाता है।॥ २॥
ਕਾਇਆ ਕੰਚਨ ਕੋਟੁ ਅਪਾਰਾ ॥ यह कंचन शरीर अपार किला है,"
ਜਿਸੁ ਵਿਚਿ ਰਵਿਆ ਸਬਦੁ ਅਪਾਰਾ ॥ जिसमें अपार ब्रह्म-शब्द रमण कर रहा है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਗਾਵੈ ਸਦਾ ਗੁਣ ਸਾਚੇ ਮਿਲਿ ਪ੍ਰੀਤਮ ਸੁਖੁ ਪਾਇਦਾ ॥੩॥ गुरुमुख सदा सच्चे प्रभु के गुण गाता रहता है और अपने प्रियतम से मिलकर सुख हासिल करता है।॥३॥
ਕਾਇਆ ਹਰਿ ਮੰਦਰੁ ਹਰਿ ਆਪਿ ਸਵਾਰੇ ॥ यह शरीर ही परमात्मा का मन्दिर है और वह स्वयं ही इसे सुन्दर बनाता है।
ਤਿਸੁ ਵਿਚਿ ਹਰਿ ਜੀਉ ਵਸੈ ਮੁਰਾਰੇ ॥ इस मन्दिर में परमात्मा ही रहता है।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਵਣਜਨਿ ਵਾਪਾਰੀ ਨਦਰੀ ਆਪਿ ਮਿਲਾਇਦਾ ॥੪॥ नाम के व्यापारी गुरु के शब्द द्वारा व्यापार करते हैं और प्रभु कृपा कर उन्हें मिला लेता है॥ ४॥
ਸੋ ਸੂਚਾ ਜਿ ਕਰੋਧੁ ਨਿਵਾਰੇ ॥ वही शुद्ध है, जो अपने क्रोध को दूर कर देता है।
ਸਬਦੇ ਬੂਝੈ ਆਪੁ ਸਵਾਰੇ ॥ वह शब्द द्वारा बूझकर खुद को सुन्दर बना लेता है।
ਆਪੇ ਕਰੇ ਕਰਾਏ ਕਰਤਾ ਆਪੇ ਮੰਨਿ ਵਸਾਇਦਾ ॥੫॥ दरअसल करने-करवाने वाला स्वयं परमात्मा ही है और स्वयं ही नाम मन में बसा देता है।॥ ५॥
ਨਿਰਮਲ ਭਗਤਿ ਹੈ ਨਿਰਾਲੀ ॥ निर्मल भक्ति वेिलक्षण है,"
ਮਨੁ ਤਨੁ ਧੋਵਹਿ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰੀ ॥ इसमें शब्द का मनन करने से मन-तन शुद्ध हो जाता है।


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