Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1180

Page 1180

ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੧ ਦੁਤੁਕੇ बसंतु महला ५ घरु १ दुतुके बसंतु महला ५ घरु १ दुतुके
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਗੁਰੁ ਸੇਵਉ ਕਰਿ ਨਮਸਕਾਰ ॥ गुरु सेवउ करि नमसकार ॥ मैं अभिवन्दन करके गुरु की आराधना करता हूँ।
ਆਜੁ ਹਮਾਰੈ ਮੰਗਲਚਾਰ ॥ आजु हमारै मंगलचार ॥ आज हमारे यहां खुशियों का त्यौहार मनाया जा रहा है,
ਆਜੁ ਹਮਾਰੈ ਮਹਾ ਅਨੰਦ ॥ आजु हमारै महा अनंद ॥ आज हमारे यहाँ आनंद ही आनंद छा गया है।
ਚਿੰਤ ਲਥੀ ਭੇਟੇ ਗੋਬਿੰਦ ॥੧॥ चिंत लथी भेटे गोबिंद ॥१॥ दरअसल मुझे ईश्वर मिल गया है, जिससे सारी चिंता निवृत्त हो गई है॥१॥
ਆਜੁ ਹਮਾਰੈ ਗ੍ਰਿਹਿ ਬਸੰਤ ॥ आजु हमारै ग्रिहि बसंत ॥ आज हमारे घर में वसंत का मौसम बन गया है,
ਗੁਨ ਗਾਏ ਪ੍ਰਭ ਤੁਮ੍ਹ੍ ਬੇਅੰਤ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुन गाए प्रभ तुम्ह बेअंत ॥१॥ रहाउ ॥ हे प्रभु ! तुम बेअन्त (अनन्त) हो, हमने तेरे ही गुण गाए हैं॥१॥रहाउ॥
ਆਜੁ ਹਮਾਰੈ ਬਨੇ ਫਾਗ ॥ आजु हमारै बने फाग ॥ आज हमारे यहाँ होली का त्यौहार बना हुआ है और
ਪ੍ਰਭ ਸੰਗੀ ਮਿਲਿ ਖੇਲਨ ਲਾਗ ॥ प्रभ संगी मिलि खेलन लाग ॥ प्रभु-भक्तों के संग मिलकर होली खेलने लग गए हैं।
ਹੋਲੀ ਕੀਨੀ ਸੰਤ ਸੇਵ ॥ होली कीनी संत सेव ॥ संत पुरुषों की सेवा ही होली रूप में मनाई है और
ਰੰਗੁ ਲਾਗਾ ਅਤਿ ਲਾਲ ਦੇਵ ॥੨॥ रंगु लागा अति लाल देव ॥२॥ उनके प्रेम का अति गहरा रंग लग गया है॥२॥
ਮਨੁ ਤਨੁ ਮਉਲਿਓ ਅਤਿ ਅਨੂਪ ॥ मनु तनु मउलिओ अति अनूप ॥ मन तन अत्यंत अनुपम बनकर खिला है,
ਸੂਕੈ ਨਾਹੀ ਛਾਵ ਧੂਪ ॥ सूकै नाही छाव धूप ॥ अब चाहे खुशी-गम रूपी धूप-छाँव हो तो भी मन नहीं मुरझाता।
ਸਗਲੀ ਰੂਤੀ ਹਰਿਆ ਹੋਇ ॥ सगली रूती हरिआ होइ ॥ सब ऋतुएँ हरित हो गई हैं,
ਸਦ ਬਸੰਤ ਗੁਰ ਮਿਲੇ ਦੇਵ ॥੩॥ सद बसंत गुर मिले देव ॥३॥ गुरुदेव से मिलकर सदा के लिए आनंद हो गया है॥३॥
ਬਿਰਖੁ ਜਮਿਓ ਹੈ ਪਾਰਜਾਤ ॥ बिरखु जमिओ है पारजात ॥ इच्छाओं की पूर्ति करने वाला पारिजात वृक्ष मन में पैदा हो गया है,
ਫੂਲ ਲਗੇ ਫਲ ਰਤਨ ਭਾਂਤਿ ॥ फूल लगे फल रतन भांति ॥ जिस पर रत्नों की मानिंद भिन्न-भिन्न फल-फूल लगे हैं।
ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਅਘਾਨੇ ਹਰਿ ਗੁਣਹ ਗਾਇ ॥ त्रिपति अघाने हरि गुणह गाइ ॥ भगवान की महिमागान करने से मन तृप्त एवं संतुष्ट हो जाता है,
ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਧਿਆਇ ॥੪॥੧॥ जन नानक हरि हरि हरि धिआइ ॥४॥१॥ अतः नानक हरदम प्रभु का भजन करता रहता है॥ ४॥१॥
ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ बसंतु महला ५ ॥ बसंतु महला ५॥
ਹਟਵਾਣੀ ਧਨ ਮਾਲ ਹਾਟੁ ਕੀਤੁ ॥ हटवाणी धन माल हाटु कीतु ॥ ज्यों दुकानदार (शाक-सब्जी, खाने-पीने इत्यादि) भिन्न-भिन्न चीजों की दुकान करता है,
ਜੂਆਰੀ ਜੂਏ ਮਾਹਿ ਚੀਤੁ ॥ जूआरी जूए माहि चीतु ॥ जुआरी का मन जुए में लगा रहता है,
ਅਮਲੀ ਜੀਵੈ ਅਮਲੁ ਖਾਇ ॥ अमली जीवै अमलु खाइ ॥ नशेड़ी नशे का सेवन करके जीता है,
ਤਿਉ ਹਰਿ ਜਨੁ ਜੀਵੈ ਹਰਿ ਧਿਆਇ ॥੧॥ तिउ हरि जनु जीवै हरि धिआइ ॥१॥ त्यों प्रभु-भक्त प्रभु भजन में ही जीता है॥१॥
ਅਪਨੈ ਰੰਗਿ ਸਭੁ ਕੋ ਰਚੈ ॥ अपनै रंगि सभु को रचै ॥ प्रत्येक व्यक्ति अपनी-अपनी चाह में लीन है,
ਜਿਤੁ ਪ੍ਰਭਿ ਲਾਇਆ ਤਿਤੁ ਤਿਤੁ ਲਗੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जितु प्रभि लाइआ तितु तितु लगै ॥१॥ रहाउ ॥ दरअसल जिधर प्रभु ने उनको लगाया है, उधर ही सब लगे हुए हैं।॥१॥रहाउ॥
ਮੇਘ ਸਮੈ ਮੋਰ ਨਿਰਤਿਕਾਰ ॥ मेघ समै मोर निरतिकार ॥ जैसे मेघों को देखकर मोर खुशी से आनंद पाती है,
ਚੰਦ ਦੇਖਿ ਬਿਗਸਹਿ ਕਉਲਾਰ ॥ चंद देखि बिगसहि कउलार ॥ चन्द्रमा को देख कर बबीहा प्रसन्न होता है और
ਮਾਤਾ ਬਾਰਿਕ ਦੇਖਿ ਅਨੰਦ ॥ माता बारिक देखि अनंद ॥ माता को अपना बालक देख के आनद होता है
ਤਿਉ ਹਰਿ ਜਨ ਜੀਵਹਿ ਜਪਿ ਗੋਬਿੰਦ ॥੨॥ तिउ हरि जन जीवहि जपि गोबिंद ॥२॥ वैसे ही भक्तजन ईश्वर को जपकर जीवन पाते हैं।॥२॥
ਸਿੰਘ ਰੁਚੈ ਸਦ ਭੋਜਨੁ ਮਾਸ ॥ सिंघ रुचै सद भोजनु मास ॥ जिस तरह शेर को माँस का भोजन बड़ा पसंद आता है,
ਰਣੁ ਦੇਖਿ ਸੂਰੇ ਚਿਤ ਉਲਾਸ ॥ रणु देखि सूरे चित उलास ॥ युद्ध देखकर शूरवीरों के मन में उल्लास पैदा हो जाता है,
ਕਿਰਪਨ ਕਉ ਅਤਿ ਧਨ ਪਿਆਰੁ ॥ किरपन कउ अति धन पिआरु ॥ कंजूस को धन से बहुत प्रेम होता है,
ਹਰਿ ਜਨ ਕਉ ਹਰਿ ਹਰਿ ਆਧਾਰੁ ॥੩॥ हरि जन कउ हरि हरि आधारु ॥३॥ उसी तरह हरि-भक्तों को हरि का आधार है॥३॥
ਸਰਬ ਰੰਗ ਇਕ ਰੰਗ ਮਾਹਿ ॥ सरब रंग इक रंग माहि ॥ एक ईश्वर के रंग में ही तमाम रंग हैं और
ਸਰਬ ਸੁਖਾ ਸੁਖ ਹਰਿ ਕੈ ਨਾਇ ॥ सरब सुखा सुख हरि कै नाइ ॥ हरि के नाम में ही सर्व सुखों के सुख हैं।
ਤਿਸਹਿ ਪਰਾਪਤਿ ਇਹੁ ਨਿਧਾਨੁ ॥ ਨਾਨਕ ਗੁਰੁ ਜਿਸੁ ਕਰੇ ਦਾਨੁ ॥੪॥੨॥ तिसहि परापति इहु निधानु ॥ नानक गुरु जिसु करे दानु ॥४॥२॥ हे नानक ! गुरु जिसे प्रदान करता है उसे ही यह सुखों का भण्डार प्राप्त होता है ॥४॥२॥
ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ बसंतु महला ५ ॥ बसंतु महला ५॥
ਤਿਸੁ ਬਸੰਤੁ ਜਿਸੁ ਪ੍ਰਭੁ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ॥ तिसु बसंतु जिसु प्रभु क्रिपालु ॥ जिस पर प्रभु कृपालु होता है, उसी के लिए वसंत में खुशियाँ ही खुशियाँ हैं।
ਤਿਸੁ ਬਸੰਤੁ ਜਿਸੁ ਗੁਰੁ ਦਇਆਲੁ ॥ तिसु बसंतु जिसु गुरु दइआलु ॥ जिस पर गुरु दयालु होता है, उसी के लिए वसंत में खुशियाँ हैं।
ਮੰਗਲੁ ਤਿਸ ਕੈ ਜਿਸੁ ਏਕੁ ਕਾਮੁ ॥ मंगलु तिस कै जिसु एकु कामु ॥ जिसका एक ही काम प्रभु भजन है, उसी के लिए खुशियों के मंगल हैं,
ਤਿਸੁ ਸਦ ਬਸੰਤੁ ਜਿਸੁ ਰਿਦੈ ਨਾਮੁ ॥੧॥ तिसु सद बसंतु जिसु रिदै नामु ॥१॥ जिसके हृदय में प्रभु नाम अवस्थित है, उसके लिए सदा वसंत का आनंद है॥१॥
ਗ੍ਰਿਹਿ ਤਾ ਕੇ ਬਸੰਤੁ ਗਨੀ ॥ ग्रिहि ता के बसंतु गनी ॥ उस घर में वसंत का आनंद है,
ਜਾ ਕੈ ਕੀਰਤਨੁ ਹਰਿ ਧੁਨੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जा कै कीरतनु हरि धुनी ॥१॥ रहाउ ॥ जहाँ ईश्वर का संकीर्तन हो रहा होता है॥१॥रहाउ॥।
ਪ੍ਰੀਤਿ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਮਉਲਿ ਮਨਾ ॥ प्रीति पारब्रहम मउलि मना ॥ परब्रह्म से प्रेम उत्पन्न होने से मन खिल जाता है।
ਗਿਆਨੁ ਕਮਾਈਐ ਪੂਛਿ ਜਨਾਂ ॥ गिआनु कमाईऐ पूछि जनां ॥ भक्तजनों से अनुरोध कर ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
ਸੋ ਤਪਸੀ ਜਿਸੁ ਸਾਧਸੰਗੁ ॥ सो तपसी जिसु साधसंगु ॥ वही तपस्वी है, जो सत्संग करता है।
ਸਦ ਧਿਆਨੀ ਜਿਸੁ ਗੁਰਹਿ ਰੰਗੁ ॥੨॥ सद धिआनी जिसु गुरहि रंगु ॥२॥ जिसके मन में गुरु से प्रेम है, वही ध्यानी है।॥२॥
ਸੇ ਨਿਰਭਉ ਜਿਨ੍ਹ੍ ਭਉ ਪਇਆ ॥ से निरभउ जिन्ह भउ पइआ ॥ वास्तव में वही निडर है, जिसे ईश्वर का भय प्राप्त है।
ਸੋ ਸੁਖੀਆ ਜਿਸੁ ਭ੍ਰਮੁ ਗਇਆ ॥ सो सुखीआ जिसु भ्रमु गइआ ॥ वही सुखी है, जिसका भ्रम निवृत्त हो गया है।
ਸੋ ਇਕਾਂਤੀ ਜਿਸੁ ਰਿਦਾ ਥਾਇ ॥ सो इकांती जिसु रिदा थाइ ॥ वही एकांती है, जिसने हृदय में स्थान बना लिया है।
ਸੋਈ ਨਿਹਚਲੁ ਸਾਚ ਠਾਇ ॥੩॥ सोई निहचलु साच ठाइ ॥३॥ दरअसल वही निश्चल एवं शाश्वत ठिकाना है॥३॥
ਏਕਾ ਖੋਜੈ ਏਕ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥ एका खोजै एक प्रीति ॥ एक ईश्वर की प्रीति में रत होकर वह उसी को खोजता है और
ਦਰਸਨ ਪਰਸਨ ਹੀਤ ਚੀਤਿ ॥ दरसन परसन हीत चीति ॥ उसके मन में प्रभु दर्शनों की चाह होती है।
ਹਰਿ ਰੰਗ ਰੰਗਾ ਸਹਜਿ ਮਾਣੁ ॥ हरि रंग रंगा सहजि माणु ॥ वह सब रंगों में सहज स्वाभाविक प्रभु रंग का आनंद पाता है,
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਤਿਸੁ ਜਨ ਕੁਰਬਾਣੁ ॥੪॥੩॥ नानक दास तिसु जन कुरबाणु ॥४॥३॥ दास नानक उस जिज्ञासु पर कुर्बान जाता है॥४॥३॥


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