Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1419

Page 1419

ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਨ ਚੁਕਈ ਮਰਿ ਜੰਮਹਿ ਵਾਰੋ ਵਾਰ ॥ माइआ मोहु न चुकई मरि जमहि वारो वार ॥ उसका माया-मोह दूर नहीं होता, जिस कारण वह बार-बार जन्मता मरता है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਅਤਿ ਤਿਸਨਾ ਤਜਿ ਵਿਕਾਰ ॥ सतिगुरु सेवि सुखु पाइआ अति तिसना तजि विकार ॥ यदि तृष्णा एवं विकारों को छोड़कर सतिगुरु की सेवा की जाए तो सुख प्राप्त हो जाता है।
ਜਨਮ ਮਰਨ ਕਾ ਦੁਖੁ ਗਇਆ ਜਨ ਨਾਨਕ ਸਬਦੁ ਬੀਚਾਰਿ ॥੪੯॥ जनम मरन का दुखु गइआ जन नानक सबदु बीचारि ॥४९॥ गुरु नानक फुरमान करते हैं, जिन्होंने शब्द-गुरु का गहन चिंतन किया है, उनके जन्म-मरण का दुख दूर हो गया है॥४६॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ਮਨ ਹਰਿ ਦਰਗਹ ਪਾਵਹਿ ਮਾਨੁ ॥ हरि हरि नामु धिआइ मन हरि दरगह पावहि मानु ॥ हे सज्जनो ! मन में हरिनाम का मनन करो, तभी प्रभु-दरबार में सम्मान प्राप्त होगा।
ਕਿਲਵਿਖ ਪਾਪ ਸਭਿ ਕਟੀਅਹਿ ਹਉਮੈ ਚੁਕੈ ਗੁਮਾਨੁ ॥ किलविख पाप सभि कटीअहि हउमै चुकै गुमानु ॥ (हरिनाम से) पाप-दोष सब कट जाते हैं और अहम्-अभिमान समाप्त हो जाता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਕਮਲੁ ਵਿਗਸਿਆ ਸਭੁ ਆਤਮ ਬ੍ਰਹਮੁ ਪਛਾਨੁ ॥ गुरमुखि कमलु विगसिआ सभु आतम ब्रहमु पछानु ॥ गुरुमुख का हृदय-कमल सदा खिला रहता है और उसे सब ओर ब्रह्म ही दिखाई देता है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰਿ ਪ੍ਰਭ ਜਨ ਨਾਨਕ ਜਪਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ॥੫੦॥ हरि हरि किरपा धारि प्रभ जन नानक जपि हरि नामु ॥५०॥ गुरु नानक फुरमान करते हैं कि जब प्रभु अपनी कृपा की बरसात कर देता है तो जिज्ञासु भक्तजन हरिनाम जपते रहते हैं।॥५०॥
ਧਨਾਸਰੀ ਧਨਵੰਤੀ ਜਾਣੀਐ ਭਾਈ ਜਾਂ ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਕਾਰ ਕਮਾਇ ॥ धनासरी धनवंती जाणीऐ भाई जां सतिगुर की कार कमाइ ॥ धनासरी राग द्वारा गान करती हुई वही जीव-स्त्री धनवान् मानी जाती है, जो सतिगुरु की सेवा में तल्लीन रहती है।
ਤਨੁ ਮਨੁ ਸਉਪੇ ਜੀਅ ਸਉ ਭਾਈ ਲਏ ਹੁਕਮਿ ਫਿਰਾਉ ॥ तनु मनु सउपे जीअ सउ भाई लए हुकमि फिराउ ॥ वह अपना तन, मन, प्राण सब गुरु को सौंप देती है और गुरु की आज्ञा मानती है।
ਜਹ ਬੈਸਾਵਹਿ ਬੈਸਹ ਭਾਈ ਜਹ ਭੇਜਹਿ ਤਹ ਜਾਉ ॥ जह बैसावहि बैसह भाई जह भेजहि तह जाउ ॥ जहाँ सतिगुरु बैठाता है, बैठ जाती है, जहाँ भेजता है, वही चली जाती है।
ਏਵਡੁ ਧਨੁ ਹੋਰੁ ਕੋ ਨਹੀ ਭਾਈ ਜੇਵਡੁ ਸਚਾ ਨਾਉ ॥ एवडु धनु होरु को नही भाई जेवडु सचा नाउ ॥ सच्चे नाम जैसा धन अन्य कोई नहीं।
ਸਦਾ ਸਚੇ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਵਾਂ ਭਾਈ ਸਦਾ ਸਚੇ ਕੈ ਸੰਗਿ ਰਹਾਉ ॥ सदा सचे के गुण गावां भाई सदा सचे कै संगि रहाउ ॥ मैं सदा सच्चे प्रभु के गुण गाता हूँ और सदैव सच्चे के संग रहता हूँ।
ਪੈਨਣੁ ਗੁਣ ਚੰਗਿਆਈਆ ਭਾਈ ਆਪਣੀ ਪਤਿ ਕੇ ਸਾਦ ਆਪੇ ਖਾਇ ॥ पैनणु गुण चंगिआईआ भाई आपणी पति के साद आपे खाइ ॥ जो शुभ गुण एवं अच्छाइयों को धारण करता है, वह स्वयं प्रभु के आनंद को पाता है।
ਤਿਸ ਕਾ ਕਿਆ ਸਾਲਾਹੀਐ ਭਾਈ ਦਰਸਨ ਕਉ ਬਲਿ ਜਾਇ ॥ तिस का किआ सालाहीऐ भाई दरसन कउ बलि जाइ ॥ उसकी क्या प्रशंसा की जाए, उसके दर्शनों पर कुर्बान जाना चाहिए।
ਸਤਿਗੁਰ ਵਿਚਿ ਵਡੀਆ ਵਡਿਆਈਆ ਭਾਈ ਕਰਮਿ ਮਿਲੈ ਤਾਂ ਪਾਇ ॥ सतिगुर विचि वडीआ वडिआईआ भाई करमि मिलै तां पाइ ॥ सतिगुरु में बहुत सारी खूबियाँ हैं और यह प्रभु-कृपा से ही प्राप्त होता है।
ਇਕਿ ਹੁਕਮੁ ਮੰਨਿ ਨ ਜਾਣਨੀ ਭਾਈ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਫਿਰਾਇ ॥ इकि हुकमु मंनि न जाणनी भाई दूजै भाइ फिराइ ॥ किसी को हुक्म मानना नहीं आता और वह द्वैतभाव में फिरता है।
ਸੰਗਤਿ ਢੋਈ ਨਾ ਮਿਲੈ ਭਾਈ ਬੈਸਣਿ ਮਿਲੈ ਨ ਥਾਉ ॥ संगति ढोई ना मिलै भाई बैसणि मिलै न थाउ ॥ उसे संग मिलना तो दूर की बात है, बैठने को भी स्थान प्राप्त नहीं होता।
ਨਾਨਕ ਹੁਕਮੁ ਤਿਨਾ ਮਨਾਇਸੀ ਭਾਈ ਜਿਨਾ ਧੁਰੇ ਕਮਾਇਆ ਨਾਉ ॥ नानक हुकमु तिना मनाइसी भाई जिना धुरे कमाइआ नाउ ॥ गुरु नानक फुरमान करते हैं कि ईश्वर का हुक्म वही मानते हैं, जिन्होंने शुरु से हरिनाम की कमाई की होती है।
ਤਿਨ੍ ਵਿਟਹੁ ਹਉ ਵਾਰਿਆ ਭਾਈ ਤਿਨ ਕਉ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੈ ਜਾਉ ॥੫੧॥ तिन्ह विटहु हउ वारिआ भाई तिन कउ सद बलिहारै जाउ ॥५१॥ मैं इन्हीं पर न्यौछावर हूँ और ऐसे लोगों पर सदैव कुर्बान जाता हूँ॥५१॥
ਸੇ ਦਾੜੀਆਂ ਸਚੀਆ ਜਿ ਗੁਰ ਚਰਨੀ ਲਗੰਨ੍ਹ੍ਹਿ ॥ से दाड़ीआं सचीआ जि गुर चरनी लगंन्हि ॥ वही दाढ़ियाँ सच्ची हैं,जों गुरु चरणों में लगती हैं।
ਅਨਦਿਨੁ ਸੇਵਨਿ ਗੁਰੁ ਆਪਣਾ ਅਨਦਿਨੁ ਅਨਦਿ ਰਹੰਨ੍ਹ੍ਹਿ ॥ अनदिनु सेवनि गुरु आपणा अनदिनु अनदि रहंन्हि ॥ ऐसे लोग अपने गुरु की सेवा में तल्लीन रहते हैं और प्रतिदिन आनंदपूर्वक रहते हैं।
ਨਾਨਕ ਸੇ ਮੁਹ ਸੋਹਣੇ ਸਚੈ ਦਰਿ ਦਿਸੰਨ੍ਹ੍ਹਿ ॥੫੨॥ नानक से मुह सोहणे सचै दरि दिसंन्हि ॥५२॥ हे नानक ! वही मुख सुन्दर हैं, जो सच्चे दरबार में दिखाई देते है ॥५२॥
ਮੁਖ ਸਚੇ ਸਚੁ ਦਾੜੀਆ ਸਚੁ ਬੋਲਹਿ ਸਚੁ ਕਮਾਹਿ ॥ मुख सचे सचु दाड़ीआ सचु बोलहि सचु कमाहि ॥ जिनके मुख सच्चे और दाढ़ी भी सच्ची है, वे सत्य ही बोलते हैं और सत्कर्म ही करते हैं।
ਸਚਾ ਸਬਦੁ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਸਤਿਗੁਰ ਮਾਂਹਿ ਸਮਾਂਹਿ ॥ सचा सबदु मनि वसिआ सतिगुर मांहि समांहि ॥ उनके मन में सच्चा उपदेश ही बसता है और सतगुरु में लीन रहते हैं।
ਸਚੀ ਰਾਸੀ ਸਚੁ ਧਨੁ ਉਤਮ ਪਦਵੀ ਪਾਂਹਿ ॥ सची रासी सचु धनु उतम पदवी पांहि ॥ उनकी जीवन-राशि एवं धन भी सच्चा है और उत्तम पदवी ही पाते हैं।
ਸਚੁ ਸੁਣਹਿ ਸਚੁ ਮੰਨਿ ਲੈਨਿ ਸਚੀ ਕਾਰ ਕਮਾਹਿ ॥ सचु सुणहि सचु मंनि लैनि सची कार कमाहि ॥ ये सत्य ही सुनते हैं और सत्य को मन में बसाकर रखते हैं और सत्कर्म ही करते हैं।
ਸਚੀ ਦਰਗਹ ਬੈਸਣਾ ਸਚੇ ਮਾਹਿ ਸਮਾਹਿ ॥ सची दरगह बैसणा सचे माहि समाहि ॥ वे सच्चे दरबार में बैठकर सत्य में समा जाते हैं।
ਨਾਨਕ ਵਿਣੁ ਸਤਿਗੁਰ ਸਚੁ ਨ ਪਾਈਐ ਮਨਮੁਖ ਭੂਲੇ ਜਾਂਹਿ ॥੫੩॥ नानक विणु सतिगुर सचु न पाईऐ मनमुख भूले जांहि ॥५३॥ हे नानक ! सतगुरु के बिना सत्य प्राप्त नहीं होता और मनमुखी भूले ही रहते हैं।॥५३॥
ਬਾਬੀਹਾ ਪ੍ਰਿਉ ਪ੍ਰਿਉ ਕਰੇ ਜਲਨਿਧਿ ਪ੍ਰੇਮ ਪਿਆਰਿ ॥ बाबीहा प्रिउ प्रिउ करे जलनिधि प्रेम पिआरि ॥ जिज्ञासु पपीहा प्रेम समुद्र में प्रिय प्रिय करता है।
ਗੁਰ ਮਿਲੇ ਸੀਤਲ ਜਲੁ ਪਾਇਆ ਸਭਿ ਦੂਖ ਨਿਵਾਰਣਹਾਰੁ ॥ गुर मिले सीतल जलु पाइआ सभि दूख निवारणहारु ॥ जब गुरु मिलता है तो ही उसे हरिनाम रूपी शीतल जल प्राप्त होता है और उसके सब दुखों का निवारण हो जाता है।
ਤਿਸ ਚੁਕੈ ਸਹਜੁ ਊਪਜੈ ਚੁਕੈ ਕੂਕ ਪੁਕਾਰ ॥ तिस चुकै सहजु ऊपजै चुकै कूक पुकार ॥ नाम जल से उसके अन्तर्मन में स्वाभाविक सुख उत्पन्न होता है और उसे उसकी सब कूक पुकार दूर हो जाती है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਂਤਿ ਹੋਇ ਨਾਮੁ ਰਖਹੁ ਉਰਿ ਧਾਰਿ ॥੫੪॥ नानक गुरमुखि सांति होइ नामु रखहु उरि धारि ॥५४॥ गुरु नानक फुरमाते हैं- गुरुमुख को ही शान्ति प्राप्त होती है और वह नाम को ही दिल में बसाकर रखता है ॥५४ ॥
ਬਾਬੀਹਾ ਤੂੰ ਸਚੁ ਚਉ ਸਚੇ ਸਉ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥ बाबीहा तूं सचु चउ सचे सउ लिव लाइ ॥ हे जिज्ञासु पपीहे ! तू सच ही बोल, मन सत्य परमेश्वर में लगने लगा।
ਬੋਲਿਆ ਤੇਰਾ ਥਾਇ ਪਵੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਇ ਅਲਾਇ ॥ बोलिआ तेरा थाइ पवै गुरमुखि होइ अलाइ ॥ गुरु के सान्निध्य में गान करेगा तो तेरा किया गुणानुवाद फलदायक होगा।
ਸਬਦੁ ਚੀਨਿ ਤਿਖ ਉਤਰੈ ਮੰਨਿ ਲੈ ਰਜਾਇ ॥ सबदु चीनि तिख उतरै मंनि लै रजाइ ॥ शब्द-गुरु को समझकर प्यास बुझ जाएगी, रज़ा को मानने से ही संभव है।


© 2025 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top