Guru Granth Sahib Translation Project

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ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਇਸੁ ਮਨਹਿ ਨਚਾਏ ਅੰਤਰਿ ਕਪਟੁ ਦੁਖੁ ਪਾਵਣਿਆ ॥੪॥ माइआ मोहु इसु मनहि नचाए अंतरि कपटु दुखु पावणिआ ॥४॥ माया का मोह जीव के मन को नचाता है और भीतर के छल-कपट के कारण वह दुःख भोगता है। ॥४॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਭਗਤਿ ਜਾ ਆਪਿ ਕਰਾਏ ॥ गुरमुखि भगति जा आपि कराए ॥ जब भगवान् स्वयं मनुष्य से गुरु के सान्निध्य द्वारा अपनी भक्ति करवाता है
ਤਨੁ ਮਨੁ ਰਾਤਾ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਏ ॥ तनु मनु राता सहजि सुभाए ॥ तो सहज-स्वभाव ही उसका मन एवं तन भगवान् के प्रेम में मग्न हो जाता है।
ਬਾਣੀ ਵਜੈ ਸਬਦਿ ਵਜਾਏ ਗੁਰਮੁਖਿ ਭਗਤਿ ਥਾਇ ਪਾਵਣਿਆ ॥੫॥ बाणी वजै सबदि वजाए गुरमुखि भगति थाइ पावणिआ ॥५॥ ईश्वरीय शब्द की धुन अनुयायी के हृदय में अनहद गूंजने लग जाती है और वह भक्ति भाव से गुरु के शब्द का गायन करता है। ऐसी पूजा ईश्वर के दरबार में स्वीकृत होती है।॥५॥
ਬਹੁ ਤਾਲ ਪੂਰੇ ਵਾਜੇ ਵਜਾਏ ॥ बहु ताल पूरे वाजे वजाए ॥ स्वेच्छाचारी अत्यधिक ताल लगाते एवं बाजे बजाते हैं
ਨਾ ਕੋ ਸੁਣੇ ਨ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ॥ ना को सुणे न मंनि वसाए ॥ परन्तु कोई भी न ही प्रभु के नाम को सुनता है और न ही नाम को अपने मन में बसाता हैं।
ਮਾਇਆ ਕਾਰਣਿ ਪਿੜ ਬੰਧਿ ਨਾਚੈ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਦੁਖੁ ਪਾਵਣਿਆ ॥੬॥ माइआ कारणि पिड़ बंधि नाचै दूजै भाइ दुखु पावणिआ ॥६॥ माया के लिए तो वह मंच सजाकर नाचता है, परंतु द्वैत से प्रेम होने के कारण केवल दुःख ही सहता है। ६॥
ਜਿਸੁ ਅੰਤਰਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਗੈ ਸੋ ਮੁਕਤਾ ॥ जिसु अंतरि प्रीति लगै सो मुकता ॥ जिस व्यक्ति के मन में प्रभु की प्रीति उत्पन्न हो जाती है, वही मोह-माया से मुक्ति पाता है।
ਇੰਦ੍ਰੀ ਵਸਿ ਸਚ ਸੰਜਮਿ ਜੁਗਤਾ ॥ इंद्री वसि सच संजमि जुगता ॥ इन्द्रियों को नियंत्रण में कर लेना ही संयम रूपी सच्ची युक्ति है।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਸਦਾ ਹਰਿ ਧਿਆਏ ਏਹਾ ਭਗਤਿ ਹਰਿ ਭਾਵਣਿਆ ॥੭॥ गुर कै सबदि सदा हरि धिआए एहा भगति हरि भावणिआ ॥७॥ गुरु के वचन से वह सदैव भगवान् के नाम का ध्यान करता है। यही वह पूजा है जो भगवान् को प्रसन्न करती है। ॥७॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਭਗਤਿ ਜੁਗ ਚਾਰੇ ਹੋਈ ॥ गुरमुखि भगति जुग चारे होई ॥ भगवान् की भक्ति चारों युगों में गुरु के माध्यम से ही होती रही है।
ਹੋਰਤੁ ਭਗਤਿ ਨ ਪਾਏ ਕੋਈ ॥ होरतु भगति न पाए कोई ॥ किसी अन्य विधि द्वारा भगवान् की भक्ति होती ही नहीं।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਗੁਰ ਭਗਤੀ ਪਾਈਐ ਗੁਰ ਚਰਣੀ ਚਿਤੁ ਲਾਵਣਿਆ ॥੮॥੨੦॥੨੧॥ नानक नामु गुर भगती पाईऐ गुर चरणी चितु लावणिआ ॥८॥२०॥२१॥ हे नानक! गुरु के चरणों में चित्त लगाने से भगवान् का नाम गुरु-भक्ति द्वारा प्राप्त होता है॥ ८ ॥ २० ॥ २१ ॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੩ ॥ माझ महला ३ ॥ माझ महला, तीसरे गुरु द्वारा:३ ॥
ਸਚਾ ਸੇਵੀ ਸਚੁ ਸਾਲਾਹੀ ॥ सचा सेवी सचु सालाही ॥ में तो सत्यस्वरूप परमात्मा की ही सेवा करता हूँ और उस सत्यस्वरूप परमात्मा की ही महिमा स्तुति करता रहता हूँ।
ਸਚੈ ਨਾਇ ਦੁਖੁ ਕਬ ਹੀ ਨਾਹੀ ॥ सचै नाइ दुखु कब ही नाही ॥ सत्य परमेश्वर का नाम-सिमरन करने से दुःख कभी भी निकट नहीं आता।
ਸੁਖਦਾਤਾ ਸੇਵਨਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਨਿ ਗੁਰਮਤਿ ਮੰਨਿ ਵਸਾਵਣਿਆ ॥੧॥ सुखदाता सेवनि सुखु पाइनि गुरमति मंनि वसावणिआ ॥१॥ जो व्यक्ति सुखदाता भगवान् की सेवा करते हैं और गुरु की मति द्वारा उसे अपने हृदय में बसाकर रखते हैं, ऐसे व्यक्ति सदैव सुखी रहते हैं।॥१॥
ਹਉ ਵਾਰੀ ਜੀਉ ਵਾਰੀ ਸੁਖ ਸਹਜਿ ਸਮਾਧਿ ਲਗਾਵਣਿਆ हउ वारी जीउ वारी सुख सहजि समाधि लगावणिआ ॥ मैं उन पर तन एवं मन से न्यौछावर हूँ, जो सहज सुखदायक समाधि लगाते हैं।
ਜੋ ਹਰਿ ਸੇਵਹਿ ਸੇ ਸਦਾ ਸੋਹਹਿ ਸੋਭਾ ਸੁਰਤਿ ਸੁਹਾਵਣਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जो हरि सेवहि से सदा सोहहि सोभा सुरति सुहावणिआ ॥१॥ रहाउ ॥ जो व्यक्ति भगवान् की सेवा करते हैं, वह सदैव ही सुन्दर लगते हैं। वह भगवान् में वृति लगाकर शोभा के पात्र बन जाते हैं और भगवान् के दरबार में बड़ी शोभा प्राप्त करते हैं॥१॥ रहाउ ॥
ਸਭੁ ਕੋ ਤੇਰਾ ਭਗਤੁ ਕਹਾਏ ॥ सभु को तेरा भगतु कहाए ॥ हे प्रभु-परमेश्वर! प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को तेरा भक्त कहलवाता है
ਸੇਈ ਭਗਤ ਤੇਰੈ ਮਨਿ ਭਾਏ ॥ सेई भगत तेरै मनि भाए ॥ परन्तु तेरे भक्त वहीं हैं जो तेरे मन को प्रिय लगते हैं।
ਸਚੁ ਬਾਣੀ ਤੁਧੈ ਸਾਲਾਹਨਿ ਰੰਗਿ ਰਾਤੇ ਭਗਤਿ ਕਰਾਵਣਿਆ ॥੨॥ सचु बाणी तुधै सालाहनि रंगि राते भगति करावणिआ ॥२॥ वह सच्ची वाणी द्वारा तेरी सराहना करते रहते हैं और तेरे प्रेम में मग्न हुए तेरी भक्ति करते रहते हैं।॥२॥
ਸਭੁ ਕੋ ਸਚੇ ਹਰਿ ਜੀਉ ਤੇਰਾ ॥ सभु को सचे हरि जीउ तेरा ॥ हे सच्चे परमेश्वर ! प्रत्येक जीव तेरा ही उत्पन्न किया हुआ है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਿਲੈ ਤਾ ਚੂਕੈ ਫੇਰਾ ॥ गुरमुखि मिलै ता चूकै फेरा ॥ यदि मनुष्य को गुरु मिल जाए तो उसका जीवन एवं मृत्यु का चक्र मिट जाता है।
ਜਾ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਤਾ ਨਾਇ ਰਚਾਵਹਿ ਤੂੰ ਆਪੇ ਨਾਉ ਜਪਾਵਣਿਆ ॥੩॥ जा तुधु भावै ता नाइ रचावहि तूं आपे नाउ जपावणिआ ॥३॥ हे भगवान् ! जब आपकी कृपा होती है तभी आप अपने नाम में जीव को जोड़ते हैं और आप स्वयं ही उससे अपना नाम स्मरण करवाते हैं ॥३॥
ਗੁਰਮਤੀ ਹਰਿ ਮੰਨਿ ਵਸਾਇਆ ॥ गुरमती हरि मंनि वसाइआ ॥ हे पूज्य-परमेश्वर ! गुरु के उपदेश द्वारा आप मनुष्य के मन में अपना नाम बसा देता है
ਹਰਖੁ ਸੋਗੁ ਸਭੁ ਮੋਹੁ ਗਵਾਇਆ ॥ हरखु सोगु सभु मोहु गवाइआ ॥ और उसका हर्ष, शोक एवं मोह सब नष्ट कर देता है।
ਇਕਸੁ ਸਿਉ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ਸਦ ਹੀ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਵਣਿਆ ॥੪॥ इकसु सिउ लिव लागी सद ही हरि नामु मंनि वसावणिआ ॥४॥ जिसकी सुरति सदैव ही एक परमेश्वर में लीन रहती है, वह भगवान् के नाम को अपने मन में बसा लेता है॥ ४ ॥
ਭਗਤ ਰੰਗਿ ਰਾਤੇ ਸਦਾ ਤੇਰੈ ਚਾਏ ॥ भगत रंगि राते सदा तेरै चाए ॥ हे प्रभु परमेश्वर ! आपके भक्त हमेशा ही बड़े चाव से आपके प्रेम में मग्न रहते हैं
ਨਉ ਨਿਧਿ ਨਾਮੁ ਵਸਿਆ ਮਨਿ ਆਏ ॥ नउ निधि नामु वसिआ मनि आए ॥ और नवनिधियाँ प्रदान करने वाला आपका नाम, उनके मन में आकर बस जाता है।
ਪੂਰੈ ਭਾਗਿ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ਸਬਦੇ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਵਣਿਆ ॥੫॥ पूरै भागि सतिगुरु पाइआ सबदे मेलि मिलावणिआ ॥५॥ जो व्यक्ति सौभाग्य से सतगुरु को पा लेता है, सतगुरु उसे शब्द द्वारा भगवान् से मिला देते हैं॥५॥
ਤੂੰ ਦਇਆਲੁ ਸਦਾ ਸੁਖਦਾਤਾ ॥ तूं दइआलु सदा सुखदाता ॥ हे प्रभु ! आप बड़े दयालु एवं सदैव ही जीवों को सुख देते रहते हैं।
ਤੂੰ ਆਪੇ ਮੇਲਿਹਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਤਾ ॥ तूं आपे मेलिहि गुरमुखि जाता ॥ आप स्वयं ही जीवों को अपने साथ मिला लेते हैं और आपको गुरु के माध्यम से ही जाना जाता है।
ਤੂੰ ਆਪੇ ਦੇਵਹਿ ਨਾਮੁ ਵਡਾਈ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਸੁਖੁ ਪਾਵਣਿਆ ॥੬॥ तूं आपे देवहि नामु वडाई नामि रते सुखु पावणिआ ॥६॥ आप स्वयं ही जीवों को नाम रूपी महानता प्रदान करता है। जो व्यक्ति आपके नाम में मग्न रहते हैं, वे सदैव ही सुखी रहते हैं।॥६॥
ਸਦਾ ਸਦਾ ਸਾਚੇ ਤੁਧੁ ਸਾਲਾਹੀ ॥ सदा सदा साचे तुधु सालाही ॥ हे सत्यस्वरूप परमेश्वर ! मैं हमेशा ही आपका यशोगान करता रहता हूँ।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਤਾ ਦੂਜਾ ਕੋ ਨਾਹੀ ॥ गुरमुखि जाता दूजा को नाही ॥ हे प्रभु! आपको गुरमुख ने ही जाना है और कोई दूसरा आपको जान ही नहीं सकता।
ਏਕਸੁ ਸਿਉ ਮਨੁ ਰਹਿਆ ਸਮਾਏ ਮਨਿ ਮੰਨਿਐ ਮਨਹਿ ਮਿਲਾਵਣਿਆ ॥੭॥ एकसु सिउ मनु रहिआ समाए मनि मंनिऐ मनहि मिलावणिआ ॥७॥ यदि मनुष्य का मन विश्वस्त हो जाए और वह एक परमेश्वर में ही समाया रहे तो सतगुरु उसे उसके अंतर्मन में ही प्रभु से मिला देता है॥ ७ ॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਸੋ ਸਾਲਾਹੇ ॥ गुरमुखि होवै सो सालाहे ॥ आपका यशोगान भाव महिमा-स्तुति वही मनुष्य करता है जो गुरमुख बन जाता है।
ਸਾਚੇ ਠਾਕੁਰ ਵੇਪਰਵਾਹੇ ॥ साचे ठाकुर वेपरवाहे ॥ हे मेरे सच्चे ठाकुर ! तू बेपरवाह है,
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਵਸੈ ਮਨ ਅੰਤਰਿ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਹਰਿ ਮੇਲਾਵਣਿਆ ॥੮॥੨੧॥੨੨॥ नानक नामु वसै मन अंतरि गुर सबदी हरि मेलावणिआ ॥८॥२१॥२२॥ हे नानक ! जिनके मन में नाम का निवास हो जाता है, गुरु अपनी वाणी द्वारा उसे भगवान् से मिला देते हैं ॥८॥२१॥२२॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੩ ॥ माझ महला ३ ॥ माझ महला, तीसरे गुरु द्वारा: ३ ॥
ਤੇਰੇ ਭਗਤ ਸੋਹਹਿ ਸਾਚੈ ਦਰਬਾਰੇ ॥ तेरे भगत सोहहि साचै दरबारे ॥ हे सत्यस्वरूप परमेश्वर! आपके भक्त तेरे सत्य-दरबार में बैठे बड़ी शोभा पा रहे हैं।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਨਾਮਿ ਸਵਾਰੇ ॥ गुर कै सबदि नामि सवारे ॥ आपने ही उन्हें गुरु के शब्द द्वारा नाम में लगाकर ही संवारा है।
ਸਦਾ ਅਨੰਦਿ ਰਹਹਿ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਗੁਣ ਕਹਿ ਗੁਣੀ ਸਮਾਵਣਿਆ ॥੧॥ सदा अनंदि रहहि दिनु राती गुण कहि गुणी समावणिआ ॥१॥ वह दिन-रात सदैव आनंद में रहते हैं और गुणों के भण्डार प्रभु का गुणानुवाद कर-करके उसमें ही लीन रहते हैं।॥१॥


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