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ਸੁਣਿਐ ਦੂਖ ਪਾਪ ਕਾ ਨਾਸੁ॥੯॥
परमात्मा का नाम सुनने से समस्त दुःखों व दुष्कर्मों का नाश होता है॥९॥
परमात्मा का नाम सुनने से समस्त दुःखों व दुष्कर्मों का नाश होता है॥९॥
ਸੁਣਿਐ ਸਤੁ ਸੰਤੋਖੁ ਗਿਆਨੁ ॥
नाम सुनने से मनुष्य को सत्य, संतोष व ज्ञान जैसे मूल धर्मों की प्राप्ति होती है।
नाम सुनने से मनुष्य को सत्य, संतोष व ज्ञान जैसे मूल धर्मों की प्राप्ति होती है।
ਸੁਣਿਐ ਅਠਸਠਿ ਕਾ ਇਸਨਾਨੁ ॥
नाम को सुनने मात्र से समस्त तीर्थों में श्रेष्ठ अठसठ तीर्थों के स्नान का फल प्राप्त हो जाता है।
नाम को सुनने मात्र से समस्त तीर्थों में श्रेष्ठ अठसठ तीर्थों के स्नान का फल प्राप्त हो जाता है।
ਸੁਣਿਐ ਪੜਿ ਪੜਿ ਪਾਵਹਿ ਮਾਨੁ ॥
ईश्वर की महिमा का श्रवण करने से भक्तों को वह आध्यात्मिक प्रतिष्ठा प्राप्त होती है, जो शास्त्रों के गंभीर अभ्यास से मिलती है।
ईश्वर की महिमा का श्रवण करने से भक्तों को वह आध्यात्मिक प्रतिष्ठा प्राप्त होती है, जो शास्त्रों के गंभीर अभ्यास से मिलती है।
ਸੁਣਿਐ ਲਾਗੈ ਸਹਜਿ ਧਿਆਨੁ ॥
पवित्र नाम का श्रवण करते ही साधक का मन स्वाभाविक रूप से उसी में लीन होने लगता है।
पवित्र नाम का श्रवण करते ही साधक का मन स्वाभाविक रूप से उसी में लीन होने लगता है।
ਨਾਨਕ ਭਗਤਾ ਸਦਾ ਵਿਗਾਸੁ ॥
हे नानक ! प्रभु के भक्तों को सदैव आत्मिक आनंद का प्रकाश रहता है।
हे नानक ! प्रभु के भक्तों को सदैव आत्मिक आनंद का प्रकाश रहता है।
ਸੁਣਿਐ ਦੂਖ ਪਾਪ ਕਾ ਨਾਸੁ ॥੧੦॥
परमात्मा का नाम सुनने से समस्त दुःखों व दुष्कर्मों का नाश होता है॥१०॥
परमात्मा का नाम सुनने से समस्त दुःखों व दुष्कर्मों का नाश होता है॥१०॥
ਸੁਣਿਐ ਸਰਾ ਗੁਣਾ ਕੇ ਗਾਹ ॥
नाम सुनने से गुणों के सागर श्री हरि में लीन हुआ जा सकता है।
नाम सुनने से गुणों के सागर श्री हरि में लीन हुआ जा सकता है।
ਸੁਣਿਐ ਸੇਖ ਪੀਰ ਪਾਤਿਸਾਹ ॥
नाम-श्रवण के प्रभाव से ही शेख, पीर और बादशाह अपने पद पर शोभायमान हैं।
नाम-श्रवण के प्रभाव से ही शेख, पीर और बादशाह अपने पद पर शोभायमान हैं।
ਸੁਣਿਐ ਅੰਧੇ ਪਾਵਹਿ ਰਾਹੁ ॥
अज्ञानी मनुष्य प्रभु-भक्ति का मार्ग नाम-श्रवण करने से ही प्राप्त कर सकते हैं।
अज्ञानी मनुष्य प्रभु-भक्ति का मार्ग नाम-श्रवण करने से ही प्राप्त कर सकते हैं।
ਸੁਣਿਐ ਹਾਥ ਹੋਵੈ ਅਸਗਾਹੁ ॥
इस भव-सागर की अथाह गहराई को जान पाना भी नाम-श्रवण की शक्ति से सम्भव हो सकता है।
इस भव-सागर की अथाह गहराई को जान पाना भी नाम-श्रवण की शक्ति से सम्भव हो सकता है।
ਨਾਨਕ ਭਗਤਾ ਸਦਾ ਵਿਗਾਸੁ ॥
हे नानक ! सद्-पुरुषों के भीतर सदैव आनंद का प्रकाश रहता है।
हे नानक ! सद्-पुरुषों के भीतर सदैव आनंद का प्रकाश रहता है।
ਸੁਣਿਐ ਦੂਖ ਪਾਪ ਕਾ ਨਾਸੁ ॥੧੧॥
परमात्मा का नाम सुनने से समस्त दुःखों व दुष्कर्मों का नाश होता है।॥ ११॥
परमात्मा का नाम सुनने से समस्त दुःखों व दुष्कर्मों का नाश होता है।॥ ११॥
ਮੰਨੇ ਕੀ ਗਤਿ ਕਹੀ ਨ ਜਾਇ ॥
ईश्वर में सच्चा विश्वास रखने वाले की मनःस्थिति शब्दों से परे होती है।
ईश्वर में सच्चा विश्वास रखने वाले की मनःस्थिति शब्दों से परे होती है।
ਜੇ ਕੋ ਕਹੈ ਪਿਛੈ ਪਛੁਤਾਇ ॥
जो भी उसकी अवस्था का वर्णन करता है तो उसे अंत में पछताना पड़ता है क्योंकि ऐसा करलेना सरल नहीं है, ऐसी कोई रचना नहीं जो नाम से प्राप्त होने वाले आनन्द का रहस्योद्घाटन कर सके।जो भी उस अनंत अवस्था का वर्णन करता है, उसे अंत में पश्चाताप होता है, क्योंकि नाम से उत्पन्न आनंद के रहस्यों को प्रकट करने के लिए कोई रचना पर्याप्त नहीं है।
जो भी उसकी अवस्था का वर्णन करता है तो उसे अंत में पछताना पड़ता है क्योंकि ऐसा करलेना सरल नहीं है, ऐसी कोई रचना नहीं जो नाम से प्राप्त होने वाले आनन्द का रहस्योद्घाटन कर सके।जो भी उस अनंत अवस्था का वर्णन करता है, उसे अंत में पश्चाताप होता है, क्योंकि नाम से उत्पन्न आनंद के रहस्यों को प्रकट करने के लिए कोई रचना पर्याप्त नहीं है।
ਕਾਗਦਿ ਕਲਮ ਨ ਲਿਖਣਹਾਰੁ ॥
ऐसी अवस्था को यदि लिखा भी जाए तो इसके लिए न काग़ज़ है, न कलम और न ही लिखने वाला कोई जिज्ञासु।
ऐसी अवस्था को यदि लिखा भी जाए तो इसके लिए न काग़ज़ है, न कलम और न ही लिखने वाला कोई जिज्ञासु।
ਮੰਨੇ ਕਾ ਬਹਿ ਕਰਨਿ ਵੀਚਾਰੁ ॥
जो वाहेगुरु में लीन होने वाले का विचार कर सकें।
जो वाहेगुरु में लीन होने वाले का विचार कर सकें।
ਐਸਾ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਹੋਇ ॥
परमेश्वर का नाम सर्वोत्कृष्ट है तथा माया से रहित एवं शाश्वत है।
परमेश्वर का नाम सर्वोत्कृष्ट है तथा माया से रहित एवं शाश्वत है।
ਜੇ ਕੋ ਮੰਨਿ ਜਾਣੈ ਮਨਿ ਕੋਇ ॥੧੨॥
यदि कोई उसे अपने हृदय में बसा कर उसका चिन्तन करे ॥१२॥
यदि कोई उसे अपने हृदय में बसा कर उसका चिन्तन करे ॥१२॥
ਮੰਨੈ ਸੁਰਤਿ ਹੋਵੈ ਮਨਿ ਬੁਧਿ ॥
परमात्मा का नाम सुनकर उसका चिन्तन करने से मन और बुद्धि में उत्तम प्रीति पैदा हो जाती है।
परमात्मा का नाम सुनकर उसका चिन्तन करने से मन और बुद्धि में उत्तम प्रीति पैदा हो जाती है।
ਮੰਨੈ ਸਗਲ ਭਵਣ ਕੀ ਸੁਧਿ ॥
चिन्तन करने से सम्पूर्ण सृष्टि का ज्ञान-बोध होता है।
चिन्तन करने से सम्पूर्ण सृष्टि का ज्ञान-बोध होता है।
ਮੰਨੈ ਮੁਹਿ ਚੋਟਾ ਨਾ ਖਾਇ ॥
इस संसार में प्रभु का सिमरन करने वाले मनुष्य सांसारिक कष्टों अथवा परलोक में यमदूत की यातनाओं से पीड़ित नहीं होता है ।
इस संसार में प्रभु का सिमरन करने वाले मनुष्य सांसारिक कष्टों अथवा परलोक में यमदूत की यातनाओं से पीड़ित नहीं होता है ।
ਮੰਨੈ ਜਮ ਕੈ ਸਾਥਿ ਨ ਜਾਇ ॥
ईश्वर का नाम सिमरन करने वाला मनुष्य अंत समय में यमदूतों के साथ नरक को नहीं जाता अपितु उसे स्वयं परमेश्वर के दूत स्वर्ग-लोक लेकर जाते हैं। भाव परमात्मा का नाम जपने वालों पर प्रभु की ऐसी कृपा होती है कि उन्हें यमदूतों जैसी बला भी हाथ नहीं लगा सकती।
ईश्वर का नाम सिमरन करने वाला मनुष्य अंत समय में यमदूतों के साथ नरक को नहीं जाता अपितु उसे स्वयं परमेश्वर के दूत स्वर्ग-लोक लेकर जाते हैं। भाव परमात्मा का नाम जपने वालों पर प्रभु की ऐसी कृपा होती है कि उन्हें यमदूतों जैसी बला भी हाथ नहीं लगा सकती।
ਐਸਾ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਹੋਇ ॥
परमात्मा का नाम बहुत ही श्रेष्ठ एवं मायातीत है।
परमात्मा का नाम बहुत ही श्रेष्ठ एवं मायातीत है।
ਜੇ ਕੋ ਮੰਨਿ ਜਾਣੈ ਮਨਿ ਕੋਇ ॥੧੩॥
यदि कोई उसे अपने हृदय में लीन करके उसका चिन्तन करे॥ १३॥
यदि कोई उसे अपने हृदय में लीन करके उसका चिन्तन करे॥ १३॥
ਮੰਨੈ ਮਾਰਗਿ ਠਾਕ ਨ ਪਾਇ ॥
निरंकार के नाम का चिन्तन करने वाले मानव जीव के मार्ग में किसी प्रकार की कोई बाधा नहीं आती।
निरंकार के नाम का चिन्तन करने वाले मानव जीव के मार्ग में किसी प्रकार की कोई बाधा नहीं आती।
ਮੰਨੈ ਪਤਿ ਸਿਉ ਪਰਗਟੁ ਜਾਇ ॥
चिन्तनशील मनुष्य संसार में शोभा का पात्र होता है।
चिन्तनशील मनुष्य संसार में शोभा का पात्र होता है।
ਮੰਨੈ ਮਗੁ ਨ ਚਲੈ ਪੰਥੁ ॥
ऐसा व्यक्ति दुविधापूर्ण मार्ग अथवा साम्प्रदायिकता को छोड़ धर्म-पथ पर चलता है।
ऐसा व्यक्ति दुविधापूर्ण मार्ग अथवा साम्प्रदायिकता को छोड़ धर्म-पथ पर चलता है।
ਮੰਨੈ ਧਰਮ ਸੇਤੀ ਸਨਬੰਧੁ ॥
चिन्तनशील का धर्म-कार्यों से सुदृढ़ सम्बन्ध होता है।
चिन्तनशील का धर्म-कार्यों से सुदृढ़ सम्बन्ध होता है।
ਐਸਾ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਹੋਇ ॥
परमात्मा का नाम बहुत ही श्रेष्ठ एवं मायातीत है।
परमात्मा का नाम बहुत ही श्रेष्ठ एवं मायातीत है।
ਜੇ ਕੋ ਮੰਨਿ ਜਾਣੈ ਮਨਿ ਕੋਇ ॥੧੪॥
यदि कोई उसे अपने हृदय में लीन करके उसका चिन्तन करे ॥ १४ ॥
यदि कोई उसे अपने हृदय में लीन करके उसका चिन्तन करे ॥ १४ ॥
ਮੰਨੈ ਪਾਵਹਿ ਮੋਖੁ ਦੁਆਰੁ ॥
इस संसार रूपी सागर में मोक्ष का एकमात्र साधन उस परमेश्वर का नाम सिमरन पार उतारने वाली नौका है अर्थात् मुक्ति दिलाने वाला है।
इस संसार रूपी सागर में मोक्ष का एकमात्र साधन उस परमेश्वर का नाम सिमरन पार उतारने वाली नौका है अर्थात् मुक्ति दिलाने वाला है।
ਮੰਨੈ ਪਰਵਾਰੈ ਸਾਧਾਰੁ ॥
चिन्तन करने वाले अपने समस्त परिजनों को भी उस नाम का आश्रय देते हैं।
चिन्तन करने वाले अपने समस्त परिजनों को भी उस नाम का आश्रय देते हैं।
ਮੰਨੈ ਤਰੈ ਤਾਰੇ ਗੁਰੁ ਸਿਖ ॥
चिन्तनशील गुरसिख स्वयं तो इस भव-सागर को पार करता ही है तथा अन्य संगियों को भी पार करवा देता है।
चिन्तनशील गुरसिख स्वयं तो इस भव-सागर को पार करता ही है तथा अन्य संगियों को भी पार करवा देता है।
ਮੰਨੈ ਨਾਨਕ ਭਵਹਿ ਨ ਭਿਖ ॥
हे नानक ! चिन्तन करने वाला मानव जीव, दर-दर का भिखारी नहीं बनता।
हे नानक ! चिन्तन करने वाला मानव जीव, दर-दर का भिखारी नहीं बनता।
ਐਸਾ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਹੋਇ ॥
परमात्मा का नाम बहुत ही श्रेष्ठ एवं मायातीत है।
परमात्मा का नाम बहुत ही श्रेष्ठ एवं मायातीत है।
ਜੇ ਕੋ ਮੰਨਿ ਜਾਣੈ ਮਨਿ ਕੋਇ ॥੧੫॥
यदि कोई उसे अपने हृदय में लीन करके उसका चिन्तन करे II १५II
यदि कोई उसे अपने हृदय में लीन करके उसका चिन्तन करे II १५II
ਪੰਚ ਪਰਵਾਣ ਪੰਚ ਪਰਧਾਨੁ ॥
जिन्होंने प्रभु-नाम का चिन्तन किया है वे श्रेष्ठ संतजन निरंकार के द्वार पर स्वीकृत होते हैं, वे ही वहाँ पर प्रमुख होते हैं।
जिन्होंने प्रभु-नाम का चिन्तन किया है वे श्रेष्ठ संतजन निरंकार के द्वार पर स्वीकृत होते हैं, वे ही वहाँ पर प्रमुख होते हैं।
ਪੰਚੇ ਪਾਵਹਿ ਦਰਗਹਿ ਮਾਨੁ ॥
ऐसे गुरुमुख प्यारे अकाल पुरुष की सभा में सम्मान पाते हैं।
ऐसे गुरुमुख प्यारे अकाल पुरुष की सभा में सम्मान पाते हैं।
ਪੰਚੇ ਸੋਹਹਿ ਦਰਿ ਰਾਜਾਨੁ ॥
जिन प्रभु के प्रेमियों ने उसके नाम रूपी रस का अमृतपान किया है ऐसे सद्-पुरुष उसके दरबार में भाव उस परमात्मा के घर में शोभा पाते हैं। ईश्वर के दरबार में केवल हमारा नाम रूपी धन ही साथ जाता है।
जिन प्रभु के प्रेमियों ने उसके नाम रूपी रस का अमृतपान किया है ऐसे सद्-पुरुष उसके दरबार में भाव उस परमात्मा के घर में शोभा पाते हैं। ईश्वर के दरबार में केवल हमारा नाम रूपी धन ही साथ जाता है।
ਪੰਚਾ ਕਾ ਗੁਰੁ ਏਕੁ ਧਿਆਨੁ ॥
सद्गुणी मानव का ध्यान उस एक सतगुरु (निरंकार) में ही दृढ़ रहता है।
सद्गुणी मानव का ध्यान उस एक सतगुरु (निरंकार) में ही दृढ़ रहता है।
ਜੇ ਕੋ ਕਹੈ ਕਰੈ ਵੀਚਾਰੁ ॥
यदि कोई व्यक्ति उस सृजनहार के बारे में कहना चाहे अथवा उसकी रचना का लेखा करे
यदि कोई व्यक्ति उस सृजनहार के बारे में कहना चाहे अथवा उसकी रचना का लेखा करे
ਕਰਤੇ ਕੈ ਕਰਣੈ ਨਾਹੀ ਸੁਮਾਰੁ ॥
तो उस रचयिता की प्रकृति का आकलन नहीं किया जा सकता।
तो उस रचयिता की प्रकृति का आकलन नहीं किया जा सकता।
ਧੌਲੁ ਧਰਮੁ ਦਇਆ ਕਾ ਪੂਤੁ ॥
निरंकार द्वारा रची गई सृष्टि धर्म रूपी वृषभ (धौला बैल) ने अपने ऊपर टिका कर रखी हुई है जो कि दया का पुत्र है (क्योंकि मन में दया-भाव होगा तभी धर्म-कार्य इस मानव जीव से सम्भव होगा)।
निरंकार द्वारा रची गई सृष्टि धर्म रूपी वृषभ (धौला बैल) ने अपने ऊपर टिका कर रखी हुई है जो कि दया का पुत्र है (क्योंकि मन में दया-भाव होगा तभी धर्म-कार्य इस मानव जीव से सम्भव होगा)।
ਸੰਤੋਖੁ ਥਾਪਿ ਰਖਿਆ ਜਿਨਿ ਸੂਤਿ ॥
जिसे संतोष रूपी सूत्र के साथ बांधा हुआ है।
जिसे संतोष रूपी सूत्र के साथ बांधा हुआ है।
ਜੇ ਕੋ ਬੁਝੈ ਹੋਵੈ ਸਚਿਆਰੁ ॥
यदि कोई परमात्मा के इस रहस्य को जान ले तो वह सत्यनिष्ठ हो सकता है।
यदि कोई परमात्मा के इस रहस्य को जान ले तो वह सत्यनिष्ठ हो सकता है।
ਧਵਲੈ ਉਪਰਿ ਕੇਤਾ ਭਾਰੁ ॥
कितना बोझ है, वह कितना बोझ उठाने की समर्थता रखता है।
कितना बोझ है, वह कितना बोझ उठाने की समर्थता रखता है।
ਧਰਤੀ ਹੋਰੁ ਪਰੈ ਹੋਰੁ ਹੋਰੁ ॥
क्योंकि इस धरती पर सृजनहार ने जो रचना की है वह परे से परे है, अनन्त है।
क्योंकि इस धरती पर सृजनहार ने जो रचना की है वह परे से परे है, अनन्त है।
ਤਿਸ ਤੇ ਭਾਰੁ ਤਲੈ ਕਵਣੁ ਜੋਰੁ ॥
फिर उस बैल का बोझ किस शक्ति पर आश्रित है।
फिर उस बैल का बोझ किस शक्ति पर आश्रित है।
ਜੀਅ ਜਾਤਿ ਰੰਗਾ ਕੇ ਨਾਵ ॥
सृजनहार की इस रचना में अनेक जातियों, रंगों तथा अलग-अलग नाम से जाने जाने वाले लोग उपस्थित हैं।
सृजनहार की इस रचना में अनेक जातियों, रंगों तथा अलग-अलग नाम से जाने जाने वाले लोग उपस्थित हैं।
ਸਭਨਾ ਲਿਖਿਆ ਵੁੜੀ ਕਲਾਮ ॥
जिनके मस्तिष्क पर परमात्मा की आज्ञा में चलने वाली कलम से कर्मों का लेखा लिखा गया है।
जिनके मस्तिष्क पर परमात्मा की आज्ञा में चलने वाली कलम से कर्मों का लेखा लिखा गया है।
ਏਹੁ ਲੇਖਾ ਲਿਖਿ ਜਾਣੈ ਕੋਇ ॥
यदि किसी को यह दिव्य लेखनी प्राप्त हो, जिससे वह इस गूढ़ सत्य का वर्णन कर सके,
यदि किसी को यह दिव्य लेखनी प्राप्त हो, जिससे वह इस गूढ़ सत्य का वर्णन कर सके,
ਲੇਖਾ ਲਿਖਿਆ ਕੇਤਾ ਹੋਇ ॥
यदि उस लेखे को लिपिबद्ध भी किया जाए, तो कल्पना कीजिए— वह विवरण कितना असीमित और अपार होगा।
यदि उस लेखे को लिपिबद्ध भी किया जाए, तो कल्पना कीजिए— वह विवरण कितना असीमित और अपार होगा।
ਕੇਤਾ ਤਾਣੁ ਸੁਆਲਿਹੁ ਰੂਪੁ ॥
परमेश्वर की अपरिमित शक्ति और उसकी दिव्य सृष्टि की व्यापकता कितनी अनंत है— इसे कौन जान सकता है?
परमेश्वर की अपरिमित शक्ति और उसकी दिव्य सृष्टि की व्यापकता कितनी अनंत है— इसे कौन जान सकता है?
ਕੇਤੀ ਦਾਤਿ ਜਾਣੈ ਕੌਣੁ ਕੂਤੁ ॥
उसकी कितनी कृपा है, ऐसा कौन है जो उसका सम्पूर्ण अनुमान लगा सकता है।
उसकी कितनी कृपा है, ऐसा कौन है जो उसका सम्पूर्ण अनुमान लगा सकता है।
ਕੀਤਾ ਪਸਾਉ ਏਕੋ ਕਵਾਉ ॥
अकाल पुरख के मात्र एक शब्द से समस्त सृष्टि का प्रसार हुआ है।
अकाल पुरख के मात्र एक शब्द से समस्त सृष्टि का प्रसार हुआ है।
ਤਿਸ ਤੇ ਹੋਏ ਲਖ ਦਰੀਆਉ ॥
उस एक शब्द रूपी आदेश से ही सृष्टि में एक से अनेक जीव-जन्तु, तथा अन्य पदार्थों के प्रवाह चल पड़े हैं।
उस एक शब्द रूपी आदेश से ही सृष्टि में एक से अनेक जीव-जन्तु, तथा अन्य पदार्थों के प्रवाह चल पड़े हैं।
ਕੁਦਰਤਿ ਕਵਣ ਕਹਾ ਵੀਚਾਰੁ ॥
इसलिए मुझ में इतनी बुद्धि कहाँ कि मैं उस अकथनीय प्रभु की समर्थता का विचार कर सकूँ।
इसलिए मुझ में इतनी बुद्धि कहाँ कि मैं उस अकथनीय प्रभु की समर्थता का विचार कर सकूँ।
ਵਾਰਿਆ ਨ ਜਾਵਾ ਏਕ ਵਾਰ ॥
हे अनन्त स्वरूप ! मैं इतना असमर्थ और निर्बल हूँ कि एक बार भी पूर्ण रूप से आपके चरणों में समर्पित होने की सामर्थ्य नहीं रखता।
हे अनन्त स्वरूप ! मैं इतना असमर्थ और निर्बल हूँ कि एक बार भी पूर्ण रूप से आपके चरणों में समर्पित होने की सामर्थ्य नहीं रखता।
ਜੋ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਸਾਈ ਭਲੀ ਕਾਰ ॥
जो तुझे अच्छा लगता है वही कार्य श्रेष्ठ है।
जो तुझे अच्छा लगता है वही कार्य श्रेष्ठ है।
ਤੂ ਸਦਾ ਸਲਾਮਤਿ ਨਿਰੰਕਾਰ ॥੧੬॥
हे निरंकार ! हे पारब्रह्म ! आप सदा शाश्वत स्वरूप है ॥ १६॥
हे निरंकार ! हे पारब्रह्म ! आप सदा शाश्वत स्वरूप है ॥ १६॥
ਅਸੰਖ ਜਪ ਅਸੰਖ ਭਾਉ ॥
इस सृष्टि में असंख्य लोग उस सृजनहार का जाप करते हैं, असंख्य ही उससे प्रीति रखने वाले हैं।
इस सृष्टि में असंख्य लोग उस सृजनहार का जाप करते हैं, असंख्य ही उससे प्रीति रखने वाले हैं।
ਅਸੰਖ ਪੂਜਾ ਅਸੰਖ ਤਪ ਤਾਉ ॥
असंख्य उसकी अर्चना करते हैं, असंख्य तपी तपस्या कर रहे हैं।
असंख्य उसकी अर्चना करते हैं, असंख्य तपी तपस्या कर रहे हैं।
ਅਸੰਖ ਗਰੰਥ ਮੁਖਿ ਵੇਦ ਪਾਠ ॥
असंख्य लोग धार्मिक ग्रंथों व वेदों आदि का अपने मुख द्वारा पाठ कर रहे हैं।
असंख्य लोग धार्मिक ग्रंथों व वेदों आदि का अपने मुख द्वारा पाठ कर रहे हैं।
ਅਸੰਖ ਜੋਗ ਮਨਿ ਰਹਹਿ ਉਦਾਸ ॥
असंख्य ही योग-साधना में लीन रह कर मन को आसक्तियों से मुक्त रखते हैं।
असंख्य ही योग-साधना में लीन रह कर मन को आसक्तियों से मुक्त रखते हैं।