Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1201

Page 1201

ਸਾਰੰਗ ਮਹਲਾ ੪ ॥ सारंग महला ४ ॥ सारंग महला ४ ॥
ਜਪਿ ਮਨ ਨਰਹਰੇ ਨਰਹਰ ਸੁਆਮੀ ਹਰਿ ਸਗਲ ਦੇਵ ਦੇਵਾ ਸ੍ਰੀ ਰਾਮ ਰਾਮ ਨਾਮਾ ਹਰਿ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਮੋਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जपि मन नरहरे नरहर सुआमी हरि सगल देव देवा स्री राम राम नामा हरि प्रीतमु मोरा ॥१॥ रहाउ ॥ हे मन ! नारायण का जाप करो, वह श्रीहरि सभी देवताओं का भी पूज्य देव है, वह श्री राम ही मेरा प्रियतम है॥१॥रहाउ॥
ਜਿਤੁ ਗ੍ਰਿਹਿ ਗੁਨ ਗਾਵਤੇ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਨ ਗਾਵਤੇ ਰਾਮ ਗੁਨ ਗਾਵਤੇ ਤਿਤੁ ਗ੍ਰਿਹਿ ਵਾਜੇ ਪੰਚ ਸਬਦ ਵਡ ਭਾਗ ਮਥੋਰਾ ॥ जितु ग्रिहि गुन गावते हरि के गुन गावते राम गुन गावते तितु ग्रिहि वाजे पंच सबद वड भाग मथोरा ॥ जिस घर में परमात्मा का गुणगान होता है, राम का यशोगान होता है, उस घर में अनगिनत खुशियाँ एवं आनंद हो जाता है, अहोभाग्य जाग जाते हैं।
ਤਿਨ੍ਹ੍ ਜਨ ਕੇ ਸਭਿ ਪਾਪ ਗਏ ਸਭਿ ਦੋਖ ਗਏ ਸਭਿ ਰੋਗ ਗਏ ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਲੋਭੁ ਮੋਹੁ ਅਭਿਮਾਨੁ ਗਏ ਤਿਨ੍ਹ੍ ਜਨ ਕੇ ਹਰਿ ਮਾਰਿ ਕਢੇ ਪੰਚ ਚੋਰਾ ॥੧॥ तिन्ह जन के सभि पाप गए सभि दोख गए सभि रोग गए कामु क्रोधु लोभु मोहु अभिमानु गए तिन्ह जन के हरि मारि कढे पंच चोरा ॥१॥ उन भक्तों के सभी पाप, दोष, रोग, काम-क्रोध, लोभ, मोह एवं अभिमान दूर हो जाता है। ईश्वर उन भक्तों के कामादिक पांच विकारों को मारकर निकाल देता है॥१॥
ਹਰਿ ਰਾਮ ਬੋਲਹੁ ਹਰਿ ਸਾਧੂ ਹਰਿ ਕੇ ਜਨ ਸਾਧੂ ਜਗਦੀਸੁ ਜਪਹੁ ਮਨਿ ਬਚਨਿ ਕਰਮਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਆਰਾਧੂ ਹਰਿ ਕੇ ਜਨ ਸਾਧੂ ॥ हरि राम बोलहु हरि साधू हरि के जन साधू जगदीसु जपहु मनि बचनि करमि हरि हरि आराधू हरि के जन साधू ॥ ईश्वर के भक्त, साधु पुरुष राम नाम ही बोलते हैं और उस जगदीश का ही जाप करते हैं। ईश्वर के भक्त मन, वचन एवं कर्म से हरि की आराधना करते हैं।
ਹਰਿ ਰਾਮ ਬੋਲਿ ਹਰਿ ਰਾਮ ਬੋਲਿ ਸਭਿ ਪਾਪ ਗਵਾਧੂ ॥ हरि राम बोलि हरि राम बोलि सभि पाप गवाधू ॥ वे राम नाम बोलकर अपने सब पापों का निवारण करते हैं।
ਨਿਤ ਨਿਤ ਜਾਗਰਣੁ ਕਰਹੁ ਸਦਾ ਸਦਾ ਆਨੰਦੁ ਜਪਿ ਜਗਦੀਸੋੁਰਾ ॥ नित नित जागरणु करहु सदा सदा आनंदु जपि जगदीसोरा ॥ वे नित्य जागृत रहते हैं और सदा जगदीश्वर को जपकर आनंद पाते हैं।
ਮਨ ਇਛੇ ਫਲ ਪਾਵਹੁ ਸਭੈ ਫਲ ਪਾਵਹੁ ਧਰਮੁ ਅਰਥੁ ਕਾਮ ਮੋਖੁ ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਸਿਉ ਮਿਲੇ ਹਰਿ ਭਗਤ ਤੋਰਾ ॥੨॥੨॥੯॥ मन इछे फल पावहु सभै फल पावहु धरमु अरथु काम मोखु जन नानक हरि सिउ मिले हरि भगत तोरा ॥२॥२॥९॥ वे घर्म, अर्थ, काम, मोक्ष एवं मनवांछित फल पाते हैं। हे नानक ! भक्तजन ईश्वर की भक्ति में ही लीन रहते हैं।॥२॥ २ ॥६॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੪ ॥ सारग महला ४ ॥ सारग महला ४ ॥
ਜਪਿ ਮਨ ਮਾਧੋ ਮਧੁਸੂਦਨੋ ਹਰਿ ਸ੍ਰੀਰੰਗੋ ਪਰਮੇਸਰੋ ਸਤਿ ਪਰਮੇਸਰੋ ਪ੍ਰਭੁ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥ जपि मन माधो मधुसूदनो हरि स्रीरंगो परमेसरो सति परमेसरो प्रभु अंतरजामी ॥ हे मन ! माधव, मधुसूदन, श्रीहरि, श्रीरंग, सत्यस्वरूप परमेश्वर, अन्तर्यामी प्रभु का भजन करो।
ਸਭ ਦੂਖਨ ਕੋ ਹੰਤਾ ਸਭ ਸੂਖਨ ਕੋ ਦਾਤਾ ਹਰਿ ਪ੍ਰੀਤਮ ਗੁਨ ਗਾਓ‍ੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सभ दूखन को हंता सभ सूखन को दाता हरि प्रीतम गुन गाओ ॥१॥ रहाउ ॥ वह सब दुखों को नष्ट करने वाला है, सब सुख प्रदान करने वाला है, उस प्रियतम हरि के गुण गाओ ॥१॥रहाउ॥।
ਹਰਿ ਘਟਿ ਘਟੇ ਘਟਿ ਬਸਤਾ ਹਰਿ ਜਲਿ ਥਲੇ ਹਰਿ ਬਸਤਾ ਹਰਿ ਥਾਨ ਥਾਨੰਤਰਿ ਬਸਤਾ ਮੈ ਹਰਿ ਦੇਖਨ ਕੋ ਚਾਓ‍ੁ ॥ हरि घटि घटे घटि बसता हरि जलि थले हरि बसता हरि थान थानंतरि बसता मै हरि देखन को चाओ ॥ ईश्वर सब में व्याप्त है, हर शरीर में रहता है, समुद्र, पृथ्वी में वही रहता है, देश-देशान्तर सब में बसा हुआ है। मुझे तो हरि दर्शन का चाव है।
ਕੋਈ ਆਵੈ ਸੰਤੋ ਹਰਿ ਕਾ ਜਨੁ ਸੰਤੋ ਮੇਰਾ ਪ੍ਰੀਤਮ ਜਨੁ ਸੰਤੋ ਮੋਹਿ ਮਾਰਗੁ ਦਿਖਲਾਵੈ ॥ कोई आवै संतो हरि का जनु संतो मेरा प्रीतम जनु संतो मोहि मारगु दिखलावै ॥ यदि कोई संत, ईश्वर का भक्त, मेरा प्रियतम संत मेरे पास आए और मुझे सच्चा मार्ग दिखाए तो
ਤਿਸੁ ਜਨ ਕੇ ਹਉ ਮਲਿ ਮਲਿ ਧੋਵਾ ਪਾਓ‍ੁ ॥੧॥ तिसु जन के हउ मलि मलि धोवा पाओ ॥१॥ उस महापुरुष के मल-मलकर मैं पैर धोता रहूँ॥१॥
ਹਰਿ ਜਨ ਕਉ ਹਰਿ ਮਿਲਿਆ ਹਰਿ ਸਰਧਾ ਤੇ ਮਿਲਿਆ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਮਿਲਿਆ ॥ हरि जन कउ हरि मिलिआ हरि सरधा ते मिलिआ गुरमुखि हरि मिलिआ ॥ ईश्वर के भक्त को पूर्ण श्रद्धा से ही ईश्वर मिला है और गुरु के सान्निध्य में उसी से साक्षात्कार हुआ है।
ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਤਨਿ ਆਨੰਦ ਭਏ ਮੈ ਦੇਖਿਆ ਹਰਿ ਰਾਓ‍ੁ ॥ मेरै मनि तनि आनंद भए मै देखिआ हरि राओ ॥ जब मुझे ईश्वर के दर्शन हुए तो मेरे मन तन में आनंद हो गया।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕਉ ਕਿਰਪਾ ਭਈ ਹਰਿ ਕੀ ਕਿਰਪਾ ਭਈ ਜਗਦੀਸੁਰ ਕਿਰਪਾ ਭਈ ॥ जन नानक कउ किरपा भई हरि की किरपा भई जगदीसुर किरपा भई ॥ नानक का कथन है कि जब मुझ पर जगदीश्वर श्रीहरि की कृपा हुई तो
ਮੈ ਅਨਦਿਨੋ ਸਦ ਸਦ ਸਦਾ ਹਰਿ ਜਪਿਆ ਹਰਿ ਨਾਓ‍ੁ ॥੨॥੩॥੧੦॥ मै अनदिनो सद सद सदा हरि जपिआ हरि नाओ ॥२॥३॥१०॥ मैंने दिन-रात हरि नाम का जाप किया है॥२॥३॥ १० ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੪ ॥ सारग महला ४ ॥ सारग महला ४ ॥
ਜਪਿ ਮਨ ਨਿਰਭਉ ॥ जपि मन निरभउ ॥ हे मन ! ईश्वर का भजन करो, वह निर्भय है,
ਸਤਿ ਸਤਿ ਸਦਾ ਸਤਿ ॥ सति सति सदा सति ॥ सदा शाश्वत-स्वरूप है,
ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ॥ निरवैरु अकाल मूरति ॥ वह वैर-भावना से रहित है, वह कालातीत ब्रह्म मूर्ति अमर है,
ਆਜੂਨੀ ਸੰਭਉ ॥ आजूनी स्मभउ ॥ वह जन्म-मरण से परे है, वह स्वतः प्रकाशमान हुआ है,
ਮੇਰੇ ਮਨ ਅਨਦਿਨੋੁ ਧਿਆਇ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ਨਿਰਾਹਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मेरे मन अनदिनो धिआइ निरंकारु निराहारी ॥१॥ रहाउ ॥ वह भोजन पानी से रहित है। हे मेरे मन ! सदैव उस निरंकार का चिंतन करो ॥१॥रहाउ॥।
ਹਰਿ ਦਰਸਨ ਕਉ ਹਰਿ ਦਰਸਨ ਕਉ ਕੋਟਿ ਕੋਟਿ ਤੇਤੀਸ ਸਿਧ ਜਤੀ ਜੋਗੀ ਤਟ ਤੀਰਥ ਪਰਭਵਨ ਕਰਤ ਰਹਤ ਨਿਰਾਹਾਰੀ ॥ हरि दरसन कउ हरि दरसन कउ कोटि कोटि तेतीस सिध जती जोगी तट तीरथ परभवन करत रहत निराहारी ॥ परमात्मा के दर्शन के लिए तेंतीस करोड़ देवता, सिद्ध, ब्रह्मचारी, योगी, तटों-तीर्थों की यात्रा करते एवं व्रत-उपवास रखते हैं।
ਤਿਨ ਜਨ ਕੀ ਸੇਵਾ ਥਾਇ ਪਈ ਜਿਨ੍ਹ੍ ਕਉ ਕਿਰਪਾਲ ਹੋਵਤੁ ਬਨਵਾਰੀ ॥੧॥ तिन जन की सेवा थाइ पई जिन्ह कउ किरपाल होवतु बनवारी ॥१॥ उन भक्तों की सेवा सफल होती है, जिन पर ईश्वर कृपालु होता है॥१॥
ਹਰਿ ਕੇ ਹੋ ਸੰਤ ਭਲੇ ਤੇ ਊਤਮ ਭਗਤ ਭਲੇ ਜੋ ਭਾਵਤ ਹਰਿ ਰਾਮ ਮੁਰਾਰੀ ॥ हरि के हो संत भले ते ऊतम भगत भले जो भावत हरि राम मुरारी ॥ ईश्वर के वही संत एवं उत्तम भक्त भले हैं, जो प्रभु को प्रिय लगते हैं।
ਜਿਨ੍ਹ੍ ਕਾ ਅੰਗੁ ਕਰੈ ਮੇਰਾ ਸੁਆਮੀ ਤਿਨ੍ਹ੍ ਕੀ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਪੈਜ ਸਵਾਰੀ ॥੨॥੪॥੧੧॥ जिन्ह का अंगु करै मेरा सुआमी तिन्ह की नानक हरि पैज सवारी ॥२॥४॥११॥ हे नानक ! मेरा स्वामी जिनका साथ देता है, उनकी ही लाज बचाता है॥२॥४॥ ११ ॥


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