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ਬ੍ਰਹਮਣਹ ਸੰਗਿ ਉਧਰਣੰ ਬ੍ਰਹਮ ਕਰਮ ਜਿ ਪੂਰਣਹ ॥
उसी ब्राह्मण की संगत में उद्धार हो सकता है, जो ब्रह्म कर्म में पूर्ण हो।
ਆਤਮ ਰਤੰ ਸੰਸਾਰ ਗਹੰ ਤੇ ਨਰ ਨਾਨਕ ਨਿਹਫਲਹ ॥੬੫॥
हे नानक ! जिसका मन संसार में लीन रहता है, ऐसा व्यक्ति निष्फल चला जाता है॥ ६५॥
ਪਰ ਦਰਬ ਹਿਰਣੰ ਬਹੁ ਵਿਘਨ ਕਰਣੰ ਉਚਰਣੰ ਸਰਬ ਜੀਅ ਕਹ ॥
जो लोग पराया धन छीनते हैं, बहुत विध्न उत्पन्न करते हैं, अपने निर्वाह के लिए शिक्षा देते हैं, इसे ले लूं।
ਲਉ ਲਈ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਅਤਿਪਤਿ ਮਨ ਮਾਏ ਕਰਮ ਕਰਤ ਸਿ ਸੂਕਰਹ ॥੬੬॥
जिनकी तृष्णा समाप्त नहीं होती, मन माया में लीन रहता है।ऐसे कर्म करने वाले सूअर समान हैं।॥ ६६॥
ਮਤੇ ਸਮੇਵ ਚਰਣੰ ਉਧਰਣੰ ਭੈ ਦੁਤਰਹ ॥
जो व्यक्ति भगवान के चरणों में समाए रहते हैं, वे भयानक दुस्तर संसार-सागर से पार हो जाते हैं।
ਅਨੇਕ ਪਾਤਿਕ ਹਰਣੰ ਨਾਨਕ ਸਾਧ ਸੰਗਮ ਨ ਸੰਸਯਹ ॥੬੭॥੪॥
गुरु नानक फुरमाते हैं- इसमें कोई शक नहीं, साधुओं की संगत में अनेकों पाप-दोष हरण हो जाते हैं।॥ ६७॥ ४॥
ਮਹਲਾ ੫ ਗਾਥਾ
महला ५ गाथा
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
वह परमात्मा केवल एक (ऑकार-स्वरूप) है, सतगुरु की कृपा से प्राप्ति होती है।
ਕਰਪੂਰ ਪੁਹਪ ਸੁਗੰਧਾ ਪਰਸ ਮਾਨੁਖੵ ਦੇਹੰ ਮਲੀਣੰ ॥
कपूर, पुष्प एवं अन्य सुगन्धियाँ मनुष्य के शरीर का स्पर्श करने से मलिन हो जाती हैं।
ਮਜਾ ਰੁਧਿਰ ਦ੍ਰੁਗੰਧਾ ਨਾਨਕ ਅਥਿ ਗਰਬੇਣ ਅਗੵਾਨਣੋ ॥੧॥
गुरु नानक फुरमाते हैं- शरीर मज्जा, लहू तथा दुर्गन्ध से भरा हुआ है तो भी अज्ञानी मनुष्य इस पर अहंकार ही करता है॥ १॥
ਪਰਮਾਣੋ ਪਰਜੰਤ ਆਕਾਸਹ ਦੀਪ ਲੋਅ ਸਿਖੰਡਣਹ ॥
यदि मनुष्य में इतनी समर्था हो कि वह परमाणु की तरह अणु बनकर आकाश तक सभी द्वीपों, लोकों एवं खण्डों से पल भर में भ्रमण करके ही आ जाए तो भी हे नानक ! साधुओं का संग किए बिना उसका उद्धार नहीं होता॥ २॥
ਗਛੇਣ ਨੈਣ ਭਾਰੇਣ ਨਾਨਕ ਬਿਨਾ ਸਾਧੂ ਨ ਸਿਧੵਤੇ ॥੨॥
हे संसार के लोगो ! इस सच्चाई को मान लो, मृत्यु निश्चय है, जो कुछ भी दिखाई दे रहा है, सब झूठा है।
ਜਾਣੋ ਸਤਿ ਹੋਵੰਤੋ ਮਰਣੋ ਦ੍ਰਿਸਟੇਣ ਮਿਥਿਆ ॥
नानक प्रार्थना करते हैं कि साधु पुरुषों के साथ परमात्मा का कीर्तिगान ही साथ चलता है॥ ३॥
ਕੀਰਤਿ ਸਾਥਿ ਚਲੰਥੋ ਭਣੰਤਿ ਨਾਨਕ ਸਾਧ ਸੰਗੇਣ ॥੩॥
माया ने तो मन को इष्ट मित्रों एवं बन्धुओं में भटका रखा है।
ਮਾਯਾ ਚਿਤ ਭਰਮੇਣ ਇਸਟ ਮਿਤ੍ਰੇਖੁ ਬਾਂਧਵਹ ॥
हे नानक ! सुख का स्थान केवल साधुओं के साथ परमात्मा के भजन से ही मिलता है।॥ ४॥
ਲਬਧੵੰ ਸਾਧ ਸੰਗੇਣ ਨਾਨਕ ਸੁਖ ਅਸਥਾਨੰ ਗੋਪਾਲ ਭਜਣੰ ॥੪॥
चन्दन के संग रहकर नीम का वृक्ष भी चन्दन सरीखा खुशबूदार हो जाता है।
ਮੈਲਾਗਰ ਸੰਗੇਣ ਨਿੰਮੁ ਬਿਰਖ ਸਿ ਚੰਦਨਹ ॥
हे नानक ! इसके विपरीत निकट रहने वाला बांस अहंकार के कारण महकदार नहीं होता॥ ५॥
ਨਿਕਟਿ ਬਸੰਤੋ ਬਾਂਸੋ ਨਾਨਕ ਅਹੰ ਬੁਧਿ ਨ ਬੋਹਤੇ ॥੫॥
इस ‘गाथा' में ईश्वर-स्तुति गूंथी हुई है, इसका मनन करने से मान-अभिमान सब खत्म हो जाते हैं।
ਗਾਥਾ ਗੁੰਫ ਗੋਪਾਲ ਕਥੰ ਮਥੰ ਮਾਨ ਮਰਦਨਹ ॥
हे नानक ! हरिनाम रूपी बाण के प्रहार से कामादिक पाँच शत्रुओं का अंत हो जाता है॥ ६॥
ਹਤੰ ਪੰਚ ਸਤ੍ਰੇਣ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਬਾਣੇ ਪ੍ਰਹਾਰਣਹ ॥੬॥
साधुओं के वचन से भाग्यशाली लोगों को ही सुख का रास्ता प्राप्त होता है।
ਬਚਨ ਸਾਧ ਸੁਖ ਪੰਥਾ ਲਹੰਥਾ ਬਡ ਕਰਮਣਹ ॥
हे नानक ! हरि का कीर्तन करने से जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा हो जाता है॥ ७॥
ਰਹੰਤਾ ਜਨਮ ਮਰਣੇਨ ਰਮਣੰ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨਹ ॥੭॥
जैसे पेड़ के पत्र टूटकर झड़ जाते हैं और दोबारा पेड़ की शाखा के साथ नहीं लगते।
ਪਤ੍ਰ ਭੁਰਿਜੇਣ ਝੜੀਯੰ ਨਹ ਜੜੀਅੰ ਪੇਡ ਸੰਪਤਾ ॥
इसी तरह हे नानक ! हरिनाम से विहीन व्यक्ति कष्ट ही भोगते हैं और दिन-रात योनियों के चक्र काटते हैं॥ ८॥
ਨਾਮ ਬਿਹੂਣ ਬਿਖਮਤਾ ਨਾਨਕ ਬਹੰਤਿ ਜੋਨਿ ਬਾਸਰੋ ਰੈਣੀ ॥੮॥
अहोभाग्य से साधुओं की संगत में प्रभु-भक्ति प्राप्त होती है।
ਭਾਵਨੀ ਸਾਧ ਸੰਗੇਣ ਲਭੰਤੰ ਬਡ ਭਾਗਣਹ ॥
हे नानक ! ईश्वर का गुणानुवाद करने से संसार-सागर का कष्ट प्रभावित नहीं करता॥ ६॥
ਹਰਿ ਨਾਮ ਗੁਣ ਰਮਣੰ ਨਾਨਕ ਸੰਸਾਰ ਸਾਗਰ ਨਹ ਬਿਆਪਣਹ ॥੯॥
गहरी-अपार गाथा' को कोई विरला पुरुष ही समझता है।
ਗਾਥਾ ਗੂੜ ਅਪਾਰੰ ਸਮਝਣੰ ਬਿਰਲਾ ਜਨਹ ॥
हे नानक ! वह संसार की कामनाओं को छोड़कर साधुओं के संग ईशोपासना में ही लीन रहता है॥ १०॥
ਸੰਸਾਰ ਕਾਮ ਤਜਣੰ ਨਾਨਕ ਗੋਬਿੰਦ ਰਮਣੰ ਸਾਧ ਸੰਗਮਹ ॥੧੦॥
साधुओं के वचन उत्तम मंत्र हैं, जो करोड़ों दोषों का नाश कर देते हैं।
ਸੁਮੰਤ੍ਰ ਸਾਧ ਬਚਨਾ ਕੋਟਿ ਦੋਖ ਬਿਨਾਸਨਹ ॥
हे नानक ! परमात्मा के चरण-कमल का ध्यान समूची वंशावलि का उद्धार कर देता है।॥ ११॥
ਹਰਿ ਚਰਣ ਕਮਲ ਧੵਾਨੰ ਨਾਨਕ ਕੁਲ ਸਮੂਹ ਉਧਾਰਣਹ ॥੧੧॥
जहाँ परमात्मा का कीर्तिगान होता है, वास्तव में वही घर सुन्दर है।
ਸੁੰਦਰ ਮੰਦਰ ਸੈਣਹ ਜੇਣ ਮਧੵ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨਹ ॥
प्रभु का भजन करने वाले मुक्त हो जाते हैं, हे नानक ! (प्रभु-भजन) भाग्यशाली को ही प्राप्त होता है॥ १२॥
ਮੁਕਤੇ ਰਮਣ ਗੋਬਿੰਦਹ ਨਾਨਕ ਲਬਧੵੰ ਬਡ ਭਾਗਣਹ ॥੧੨॥
हमें परम मित्र ईश्वर मिल गया है,
ਹਰਿ ਲਬਧੋ ਮਿਤ੍ਰ ਸੁਮਿਤੋ ॥
वह कभी हमारा दिल नहीं तोड़ता।
ਬਿਦਾਰਣ ਕਦੇ ਨ ਚਿਤੋ ॥
जिसका स्थान अतुलनीय एवं अमिट है,
ਜਾ ਕਾ ਅਸਥਲੁ ਤੋਲੁ ਅਮਿਤੋ ॥
हे नानक ! उसे ही मन से साथी बना लिया है॥ १३॥
ਸੋੁਈ ਨਾਨਕ ਸਖਾ ਜੀਅ ਸੰਗਿ ਕਿਤੋ ॥੧੩॥
ज्यों नेक पुत्र के कारण अपयश मिट जाता है,
ਅਪਜਸੰ ਮਿਟੰਤ ਸਤ ਪੁਤ੍ਰਹ ॥
वैसे ही गुरु के उपदेश से हृदय में प्रभु का स्मरण करने से सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
ਸਿਮਰਤਬੵ ਰਿਦੈ ਗੁਰ ਮੰਤ੍ਰਣਹ ॥