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ਸਾਈ ਜਾਇ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲਿ ਜਿਥੈ ਹੀ ਤਉ ਵੰਞਣਾ ॥੫੮॥
उस परलोक को भी याद रखो, जहाँ तूने जाना है॥५८॥
ਫਰੀਦਾ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹੀ ਕੰਮੀ ਨਾਹਿ ਗੁਣ ਤੇ ਕੰਮੜੇ ਵਿਸਾਰਿ ॥
फरीद जी शिक्षा देते हुए कहते हैं कि जिन कामों से कोई फायदा नहीं, ऐसे काम बिल्कुल छोड़ दो।
ਮਤੁ ਸਰਮਿੰਦਾ ਥੀਵਹੀ ਸਾਂਈ ਦੈ ਦਰਬਾਰਿ ॥੫੯॥
अन्यथा बुरे कामों के कारण तुम्हें मालिक के दरबार में शर्मिन्दा होना पड़ेगा ॥५६॥
ਫਰੀਦਾ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਕਰਿ ਚਾਕਰੀ ਦਿਲ ਦੀ ਲਾਹਿ ਭਰਾਂਦਿ ॥
फरीद जी उपदेश देते हैं कि मालिक की सेवा करो और दिल का वहम निकाल दो।
ਦਰਵੇਸਾਂ ਨੋ ਲੋੜੀਐ ਰੁਖਾਂ ਦੀ ਜੀਰਾਂਦਿ ॥੬੦॥
फकीरों को वस्तुतः पेड् की तरह सहनशील होना चाहिए॥६०॥
ਫਰੀਦਾ ਕਾਲੇ ਮੈਡੇ ਕਪੜੇ ਕਾਲਾ ਮੈਡਾ ਵੇਸੁ ॥
फरीद जी कहते हैं कि मेरे कपड़े काले हैं, भेरी वेशभूषा भी काली है।
ਗੁਨਹੀ ਭਰਿਆ ਮੈ ਫਿਰਾ ਲੋਕੁ ਕਹੈ ਦਰਵੇਸੁ ॥੬੧॥
मैं गुनाहों से भरा हुआ हूँ, इसके बावजूद भी लोग मुझे दरवेश कह रहे हैं।॥६१॥
ਤਤੀ ਤੋਇ ਨ ਪਲਵੈ ਜੇ ਜਲਿ ਟੁਬੀ ਦੇਇ ॥
जली हुई खेती पुनः हरी-भरी नहीं होती, चाहे उसे ठण्डे जल में कितना ही डुबो दिया जाए।
ਫਰੀਦਾ ਜੋ ਡੋਹਾਗਣਿ ਰਬ ਦੀ ਝੂਰੇਦੀ ਝੂਰੇਇ ॥੬੨॥
हे फरीद ! वैसे ही जो जीव-स्त्री परमात्मा से बिछुड़ी हुई है, वह सदैव दुखी रहती है।॥६२॥
ਜਾਂ ਕੁਆਰੀ ਤਾ ਚਾਉ ਵੀਵਾਹੀ ਤਾਂ ਮਾਮਲੇ ॥
जब लड़की कुंआरी थी तो उसे विवाह करने का चाव था। जब विवाह हो गया तो वह घर-गृहस्थी के झंझटों में फॅस गई।
ਫਰੀਦਾ ਏਹੋ ਪਛੋਤਾਉ ਵਤਿ ਕੁਆਰੀ ਨ ਥੀਐ ॥੬੩॥
हे फरीद ! तदन्तर वह पछताती है कि वह दोबारा कुंआरी नहीं हो सकती ॥६३ ॥
ਕਲਰ ਕੇਰੀ ਛਪੜੀ ਆਇ ਉਲਥੇ ਹੰਝ ॥
हंस यदि कल्लर के तालाब में आकर बैठ जाएँ तो
ਚਿੰਜੂ ਬੋੜਨ੍ਹ੍ਹਿ ਨਾ ਪੀਵਹਿ ਉਡਣ ਸੰਦੀ ਡੰਝ ॥੬੪॥
वे अपनी चोंच को पानी में डालने के बावजूद भी नहीं पीते और वहाँ से शीघ्र उड़ने का प्रयास करते हैं।(वैसे ही संत संसार की वासनाओं को देखकर प्रभु-चरणों में विराजने की कामना करते हैं) ॥६४ ॥
ਹੰਸੁ ਉਡਰਿ ਕੋਧ੍ਰੈ ਪਇਆ ਲੋਕੁ ਵਿਡਾਰਣਿ ਜਾਇ ॥
यदि हंस उड़कर कोधरे के खेत पर आ जाए तो लोग उसको उड़ाने के लिए जाते हैं (अर्थात् यदि संत-महात्मा संसार में आए तो लोग उसे हटाने की कोशिश करते हैं)
ਗਹਿਲਾ ਲੋਕੁ ਨ ਜਾਣਦਾ ਹੰਸੁ ਨ ਕੋਧ੍ਰਾ ਖਾਇ ॥੬੫॥
परन्तु भोले लोग ये नहीं जानते कि हंस कभी कोधरा नहीं खाता (अर्थात् संत संसार की मोह-माया से निर्लिप्त होता है) ॥६५ ॥
ਚਲਿ ਚਲਿ ਗਈਆਂ ਪੰਖੀਆਂ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹੀ ਵਸਾਏ ਤਲ ॥
उन जीव रूपी पक्षियों की कतारें भी बारी-बारी से चली गई, जिन्होंने जगत् रूपी सरोवर को बसाकर रौनक लगाई हुई थी।
ਫਰੀਦਾ ਸਰੁ ਭਰਿਆ ਭੀ ਚਲਸੀ ਥਕੇ ਕਵਲ ਇਕਲ ॥੬੬॥
हे फरीद ! यह जगत् रूपी सरोवर भी सूख जाएगा, परन्तु संत रूपी अकेला कमल ही रहेगा ॥६६ ॥
ਫਰੀਦਾ ਇਟ ਸਿਰਾਣੇ ਭੁਇ ਸਵਣੁ ਕੀੜਾ ਲੜਿਓ ਮਾਸਿ ॥
बाबा फरीद कहते हैं कि मरणोपरांत कब्र में सिर के नीचे ईट रखकर धरती पर सोना पड़ेगा और बदन को कीड़े काट डालेंगे।
ਕੇਤੜਿਆ ਜੁਗ ਵਾਪਰੇ ਇਕਤੁ ਪਇਆ ਪਾਸਿ ॥੬੭॥
इस तरह एक जगह पड़े कितने ही युग बीत जाने हैं।॥६७ ॥
ਫਰੀਦਾ ਭੰਨੀ ਘੜੀ ਸਵੰਨਵੀ ਟੁਟੀ ਨਾਗਰ ਲਜੁ ॥
हे फरीद ! सुन्दर शरीर रूपी घड़ा टूट-फूट गया है, साँसों की डोरी भी टूट चुकी है।
ਅਜਰਾਈਲੁ ਫਰੇਸਤਾ ਕੈ ਘਰਿ ਨਾਠੀ ਅਜੁ ॥੬੮॥
अब मौत का फरिश्ता इजराईल किस घर का मेहमान है॥६८ ॥
ਫਰੀਦਾ ਭੰਨੀ ਘੜੀ ਸਵੰਨਵੀ ਟੂਟੀ ਨਾਗਰ ਲਜੁ ॥
हे फरीद ! सुन्दर देह रूपी घड़ा नष्ट हो गया है, साँसों की डोर भी टूट गई है।
ਜੋ ਸਜਣ ਭੁਇ ਭਾਰੁ ਥੇ ਸੇ ਕਿਉ ਆਵਹਿ ਅਜੁ ॥੬੯॥
जो व्यक्ति पापों के कारण केवल बोझ मात्र थे, अब उनको मनुष्य जन्म दोबारा कैसे मिल सकता है॥६६ ॥
ਫਰੀਦਾ ਬੇ ਨਿਵਾਜਾ ਕੁਤਿਆ ਏਹ ਨ ਭਲੀ ਰੀਤਿ ॥
बाबा फरीद कहते हैं कि हे नमाज़ न पढ़ने वाले कुत्ते ! तेरा यह तरीका ठीक नहीं है कि
ਕਬਹੀ ਚਲਿ ਨ ਆਇਆ ਪੰਜੇ ਵਖਤ ਮਸੀਤਿ ॥੭੦॥
तू कभी भी पाँच वक्त की नमाज के लिए मस्जिद में नहीं आता ॥७० ॥
ਉਠੁ ਫਰੀਦਾ ਉਜੂ ਸਾਜਿ ਸੁਬਹ ਨਿਵਾਜ ਗੁਜਾਰਿ ॥
"(रब की बंदगी के लिए प्रेरित करते हुए) बाबा फरीद कहते हैं कि हे भाई ! उठ, हाथ-मुँह धोकर सुबह की नमाज अदा कर।
ਜੋ ਸਿਰੁ ਸਾਂਈ ਨਾ ਨਿਵੈ ਸੋ ਸਿਰੁ ਕਪਿ ਉਤਾਰਿ ॥੭੧॥
जो सिर मालिक के आगे नहीं झुकता, उसे गर्दन से काट देना चाहिए॥७१ ॥
ਜੋ ਸਿਰੁ ਸਾਈ ਨਾ ਨਿਵੈ ਸੋ ਸਿਰੁ ਕੀਜੈ ਕਾਂਇ ॥
जो सिर मालिक के आगे नहीं झुकता, उस सिर का क्या करना चाहिए?
ਕੁੰਨੇ ਹੇਠਿ ਜਲਾਈਐ ਬਾਲਣ ਸੰਦੈ ਥਾਇ ॥੭੨॥
(स्वयं ही उत्तर देते हैं) उसको चुल्हे के नीचे ईंधन में जला देना चाहिए ॥७२॥
ਫਰੀਦਾ ਕਿਥੈ ਤੈਡੇ ਮਾਪਿਆ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹੀ ਤੂ ਜਣਿਓਹਿ ॥
बाबा फरीद समझाते हैं कि तेरे माता-पिता अब कहाँ हैं, जिन्होंने तुझे जन्म दिया था।
ਤੈ ਪਾਸਹੁ ਓਇ ਲਦਿ ਗਏ ਤੂੰ ਅਜੈ ਨ ਪਤੀਣੋਹਿ ॥੭੩॥
वे भी देखते ही देखते तुझे छोड़कर चले गए हैं, परन्तु अब भी तुझे यकीन नहीं हो रहा (तूने भी मृत्यु को ही गले लगाना है) ॥७३॥
ਫਰੀਦਾ ਮਨੁ ਮੈਦਾਨੁ ਕਰਿ ਟੋਏ ਟਿਬੇ ਲਾਹਿ ॥
बाबा फरीद कहते हैं कि ऐ मनुष्य ! अपने मन को मैदान की तरह समतल कर और ऊँचे-नीचे स्थान (द्वैत, अहंकार को) दूर कर।
ਅਗੈ ਮੂਲਿ ਨ ਆਵਸੀ ਦੋਜਕ ਸੰਦੀ ਭਾਹਿ ॥੭੪॥
फिर नरक की अग्नि तुझे जलाने के लिए नहीं आएगी॥७४ ।।
ਮਹਲਾ ੫ ॥
महला ५ ॥
ਫਰੀਦਾ ਖਾਲਕੁ ਖਲਕ ਮਹਿ ਖਲਕ ਵਸੈ ਰਬ ਮਾਹਿ ॥
पंचम गुरु उद्बोधन करते हैं, हे फरीद ! परमपिता परमेश्वर अपनी दुनिया में ही है और दुनिया परमेश्वर में बस रही है।
ਮੰਦਾ ਕਿਸ ਨੋ ਆਖੀਐ ਜਾਂ ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਕੋਈ ਨਾਹਿ ॥੭੫॥
तो फिर भला किस व्यक्ति को बुरा कहा जाए, जब उसके सिवा कोई नहीं ॥७५॥
ਫਰੀਦਾ ਜਿ ਦਿਹਿ ਨਾਲਾ ਕਪਿਆ ਜੇ ਗਲੁ ਕਪਹਿ ਚੁਖ ॥
हे फरीद ! जिस दिन धाय (दायी) ने पोषक नलिका को काटा था, यदि उस वक्त गला भी काट देती तो अच्छा होता।
ਪਵਨਿ ਨ ਇਤੀ ਮਾਮਲੇ ਸਹਾਂ ਨ ਇਤੀ ਦੁਖ ॥੭੬॥
अन्यथा आज इतनी परेशानियों का सामना न करना पड़ता, न ही इतने दुख मुझे भोगने पड़ते ॥७६॥
ਚਬਣ ਚਲਣ ਰਤੰਨ ਸੇ ਸੁਣੀਅਰ ਬਹਿ ਗਏ ॥
बुढ़ापे के कारण शरीर के सब अंग कमजोर हो गए हैं, जिस कारण दाँत खाने-चबाने, पैर चलने-फिरने, आँखें देखने से और कान सुनने से रह गए हैं।
ਹੇੜੇ ਮੁਤੀ ਧਾਹ ਸੇ ਜਾਨੀ ਚਲਿ ਗਏ ॥੭੭॥
यह देखकर शरीर विहल होकर कहता है कि मेरे सब साथी मुझे छोड़कर चले गए हैं।॥७७ ॥
ਫਰੀਦਾ ਬੁਰੇ ਦਾ ਭਲਾ ਕਰਿ ਗੁਸਾ ਮਨਿ ਨ ਹਢਾਇ ॥
बाबा फरीद उपदेश देते हुए कथन करते हैं कि हे प्राणी ! अगर कोई तेरे साथ बुरा करे तो उसका भी भला ही कर और मन में गुस्सा मत आने दे।