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ਹਾਥ ਪਾਉ ਕਰਿ ਕਾਮੁ ਸਭੁ ਚੀਤੁ ਨਿਰੰਜਨ ਨਾਲਿ ॥੨੧੩॥
हाथ-पैरों से सब काम करता हूँ और इसके साथ ही मेरा मन ईश्वर की स्मृति में लीन रहता है।॥२१३॥
ਮਹਲਾ ੫ ॥
महला ५॥
ਕਬੀਰਾ ਹਮਰਾ ਕੋ ਨਹੀ ਹਮ ਕਿਸ ਹੂ ਕੇ ਨਾਹਿ ॥
गुरु अर्जुन देव जी कबीर जी के हवाले से कहते हैं, हे कबीर ! संसार में हमारा कोई नहीं है, न ही हम किसी के साथी हैं।
ਜਿਨਿ ਇਹੁ ਰਚਨੁ ਰਚਾਇਆ ਤਿਸ ਹੀ ਮਾਹਿ ਸਮਾਹਿ ॥੨੧੪॥
जिस परमेश्वर ने सृष्टि-रचना की है, उसी में लीन होना है॥२१४ ॥
ਕਬੀਰ ਕੀਚੜਿ ਆਟਾ ਗਿਰਿ ਪਰਿਆ ਕਿਛੂ ਨ ਆਇਓ ਹਾਥ ॥
कबीर जी उपदेश देते हैं कि जगत् रूपी कीचड़ में आटा गिरने के बाद कुछ भी नहीं मिलता।
ਪੀਸਤ ਪੀਸਤ ਚਾਬਿਆ ਸੋਈ ਨਿਬਹਿਆ ਸਾਥ ॥੨੧੫॥
पीसते-पीसते जितना चबाया जाता है (अर्थात् जितना समय भक्ति-भजन में व्यतीत होता है) वही अन्त में साथ निभाता है॥२१५ ॥
ਕਬੀਰ ਮਨੁ ਜਾਨੈ ਸਭ ਬਾਤ ਜਾਨਤ ਹੀ ਅਉਗਨੁ ਕਰੈ ॥
हे कबीर ! मन अच्छा-बुरा सब जानता है, परन्तु जानकर भी गुनाह करता है।
ਕਾਹੇ ਕੀ ਕੁਸਲਾਤ ਹਾਥਿ ਦੀਪੁ ਕੂਏ ਪਰੈ ॥੨੧੬॥
जिसके हाथ में दीया होने के बावजूद कुंए में गिर जाए तो उसका कैसे भला होगा ॥२१६॥
ਕਬੀਰ ਲਾਗੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸੁਜਾਨ ਸਿਉ ਬਰਜੈ ਲੋਗੁ ਅਜਾਨੁ ॥
हे कबीर ! हमारी तो सज्जन प्रभु से ही प्रीति लगी हुई है परन्तु नासमझ लोग हमें उसकी आराधना से रोक रहे हैं।
ਤਾ ਸਿਉ ਟੂਟੀ ਕਿਉ ਬਨੈ ਜਾ ਕੇ ਜੀਅ ਪਰਾਨ ॥੨੧੭॥
जिसने यह जीवन-प्राण दिए हैं, उससे प्रेम तोड़ने के बाद कैसे जुड़ सकता है॥ २१७ ॥
ਕਬੀਰ ਕੋਠੇ ਮੰਡਪ ਹੇਤੁ ਕਰਿ ਕਾਹੇ ਮਰਹੁ ਸਵਾਰਿ ॥
कबीर जी उपदेश देते हैं केि लोग अपने घरों-मकानों से प्रेम करके उनको संवारने में फंसे हुए हैं।
ਕਾਰਜੁ ਸਾਢੇ ਤੀਨਿ ਹਥ ਘਨੀ ਤ ਪਉਨੇ ਚਾਰਿ ॥੨੧੮॥
परन्तु मरणोपरांत साढ़े तीन हाथ अथवा ज्यादा से ज्यादा पौने चार हाथ कब्र ने ही नसीब होना है॥२१८ ॥
ਕਬੀਰ ਜੋ ਮੈ ਚਿਤਵਉ ਨਾ ਕਰੈ ਕਿਆ ਮੇਰੇ ਚਿਤਵੇ ਹੋਇ ॥
कबीर जी कहते हैं कि जो में सोचता हूँ, वह परमात्मा नहीं करता, फिर भला मेरे सोचने से क्या हो सकता है।
ਅਪਨਾ ਚਿਤਵਿਆ ਹਰਿ ਕਰੈ ਜੋ ਮੇਰੇ ਚਿਤਿ ਨ ਹੋਇ ॥੨੧੯॥
परमात्मा अपनी मजों से वही करता है, जो मेरे मन में याद तक नहीं होता ॥२१६ ॥
ਮਃ ੩ ॥
महला ३॥
ਚਿੰਤਾ ਭਿ ਆਪਿ ਕਰਾਇਸੀ ਅਚਿੰਤੁ ਭਿ ਆਪੇ ਦੇਇ ॥
ईश्वर स्वयं ही चिंता में डालता है और स्वयं ही जीवों को चिंतामुक्त कर देता है।
ਨਾਨਕ ਸੋ ਸਾਲਾਹੀਐ ਜਿ ਸਭਨਾ ਸਾਰ ਕਰੇਇ ॥੨੨੦॥
गुरु नानक अनुरोध करते हैं कि उस मालिक की सराहना करो, जो पूरी दुनिया की देखभाल कर रहा है॥ २२० ॥
ਮਃ ੫ ॥
महला ५ ॥
ਕਬੀਰ ਰਾਮੁ ਨ ਚੇਤਿਓ ਫਿਰਿਆ ਲਾਲਚ ਮਾਹਿ ॥
पंचम गुरु कबीर जी के संदर्भ में कहते हैं-हे कबीर ! जीव परमात्मा का चिंतन नहीं करता और लोभ-लालच में भटकता फिरता है।
ਪਾਪ ਕਰੰਤਾ ਮਰਿ ਗਇਆ ਅਉਧ ਪੁਨੀ ਖਿਨ ਮਾਹਿ ॥੨੨੧॥
पाप कर्म करते जीवनावधि पूरी हो जाती है और वह मौत को प्यारा हो जाता है॥ २२१ ॥
ਕਬੀਰ ਕਾਇਆ ਕਾਚੀ ਕਾਰਵੀ ਕੇਵਲ ਕਾਚੀ ਧਾਤੁ ॥
कबीर जी कहते हैं कि यह शरीर कच्ची मटकी है, केवल कच्ची धातु से बना हुआ है।
ਸਾਬਤੁ ਰਖਹਿ ਤ ਰਾਮ ਭਜੁ ਨਾਹਿ ਤ ਬਿਨਠੀ ਬਾਤ ॥੨੨੨॥
यदि इसे ठीकठाक रखना है तो राम भजन कर लो, अन्यथा इसे नाशवान ही मानो ॥ २२२ ॥
ਕਬੀਰ ਕੇਸੋ ਕੇਸੋ ਕੂਕੀਐ ਨ ਸੋਈਐ ਅਸਾਰ ॥
कबीर जी समझाते हैं कि भगवान का भजन करते रहो, बेपरवाह होकर सोना नहीं चाहिए।
ਰਾਤਿ ਦਿਵਸ ਕੇ ਕੂਕਨੇ ਕਬਹੂ ਕੇ ਸੁਨੈ ਪੁਕਾਰ ॥੨੨੩॥
रात-दिन भजन करने से कभी न कभी तो वह हमारी पुकार सुन ही लेगा ॥ २२३॥
ਕਬੀਰ ਕਾਇਆ ਕਜਲੀ ਬਨੁ ਭਇਆ ਮਨੁ ਕੁੰਚਰੁ ਮਯ ਮੰਤੁ ॥
हे कबीर ! यह शरीर काला (घनघोर) वन समान बना हुआ है, जिसमें मन रूपी एक मदमस्त हाथी है।
ਅੰਕਸੁ ਗ੍ਯ੍ਯਾਨੁ ਰਤਨੁ ਹੈ ਖੇਵਟੁ ਬਿਰਲਾ ਸੰਤੁ ॥੨੨੪॥
इस मस्त हाथी को काबू करने वाला ज्ञान रूपी अंकुश है, जिसे कोई विरला संत ही काबू में रखता है॥ २२४ ॥
ਕਬੀਰ ਰਾਮ ਰਤਨੁ ਮੁਖੁ ਕੋਥਰੀ ਪਾਰਖ ਆਗੈ ਖੋਲਿ ॥
हे कबीर ! राम नाम रूपी बहुमूल्य पोटली को किसी पारखी के सन्मुख ही खोलो।
ਕੋਈ ਆਇ ਮਿਲੈਗੋ ਗਾਹਕੀ ਲੇਗੋ ਮਹਗੇ ਮੋਲਿ ॥੨੨੫॥
इसे खरीदने के लिए कोई ग्राहक आ जाएगा तो महँगे मूल्य पर लेगा ॥ २२५॥
ਕਬੀਰ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਜਾਨਿਓ ਨਹੀ ਪਾਲਿਓ ਕਟਕੁ ਕੁਟੰਬੁ ॥
हे कबीर ! व्यक्ति अपने पूरे परिवार का पालन-पोषण करता रहता है, परन्तु ईश्वर का मनन नहीं करता।
ਧੰਧੇ ਹੀ ਮਹਿ ਮਰਿ ਗਇਓ ਬਾਹਰਿ ਭਈ ਨ ਬੰਬ ॥੨੨੬॥
संसारिक काम-धंधों में ही वह दम तोड़ देता है, पर किसी को पता नहीं चलता कि कब संसार छोड़ गया ॥ २२६ ॥
ਕਬੀਰ ਆਖੀ ਕੇਰੇ ਮਾਟੁਕੇ ਪਲੁ ਪਲੁ ਗਈ ਬਿਹਾਇ ॥
कबीर जी कथन करते हैं- ऑख झपकने में ही पल-पल करके व्यक्ति की उम्र बीत जाती है।
ਮਨੁ ਜੰਜਾਲੁ ਨ ਛੋਡਈ ਜਮ ਦੀਆ ਦਮਾਮਾ ਆਇ ॥੨੨੭॥
परन्तु फिर भी मन संसार के बन्धनों को नहीं छोड़ता, अंततः मौत का संदेश आ जाता है॥ २२७॥
ਕਬੀਰ ਤਰਵਰ ਰੂਪੀ ਰਾਮੁ ਹੈ ਫਲ ਰੂਪੀ ਬੈਰਾਗੁ ॥
कबीर जी कथन करते हैं- परमात्मा वृक्ष की तरह है और वैराग्य उसका फल है।
ਛਾਇਆ ਰੂਪੀ ਸਾਧੁ ਹੈ ਜਿਨਿ ਤਜਿਆ ਬਾਦੁ ਬਿਬਾਦੁ ॥੨੨੮॥
साधु महात्मा उस वृक्ष की छाया हैं, जिन्होंने संसार के सब वाद-विवाद छोड़ दिए हैं।॥ २२८ ॥
ਕਬੀਰ ਐਸਾ ਬੀਜੁ ਬੋਇ ਬਾਰਹ ਮਾਸ ਫਲੰਤ ॥
कबीर जी उपदेश देते हैं कि ऐसा बीज बोओ, जिससे बारह महीने फल मिलता रहे।
ਸੀਤਲ ਛਾਇਆ ਗਹਿਰ ਫਲ ਪੰਖੀ ਕੇਲ ਕਰੰਤ ॥੨੨੯॥
जिस वृक्ष की छाया ठण्डी एवं गहरा फल हो, पक्षी उस पर बैठकर आनंद करते रहें।॥ २२६ ॥
ਕਬੀਰ ਦਾਤਾ ਤਰਵਰੁ ਦਯਾ ਫਲੁ ਉਪਕਾਰੀ ਜੀਵੰਤ ॥
हे कबीर ! दाता-परमेश्वर एक पेड़ समान है, जिसे दया का फल लगा हुआ है, वह उपकार करने वाला चिरंजीव है।
ਪੰਖੀ ਚਲੇ ਦਿਸਾਵਰੀ ਬਿਰਖਾ ਸੁਫਲ ਫਲੰਤ ॥੨੩੦॥
साधुजन रूपी पक्षी अन्य देशों को चले जाते हैं और प्रार्थना करते हैं कि हे सुखमयी पेड़ ! तू सदा फलता फूलता रहे॥ २३०॥
ਕਬੀਰ ਸਾਧੂ ਸੰਗੁ ਪਰਾਪਤੀ ਲਿਖਿਆ ਹੋਇ ਲਿਲਾਟ ॥
हे कबीर ! जिसके माथे पर उत्तम भाग्य लिखा होता है, उसे ही साधु पुरुषों की संगत प्राप्त होती है।