Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1182

Page 1182

ਤੂ ਕਰਿ ਗਤਿ ਮੇਰੀ ਪ੍ਰਭ ਦਇਆਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ तू करि गति मेरी प्रभ दइआर ॥१॥ रहाउ ॥ हे दयालु प्रभु ! तू ही मेरी मुक्ति कर॥१॥रहाउ॥।
ਜਾਪ ਨ ਤਾਪ ਨ ਕਰਮ ਕੀਤਿ ॥ जाप न ताप न करम कीति ॥ न कोई जाप किया, न तपस्या की, न ही शुभ कर्म किया
ਆਵੈ ਨਾਹੀ ਕਛੂ ਰੀਤਿ ॥ आवै नाही कछू रीति ॥ और तो और कोई रस्म-रिवाज भी नहीं आती।
ਮਨ ਮਹਿ ਰਾਖਉ ਆਸ ਏਕ ॥ मन महि राखउ आस एक ॥ बस मन में एक यही उम्मीद है कि
ਨਾਮ ਤੇਰੇ ਕੀ ਤਰਉ ਟੇਕ ॥੨॥ नाम तेरे की तरउ टेक ॥२॥ तेरे नाम के सहारे संसार-सागर से पार हो जाऊँगा॥२॥
ਸਰਬ ਕਲਾ ਪ੍ਰਭ ਤੁਮ੍ਹ੍ ਪ੍ਰਬੀਨ ॥ सरब कला प्रभ तुम्ह प्रबीन ॥ हे प्रभु ! तुम सर्व शक्तियों में निपुण हो और
ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਵਹਿ ਜਲਹਿ ਮੀਨ ॥ अंतु न पावहि जलहि मीन ॥ जल में रहने वाली मछलियों की मानिंद तेरा रहस्य नहीं पा सके।
ਅਗਮ ਅਗਮ ਊਚਹ ਤੇ ਊਚ ॥ अगम अगम ऊचह ते ऊच ॥ तू असीम, अगम्य एवं ऊँचे से ऊँचा महान् है।
ਹਮ ਥੋਰੇ ਤੁਮ ਬਹੁਤ ਮੂਚ ॥੩॥ हम थोरे तुम बहुत मूच ॥३॥ हम तुच्छ हैं और तुम पूरे विश्व में बहुत बड़े हो॥३॥
ਜਿਨ ਤੂ ਧਿਆਇਆ ਸੇ ਗਨੀ ॥ जिन तू धिआइआ से गनी ॥ जिसने तेरा ध्यान किया है, वही यशस्वी है,
ਜਿਨ ਤੂ ਪਾਇਆ ਸੇ ਧਨੀ ॥ जिन तू पाइआ से धनी ॥ जिसने तुझे पाया है, वास्तव में वही धनवान है।
ਜਿਨਿ ਤੂ ਸੇਵਿਆ ਸੁਖੀ ਸੇ ॥ जिनि तू सेविआ सुखी से ॥ नानक का कथन है कि हे प्रभु! जिसने तेरी भक्ति-अर्चना की है,
ਸੰਤ ਸਰਣਿ ਨਾਨਕ ਪਰੇ ॥੪॥੭॥ संत सरणि नानक परे ॥४॥७॥ वही सुखी है और वह संतों की शरण में ही पड़ा रहता है।॥४॥७॥
ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ बसंतु महला ५ ॥ बसंतु महला ५॥
ਤਿਸੁ ਤੂ ਸੇਵਿ ਜਿਨਿ ਤੂ ਕੀਆ ॥ तिसु तू सेवि जिनि तू कीआ ॥ हे मनुष्य ! जिसने तुझे बनाया है, उसी की तू उपासना कर।
ਤਿਸੁ ਅਰਾਧਿ ਜਿਨਿ ਜੀਉ ਦੀਆ ॥ तिसु अराधि जिनि जीउ दीआ ॥ जिसने तुझे प्राण दिए हैं, उसी की आराधना कर।
ਤਿਸ ਕਾ ਚਾਕਰੁ ਹੋਹਿ ਫਿਰਿ ਡਾਨੁ ਨ ਲਾਗੈ ॥ तिस का चाकरु होहि फिरि डानु न लागै ॥ अगर तू उसका सेवक बन जाएगा तो पुनः कोई दण्ड प्राप्त नहीं होगा।
ਤਿਸ ਕੀ ਕਰਿ ਪੋਤਦਾਰੀ ਫਿਰਿ ਦੂਖੁ ਨ ਲਾਗੈ ॥੧॥ तिस की करि पोतदारी फिरि दूखु न लागै ॥१॥ अगर तू उसकी नियामतों का कोषाध्यक्ष मानकर चले तो पुनः कोई दुख भी पास नहीं फटकेगा॥१॥
ਏਵਡ ਭਾਗ ਹੋਹਿ ਜਿਸੁ ਪ੍ਰਾਣੀ ॥ एवड भाग होहि जिसु प्राणी ॥ जिस प्राणी के इतने अहोभाग्य होते हैं,
ਸੋ ਪਾਏ ਇਹੁ ਪਦੁ ਨਿਰਬਾਣੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सो पाए इहु पदु निरबाणी ॥१॥ रहाउ ॥ वही यह उच्च पद प्राप्त करता है॥ १॥ रहाउ॥
ਦੂਜੀ ਸੇਵਾ ਜੀਵਨੁ ਬਿਰਥਾ ॥ दूजी सेवा जीवनु बिरथा ॥ ईश्वर के अतिरिक्त किसी अन्य की सेवा से जीवन व्यर्थ ही जाता है और
ਕਛੂ ਨ ਹੋਈ ਹੈ ਪੂਰਨ ਅਰਥਾ ॥ कछू न होई है पूरन अरथा ॥ कोई कामना अथवा जरूरत पूरी नहीं होती।
ਮਾਣਸ ਸੇਵਾ ਖਰੀ ਦੁਹੇਲੀ ॥ माणस सेवा खरी दुहेली ॥ लोगों की सेवा से दुख ही नसीब होता है,
ਸਾਧ ਕੀ ਸੇਵਾ ਸਦਾ ਸੁਹੇਲੀ ॥੨॥ साध की सेवा सदा सुहेली ॥२॥ मगर साधु-महात्मा की सेवा करने से सदा सुखों की लब्धि होती है।॥२॥
ਜੇ ਲੋੜਹਿ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਭਾਈ ॥ जे लोड़हि सदा सुखु भाई ॥ हे भाई ! यदि तू सदा सुख पाना चाहता है तो
ਸਾਧੂ ਸੰਗਤਿ ਗੁਰਹਿ ਬਤਾਈ ॥ साधू संगति गुरहि बताई ॥ गुरु ने यही सन्मार्ग बताया कि साधु पुरुषों की संगत करो।
ਊਹਾ ਜਪੀਐ ਕੇਵਲ ਨਾਮ ॥ ऊहा जपीऐ केवल नाम ॥ यहाँ केवल ईश्वर के नाम का जाप किया जाता है और
ਸਾਧੂ ਸੰਗਤਿ ਪਾਰਗਰਾਮ ॥੩॥ साधू संगति पारगराम ॥३॥ साधु-पुरुषों की संगत में ही मुक्ति होती है।॥३॥
ਸਗਲ ਤਤ ਮਹਿ ਤਤੁ ਗਿਆਨੁ ॥ सगल तत महि ततु गिआनु ॥ सब तत्वों में ज्ञान तत्व सर्वश्रेष्ठ है।
ਸਰਬ ਧਿਆਨ ਮਹਿ ਏਕੁ ਧਿਆਨੁ ॥ सरब धिआन महि एकु धिआनु ॥ सब ध्यानों में केवल परमात्मा का ध्यान फलप्रद है।
ਹਰਿ ਕੀਰਤਨ ਮਹਿ ਊਤਮ ਧੁਨਾ ॥ हरि कीरतन महि ऊतम धुना ॥ उत्तम ध्वनि ईश्वर के संकीर्तन में होती है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਗਾਇ ਗੁਨਾ ॥੪॥੮॥ नानक गुर मिलि गाइ गुना ॥४॥८॥ नानक फुरमाते हैं कि गुरु को मिलकर भगवान का गुणगान करो॥४॥८॥
ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ बसंतु महला ५ ॥ बसंतु महला ५॥
ਜਿਸੁ ਬੋਲਤ ਮੁਖੁ ਪਵਿਤੁ ਹੋਇ ॥ जिसु बोलत मुखु पवितु होइ ॥ जिसका नाम जपने से मुँह पवित्र हो जाता है,
ਜਿਸੁ ਸਿਮਰਤ ਨਿਰਮਲ ਹੈ ਸੋਇ ॥ जिसु सिमरत निरमल है सोइ ॥ जिसका स्मरण करने से मान-प्रतिष्ठा प्राप्त होती है,
ਜਿਸੁ ਅਰਾਧੇ ਜਮੁ ਕਿਛੁ ਨ ਕਹੈ ॥ जिसु अराधे जमु किछु न कहै ॥ जिसकी आराधना करने से यम भी तंग नहीं करता,
ਜਿਸ ਕੀ ਸੇਵਾ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਲਹੈ ॥੧॥ जिस की सेवा सभु किछु लहै ॥१॥ जिसकी भक्ति करने से सबकुछ प्राप्त होता है॥१॥
ਰਾਮ ਰਾਮ ਬੋਲਿ ਰਾਮ ਰਾਮ ॥ राम राम बोलि राम राम ॥ प्रेम से राम राम जपते रहो और
ਤਿਆਗਹੁ ਮਨ ਕੇ ਸਗਲ ਕਾਮ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ तिआगहु मन के सगल काम ॥१॥ रहाउ ॥ मन की सब लालसाओं को त्याग दो॥ १॥रहाउ॥।
ਜਿਸ ਕੇ ਧਾਰੇ ਧਰਣਿ ਅਕਾਸੁ ॥ जिस के धारे धरणि अकासु ॥ उस अनंतशक्ति परमेश्वर ने धरती और आकाश को टिकाया हुआ है,
ਘਟਿ ਘਟਿ ਜਿਸ ਕਾ ਹੈ ਪ੍ਰਗਾਸੁ ॥ घटि घटि जिस का है प्रगासु ॥ घट घट में उस प्रभु का आलोक है।
ਜਿਸੁ ਸਿਮਰਤ ਪਤਿਤ ਪੁਨੀਤ ਹੋਇ ॥ जिसु सिमरत पतित पुनीत होइ ॥ जिसका स्मरण करने से पतित जीव भी पावन हो जाते हैं,
ਅੰਤ ਕਾਲਿ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਨ ਰੋਇ ॥੨॥ अंत कालि फिरि फिरि न रोइ ॥२॥ अंतकाल पुनः पुनः पछताना नहीं पड़ता॥२॥
ਸਗਲ ਧਰਮ ਮਹਿ ਊਤਮ ਧਰਮ ॥ सगल धरम महि ऊतम धरम ॥ ईशोपासना सब धर्मों में उत्तम धर्म है,
ਕਰਮ ਕਰਤੂਤਿ ਕੈ ਊਪਰਿ ਕਰਮ ॥ करम करतूति कै ऊपरि करम ॥ जितने भी कर्म हैं, उन से ईश्वर की सेवा ही बड़ा कर्म है।
ਜਿਸ ਕਉ ਚਾਹਹਿ ਸੁਰਿ ਨਰ ਦੇਵ ॥ जिस कउ चाहहि सुरि नर देव ॥ जिस सर्वशक्तिमान को मनुष्य एवं देवता भी पाने के आकांक्षी हैं,
ਸੰਤ ਸਭਾ ਕੀ ਲਗਹੁ ਸੇਵ ॥੩॥ संत सभा की लगहु सेव ॥३॥ संतों की सभा में उसके भजन में तल्लीन रहो॥३॥
ਆਦਿ ਪੁਰਖਿ ਜਿਸੁ ਕੀਆ ਦਾਨੁ ॥ आदि पुरखि जिसु कीआ दानु ॥ जिस पुरुष को आदिपुरुष ने दान दिया है,
ਤਿਸ ਕਉ ਮਿਲਿਆ ਹਰਿ ਨਿਧਾਨੁ ॥ तिस कउ मिलिआ हरि निधानु ॥ उसे ही हरिनाम रूपी सुखों की निधि प्राप्त हुई है।
ਤਿਸ ਕੀ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਕਹੀ ਨ ਜਾਇ ॥ तिस की गति मिति कही न जाइ ॥ नानक का कथन है कि उसकी महिमा बताई नहीं जा सकती,
ਨਾਨਕ ਜਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਧਿਆਇ ॥੪॥੯॥ नानक जन हरि हरि धिआइ ॥४॥९॥ अतः ईश्वर के ध्यान में निमग्न रहो॥४॥९॥
ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ बसंतु महला ५ ॥ बसंतु महला ५॥
ਮਨ ਤਨ ਭੀਤਰਿ ਲਾਗੀ ਪਿਆਸ ॥ मन तन भीतरि लागी पिआस ॥ मन तन में तीव्र लालसा लगी हुई थी,
ਗੁਰਿ ਦਇਆਲਿ ਪੂਰੀ ਮੇਰੀ ਆਸ ॥ गुरि दइआलि पूरी मेरी आस ॥ दयालु गुरु ने मेरी आशा पूरी कर दी है।
ਕਿਲਵਿਖ ਕਾਟੇ ਸਾਧਸੰਗਿ ॥ किलविख काटे साधसंगि ॥ साधु पुरुषों की संगत ने सब पाप काट दिए हैं,
ਨਾਮੁ ਜਪਿਓ ਹਰਿ ਨਾਮ ਰੰਗਿ ॥੧॥ नामु जपिओ हरि नाम रंगि ॥१॥ हमने प्रेमपूर्वक हरिनाम का ही जाप किया है॥१॥
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਬਸੰਤੁ ਬਨਾ ॥ गुर परसादि बसंतु बना ॥ गुरु की कृपा से बसंत का मौसम बन गया है,
ਚਰਨ ਕਮਲ ਹਿਰਦੈ ਉਰਿ ਧਾਰੇ ਸਦਾ ਸਦਾ ਹਰਿ ਜਸੁ ਸੁਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ चरन कमल हिरदै उरि धारे सदा सदा हरि जसु सुना ॥१॥ रहाउ ॥ हृदय में प्रभु चरणों को ही धारण किया है। मैं हर पल ईश्वर का यश सुनता हूँ॥१॥ रहाउ॥।


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