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ਭੈ ਅਟਵੀਅੰ ਮਹਾ ਨਗਰ ਬਾਸੰ ਧਰਮ ਲਖ੍ਯ੍ਯਣ ਪ੍ਰਭ ਮਇਆ ॥
भयानक वन सरीखा क्षेत्र भी महा नगर में बदल जाता है। ऐसे धर्म के लक्षण तो प्रभु की कृपा से प्राप्त होते हैं।
ਸਾਧ ਸੰਗਮ ਰਾਮ ਰਾਮ ਰਮਣੰ ਸਰਣਿ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਹਰਿ ਦਯਾਲ ਚਰਣੰ ॥੪੪॥
साधुओं की शरण में राम-राम का मंत्र जपना चाहिए। हे नानक ! दयालु प्रभु के चरणों में सब संभव है॥ ४४॥
ਹੇ ਅਜਿਤ ਸੂਰ ਸੰਗ੍ਰਾਮੰ ਅਤਿ ਬਲਨਾ ਬਹੁ ਮਰਦਨਹ ॥
हे (मोह )अजय महायोद्धा ! तू इतना शक्तिशाली है कि तूने बड़े-बड़े वीरों का मर्दन कर दिया है।
ਗਣ ਗੰਧਰਬ ਦੇਵ ਮਾਨੁਖ੍ਯ੍ਯੰ ਪਸੁ ਪੰਖੀ ਬਿਮੋਹਨਹ ॥
गण-गंधर्व, देवता, मनुष्य एवं पशु-पक्षियों को भी मोहित कर लिया है।
ਹਰਿ ਕਰਣਹਾਰੰ ਨਮਸਕਾਰੰ ਸਰਣਿ ਨਾਨਕ ਜਗਦੀਸ੍ਵਰਹ ॥੪੫॥
नानक का कथन है कि उस सर्वकर्ता ईश्वर को हमारा कोटि-कोटि नमस्कार है, हम उस जगदीश्वर की शरण में हैं॥ ४५॥
ਹੇ ਕਾਮੰ ਨਰਕ ਬਿਸ੍ਰਾਮੰ ਬਹੁ ਜੋਨੀ ਭ੍ਰਮਾਵਣਹ ॥
हे काम ! तू जीवों को नरक में पहुँचाने वाला है और अनेक योनियों में भटकाता है।
ਚਿਤ ਹਰਣੰ ਤ੍ਰੈ ਲੋਕ ਗੰਮ੍ਯ੍ਯੰ ਜਪ ਤਪ ਸੀਲ ਬਿਦਾਰਣਹ ॥
तू लोगों का दिल चुराने वाला है, तीनों लोकों में गमन कर रहा है, तू जप, तप, शील नष्ट करने वाला है।
ਅਲਪ ਸੁਖ ਅਵਿਤ ਚੰਚਲ ਊਚ ਨੀਚ ਸਮਾਵਣਹ ॥
तू थोड़ा-सा सुख देने वाला है, घनहीन करने वाला, चंचल बनाने वाला और बड़े अथवा छोटे सब में लीन होता है।
ਤਵ ਭੈ ਬਿਮੁੰਚਿਤ ਸਾਧ ਸੰਗਮ ਓਟ ਨਾਨਕ ਨਾਰਾਇਣਹ ॥੪੬॥
नानक का कथन है कि तेरे भय से बचने के लिए साधु पुरुषों की संगत एवं परमात्मा का आसरा ले लिया है॥ ४६॥
ਹੇ ਕਲਿ ਮੂਲ ਕ੍ਰੋਧੰ ਕਦੰਚ ਕਰੁਣਾ ਨ ਉਪਰਜਤੇ ॥
हे क्रोध ! तू कलह-कलेश का मूल कारण है, तुझे तो कभी दया आती ही नहीं।
ਬਿਖਯੰਤ ਜੀਵੰ ਵਸ੍ਯ੍ਯੰ ਕਰੋਤਿ ਨਿਰਤ੍ਯ੍ਯੰ ਕਰੋਤਿ ਜਥਾ ਮਰਕਟਹ ॥
तू विषयी जीवों को अपने वश में कर लेता है और जिस कारण वे बन्दर की तरह नाचते हैं।
ਅਨਿਕ ਸਾਸਨ ਤਾੜੰਤਿ ਜਮਦੂਤਹ ਤਵ ਸੰਗੇ ਅਧਮੰ ਨਰਹ ॥
तेरी संगत में आकर भले व्यक्ति भी नीच बन जाते हैं और यमदूत उनको हुक्म देकर दण्ड पहुँचाते हैं।
ਦੀਨ ਦੁਖ ਭੰਜਨ ਦਯਾਲ ਪ੍ਰਭੁ ਨਾਨਕ ਸਰਬ ਜੀਅ ਰਖ੍ਯ੍ਯਾ ਕਰੋਤਿ ॥੪੭॥
नानक का कथन है कि दोनों के दुख नाश करने वाला दयालु प्रभु ही सब जीवों की (क्रोध से) रक्षा करता है॥ ४७॥
ਹੇ ਲੋਭਾ ਲੰਪਟ ਸੰਗ ਸਿਰਮੋਰਹ ਅਨਿਕ ਲਹਰੀ ਕਲੋਲਤੇ ॥
हे लोभ ! तूने तो बादशाह, अमीर, सब को अपने शिकंजे में डाला हुआ है और वे तेरी लहरों में फँसकर अनेक तमाशे करते हैं।
ਧਾਵੰਤ ਜੀਆ ਬਹੁ ਪ੍ਰਕਾਰੰ ਅਨਿਕ ਭਾਂਤਿ ਬਹੁ ਡੋਲਤੇ ॥
तेरे वश में आकर जीव अनेक प्रकार से दौड़ते हैं और अनेक तरीकों से बहुत डोलते हैं।
ਨਚ ਮਿਤ੍ਰੰ ਨਚ ਇਸਟੰ ਨਚ ਬਾਧਵ ਨਚ ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਤਵ ਲਜਯਾ ॥
तुझे मित्र, इष्ट, रिश्तेदार, माता-पिता की कोई शर्म नहीं।
ਅਕਰਣੰ ਕਰੋਤਿ ਅਖਾਦ੍ਯ੍ਯਿ ਖਾਦ੍ਯ੍ਯੰ ਅਸਾਜ੍ਯ੍ਯੰ ਸਾਜਿ ਸਮਜਯਾ ॥
तू न करने लायक भी काम करवाता है, न खाने योग्य चीज भी खिलाता है, समाज में न बनने वाली को भी बना देते हो।
ਤ੍ਰਾਹਿ ਤ੍ਰਾਹਿ ਸਰਣਿ ਸੁਆਮੀ ਬਿਗ੍ਯ੍ਯਾਪ੍ਤਿ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਨਰਹਰਹ ॥੪੮॥
नानक प्रार्थना करते हैं कि हे नारायण ! हम तेरी शरण में आ गए हैं, इस लोभ से हर्मे बचा लो।॥ ४८॥
ਹੇ ਜਨਮ ਮਰਣ ਮੂਲੰ ਅਹੰਕਾਰੰ ਪਾਪਾਤਮਾ ॥
हे पापी अहंकार ! तू जन्म-मरण का मूल है।
ਮਿਤ੍ਰੰ ਤਜੰਤਿ ਸਤ੍ਰੰ ਦ੍ਰਿੜੰਤਿ ਅਨਿਕ ਮਾਯਾ ਬਿਸ੍ਤੀਰਨਹ ॥
तू मित्रों से दूर करके शत्रुओं से नाता जोड़ता है और अनेक प्रकार से माया के प्रपंच फैलाता है।
ਆਵੰਤ ਜਾਵੰਤ ਥਕੰਤ ਜੀਆ ਦੁਖ ਸੁਖ ਬਹੁ ਭੋਗਣਹ ॥
तेरे कारण जीव आवागमन में थक जाते हैं और बहुत सुख दुख भोगते हैं।
ਭ੍ਰਮ ਭਯਾਨ ਉਦਿਆਨ ਰਮਣੰ ਮਹਾ ਬਿਕਟ ਅਸਾਧ ਰੋਗਣਹ ॥
वे भ्रम के भयानक जंगल में रहते हैं और महा विकट एवं असाध्य रोगों का शिकार हो जाते हैं।
ਬੈਦ੍ਯ੍ਯੰ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪਰਮੇਸ੍ਵਰ ਆਰਾਧਿ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰੇ ॥੪੯॥
नानक का कथन है कि इन रोगों का उपचार करने वाला वैद्य एकमात्र परब्रह्म परमेश्वर है, अत: उस हरि की आराधना करो॥ ४६॥
ਹੇ ਪ੍ਰਾਣ ਨਾਥ ਗੋਬਿੰਦਹ ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਾਨ ਜਗਦ ਗੁਰੋ ॥
हे प्राणनाथ ! हे गोविन्द ! हे कृपा के घर ! हे जगदगुरु !
ਹੇ ਸੰਸਾਰ ਤਾਪ ਹਰਣਹ ਕਰੁਣਾ ਮੈ ਸਭ ਦੁਖ ਹਰੋ ॥
हे संसार के कष्ट हरण करने वाले ! हे करुणामय ! सब दुखों को दूर करो।
ਹੇ ਸਰਣਿ ਜੋਗ ਦਯਾਲਹ ਦੀਨਾ ਨਾਥ ਮਯਾ ਕਰੋ ॥
हे शरण देने योग्य ! हे दयालु दीनानाथ ! कृपा करो।
ਸਰੀਰ ਸ੍ਵਸਥ ਖੀਣ ਸਮਏ ਸਿਮਰੰਤਿ ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਦਾਮੋਦਰ ਮਾਧਵਹ ॥੫੦॥
नानक विनती करते हैं कि हे प्रभु ! शरीर स्वस्थ अथवा बीमार हो, दोनों ही वक्त तेरा सिमरन करते रहें॥ ५०॥
ਚਰਣ ਕਮਲ ਸਰਣੰ ਰਮਣੰ ਗੋਪਾਲ ਕੀਰਤਨਹ ॥
हे ईश्वर ! तेरे चरण-कमल की शरण में तेरा ही कीर्तन करते रहें।
ਸਾਧ ਸੰਗੇਣ ਤਰਣੰ ਨਾਨਕ ਮਹਾ ਸਾਗਰ ਭੈ ਦੁਤਰਹ ॥੫੧॥
नानक का कथन है कि यदि साधु-पुरुषों की संगत की जाए तो भयानक दुस्तर महासागर से पार हुआ जा सकता है॥ ५१॥
ਸਿਰ ਮਸ੍ਤਕ ਰਖ੍ਯ੍ਯਾ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੰ ਹਸ੍ਤ ਕਾਯਾ ਰਖ੍ਯ੍ਯਾ ਪਰਮੇਸ੍ਵਰਹ ॥
हे परब्रह्म ! (आशीष देकर) सिर-मस्तक का संरक्षण करो, हे परमेश्वर ! इन हाथों एवं शरीर की रक्षा करें (हम कोई बुरा काम न करें)।
ਆਤਮ ਰਖ੍ਯ੍ਯਾ ਗੋਪਾਲ ਸੁਆਮੀ ਧਨ ਚਰਣ ਰਖ੍ਯ੍ਯਾ ਜਗਦੀਸ੍ਵਰਹ ॥
हे गोपाल ! हमारी आत्मा की रक्षा करना, धन एवं चरणों को, हे जगदीश्वर ! तू ही बचाने वाला है।
ਸਰਬ ਰਖ੍ਯ੍ਯਾ ਗੁਰ ਦਯਾਲਹ ਭੈ ਦੂਖ ਬਿਨਾਸਨਹ ॥
हे दयालु गुरु ! सबकी रक्षा करना, भय-दुखों का नाश करना।
ਭਗਤਿ ਵਛਲ ਅਨਾਥ ਨਾਥੇ ਸਰਣਿ ਨਾਨਕ ਪੁਰਖ ਅਚੁਤਹ ॥੫੨॥
नानक विनती करते हैं कि हे भक्तवत्सल ! अनाथों के नाथ ! हे अटल प्रभु ! हमें अपनी शरण में रखो॥ ५२॥
ਜੇਨ ਕਲਾ ਧਾਰਿਓ ਆਕਾਸੰ ਬੈਸੰਤਰੰ ਕਾਸਟ ਬੇਸਟੰ ॥
जिस ओंकार ने अपनी शक्ति से आकाश को धारण किया हुआ है, लकड़ी में अग्नि को टिकाया हुआ है।
ਜੇਨ ਕਲਾ ਸਸਿ ਸੂਰ ਨਖ੍ਯ੍ਯਤ੍ਰ ਜੋਤ੍ਯ੍ਯਿੰ ਸਾਸੰ ਸਰੀਰ ਧਾਰਣੰ ॥
जिसकी शक्ति से सूर्य, चन्द्रमा एवं नक्षत्रों को ज्योति मिल रही है और जिससे शरीर में प्राणों का संचार हो रहा है।