Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1185

Page 1185

ਬਾਹ ਪਕਰਿ ਭਵਜਲੁ ਨਿਸਤਾਰਿਓ ॥੨॥ बाह पकरि भवजलु निसतारिओ ॥२॥ बाँह से पकड़कर मुझे संसार-सागर से पार उतार दिया है॥२॥
ਪ੍ਰਭਿ ਕਾਟਿ ਮੈਲੁ ਨਿਰਮਲ ਕਰੇ ॥ प्रभि काटि मैलु निरमल करे ॥ प्रभु ने मेरी बुराई की मैल को काटकर निर्मल कर दिया है,
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਕੀ ਸਰਣੀ ਪਰੇ ॥੩॥ गुर पूरे की सरणी परे ॥३॥ अब पूर्ण गुरु की शरण में पड़ा रहता हूँ॥३॥
ਆਪਿ ਕਰਹਿ ਆਪਿ ਕਰਣੈਹਾਰੇ ॥ आपि करहि आपि करणैहारे ॥ यह ईश्वर की लीला है कि वह सर्वकर्ता स्वयं ही करता है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਨਾਨਕ ਉਧਾਰੇ ॥੪॥੪॥੧੭॥ करि किरपा नानक उधारे ॥४॥४॥१७॥ हे नानक ! वह कृपा करके उद्धार कर देता है॥४॥४॥ १७॥
ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੫ बसंतु महला ५ बसंतु महला ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਦੇਖੁ ਫੂਲ ਫੂਲ ਫੂਲੇ ॥ देखु फूल फूल फूले ॥ देख खुशियों के फूल ही फूल खिले हुए हैं,"
ਅਹੰ ਤਿਆਗਿ ਤਿਆਗੇ ॥ अहं तिआगि तिआगे ॥ हे मनुष्य ! अहम् को पूर्णतया त्याग दे
ਚਰਨ ਕਮਲ ਪਾਗੇ ॥ चरन कमल पागे ॥ चरण कमल में लीन होने से
ਤੁਮ ਮਿਲਹੁ ਪ੍ਰਭ ਸਭਾਗੇ ॥ तुम मिलहु प्रभ सभागे ॥ तुम्हें प्रभु मिल सकता है,"
ਹਰਿ ਚੇਤਿ ਮਨ ਮੇਰੇ ॥ ਰਹਾਉ ॥ हरि चेति मन मेरे ॥ रहाउ ॥ इसलिए हे मेरे मन ! ईश्वर का चिंतन कर लो॥रहाउ॥।
ਸਘਨ ਬਾਸੁ ਕੂਲੇ ॥ सघन बासु कूले ॥ कुछ पेड़ छायादार, खुशबूदार एवं कोमल होते हैं परन्तु
ਇਕਿ ਰਹੇ ਸੂਕਿ ਕਠੂਲੇ ॥ इकि रहे सूकि कठूले ॥ कुछ पेड़ शुष्क एवं कठोर लकड़ी वाले होते हैं।
ਬਸੰਤ ਰੁਤਿ ਆਈ ॥ ਪਰਫੂਲਤਾ ਰਹੇ ॥੧॥ बसंत रुति आई ॥ परफूलता रहे ॥१॥ बसंत ऋतु के आगमन पर पूरी वनस्पति प्रफुल्लित हो जाती है॥१॥
ਅਬ ਕਲੂ ਆਇਓ ਰੇ ॥ अब कलू आइओ रे ॥ हे जीव ! अब कलियुग आ गया है,
ਇਕੁ ਨਾਮੁ ਬੋਵਹੁ ਬੋਵਹੁ ॥ इकु नामु बोवहु बोवहु ॥ शरीर रूपी खेत में प्रभु नाम बो लो,
ਅਨ ਰੂਤਿ ਨਾਹੀ ਨਾਹੀ ॥ अन रूति नाही नाही ॥ अन्य मौसम (जन्म) मे शायद बोया नहीं जा सकेगा।
ਮਤੁ ਭਰਮਿ ਭੂਲਹੁ ਭੂਲਹੁ ॥ मतु भरमि भूलहु भूलहु ॥ अतः प्रभु का नाम वो लो। हे मन ! किसी भ्रम में मत भूलो क्योंकि
ਗੁਰ ਮਿਲੇ ਹਰਿ ਪਾਏ ॥ ਜਿਸੁ ਮਸਤਕਿ ਹੈ ਲੇਖਾ ॥ गुर मिले हरि पाए ॥ जिसु मसतकि है लेखा ॥ गुरु के मिलने पर ही परमात्मा प्राप्त होता है, जिसके मस्तक पर भाग्य होता है।
ਮਨ ਰੁਤਿ ਨਾਮ ਰੇ ॥ मन रुति नाम रे ॥ हे मन ! यह मौसम (अर्थात् मनुष्य जन्म) प्रभु नाम के सिमरन का है,
ਗੁਨ ਕਹੇ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਹਰੇ ਹਰਿ ਹਰੇ ॥੨॥੧੮॥ गुन कहे नानक हरि हरे हरि हरे ॥२॥१८॥ अतः नानक भी ईश्वर का यशोगान कर रहा है।॥२॥ १८॥
ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੨ ਹਿੰਡੋਲ बसंतु महला ५ घरु २ हिंडोल बसंतु महला ५ घरु २ हिंडोल
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਹੋਇ ਇਕਤ੍ਰ ਮਿਲਹੁ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ਦੁਬਿਧਾ ਦੂਰਿ ਕਰਹੁ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥ होइ इकत्र मिलहु मेरे भाई दुबिधा दूरि करहु लिव लाइ ॥ हे मेरे भाई ! आप सब एकत्रित होकर सत्संग में मिल जाओ और ईश्वर में ध्यान लगाकर दुविधा को दूर करो।
ਹਰਿ ਨਾਮੈ ਕੇ ਹੋਵਹੁ ਜੋੜੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੈਸਹੁ ਸਫਾ ਵਿਛਾਇ ॥੧॥ हरि नामै के होवहु जोड़ी गुरमुखि बैसहु सफा विछाइ ॥१॥ हरिनाम का भजन करने वालों के साथ जोड़ी बनाओ और गुरु के सन्मुख चौपड़ की बिसात बिछाकर बैठ जाओ॥१॥
ਇਨ੍ਹ੍ ਬਿਧਿ ਪਾਸਾ ਢਾਲਹੁ ਬੀਰ ॥ इन्ह बिधि पासा ढालहु बीर ॥ हे भाई ! इस तरीके से बाजी खेलकर शुभ कर्मों का पासा फॅको।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਅੰਤ ਕਾਲਿ ਨਹ ਲਾਗੈ ਪੀਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुरमुखि नामु जपहु दिनु राती अंत कालि नह लागै पीर ॥१॥ रहाउ ॥ गुरु के सन्मुख दिन-रात परमात्मा के नाम का जाप करो, इससे अन्तिम समय तुम्हें कोई दुख-तकलीफ नहीं लगेगी।॥१॥रहाउ॥।
ਕਰਮ ਧਰਮ ਤੁਮ੍ਹ੍ ਚਉਪੜਿ ਸਾਜਹੁ ਸਤੁ ਕਰਹੁ ਤੁਮ੍ਹ੍ ਸਾਰੀ ॥ करम धरम तुम्ह चउपड़ि साजहु सतु करहु तुम्ह सारी ॥ तुम शुभ कर्म एवं धर्म की चौपड़ बनाओ और सच्चाई की गोटियाँ तैयार कर लो।
ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਲੋਭੁ ਮੋਹੁ ਜੀਤਹੁ ਐਸੀ ਖੇਲ ਹਰਿ ਪਿਆਰੀ ॥੨॥ कामु क्रोधु लोभु मोहु जीतहु ऐसी खेल हरि पिआरी ॥२॥ काम, क्रोध, लोभ एवं मोह पर विजय पा लो, यही खेल ईश्वर को प्रिय है॥ २॥
ਉਠਿ ਇਸਨਾਨੁ ਕਰਹੁ ਪਰਭਾਤੇ ਸੋਏ ਹਰਿ ਆਰਾਧੇ॥ उठि इसनानु करहु परभाते सोए हरि आराधे ॥ प्रभात काल उठकर स्नान करो और ईश्वर की आराधना में लीन हो जाओ।
ਬਿਖੜੇ ਦਾਉ ਲੰਘਾਵੈ ਮੇਰਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੁਖ ਸਹਜ ਸੇਤੀ ਘਰਿ ਜਾਤੇ ॥੩॥ बिखड़े दाउ लंघावै मेरा सतिगुरु सुख सहज सेती घरि जाते ॥३॥ इस तरह मेरा सच्चा गुरु जीवन के विकट दांव से पार उतार देता है और जीव सुखपूर्वक अपने सच्चे घर पहुँच जाता है।॥३॥
ਹਰਿ ਆਪੇ ਖੇਲੈ ਆਪੇ ਦੇਖੈ ਹਰਿ ਆਪੇ ਰਚਨੁ ਰਚਾਇਆ ॥ हरि आपे खेलै आपे देखै हरि आपे रचनु रचाइआ ॥ ईश्वर स्वयं ही खेल खेलता है, देखता भी स्वयं ही है और उसने ही यह जगत रचना रची हुई है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜੋ ਨਰੁ ਖੇਲੈ ਸੋ ਜਿਣਿ ਬਾਜੀ ਘਰਿ ਆਇਆ ॥੪॥੧॥੧੯॥ जन नानक गुरमुखि जो नरु खेलै सो जिणि बाजी घरि आइआ ॥४॥१॥१९॥ हे नानक ! जो व्यक्ति गुरु के सान्निध्य में जिन्दगी रूपी खेल खेलता है, वहीं जीवन बाजी जीतकर अपने घर आता है॥४॥१॥ १६॥
ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੫ ਹਿੰਡੋਲ ॥ बसंतु महला ५ हिंडोल ॥ बसंतु महला ५ हिंडोल॥
ਤੇਰੀ ਕੁਦਰਤਿ ਤੂਹੈ ਜਾਣਹਿ ਅਉਰੁ ਨ ਦੂਜਾ ਜਾਣੈ ॥ तेरी कुदरति तूहै जाणहि अउरु न दूजा जाणै ॥ हे स्रष्टा ! अपनी कुदरत को तू ही जानता है, कोई दूसरा नहीं जानता।
ਜਿਸ ਨੋ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਹਿ ਮੇਰੇ ਪਿਆਰੇ ਸੋਈ ਤੁਝੈ ਪਛਾਣੈ ॥੧॥ जिस नो क्रिपा करहि मेरे पिआरे सोई तुझै पछाणै ॥१॥ हे मेरे प्यारे ! जिस पर तू कृपा करता है, वही तुझे पहचान पाता है॥१॥
ਤੇਰਿਆ ਭਗਤਾ ਕਉ ਬਲਿਹਾਰਾ ॥ तेरिआ भगता कउ बलिहारा ॥ मैं तेरे भक्तों पर कुर्बान जाता हूँ।
ਥਾਨੁ ਸੁਹਾਵਾ ਸਦਾ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰਾ ਰੰਗ ਤੇਰੇ ਆਪਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ थानु सुहावा सदा प्रभ तेरा रंग तेरे आपारा ॥१॥ रहाउ ॥ हे प्रभु !तेरा स्थान बहुत सुहावना है और तेरी लीलाएँ विचित्र हैं।॥१॥रहाउ॥।
ਤੇਰੀ ਸੇਵਾ ਤੁਝ ਤੇ ਹੋਵੈ ਅਉਰੁ ਨ ਦੂਜਾ ਕਰਤਾ ॥ तेरी सेवा तुझ ते होवै अउरु न दूजा करता ॥ तेरी सेवा भक्ति तेरे प्रोत्साहन से ही होती है, अन्य कोई भी तेरी मर्जी के बिना नहीं कर सकता।
ਭਗਤੁ ਤੇਰਾ ਸੋਈ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਜਿਸ ਨੋ ਤੂ ਰੰਗੁ ਧਰਤਾ ॥੨॥ भगतु तेरा सोई तुधु भावै जिस नो तू रंगु धरता ॥२॥ जो तुझे अच्छा लगता है, वही तेरा भक्त है, जिसे तू भक्ति के रंग में रंग देता है।॥२॥


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