Guru Granth Sahib Translation Project

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Page 73

ਤੁਧੁ ਆਪੇ ਆਪੁ ਉਪਾਇਆ ॥ हे भगवान्, आपने स्वयं को इस ब्रह्मांड के रूप में प्रकट किया है,
ਦੂਜਾ ਖੇਲੁ ਕਰਿ ਦਿਖਲਾਇਆ ॥ और आपने स्वयं अपनी अभिव्यक्ति के रूप में माया के इस नाटक का मंचन किया जो आपसे अलग प्रतीत होता है।
ਸਭੁ ਸਚੋ ਸਚੁ ਵਰਤਦਾ ਜਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਿਸੈ ਬੁਝਾਇ ਜੀਉ ॥੨੦॥ हे प्रभु आप सर्वत्र विद्यमान हो, किन्तु इस मूल रहस्य को वही समझता है जिसे आप समझाते हो ॥२०॥
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਪਾਇਆ ॥ गुरु की कृपा से जिसने भगवान् को पा लिया है,
ਤਿਥੈ ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥ भगवान् ने उसका माया का मोह नष्ट कर दिया है।
ਕਿਰਪਾ ਕਰਿ ਕੈ ਆਪਣੀ ਆਪੇ ਲਏ ਸਮਾਇ ਜੀਉ ॥੨੧॥ अपनी कृपा करके वह स्वयं अपने साथ मिला लेता है ॥ २१॥
ਗੋਪੀ ਨੈ ਗੋਆਲੀਆ ॥ हे प्रभु ! तुम ही गोपी हो, तुम ही यमुना हो,
ਤੁਧੁ ਆਪੇ ਗੋਇ ਉਠਾਲੀਆ ॥ तुम ही कृष्ण हो। तूने ही कृष्ण रूप में गोवर्धन पर्वत अपनी उंगली पर उठाया था।
ਹੁਕਮੀ ਭਾਂਡੇ ਸਾਜਿਆ ਤੂੰ ਆਪੇ ਭੰਨਿ ਸਵਾਰਿ ਜੀਉ ॥੨੨॥ मनुष्य आपकी ही आज्ञा से उत्पन्न होते हैं, आप ही उन्हें संवारते हैं और फिर उन्हें नष्ट भी कर देते हैं।
ਜਿਨ ਸਤਿਗੁਰ ਸਿਉ ਚਿਤੁ ਲਾਇਆ ॥ जिन्होंने अपना मन सतगुरु से लगाया है,
ਤਿਨੀ ਦੂਜਾ ਭਾਉ ਚੁਕਾਇਆ ॥ उन्होंने अपने भीतर से माया का मोह दूर कर दिया है।
ਨਿਰਮਲ ਜੋਤਿ ਤਿਨ ਪ੍ਰਾਣੀਆ ਓਇ ਚਲੇ ਜਨਮੁ ਸਵਾਰਿ ਜੀਉ ॥੨੩॥ ऐसे प्राणियों की ज्योति निर्मल हो जाती है। वह अपने जीवन को संवार कर परलोक में जाते हैं। ॥२३॥
ਤੇਰੀਆ ਸਦਾ ਸਦਾ ਚੰਗਿਆਈਆ ॥ ਮੈ ਰਾਤਿ ਦਿਹੈ ਵਡਿਆਈਆਂ ॥ हे भगवान् ! तुम सर्वदा मुझ पर उपकार करते रहते हो।
ਅਣਮੰਗਿਆ ਦਾਨੁ ਦੇਵਣਾ ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸਚੁ ਸਮਾਲਿ ਜੀਉ ॥੨੪॥੧॥ हे भगवान्, मैं दिन-रात आपकी शाश्वत उत्कृष्टता की स्तुति करता हूँ।
ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ आप इतने दयालु हैं कि बिना मांगे ही जीवों को दान देता रहते हो। हे नानक ! मैं हमेशा ही भगवान् का सिमरन करते रहूँ ॥२४॥१॥
ਪੈ ਪਾਇ ਮਨਾਈ ਸੋਇ ਜੀਉ ॥ श्रीरागु महला ५ ॥
ਸਤਿਗੁਰ ਪੁਰਖਿ ਮਿਲਾਇਆ ਤਿਸੁ ਜੇਵਡੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ਜੀਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मैं सतगुरु के चरणों में पड़कर मन्नत करता हूँ ,
ਗੋਸਾਈ ਮਿਹੰਡਾ ਇਠੜਾ ॥ मेरे सतगुरु ने मुझे उस ईश्वर से मिला दिया है। उन जैसा श्रेष्ठ जगत् में अन्य कोई भी नहीं ॥१॥ रहाउ॥
ਅੰਮ ਅਬੇ ਥਾਵਹੁ ਮਿਠੜਾ ॥ मेरा ईश्वर, ब्रह्मांड का स्वामी, मुझे बहुत प्रिय है।
ਭੈਣ ਭਾਈ ਸਭਿ ਸਜਣਾ ਤੁਧੁ ਜੇਹਾ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ਜੀਉ ॥੧॥ वह माता और पिता से बहुत मीठा लगता है।
ਤੇਰੈ ਹੁਕਮੇ ਸਾਵਣੁ ਆਇਆ ॥ हे प्रभु ! बहन-भाई, मित्रादि मेरे स्वजनों में तुम्हारे जैसा अन्य कोई नहीं ॥१॥
ਮੈ ਸਤ ਕਾ ਹਲੁ ਜੋਆਇਆ ॥ हे प्रभु ! आपकी आज्ञा से मैं गुरु से मिला, ऐसा लगा जैसे श्रावण माह(वर्षा ऋतु) मेरे लिए आ गया हो।
ਨਾਉ ਬੀਜਣ ਲਗਾ ਆਸ ਕਰਿ ਹਰਿ ਬੋਹਲ ਬਖਸ ਜਮਾਇ ਜੀਉ ॥੨॥ अत: अपने आचरण को सुशोभित करने के लिए मैंने अपने खेत रूपी शरीर को धर्म के हल से जोता है।
ਹਉ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਇਕੁ ਪਛਾਣਦਾ ॥ मैंने नाम का बीज बोना शुरू किया, इस बड़ी उम्मीद के साथ कि आपकी दया से आप मुझे नाम की भरपूर फसल का आशीर्वाद देंगे।
ਦੁਯਾ ਕਾਗਲੁ ਚਿਤਿ ਨ ਜਾਣਦਾ ॥ गुरु से मिलने और उनकी शिक्षाओं का पालन करने के बाद, अब मैं एक और केवल एक ईश्वर को पहचानता हूँ।२॥
ਹਰਿ ਇਕਤੈ ਕਾਰੈ ਲਾਇਓਨੁ ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਂਵੈ ਨਿਬਾਹਿ ਜੀਉ ॥੩॥ प्रभु के नाम के अतिरिक्त मैं और कोई वृत्तांत लिखना नहीं जानता।
ਤੁਸੀ ਭੋਗਿਹੁ ਭੁੰਚਹੁ ਭਾਈਹੋ ॥ भगवान् ने मुझे श्रद्धापूर्वक नाम स्मरण करने का एक कार्य सौंपा है, अब वह इस कार्य को पूरा करने में मेरी सहायता करेंगे क्योंकि यह उन्हें प्रसन्न करेगा।॥३॥
ਗੁਰਿ ਦੀਬਾਣਿ ਕਵਾਇ ਪੈਨਾਈਓ ॥ हे मेरे भाईयो ! आप नाम पदार्थ सेवन करो एवं आनंद मानो।
ਹਉ ਹੋਆ ਮਾਹਰੁ ਪਿੰਡ ਦਾ ਬੰਨਿ ਆਦੇ ਪੰਜਿ ਸਰੀਕ ਜੀਉ ॥੪॥ परमेश्वर के दरबार में गुरदेव ने मुझे भक्ति रूपी पोशाक भेंटकर प्रतिष्ठा प्रदान की है।
ਹਉ ਆਇਆ ਸਾਮ੍ਹ੍ਹੈ ਤਿਹੰਡੀਆ ॥ मैं अपने शरीर का स्वामी बन गया हूं, क्योंकि अब मेरा अपने पांचों प्रतिद्वंद्वियों (काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार) पर पूरा नियंत्रण है।॥४॥
ਪੰਜਿ ਕਿਰਸਾਣ ਮੁਜੇਰੇ ਮਿਹਡਿਆ ॥ हे प्रभु ! जब से मैंने तेरी शरण ली है।
ਕੰਨੁ ਕੋਈ ਕਢਿ ਨ ਹੰਘਈ ਨਾਨਕ ਵੁਠਾ ਘੁਘਿ ਗਿਰਾਉ ਜੀਉ ॥੫॥ तब से मेरी पांचों ज्ञानेन्द्रियाँ मेरे सेवकों की भाँति मेरी आज्ञा में रहती हैं।
ਹਉ ਵਾਰੀ ਘੁੰਮਾ ਜਾਵਦਾ ॥ हे नानक, अब ये ज्ञानेन्द्रियाँ मेरी इच्छा के विरुद्ध नहीं जा सकतीं, इसलिए मुझमें बहुत से गुण आ गए हैं।॥५॥
ਇਕ ਸਾਹਾ ਤੁਧੁ ਧਿਆਇਦਾ ॥ हे मेरे प्रभु! मैं तुझ पर बलिहार हूँ, न्यौछावर हूँ,"
ਉਜੜੁ ਥੇਹੁ ਵਸਾਇਓ ਹਉ ਤੁਧ ਵਿਟਹੁ ਕੁਰਬਾਣੁ ਜੀਉ ॥੬॥ श्वास-श्वास मैं तुम्हारा ही नाम जपता हूँ।
ਹਰਿ ਇਠੈ ਨਿਤ ਧਿਆਇਦਾ ॥ हे प्रभु! मैं अपने आप को आपको समर्पित करता हूं, क्योंकि आपने मेरे वीरान हृदय को दिव्य गुणों से समृद्ध कर दिया है।॥६॥
ਮਨਿ ਚਿੰਦੀ ਸੋ ਫਲੁ ਪਾਇਦਾ ॥ हे मेरे प्रियतम प्रभु ! तेरा मैं सदैव ही सिमरन करता हूँ
ਸਭੇ ਕਾਜ ਸਵਾਰਿਅਨੁ ਲਾਹੀਅਨੁ ਮਨ ਕੀ ਭੁਖ ਜੀਉ ॥੭॥ और जैसी मेरी अभिलाषा थी मेरी वह कामना पूरी हो गई है।
ਮੈ ਛਡਿਆ ਸਭੋ ਧੰਧੜਾ ॥ आपने मेरे समस्त कार्य संवार दिए हैं और मेरी आत्मा की भूख निवृत्त कर दी है॥७॥
ਗੋਸਾਈ ਸੇਵੀ ਸਚੜਾ ॥ मैंने संसार के मिथ्या कार्य त्याग दिए हैं।
ਨਉ ਨਿਧਿ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਹਰਿ ਮੈ ਪਲੈ ਬਧਾ ਛਿਕਿ ਜੀਉ ॥੮॥ मैं सदा सृष्टि के स्वामी की आराधना करता हूँ।
ਮੈ ਸੁਖੀ ਹੂੰ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥ नवनिधि को देने में समर्थ कल्पवृक्ष-समान हरिनाम मुझे मिला है, जिसे बड़े यत्न से मैंने अन्तर्मन में संजोया हुआ है।॥८॥
ਗੁਰਿ ਅੰਤਰਿ ਸਬਦੁ ਵਸਾਇਆ ॥ मैं बहुत सुखी हूँ चूंकि मैंने सुख प्राप्त कर लिया है।
ਸਤਿਗੁਰਿ ਪੁਰਖਿ ਵਿਖਾਲਿਆ ਮਸਤਕਿ ਧਰਿ ਕੈ ਹਥੁ ਜੀਉ ॥੯॥ गुरु ने मेरे हृदय में भगवान् का नाम बसा दिया है।
ਮੈ ਬਧੀ ਸਚੁ ਧਰਮ ਸਾਲ ਹੈ ॥ सतगुरु ने मेरे माथे पर हाथ रखकर अर्थात् आशीर्वाद देकर मुझे भगवान् के साक्षात् दर्शन करवा दिए हैं॥९ ॥
ਗੁਰਸਿਖਾ ਲਹਦਾ ਭਾਲਿ ਕੈ ॥ मैंने सच्चाई के मन्दिर की धर्मशाला बनाई है।
ਪੈਰ ਧੋਵਾ ਪਖਾ ਫੇਰਦਾ ਤਿਸੁ ਨਿਵਿ ਨਿਵਿ ਲਗਾ ਪਾਇ ਜੀਉ ॥੧੦॥ गुरु के शिष्यों को ढूंढ कर मैं यहाँ इस मन्दिर में लेकर आया हूँ।
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