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ਜੇਨ ਕਲਾ ਮਾਤ ਗਰਭ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲੰ ਨਹ ਛੇਦੰਤ ਜਠਰ ਰੋਗਣਹ ॥
जिसकी शक्ति द्वारा माता के गर्भ में पालन होता है और पेट के रोग तकलीफ नहीं पहुँचाते।
ਤੇਨ ਕਲਾ ਅਸਥੰਭੰ ਸਰੋਵਰੰ ਨਾਨਕ ਨਹ ਛਿਜੰਤਿ ਤਰੰਗ ਤੋਯਣਹ ॥੫੩॥
नानक का फुरमान है कि उस परमात्मा की शक्ति से संसार-सागर स्थित है, उस सागर के जल की लहरें हमें नुक्सान नहीं पहुँचाती॥ ५३॥
ਗੁਸਾਂਈ ਗਰਿਸ੍ਟ ਰੂਪੇਣ ਸਿਮਰਣੰ ਸਰਬਤ੍ਰ ਜੀਵਣਹ ॥
परमात्मा बहुत बड़ा है, पूजनीय है और उसका सिमरन सब लोगों का जीवन है।
ਲਬਧ੍ਯ੍ਯੰ ਸੰਤ ਸੰਗੇਣ ਨਾਨਕ ਸ੍ਵਛ ਮਾਰਗ ਹਰਿ ਭਗਤਣਹ ॥੫੪॥
नानक का जनमानस को फुरमान है कि संत पुरुषों की संगत करो, हरि-भक्ति के पावन मार्ग पर चलो, तभी उसकी लब्धि होगी॥ ५४॥
ਮਸਕੰ ਭਗਨੰਤ ਸੈਲੰ ਕਰਦਮੰ ਤਰੰਤ ਪਪੀਲਕਹ ॥
मच्छर के समान कमजोर व्यक्ति पत्थर को तोड़कर रख दे, एक छोटी-सी चींटी कीचड़ से तैर कर पार लग जाए।
ਸਾਗਰੰ ਲੰਘੰਤਿ ਪਿੰਗੰ ਤਮ ਪਰਗਾਸ ਅੰਧਕਹ ॥
लूला लंगड़ा व्यक्ति समुद्र को पार कर ले और अन्धा भी आँखों की रोशनी पा ले।
ਸਾਧ ਸੰਗੇਣਿ ਸਿਮਰੰਤਿ ਗੋਬਿੰਦ ਸਰਣਿ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰੇ ॥੫੫॥
ऐसा तो साधुओं की संगत में परमात्मा के सिमरन से ही संभव होता है, अतः नानक का फुरमान है कि हरि भजन में लीन रहो॥ ५५॥
ਤਿਲਕ ਹੀਣੰ ਜਥਾ ਬਿਪ੍ਰਾ ਅਮਰ ਹੀਣੰ ਜਥਾ ਰਾਜਨਹ ॥.
जैसे तिलक के बिना ब्राह्मण माननीय नहीं होता। जिस प्रकार अपनी अधिकार-शक्तियों के बिना राजा को कोई नहीं पूछता।
ਆਵਧ ਹੀਣੰ ਜਥਾ ਸੂਰਾ ਨਾਨਕ ਧਰਮ ਹੀਣੰ ਤਥਾ ਬੈਸ੍ਨਵਹ ॥੫੬॥
गुरु नानक फुरमान करते हैं- जैसे अस्त्र-शस्त्रों के बिना शूरवीर (शोभा का हकदार नहीं) होता है, वैसे ही धर्म से विहीन वैष्णव व्यर्थ है॥ ५६॥
ਨ ਸੰਖੰ ਨ ਚਕ੍ਰੰ ਨ ਗਦਾ ਨ ਸਿਆਮੰ ॥
न ही वह शंख, चक्र एवं गदा में है और न ही श्याम वर्ण है।
ਅਸ੍ਚਰਜ ਰੂਪੰ ਰਹੰਤ ਜਨਮੰ ॥.
उसका रूप आश्चर्य है, वह अजन्मा है।
ਨੇਤ ਨੇਤ ਕਥੰਤਿ ਬੇਦਾ ॥
वेद उसे नेति नेति कहते हैं,
ਊਚ ਮੂਚ ਅਪਾਰ ਗੋਬਿੰਦਹ ॥
अपरंपार ईश्वर बहुत बड़ा है।
ਬਸੰਤਿ ਸਾਧ ਰਿਦਯੰ ਅਚੁਤ ਬੁਝੰਤਿ ਨਾਨਕ ਬਡਭਾਗੀਅਹ ॥੫੭॥
वह सिर्फ साधुओं के ह्रदय में ही बसता है, हे नानक ! इस तथ्य को भाग्यशाली ही मानते हैं।॥ ५७॥
ਉਦਿਆਨ ਬਸਨੰ ਸੰਸਾਰੰ ਸਨਬੰਧੀ ਸ੍ਵਾਨ ਸਿਆਲ ਖਰਹ ॥
मनुष्य एक जंगल समान संसार में रहता है, जहाँ (लोभ, शैतान, मूर्ख रूपी) कुते, भेड़िए एवं गधे उसके संबंधी हैं।
ਬਿਖਮ ਸਥਾਨ ਮਨ ਮੋਹ ਮਦਿਰੰ ਮਹਾਂ ਅਸਾਧ ਪੰਚ ਤਸਕਰਹ ॥
यह एक भयानक स्थान है, मन मोह के नशे में मस्त है, जहाँ काम, क्रोध रूपी पाँच महा असाध्य तस्कर विराजमान हैं।
ਹੀਤ ਮੋਹ ਭੈ ਭਰਮ ਭ੍ਰਮਣੰ ਅਹੰ ਫਾਂਸ ਤੀਖ੍ਯ੍ਯਣ ਕਠਿਨਹ ॥
मोह, प्रेम, भय के भ्रम में लोग भटकते हैं और अहम् की फाँसी का बन्धन बहुत कठिन है।
ਪਾਵਕ ਤੋਅ ਅਸਾਧ ਘੋਰੰ ਅਗਮ ਤੀਰ ਨਹ ਲੰਘਨਹ ॥
तृष्णाग्नि एवं वासना रूपी पानी बहुत उछल रहा है, इसके किनारे से पार होना बहुत मुश्किल है।
ਭਜੁ ਸਾਧਸੰਗਿ ਗੋੁਪਾਲ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਚਰਣ ਸਰਣ ਉਧਰਣ ਕ੍ਰਿਪਾ ॥੫੮॥
संसार-सागर से पार होने के लिए बेहतर यही है कि साधु पुरुषों के साथ परमात्मा का भजन किया जाए। गुरु नानक फुरमाते हैं- प्रभु-चरणों की शरण लो, उसकी कृपा से मुक्ति निहित है॥ ५८॥
ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੰਤ ਗੋਬਿੰਦ ਗੋਪਾਲਹ ਸਗਲ੍ਯ੍ਯੰ ਰੋਗ ਖੰਡਣਹ ॥
जब परमात्मा कृपा करता है तो सब रोग नष्ट हो जाते हैं।
ਸਾਧ ਸੰਗੇਣਿ ਗੁਣ ਰਮਤ ਨਾਨਕ ਸਰਣਿ ਪੂਰਨ ਪਰਮੇਸੁਰਹ ॥੫੯॥
नानक का फुरमान है कि साधु-पुरुषों की संगत में प्रभु का गुणगान करो, उस पूर्ण परमेश्वर की शरण लो॥ ५६॥
ਸਿਆਮਲੰ ਮਧੁਰ ਮਾਨੁਖ੍ਯ੍ਯੰ ਰਿਦਯੰ ਭੂਮਿ ਵੈਰਣਹ ॥
मनुष्य निःसंकोच सुन्दर एवं मधुरभाषी हो, लेकिन यदि वह हृदय में वैर-भावना रखता हो तो उसका विनम्र होना झूठा है।
ਨਿਵੰਤਿ ਹੋਵੰਤਿ ਮਿਥਿਆ ਚੇਤਨੰ ਸੰਤ ਸ੍ਵਜਨਹ ॥੬੦॥
अतः हे सज्जनो ! ऐसे लोगों से होशियार ही रहना॥ ६०॥
ਅਚੇਤ ਮੂੜਾ ਨ ਜਾਣੰਤ ਘਟੰਤ ਸਾਸਾ ਨਿਤ ਪ੍ਰਤੇ ॥
नासमझ मूर्ख व्यक्ति यह नहीं जानता कि जीवन-साँसें प्रतिदिन घटती जा रही हैं।
ਛਿਜੰਤ ਮਹਾ ਸੁੰਦਰੀ ਕਾਂਇਆ ਕਾਲ ਕੰਨਿਆ ਗ੍ਰਾਸਤੇ ॥
महा सुन्दर शरीर टूटता जा रहा है और काल की कन्या रूप में बुढ़ापा निगलता जा रहा है।
ਰਚੰਤਿ ਪੁਰਖਹ ਕੁਟੰਬ ਲੀਲਾ ਅਨਿਤ ਆਸਾ ਬਿਖਿਆ ਬਿਨੋਦ ॥
तो भी व्यक्ति परिवार की लीला में लीन है, उसकी आशाओं में वृद्धि होती जा रही है और खेल-तमाशों में प्रवृत्त है।
ਭ੍ਰਮੰਤਿ ਭ੍ਰਮੰਤਿ ਬਹੁ ਜਨਮ ਹਾਰਿਓ ਸਰਣਿ ਨਾਨਕ ਕਰੁਣਾ ਮਯਹ ॥੬੧॥
नानक विनती करते हैं कि अनेक जन्म भटकते-भटकते हार गए हैं, अब तो करुणामय प्रभु की शरण लो।॥ ६१॥
ਹੇ ਜਿਹਬੇ ਹੇ ਰਸਗੇ ਮਧੁਰ ਪ੍ਰਿਅ ਤੁਯੰ ॥
हे जिह्म ! हे रसीली ! तुझे मीठी चीजें बहुत पसंद हैं।
ਸਤ ਹਤੰ ਪਰਮ ਬਾਦੰ ਅਵਰਤ ਏਥਹ ਸੁਧ ਅਛਰਣਹ ॥
तूने सत्य बोलना छोड़ दिया है और झगड़ों में ही लीन हो।
ਗੋਬਿੰਦ ਦਾਮੋਦਰ ਮਾਧਵੇ ॥੬੨॥
उचित तो यही है कि शुद्ध अक्षर गोविंद, दामोदर, माधव का भजन कर॥ ६२॥
ਗਰਬੰਤਿ ਨਾਰੀ ਮਦੋਨ ਮਤੰ ॥
सुन्दर नारी के मोह में मनुष्य अभिमान करता है,
ਬਲਵੰਤ ਬਲਾਤ ਕਾਰਣਹ ॥
बलवान पुरुष अपने बल के कारण घमण्ड करता है।
ਚਰਨ ਕਮਲ ਨਹ ਭਜੰਤ ਤ੍ਰਿਣ ਸਮਾਨਿ ਧ੍ਰਿਗੁ ਜਨਮਨਹ ॥
अगर परमात्मा के चरण कमल का भजन नहीं करता तो तृण समान है और उसके जीवन को धिक्कार है।
ਹੇ ਪਪੀਲਕਾ ਗ੍ਰਸਟੇ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿਮਰਣ ਤੁਯੰ ਧਨੇ ॥
हे नम्रतापूर्ण चींटी ! तू बहुत मजबूत है, क्योंकि तेरे पास गोविंद सिमरन का धन है।
ਨਾਨਕ ਅਨਿਕ ਬਾਰ ਨਮੋ ਨਮਹ ॥੬੩॥
नानक तुझे अनेक बार नमन करते हैं।॥ ६३॥
ਤ੍ਰਿਣੰ ਤ ਮੇਰੰ ਸਹਕੰ ਤ ਹਰੀਅੰ ॥
एक तिनका भी पर्वत बन जाता है, सूखा स्थान हरा-भरा हो जाता है।
ਬੂਡੰ ਤ ਤਰੀਅੰ ਊਣੰ ਤ ਭਰੀਅੰ ॥
डूब रहा व्यक्ति भी तैर जाता है, खाली भर जाता है।
ਅੰਧਕਾਰ ਕੋਟਿ ਸੂਰ ਉਜਾਰੰ ॥
अंधकार में करोड़ों सूर्य का उजाला हो जाता है
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਗੁਰ ਦਯਾਰੰ ॥੬੪॥
नानक विनती करते हैं कि, जब गुरु परमेश्वर दयालु हो जाता है।॥ ६४॥