Guru Granth Sahib Translation Project

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Page 36

ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਸੁਣਦਾ ਵੇਖਦਾ ਕਿਉ ਮੁਕਰਿ ਪਇਆ ਜਾਇ ॥ परमात्मा हमारा सब-कुछ कहा हुआ व किया हुआ, सुनता और देखता है, फिर उसके समक्ष कैसे इन्कार किया जा सकता है।
ਪਾਪੋ ਪਾਪੁ ਕਮਾਵਦੇ ਪਾਪੇ ਪਚਹਿ ਪਚਾਇ ॥ स्वेच्छाचारी जीव असंख्य पाप कमाते हैं, पापों में गलते-सड़ते रहते हैं।
ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਨਦਰਿ ਨ ਆਵਈ ਮਨਮੁਖਿ ਬੂਝ ਨ ਪਾਇ ॥ उनको वह परमात्मा दृश्यमान नहीं है,क्योकि स्वेच्छाचारी जीव ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाता।
ਜਿਸੁ ਵੇਖਾਲੇ ਸੋਈ ਵੇਖੈ ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਇ ॥੪॥੨੩॥੫੬॥ नानक देव जी कथन करते हैं कि जिस गुरुमुख जीव को परमात्मा शुभ-मार्ग दिखाता है, वही उस मार्ग द्वारा परमात्मा को देख पाता है ॥४॥२३॥५६॥
ਸ੍ਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥ श्रीरागु महला ३ ॥
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਰੋਗੁ ਨ ਤੁਟਈ ਹਉਮੈ ਪੀੜ ਨ ਜਾਇ ॥ गुरु के बिना नाम की प्राप्ति संभव नहीं, नाम-सिमरन के बिना अहंकार रूपी रोग का निवारण नहीं होता और इस रोग के निवारण के बिना जीव आवागमन के चक्र से मुक्त नहीं होता।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਮਨਿ ਵਸੈ ਨਾਮੇ ਰਹੈ ਸਮਾਇ ॥ गुरु की कृपा द्वारा मन में नाम बसता है और वह जीव नाम में समाया रहता है।
ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਹਰਿ ਪਾਈਐ ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਇ ॥੧॥ गुरु के उपदेश द्वारा हरि परमात्मा को पाया जा सकता है, इसके बिना मनमुख व्यक्ति भ्रम में ही भटकते हैं ॥१॥
ਮਨ ਰੇ ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਾਸਾ ਹੋਇ ॥ हे मेरे मन ! नाम-सिमरन के कारण ही परमात्मा के स्वरूप में निवास होता है।
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਸਾਲਾਹਿ ਤੂ ਫਿਰਿ ਆਵਣ ਜਾਣੁ ਨ ਹੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ इसलिए तुम राम-नाम की स्तुति करो, तभी तुम्हारा आवागमन छूट सकेगा ॥ १॥ रहाउ॥
ਹਰਿ ਇਕੋ ਦਾਤਾ ਵਰਤਦਾ ਦੂਜਾ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥ एक ही परमेश्वर - "हरि" सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त है, इसके अतिरिक्त दूसरा अन्य कोई नहीं है।
ਸਬਦਿ ਸਾਲਾਹੀ ਮਨਿ ਵਸੈ ਸਹਜੇ ਹੀ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥ गुरु-उपदेश द्वारा परमात्मा का चिन्तन मन में बस जाए तो सुख सरलता से प्राप्त हो जाता है।
ਸਭ ਨਦਰੀ ਅੰਦਰਿ ਵੇਖਦਾ ਜੈ ਭਾਵੈ ਤੈ ਦੇਇ ॥੨॥ वह परमात्मा अपनी दृष्टि में सभी को देखता है, जिसे वह चाहता उसी को सुख प्रदान करता है॥ २॥
ਹਉਮੈ ਸਭਾ ਗਣਤ ਹੈ ਗਣਤੈ ਨਉ ਸੁਖੁ ਨਾਹਿ ॥ समस्त प्राणी अहंकार में लिप्त होकर पाप-पुण्य, धर्म-कर्म अथवा शुभ कर्मों आदि की गणना करते हैं, किन्तु गणना करने वाले को कोई सुख नहीं मिलता।
ਬਿਖੁ ਕੀ ਕਾਰ ਕਮਾਵਣੀ ਬਿਖੁ ਹੀ ਮਾਹਿ ਸਮਾਹਿ ॥ ऐसे जीव विषय-विकारों की कमाई ही करते हैं और अंततः इस विष में ही समा जाते हैं।
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਠਉਰੁ ਨ ਪਾਇਨੀ ਜਮਪੁਰਿ ਦੂਖ ਸਹਾਹਿ ॥੩॥ परमात्मा के नाम के बिना विशेष स्थान प्राप्त नहीं कर पाते तथा परलोक में जाकर दु:ख सहते हैं।॥ ३॥
ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਸਭੁ ਤਿਸ ਦਾ ਤਿਸੈ ਦਾ ਆਧਾਰੁ ॥ जीव को शरीर आदि सब कुछ उस परमात्मा का दिया हुआ है, सभी को उस परमेश्वर का ही आसरा है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਬੁਝੀਐ ਤਾ ਪਾਏ ਮੋਖ ਦੁਆਰੁ ॥ गुरु की कृपा द्वारा उस परमात्मा को जाने, तभी मोक्ष द्वार की प्राप्ति होती है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਸਲਾਹਿ ਤੂੰ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰਾਵਾਰੁ ॥੪॥੨੪॥੫੭॥ नानक देव जी कहते हैं कि हे जीव ! उस परमात्मा का स्तुति गान करो, जिसके गुणों का अंत नहीं पाया जा सकता ॥४॥२४॥५७॥
ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥ श्रीरागु महला ३ ॥
ਤਿਨਾ ਅਨੰਦੁ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਹੈ ਜਿਨਾ ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਆਧਾਰੁ ॥ उन जीवों को सुख आनंद की प्राप्ति होती है, जिनको सत्य नाम का आश्रय प्राप्त है।
ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਸਚੁ ਪਾਇਆ ਦੂਖ ਨਿਵਾਰਣਹਾਰੁ ॥ गुरु का उपदेश ग्रहण करने वालों ने सत्य स्वरूप परमात्मा को पाया है, जो समस्त दु:खों की निवृत्ति करता है।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਸਾਚੇ ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ਸਾਚੈ ਨਾਇ ਪਿਆਰੁ ॥ प्रायः सत्य स्वरूप परमात्मा के गुणों का गायन करें तथा सत्य नाम के साथ प्रेम करें।
ਕਿਰਪਾ ਕਰਿ ਕੈ ਆਪਣੀ ਦਿਤੋਨੁ ਭਗਤਿ ਭੰਡਾਰੁ ॥੧॥ परमात्मा ने अपनी कृपा-दृष्टि द्वारा उन्हें भक्ति का भण्डार प्रदान किया है।॥ १॥
ਮਨ ਰੇ ਸਦਾ ਅਨੰਦੁ ਗੁਣ ਗਾਇ ॥ हे मेरे मन ! उस परमात्मा के गुणों का गायन करते रहो, तुम्हें सदा आनंद बना रहेगा।
ਸਚੀ ਬਾਣੀ ਹਰਿ ਪਾਈਐ ਹਰਿ ਸਿਉ ਰਹੈ ਸਮਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सतिगुरु के उपदेश द्वारा हरि-नाम को प्राप्त करें, तो जीव हरि के संग ही समाया रहता है॥ १॥ रहाउ॥
ਸਚੀ ਭਗਤੀ ਮਨੁ ਲਾਲੁ ਥੀਆ ਰਤਾ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ॥ सत्य भक्ति करने वाले जीव का मन गहन रंग में रंग जाता है तथा स्वतः ही परमात्मा में लीन रहता है।
ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਮਨੁ ਮੋਹਿਆ ਕਹਣਾ ਕਛੂ ਨ ਜਾਇ ॥ गुरु-उपदेश द्वारा गुरुमुख जीवों का मन परमेश्वर में ऐसा मोहित हो गया है कि कुछ कथन ही नहीं किया जा सकता।
ਜਿਹਵਾ ਰਤੀ ਸਬਦਿ ਸਚੈ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਵੈ ਰਸਿ ਗੁਣ ਗਾਇ ॥ ऐसे जीवों की जिह्वा सत्य उपदेश में रत है, नाम-अमृत का पान करती है और प्रेम सहित गुणों का गायन करती है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਏਹੁ ਰੰਗੁ ਪਾਈਐ ਜਿਸ ਨੋ ਕਿਰਪਾ ਕਰੇ ਰਜਾਇ ॥੨॥ इस परमात्मा के आनंद को गुरु के मुख से उच्चारण होने वाले उपदेश द्वारा वही जीव पाते हैं, जिन पर उस परमात्मा की कृपा होती है।॥ २॥
ਸੰਸਾ ਇਹੁ ਸੰਸਾਰੁ ਹੈ ਸੁਤਿਆ ਰੈਣਿ ਵਿਹਾਇ ॥ यह संसार संशय रूप है, इसमें जीव आयु रूपी रात सोकर (अज्ञानता में) व्यतीत करता है।
ਇਕਿ ਆਪਣੈ ਭਾਣੈ ਕਢਿ ਲਇਅਨੁ ਆਪੇ ਲਇਓਨੁ ਮਿਲਾਇ ॥ कुछेक को वह अपनी इच्छानुसार इस संसार-सागर में से निकाल लेता है, और अपने साथ मिला लेता है।
ਆਪੇ ਹੀ ਆਪਿ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਚੁਕਾਇ ॥ उनके मन में परमात्मा स्वयं ही विद्यमान होता है, जिन्होंने माया का मोह त्याग दिया है।
ਆਪਿ ਵਡਾਈ ਦਿਤੀਅਨੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਦੇਇ ਬੁਝਾਇ ॥੩॥ परमात्मा ने स्वयं ही उन्हें सम्मान प्रदान किया है, जिन्हें वह गुरु द्वारा समझा देता है॥ ३॥
ਸਭਨਾ ਕਾ ਦਾਤਾ ਏਕੁ ਹੈ ਭੁਲਿਆ ਲਏ ਸਮਝਾਇ ॥ सभी जीवों का पालनहार परमेश्वर एक ही है और जो उसे भूलते हैं अर्थात् गलतियाँ करते हैं ईश्वर स्वयं उन्हें सुधार सही मार्ग पर ले आते हैं।
ਇਕਿ ਆਪੇ ਆਪਿ ਖੁਆਇਅਨੁ ਦੂਜੈ ਛਡਿਅਨੁ ਲਾਇ ॥ किन्हीं जीवों को उसने स्वयं से विस्मृत आप ही किया हुआ है, उन्हें द्वैत-भाव में लगाया हुआ है।
ਗੁਰਮਤੀ ਹਰਿ ਪਾਈਐ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਮਿਲਾਇ ॥ गुरु के उपदेश द्वारा परमात्मा प्राप्त होता है तथा आत्मा को परमात्मा से मिलाता है।
ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੇ ਰਤਿਆ ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਸਮਾਇ ॥੪॥੨੫॥੫੮॥ नानक देव जी कथन करते हैं कि नित्य-प्रति हरि-नाम के चिन्तन में लीन होकर नाम में ही अभेद होता ॥४॥२५॥५८॥
ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥ श्रीरागु महला ३ ॥
ਗੁਣਵੰਤੀ ਸਚੁ ਪਾਇਆ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਤਜਿ ਵਿਕਾਰ ॥ गुणों से विभूषित जीवों ने तृष्णादि विकारों का त्याग करके सत्य स्वरूप को प्राप्त किया है।
ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਮਨੁ ਰੰਗਿਆ ਰਸਨਾ ਪ੍ਰੇਮ ਪਿਆਰਿ ॥ उसका हृदय गुरु के उपदेश में रंग गया है और जिह्वा परमात्मा के भक्ति प्रेम में रंग गई है।
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