Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1413

Page 1413

ਸਲੋਕ ਮਹਲਾ ੩ सलोक महला ३ सलोक महला ३
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ वह परब्रह्म केवल एक (ऑकार-स्वरूप) है, सतगुरु की कृपा से प्राप्ति होती है।
ਅਭਿਆਗਤ ਏਹ ਨ ਆਖੀਅਹਿ ਜਿਨ ਕੈ ਮਨ ਮਹਿ ਭਰਮੁ ॥ अभिआगत एह न आखीअहि जिन कै मन महि भरमु ॥ जिसके में लोभ अम है, वह अभ्यागत नहीं कहा जा सकता।
ਤਿਨ ਕੇ ਦਿਤੇ ਨਾਨਕਾ ਤੇਹੋ ਜੇਹਾ ਧਰਮੁ ॥੧॥ तिन के दिते नानका तेहो जेहा धरमु ॥१॥ गुरु नानक कथन करते हैं कि उसको दिए दान का फल भी वैसा ही होता है।॥१॥
ਅਭੈ ਨਿਰੰਜਨ ਪਰਮ ਪਦੁ ਤਾ ਕਾ ਭੀਖਕੁ ਹੋਇ ॥ अभै निरंजन परम पदु ता का भीखकु होइ ॥ गुरु नानक कहते हैं, जो अभय, मायातीत ईश्वर का भिक्षुक होता है,
ਤਿਸ ਕਾ ਭੋਜਨੁ ਨਾਨਕਾ ਵਿਰਲਾ ਪਾਏ ਕੋਇ ॥੨॥ तिस का भोजनु नानका विरला पाए कोइ ॥२॥ उसका भोजन (हरिनाम) कोई विरला (गुरु) ही जुटा पाता है॥२॥
ਹੋਵਾ ਪੰਡਿਤੁ ਜੋਤਕੀ ਵੇਦ ਪੜਾ ਮੁਖਿ ਚਾਰਿ ॥ होवा पंडितु जोतकी वेद पड़ा मुखि चारि ॥ बेशक पण्डित ज्योतिषी बन जाऊँ, मुख से चार वेदों का पाठ करूँ।
ਨਵਾ ਖੰਡਾ ਵਿਚਿ ਜਾਣੀਆ ਅਪਨੇ ਚਜ ਵੀਚਾਰ ॥੩॥ नवा खंडा विचि जाणीआ अपने चज वीचार ॥३॥ परंतु अपने आचरण अथवा चरित्र की वजह से ही पूरे संसार में ख्याति पा सकता हूँ॥३॥
ਬ੍ਰਹਮਣ ਕੈਲੀ ਘਾਤੁ ਕੰਞਕਾ ਅਣਚਾਰੀ ਕਾ ਧਾਨੁ ॥ ब्रहमण कैली घातु कंञका अणचारी का धानु ॥ ब्राह्मण-हत्या, गौ-वध, कन्या की हत्या एवं पापी-दुराचारी का धन-सब धिक्कार योग्य है,
ਫਿਟਕ ਫਿਟਕਾ ਕੋੜੁ ਬਦੀਆ ਸਦਾ ਸਦਾ ਅਭਿਮਾਨੁ ॥ फिटक फिटका कोड़ु बदीआ सदा सदा अभिमानु ॥ बुरे काम करके बुराइयों का कोढ़ पाना तथा सदा अभिमान बहुत बुरे हैं।
ਪਾਹਿ ਏਤੇ ਜਾਹਿ ਵੀਸਰਿ ਨਾਨਕਾ ਇਕੁ ਨਾਮੁ ॥ पाहि एते जाहि वीसरि नानका इकु नामु ॥ गुरुनानक फुरमाते हैं परमात्मा को विस्मृत करना इससे भी बड़ा पाप है।
ਸਭ ਬੁਧੀ ਜਾਲੀਅਹਿ ਇਕੁ ਰਹੈ ਤਤੁ ਗਿਆਨੁ ॥੪॥ सभ बुधी जालीअहि इकु रहै ततु गिआनु ॥४॥ सब चतुराइयों को छोड़कर केवल तत्व ज्ञान ही रहता हैJ॥४॥
ਮਾਥੈ ਜੋ ਧੁਰਿ ਲਿਖਿਆ ਸੁ ਮੇਟਿ ਨ ਸਕੈ ਕੋਇ ॥ माथै जो धुरि लिखिआ सु मेटि न सकै कोइ ॥ विधाता ने जो भाग्य लेख लिख दिया है, उसे कोई बदल नहीं सकता।
ਨਾਨਕ ਜੋ ਲਿਖਿਆ ਸੋ ਵਰਤਦਾ ਸੋ ਬੂਝੈ ਜਿਸ ਨੋ ਨਦਰਿ ਹੋਇ ॥੫॥ नानक जो लिखिआ सो वरतदा सो बूझै जिस नो नदरि होइ ॥५॥ गुरु नानक कहते हैं- जो नसीब में लिखा है, वही होता है। जिस पर ईश्वर-कृपा होती है, वह इस सच्चाई को समझ लेता है॥५॥
ਜਿਨੀ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਿਆ ਕੂੜੈ ਲਾਲਚਿ ਲਗਿ ॥ जिनी नामु विसारिआ कूड़ै लालचि लगि ॥ जिन लोगों ने झूठे लालच में फँसकर ईश्वर को भुला दिया है,
ਧੰਧਾ ਮਾਇਆ ਮੋਹਣੀ ਅੰਤਰਿ ਤਿਸਨਾ ਅਗਿ ॥ धंधा माइआ मोहणी अंतरि तिसना अगि ॥ ये माया के मोह में काम-धंधों में लगे रहते हैं और उनके अन्तर्मन में तृष्णाग्नि जलती रहती है।
ਜਿਨ੍ਹ੍ਹਾ ਵੇਲਿ ਨ ਤੂੰਬੜੀ ਮਾਇਆ ਠਗੇ ਠਗਿ ॥ जिन्हा वेलि न तू्मबड़ी माइआ ठगे ठगि ॥ जिनके हृदय में ईशोपासना की बेल नहीं, भक्ति रूपी फल नहीं, वे माया के धोखे में फंसे रहते हैं।
ਮਨਮੁਖ ਬੰਨ੍ਹ੍ਹਿ ਚਲਾਈਅਹਿ ਨਾ ਮਿਲਹੀ ਵਗਿ ਸਗਿ ॥ मनमुख बंन्हि चलाईअहि ना मिलही वगि सगि ॥ स्वेच्छाचारियों को बांधकर ले जाया जाता है और महात्मा रूपी गाय तथा (दुष्ट रूपी) कुत्ते का मेल नहीं होता।
ਆਪਿ ਭੁਲਾਏ ਭੁਲੀਐ ਆਪੇ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਇ ॥ आपि भुलाए भुलीऐ आपे मेलि मिलाइ ॥ जब ईश्वर आप ही हमें भुला देता है तो हम भूल जाते हैं और हमारा उससे मिलाप उसके आप मिलाने से ही होता है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਛੁਟੀਐ ਜੇ ਚਲੈ ਸਤਿਗੁਰ ਭਾਇ ॥੬॥ नानक गुरमुखि छुटीऐ जे चलै सतिगुर भाइ ॥६॥ गुरु नानक फुरमाते हैं कि यदि सतिगुरु की रज़ानुसार चला जाए तो गुरुमुख बनकर संसार के बन्धनों से छुटकारा हो जाता है।॥६॥
ਸਾਲਾਹੀ ਸਾਲਾਹਣਾ ਭੀ ਸਚਾ ਸਾਲਾਹਿ ॥ सालाही सालाहणा भी सचा सालाहि ॥ परमात्मा की ही प्रशंसा करो, केवल वही प्रशंसा के लायक है।
ਨਾਨਕ ਸਚਾ ਏਕੁ ਦਰੁ ਬੀਭਾ ਪਰਹਰਿ ਆਹਿ ॥੭॥ नानक सचा एकु दरु बीभा परहरि आहि ॥७॥ गुरु नानक का कथन है कि हे भाई ! परमात्मा का द्वार ही सच्चा है, अन्य दर छोड़ने योग्य है॥७॥
ਨਾਨਕ ਜਹ ਜਹ ਮੈ ਫਿਰਉ ਤਹ ਤਹ ਸਾਚਾ ਸੋਇ ॥ नानक जह जह मै फिरउ तह तह साचा सोइ ॥ गुरु नानक फुरमाते हैं- मैं जहाँ-जहाँ जाता हूँ वहाँ एकमात्र ईश्वर ही है।
ਜਹ ਦੇਖਾ ਤਹ ਏਕੁ ਹੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਰਗਟੁ ਹੋਇ ॥੮॥ जह देखा तह एकु है गुरमुखि परगटु होइ ॥८॥ जहाँ देखता हूँ, वहाँ एक वही मौजूद है और वह गुरु द्वारा ही प्रगट होता है।॥८॥
ਦੂਖ ਵਿਸਾਰਣੁ ਸਬਦੁ ਹੈ ਜੇ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ਕੋਇ ॥ दूख विसारणु सबदु है जे मंनि वसाए कोइ ॥ प्रभु-शब्द सब दुखों को दूर करने वाला है, कोई मन में बसा ले (इससे सब दुखों का अन्त होता है)।
ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਮਨਿ ਵਸੈ ਕਰਮ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥੯॥ गुर किरपा ते मनि वसै करम परापति होइ ॥९॥ यह मन में गुरु की कृपा से ही बसता है और भाग्य से ही प्राप्त होता है।॥६ ॥
ਨਾਨਕ ਹਉ ਹਉ ਕਰਤੇ ਖਪਿ ਮੁਏ ਖੂਹਣਿ ਲਖ ਅਸੰਖ ॥ नानक हउ हउ करते खपि मुए खूहणि लख असंख ॥ गुरु नानक फुरमाते हैं- अभिमान करते लाखों असंख्य लोग तबाह हो गए हैं।
ਸਤਿਗੁਰ ਮਿਲੇ ਸੁ ਉਬਰੇ ਸਾਚੈ ਸਬਦਿ ਅਲੰਖ ॥੧੦॥ सतिगुर मिले सु उबरे साचै सबदि अलंख ॥१०॥ जिसे सतिगुरु मिला, वह सच्चे शब्द में लीन होकर बच गया है॥१० ॥
ਜਿਨਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਇਕ ਮਨਿ ਸੇਵਿਆ ਤਿਨ ਜਨ ਲਾਗਉ ਪਾਇ ॥ जिना सतिगुरु इक मनि सेविआ तिन जन लागउ पाइ ॥ जिन्होंने मन लगाकर सतिगुरु की सेवा की है, उन लोगों के चरणों में लग जाओ।
ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਹਰਿ ਮਨਿ ਵਸੈ ਮਾਇਆ ਕੀ ਭੁਖ ਜਾਇ ॥ गुर सबदी हरि मनि वसै माइआ की भुख जाइ ॥ गुरु के उपदेश से ईश्वर दिल में बसता है और माया की भूख निवृत्त हो जाती है।
ਸੇ ਜਨ ਨਿਰਮਲ ਊਜਲੇ ਜਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਇ ॥ से जन निरमल ऊजले जि गुरमुखि नामि समाइ ॥ वही व्यक्ति मन से निर्मल एवं साफ है, जो गुरुमुख बनकर हरिनाम में विलीन रहते हैं।
ਨਾਨਕ ਹੋਰਿ ਪਤਿਸਾਹੀਆ ਕੂੜੀਆ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਪਾਤਿਸਾਹ ॥੧੧॥ नानक होरि पतिसाहीआ कूड़ीआ नामि रते पातिसाह ॥११॥ नानक फुरमाते हैं कि अन्य राजाधिकार झूठे हैं, प्रभु नाम में लीन रहने वाले ही असल में बादशाह हैं॥११॥
ਜਿਉ ਪੁਰਖੈ ਘਰਿ ਭਗਤੀ ਨਾਰਿ ਹੈ ਅਤਿ ਲੋਚੈ ਭਗਤੀ ਭਾਇ ॥ जिउ पुरखै घरि भगती नारि है अति लोचै भगती भाइ ॥ ज्यों पति के घर में प्यारी पत्नी प्रेम-मुहब्बत की चाह करती है।
ਬਹੁ ਰਸ ਸਾਲਣੇ ਸਵਾਰਦੀ ਖਟ ਰਸ ਮੀਠੇ ਪਾਇ ॥ बहु रस सालणे सवारदी खट रस मीठे पाइ ॥ वह खूब स्वादिष्ट भोजन एवं मिष्ठान तैयारी करती है।
ਤਿਉ ਬਾਣੀ ਭਗਤ ਸਲਾਹਦੇ ਹਰਿ ਨਾਮੈ ਚਿਤੁ ਲਾਇ ॥ तिउ बाणी भगत सलाहदे हरि नामै चितु लाइ ॥ वैसे ही भक्तजन मन लगाकर वाणी से परमात्मा की प्रशंसा-गान करते हैं।
ਮਨੁ ਤਨੁ ਧਨੁ ਆਗੈ ਰਾਖਿਆ ਸਿਰੁ ਵੇਚਿਆ ਗੁਰ ਆਗੈ ਜਾਇ ॥ मनु तनु धनु आगै राखिआ सिरु वेचिआ गुर आगै जाइ ॥ वे अपना मृन, तन, धन सर्वस्व आगे रख देते हैं और अपना सिर भी गुरु के सन्मुख भेंट कर देते हैं।
ਭੈ ਭਗਤੀ ਭਗਤ ਬਹੁ ਲੋਚਦੇ ਪ੍ਰਭ ਲੋਚਾ ਪੂਰਿ ਮਿਲਾਇ ॥ भै भगती भगत बहु लोचदे प्रभ लोचा पूरि मिलाइ ॥ भक्तगण भक्ति-भाव की बहुत आकांक्षा करते हैं और प्रभु उनकी हर चाह पूरी करता है और मिला लेता है।


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