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ਬਿਨੁ ਸੰਗਤਿ ਇਉ ਮਾਂਨਈ ਹੋਇ ਗਈ ਭਠ ਛਾਰ ॥੧੯੫॥
इस तरह मानो जैसे भट्टी में पड़कर वस्तु जलकर राख हो जाती है, सत्संग के बिना व्यक्ति कुसंगति में नष्ट हो जाता है॥१६५॥
ਕਬੀਰ ਨਿਰਮਲ ਬੂੰਦ ਅਕਾਸ ਕੀ ਲੀਨੀ ਭੂਮਿ ਮਿਲਾਇ ॥
हे कबीर ! आकाश की निर्मल बूंद यदि भूमि में मिला ली जाए तो वह धरती से अलग नहीं की जा सकती।
ਅਨਿਕ ਸਿਆਨੇ ਪਚਿ ਗਏ ਨਾ ਨਿਰਵਾਰੀ ਜਾਇ ॥੧੯੬॥
अनेकों चतुर लोग मर खप जाते हैं परन्तु शिक्षा रूपी बूंद के असर में फर्क नहीं पड़ता II १६६II
ਕਬੀਰ ਹਜ ਕਾਬੇ ਹਉ ਜਾਇ ਥਾ ਆਗੈ ਮਿਲਿਆ ਖੁਦਾਇ ॥
कबीर जी कथन करते हैं कि मैं हज्ज करने के लिए काबे में जा रहा था कि आगे मुझे खुदा मिल गया।
ਸਾਂਈ ਮੁਝ ਸਿਉ ਲਰਿ ਪਰਿਆ ਤੁਝੈ ਕਿਨ੍ਹ੍ਹਿ ਫੁਰਮਾਈ ਗਾਇ ॥੧੯੭॥
वह मालिक तो मेरे साथ झगड़ा करने लग गया और उसने कहा कि यह तुझे किसने फुरमाया है कि मैं काबे में ही हूँ॥१६७ ॥
ਕਬੀਰ ਹਜ ਕਾਬੈ ਹੋਇ ਹੋਇ ਗਇਆ ਕੇਤੀ ਬਾਰ ਕਬੀਰ ॥
कबीर जी कहते हैं कि मैं कई बार काबे में हज्ज करने के लिया गया परन्तु
ਸਾਂਈ ਮੁਝ ਮਹਿ ਕਿਆ ਖਤਾ ਮੁਖਹੁ ਨ ਬੋਲੈ ਪੀਰ ॥੧੯੮॥
हे सांई ! मुझ से क्या गलती हो गई जो काबे का पीर (खुदा) मुँह से नहीं बोलता ॥१६८ ॥
ਕਬੀਰ ਜੀਅ ਜੁ ਮਾਰਹਿ ਜੋਰੁ ਕਰਿ ਕਹਤੇ ਹਹਿ ਜੁ ਹਲਾਲੁ ॥
कबीर जी कहते हैं कि जो लोग बलपूर्वक जीव-हत्या करते हैं और उसको हलाल कहते हैं,
ਦਫਤਰੁ ਦਈ ਜਬ ਕਾਢਿ ਹੈ ਹੋਇਗਾ ਕਉਨੁ ਹਵਾਲੁ ॥੧੯੯॥
ऐसे लोगों का तब क्या हाल होगा, जब खुदा की अदालत में कमों का हिसाब मांगा जाएगा ॥१६६ ॥
ਕਬੀਰ ਜੋਰੁ ਕੀਆ ਸੋ ਜੁਲਮੁ ਹੈ ਲੇਇ ਜਬਾਬੁ ਖੁਦਾਇ ॥
कबीर जी कहते हैं कि किसी पर जोर-जबरदस्ती करना जुल्म है, इसका जवाब खुदा अवश्य मांगेगा।
ਦਫਤਰਿ ਲੇਖਾ ਨੀਕਸੈ ਮਾਰ ਮੁਹੈ ਮੁਹਿ ਖਾਇ ॥੨੦੦॥
जब खुदा के दरबार में कर्मों का हिसाब होगा तो बुरे कर्मों की सजा अवश्य मिलेगी ॥ २०० ॥
ਕਬੀਰ ਲੇਖਾ ਦੇਨਾ ਸੁਹੇਲਾ ਜਉ ਦਿਲ ਸੂਚੀ ਹੋਇ ॥
हे कबीर ! यदि दिल साफ हो तो हिसाब देना आसान हो जाता है।
ਉਸੁ ਸਾਚੇ ਦੀਬਾਨ ਮਹਿ ਪਲਾ ਨ ਪਕਰੈ ਕੋਇ ॥੨੦੧॥
प्रभु के सच्चे दरबार में फिर कोई पूछताछ नहीं होती ॥२०१॥
ਕਬੀਰ ਧਰਤੀ ਅਰੁ ਆਕਾਸ ਮਹਿ ਦੁਇ ਤੂੰ ਬਰੀ ਅਬਧ ॥
कबीर जी कहते हैं कि धरती और आकाश सम्पूर्ण सृष्टि में हे द्वैतभाव ! तू ही नाशरहित होकर फैली हुई है।
ਖਟ ਦਰਸਨ ਸੰਸੇ ਪਰੇ ਅਰੁ ਚਉਰਾਸੀਹ ਸਿਧ ॥੨੦੨॥
छ:दर्शन-योगी, सन्यासी, वैरागी, वैष्णव इत्यादि और चौरासी सिद्ध भी संशय में पड़े हुए हैं कि द्वेतभाव से किस तरह बचा जाए॥ २०२ ॥
ਕਬੀਰ ਮੇਰਾ ਮੁਝ ਮਹਿ ਕਿਛੁ ਨਹੀ ਜੋ ਕਿਛੁ ਹੈ ਸੋ ਤੇਰਾ
कबीर जी विनयपूर्वक कहते हैं कि हे ईश्वर ! मेरा मुझ में अपना कुछ नहीं, जो कुछ है, सब तेरा ही दिया हुआ है।
ਤੇਰਾ ਤੁਝ ਕਉ ਸਉਪਤੇ ਕਿਆ ਲਾਗੈ ਮੇਰਾ ॥੨੦੩॥
अब यदि तेरी चीज़ तुझ को सौंप ही दूँ तो मेरा कोई नुक्सान नहीं ॥२०३॥
ਕਬੀਰ ਤੂੰ ਤੂੰ ਕਰਤਾ ਤੂ ਹੂਆ ਮੁਝ ਮਹਿ ਰਹਾ ਨ ਹੂੰ ॥
कबीर जी कहते हैं कि हे जगदीश्वर ! तू तू (तेरा स्तुतिगान) करता मैं तेरा ही रूप हो गया हूँ, अब मुझ में अहम् नहीं रहा।
ਜਬ ਆਪਾ ਪਰ ਕਾ ਮਿਟਿ ਗਇਆ ਜਤ ਦੇਖਉ ਤਤ ਤੂ ॥੨੦੪॥
जब मेरा अपना-परायापन मिट गया तो जिधर देखता हूँ, वहाँ तू ही दिखाई देता है॥ २०४॥
ਕਬੀਰ ਬਿਕਾਰਹ ਚਿਤਵਤੇ ਝੂਠੇ ਕਰਤੇ ਆਸ ॥
कबीर जी कहते हैं कि लोग पाप-विकारों को सोचते हैं और झूठी आशाओं में लीन रहते हैं।
ਮਨੋਰਥੁ ਕੋਇ ਨ ਪੂਰਿਓ ਚਾਲੇ ਊਠਿ ਨਿਰਾਸ ॥੨੦੫॥
उनका कोई मनोरथ पूरा नहीं होता और वे जीवन से निराश ही चले जाते हैं।॥ २०५॥
ਕਬੀਰ ਹਰਿ ਕਾ ਸਿਮਰਨੁ ਜੋ ਕਰੈ ਸੋ ਸੁਖੀਆ ਸੰਸਾਰਿ ॥
हे कबीर ! जो परमात्मा का सिमरन करता है, वही संसार में सुखी रहता है।
ਇਤ ਉਤ ਕਤਹਿ ਨ ਡੋਲਈ ਜਿਸ ਰਾਖੈ ਸਿਰਜਨਹਾਰ ॥੨੦੬॥
जिसकी रक्षा सृजनहार करता है, वह इधर-उधर बिल्कुल नहीं डोलता ॥ २०६॥
ਕਬੀਰ ਘਾਣੀ ਪੀੜਤੇ ਸਤਿਗੁਰ ਲੀਏ ਛਡਾਇ ॥
हे कबीर ! पापों की घानी में मुझे भी पेर दिया जाता, सतगुरु ने इससे बचा लिया है।
ਪਰਾ ਪੂਰਬਲੀ ਭਾਵਨੀ ਪਰਗਟੁ ਹੋਈ ਆਇ ॥੨੦੭॥
पूर्व जन्म की श्रद्धा-भक्ति का फल प्राप्त हुआ है॥ २०७॥
ਕਬੀਰ ਟਾਲੈ ਟੋਲੈ ਦਿਨੁ ਗਇਆ ਬਿਆਜੁ ਬਢੰਤਉ ਜਾਇ ॥
हे कबीर ! टालमटोल करते जिन्दगी के दिन गुजर जाते हैं और विकारों पर और विकारों का ब्याज बढ़ता जाता है।
ਨਾ ਹਰਿ ਭਜਿਓ ਨ ਖਤੁ ਫਟਿਓ ਕਾਲੁ ਪਹੂੰਚੋ ਆਇ ॥੨੦੮॥
न परमात्मा का भजन किया, न ही किए कर्मों का हिसाब खत्म होता है और मौत सिर पर खड़ी हो जाती है॥ २०८॥
ਮਹਲਾ ੫ ॥
महला ५ ॥
ਕਬੀਰ ਕੂਕਰੁ ਭਉਕਨਾ ਕਰੰਗ ਪਿਛੈ ਉਠਿ ਧਾਇ ॥
पंचम गुरु, कबीर जी के संदर्भ में कहते हैं- हे कबीर ! मन रूपी कुत्ता बहुत भौंकता है और लालच में आकर हराम की चीज़ों के पीछे दौड़ता है।
ਕਰਮੀ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ਜਿਨਿ ਹਉ ਲੀਆ ਛਡਾਇ ॥੨੦੯॥
उत्तम भाग्य से सतगुरु को पा लिया है, जिसने मोह-माया से हमें बचा लिया है॥ २०६ ॥
ਮਹਲਾ ੫ ॥
महला ५॥
ਕਬੀਰ ਧਰਤੀ ਸਾਧ ਕੀ ਤਸਕਰ ਬੈਸਹਿ ਗਾਹਿ ॥
हे कबीर ! यदि साधु महात्मा जनों की धरती (सत्संग) पर चोर-लुटेरे बैठ भी जाएँ तो
ਧਰਤੀ ਭਾਰਿ ਨ ਬਿਆਪਈ ਉਨ ਕਉ ਲਾਹੂ ਲਾਹਿ ॥੨੧੦॥
धरती (सत्संग) को उनके भार से कोई फर्क नहीं पड़ता, पर अच्छी संगत के कारण चोर-लुटेरे लाभ ही पाते हैं॥ २१० ॥
ਮਹਲਾ ੫ ॥
महला ५॥
ਕਬੀਰ ਚਾਵਲ ਕਾਰਨੇ ਤੁਖ ਕਉ ਮੁਹਲੀ ਲਾਇ ॥
गुरु जी कबीर जी के हवाले से कहते हैं- हे कबीर ! जिस प्रकार चावलों के कारण छिलकों को मूसल से पीटा जाता है।
ਸੰਗਿ ਕੁਸੰਗੀ ਬੈਸਤੇ ਤਬ ਪੂਛੈ ਧਰਮ ਰਾਇ ॥੨੧੧॥
वैसे ही बुरी संगत में बैठने वाले भले पुरुष से भी घर्मराज पूछताछ करता है॥ २११ ॥
ਨਾਮਾ ਮਾਇਆ ਮੋਹਿਆ ਕਹੈ ਤਿਲੋਚਨੁ ਮੀਤ ॥
त्रिलोचन भक्त अपने मित्र नामदेव जी से कहते हैं, हे मित्र ! किसलिए माया के मोह में उलझे हुए हो,
ਕਾਹੇ ਛੀਪਹੁ ਛਾਇਲੈ ਰਾਮ ਨ ਲਾਵਹੁ ਚੀਤੁ ॥੨੧੨॥
तुम इन कपड़ों को छीवने में लगे हुए हो, अपना मन ईश्वर-भजन में क्यों नहीं लगा रहे ॥२१२ ॥
ਨਾਮਾ ਕਹੈ ਤਿਲੋਚਨਾ ਮੁਖ ਤੇ ਰਾਮੁ ਸੰਮ੍ਹ੍ਹਾਲਿ ॥
नामदेव जी प्रत्युत्तर देते हैं- हे त्रिलोचन ! मैं अपने मुँह से परमात्मा का नाम जपता रहता हूँ