Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1324

Page 1324

ਰਾਮ ਨਾਮ ਤੁਲਿ ਅਉਰੁ ਨ ਉਪਮਾ ਜਨ ਨਾਨਕ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੀਜੈ ॥੮॥੧॥ राम नाम तुलि अउरु न उपमा जन नानक क्रिपा करीजै ॥८॥१॥ परमात्मा के नाम तुल्य अन्य कोई उपमा नहीं, नानक पर इनकी कृपा होती रहे॥ ८॥ १॥
ਕਲਿਆਨ ਮਹਲਾ ੪ ॥ कलिआन महला ४ ॥ कलिआन महला ४ ॥
ਰਾਮ ਗੁਰੁ ਪਾਰਸੁ ਪਰਸੁ ਕਰੀਜੈ ॥ राम गुरु पारसु परसु करीजै ॥ हे परमेश्वर ! गुरु रूपी पारस का हमें स्पर्श करवा दो,
ਹਮ ਨਿਰਗੁਣੀ ਮਨੂਰ ਅਤਿ ਫੀਕੇ ਮਿਲਿ ਸਤਿਗੁਰ ਪਾਰਸੁ ਕੀਜੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हम निरगुणी मनूर अति फीके मिलि सतिगुर पारसु कीजै ॥१॥ रहाउ ॥ हम जीव गुणविहीन एवं लोहे की तरह बुरे हैं, गुरु पारस को मिलकर हम भी गुणवान बन जाएँगे॥ १॥रहाउ॥
ਸੁਰਗ ਮੁਕਤਿ ਬੈਕੁੰਠ ਸਭਿ ਬਾਂਛਹਿ ਨਿਤਿ ਆਸਾ ਆਸ ਕਰੀਜੈ ॥ सुरग मुकति बैकुंठ सभि बांछहि निति आसा आस करीजै ॥ संसार के सब व्यक्ति स्वर्ग, मुक्ति एवं वैकुण्ठ की कामना लेकर नित्य आशा करते हैं।
ਹਰਿ ਦਰਸਨ ਕੇ ਜਨ ਮੁਕਤਿ ਨ ਮਾਂਗਹਿ ਮਿਲਿ ਦਰਸਨ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਮਨੁ ਧੀਜੈ ॥੧॥ हरि दरसन के जन मुकति न मांगहि मिलि दरसन त्रिपति मनु धीजै ॥१॥ परन्तु परमात्मा के दर्शनाभिलाषी मुक्ति की आकांक्षा नहीं करते, अपितु प्रभु के दर्शनों से ही उनके मन को तृप्ति होती है।॥ १॥
ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਸਬਲੁ ਹੈ ਭਾਰੀ ਮੋਹੁ ਕਾਲਖ ਦਾਗ ਲਗੀਜੈ ॥ माइआ मोहु सबलु है भारी मोहु कालख दाग लगीजै ॥ माया का मोह शक्तिशाली है, यह मोह पापों की कालिमा का दाग लगा देता है।
ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ ਕੇ ਜਨ ਅਲਿਪਤ ਹੈ ਮੁਕਤੇ ਜਿਉ ਮੁਰਗਾਈ ਪੰਕੁ ਨ ਭੀਜੈ ॥੨॥ मेरे ठाकुर के जन अलिपत है मुकते जिउ मुरगाई पंकु न भीजै ॥२॥ मेरे ईश्वर के भक्त मोह-माया से अलिप्त एवं मुक्त हैं, ज्यों पानी में तैरते समय मुर्गाबी के पंख नहीं भीगते॥ २॥
ਚੰਦਨ ਵਾਸੁ ਭੁਇਅੰਗਮ ਵੇੜੀ ਕਿਵ ਮਿਲੀਐ ਚੰਦਨੁ ਲੀਜੈ ॥ चंदन वासु भुइअंगम वेड़ी किव मिलीऐ चंदनु लीजै ॥ चंदन की खुशबू सांपों से घिरी रहती है, चंदन को कैसे हासिल किया जा सकता है।
ਕਾਢਿ ਖੜਗੁ ਗੁਰ ਗਿਆਨੁ ਕਰਾਰਾ ਬਿਖੁ ਛੇਦਿ ਛੇਦਿ ਰਸੁ ਪੀਜੈ ॥੩॥ काढि खड़गु गुर गिआनु करारा बिखु छेदि छेदि रसु पीजै ॥३॥ गुरु ज्ञान रूपी भारी खड्ग लेकर विषय-विकारों को नष्ट करके हरिनाम अमृत का पान किया जा सकता है॥ ३॥
ਆਨਿ ਆਨਿ ਸਮਧਾ ਬਹੁ ਕੀਨੀ ਪਲੁ ਬੈਸੰਤਰ ਭਸਮ ਕਰੀਜੈ ॥ आनि आनि समधा बहु कीनी पलु बैसंतर भसम करीजै ॥ अनेक प्रकार की लकड़ियाँ इकट्टी की गई, पर अग्नि ने पल में ही राख बना दिया।
ਮਹਾ ਉਗ੍ਰ ਪਾਪ ਸਾਕਤ ਨਰ ਕੀਨੇ ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਲੂਕੀ ਦੀਜੈ ॥੪॥ महा उग्र पाप साकत नर कीने मिलि साधू लूकी दीजै ॥४॥ मायावी मनुष्य महा उग्र पाप करते हैं, इन पापों को साधु पुरुषों से मिलकर ज्ञान की चिंगारी से जलाया जा सकता है॥ ४॥
ਸਾਧੂ ਸਾਧ ਸਾਧ ਜਨ ਨੀਕੇ ਜਿਨ ਅੰਤਰਿ ਨਾਮੁ ਧਰੀਜੈ ॥ साधू साध साध जन नीके जिन अंतरि नामु धरीजै ॥ साधु पुरुष भले एवं उत्तम हैं, जिनके अन्तर्मन में हरिनाम अवस्थित होता है।
ਪਰਸ ਨਿਪਰਸੁ ਭਏ ਸਾਧੂ ਜਨ ਜਨੁ ਹਰਿ ਭਗਵਾਨੁ ਦਿਖੀਜੈ ॥੫॥ परस निपरसु भए साधू जन जनु हरि भगवानु दिखीजै ॥५॥ साधु पुरुषों से साक्षात्कार भगवान के दर्शन करने के समान है॥ ५॥
ਸਾਕਤ ਸੂਤੁ ਬਹੁ ਗੁਰਝੀ ਭਰਿਆ ਕਿਉ ਕਰਿ ਤਾਨੁ ਤਨੀਜੈ ॥ साकत सूतु बहु गुरझी भरिआ किउ करि तानु तनीजै ॥ मायावी मनुष्य की जीवन डोर बहुत उलझनों से भरी होती है, वह क्योंकर ताना लगा सकता है।
ਤੰਤੁ ਸੂਤੁ ਕਿਛੁ ਨਿਕਸੈ ਨਾਹੀ ਸਾਕਤ ਸੰਗੁ ਨ ਕੀਜੈ ॥੬॥ तंतु सूतु किछु निकसै नाही साकत संगु न कीजै ॥६॥ ऐसी उलझनों से भरी हुई जीवन डोर सुलझ नहीं सकती, अतः मायावी मनुष्य की संगत नहीं करनी चाहिए॥ ६॥
ਸਤਿਗੁਰ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਹੈ ਨੀਕੀ ਮਿਲਿ ਸੰਗਤਿ ਰਾਮੁ ਰਵੀਜੈ ॥ सतिगुर साधसंगति है नीकी मिलि संगति रामु रवीजै ॥ सतगुरु की संगत सबसे बढ़िया है, गुरु की संगत में तो हरदम राम का सिमरन होता है।
ਅੰਤਰਿ ਰਤਨ ਜਵੇਹਰ ਮਾਣਕ ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਲੀਜੈ ॥੭॥ अंतरि रतन जवेहर माणक गुर किरपा ते लीजै ॥७॥ हरिनाम रूपी अमूल्य रत्न, जवाहर एवं मार्णिक्य अन्तर्मन में ही है, जिसे गुरु कृपा से पाया जा सकता है॥ ७॥
ਮੇਰਾ ਠਾਕੁਰੁ ਵਡਾ ਵਡਾ ਹੈ ਸੁਆਮੀ ਹਮ ਕਿਉ ਕਰਿ ਮਿਲਹ ਮਿਲੀਜੈ ॥ मेरा ठाकुरु वडा वडा है सुआमी हम किउ करि मिलह मिलीजै ॥ मेरा मालिक बड़ा है, महान् है, हम क्योंकर उसे मिल सकते हैं।
ਨਾਨਕ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਏ ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਜਨ ਕਉ ਪੂਰਨੁ ਦੀਜੈ ॥੮॥੨॥ नानक मेलि मिलाए गुरु पूरा जन कउ पूरनु दीजै ॥८॥२॥ नानक का कथन है कि पूर्ण गुरु ही परमात्मा से मिलाकर सेवक को पूर्णता प्रदान करता है॥ ८॥ २॥
ਕਲਿਆਨੁ ਮਹਲਾ ੪ ॥ कलिआनु महला ४ ॥ कलिआन महला ४ ॥
ਰਾਮਾ ਰਮ ਰਾਮੋ ਰਾਮੁ ਰਵੀਜੈ ॥ रामा रम रामो रामु रवीजै ॥ सृष्टि के कण-कण में परमात्मा विद्यमान है, केवल उसका ही भजन करो।
ਸਾਧੂ ਸਾਧ ਸਾਧ ਜਨ ਨੀਕੇ ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਹਰਿ ਰੰਗੁ ਕੀਜੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ साधू साध साध जन नीके मिलि साधू हरि रंगु कीजै ॥१॥ रहाउ ॥ साधु पुरुष भले एवं नेक हैं, साधुओं के साथ मिलकर ईश्वर का संकीर्तन करो॥ १॥रहाउ॥
ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭੁ ਜਗੁ ਹੈ ਜੇਤਾ ਮਨੁ ਡੋਲਤ ਡੋਲ ਕਰੀਜੈ ॥ जीअ जंत सभु जगु है जेता मनु डोलत डोल करीजै ॥ समूचे संसार में जितने भी जीव हैं, सबका मन डोलता रहता है।
ਕ੍ਰਿਪਾ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਿ ਸਾਧੁ ਮਿਲਾਵਹੁ ਜਗੁ ਥੰਮਨ ਕਉ ਥੰਮੁ ਦੀਜੈ ॥੧॥ क्रिपा क्रिपा करि साधु मिलावहु जगु थमन कउ थमु दीजै ॥१॥ हे प्रभु ! कृपा करके साधु पुरुषों से मिलाप करवा दो, जो समूचे जगत को आसरा देने वाले हैं।॥ १॥
ਬਸੁਧਾ ਤਲੈ ਤਲੈ ਸਭ ਊਪਰਿ ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਚਰਨ ਰੁਲੀਜੈ ॥ बसुधा तलै तलै सभ ऊपरि मिलि साधू चरन रुलीजै ॥ धरती सबके नीचे रहती है और महापुरुषों की चरण-धूल से श्रेष्ठ हो जाती है।
ਅਤਿ ਊਤਮ ਅਤਿ ਊਤਮ ਹੋਵਹੁ ਸਭ ਸਿਸਟਿ ਚਰਨ ਤਲ ਦੀਜੈ ॥੨॥ अति ऊतम अति ऊतम होवहु सभ सिसटि चरन तल दीजै ॥२॥ सबसे उत्तम बन जाओ और सम्पूर्ण सृष्टि को अपने चरणों के नीचे कर लो॥ २॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜੋਤਿ ਭਲੀ ਸਿਵ ਨੀਕੀ ਆਨਿ ਪਾਨੀ ਸਕਤਿ ਭਰੀਜੈ ॥ गुरमुखि जोति भली सिव नीकी आनि पानी सकति भरीजै ॥ गुरुमुख में हरि नाम की ज्योति ही स्थापित होती है और माया भी उसकी सेवा में तल्लीन रहती है।
ਮੈਨਦੰਤ ਨਿਕਸੇ ਗੁਰ ਬਚਨੀ ਸਾਰੁ ਚਬਿ ਚਬਿ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪੀਜੈ ॥੩॥ मैनदंत निकसे गुर बचनी सारु चबि चबि हरि रसु पीजै ॥३॥ गुरु के वचनों से मोम के दाँत निकलते हैं, इस द्वारा चबा चबाकर खाया जाता है और हरिनाम का ही पान होता है॥ ३॥
ਰਾਮ ਨਾਮ ਅਨੁਗ੍ਰਹੁ ਬਹੁ ਕੀਆ ਗੁਰ ਸਾਧੂ ਪੁਰਖ ਮਿਲੀਜੈ ॥ राम नाम अनुग्रहु बहु कीआ गुर साधू पुरख मिलीजै ॥ परमात्मा की कृपा हुई तो साधु-पुरुष गुरु से मिलाप हो गया।
ਗੁਨ ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਸਥੀਰਨ ਕੀਏ ਹਰਿ ਸਗਲ ਭਵਨ ਜਸੁ ਦੀਜੈ ॥੪॥ गुन राम नाम बिसथीरन कीए हरि सगल भवन जसु दीजै ॥४॥ गुरु ने परमात्मा के गुणों का प्रसार किया है और समूचे लोकों में परमात्मा का यश प्रदान करता है॥ ४॥
ਸਾਧੂ ਸਾਧ ਸਾਧ ਮਨਿ ਪ੍ਰੀਤਮ ਬਿਨੁ ਦੇਖੇ ਰਹਿ ਨ ਸਕੀਜੈ ॥ साधू साध साध मनि प्रीतम बिनु देखे रहि न सकीजै ॥ साधु पुरुषों का मन प्रियतम में ही लीन रहता है और उसके दर्शनों के बिना उनसे रहा नहीं जाता।
ਜਿਉ ਜਲ ਮੀਨ ਜਲੰ ਜਲ ਪ੍ਰੀਤਿ ਹੈ ਖਿਨੁ ਜਲ ਬਿਨੁ ਫੂਟਿ ਮਰੀਜੈ ॥੫॥ जिउ जल मीन जलं जल प्रीति है खिनु जल बिनु फूटि मरीजै ॥५॥ जैसे जल में रहने वाली मछली का प्रेम जल से होता है और जल के बिना प्राण ही त्याग देती है॥ ५॥


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