Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1175

Page 1175

ਦਰਿ ਸਾਚੈ ਸਚੁ ਸੋਭਾ ਹੋਇ ॥ दरि साचै सचु सोभा होइ ॥ उस सच्चे प्रभु के दरबार में ही शोभा प्राप्त होती है और
ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਾਸਾ ਪਾਵੈ ਸੋਇ ॥੩॥ निज घरि वासा पावै सोइ ॥३॥ उसे ही अपने सच्चे घर में निवास प्राप्त होता है॥३॥
ਆਪਿ ਅਭੁਲੁ ਸਚਾ ਸਚੁ ਸੋਇ ॥ आपि अभुलु सचा सचु सोइ ॥ परमात्मा कोई भूल नहीं करता, वही शाश्वत है,
ਹੋਰਿ ਸਭਿ ਭੂਲਹਿ ਦੂਜੈ ਪਤਿ ਖੋਇ ॥ होरि सभि भूलहि दूजै पति खोइ ॥ शेष संसार के सब लोग भूल कर रहे हैं और द्वैतभाव में अपनी प्रतिष्ठा खो देते हैं।
ਸਾਚਾ ਸੇਵਹੁ ਸਾਚੀ ਬਾਣੀ ॥ साचा सेवहु साची बाणी ॥ शुद्ध वाणी से ईश्वर का भजन करो,
ਨਾਨਕ ਨਾਮੇ ਸਾਚਿ ਸਮਾਣੀ ॥੪॥੯॥ नानक नामे साचि समाणी ॥४॥९॥ हे नानक ! यह वाणी सत्य की स्तुति में ही लीन रहती है॥४॥९॥
ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥ बसंतु महला ३ ॥ बसंतु महला ३॥
ਬਿਨੁ ਕਰਮਾ ਸਭ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਈ ॥ बिनु करमा सभ भरमि भुलाई ॥ परमात्मा की कृपा के बिना सब लोग भ्रमों में भूले हुए हैं और
ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਬਹੁਤੁ ਦੁਖੁ ਪਾਈ ॥ माइआ मोहि बहुतु दुखु पाई ॥ माया मोह में बहुत दुख पाते हैं।
ਮਨਮੁਖ ਅੰਧੇ ਠਉਰ ਨ ਪਾਈ ॥ मनमुख अंधे ठउर न पाई ॥ अन्धे स्वेच्छाचारी को कहीं ठौर-ठिकाना प्राप्त नहीं होता,
ਬਿਸਟਾ ਕਾ ਕੀੜਾ ਬਿਸਟਾ ਮਾਹਿ ਸਮਾਈ ॥੧॥ बिसटा का कीड़ा बिसटा माहि समाई ॥१॥ इस तरह विष्ठा का कीड़ा विष्ठा में ही मिला रहता है।॥१॥
ਹੁਕਮੁ ਮੰਨੇ ਸੋ ਜਨੁ ਪਰਵਾਣੁ ॥ हुकमु मंने सो जनु परवाणु ॥ जो हुक्म को मानता है, उसी का जीवन सफल होता है।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਨਾਮਿ ਨੀਸਾਣੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुर कै सबदि नामि नीसाणु ॥१॥ रहाउ ॥ गुरु के शब्द द्वारा उसे नाम का निशान प्राप्त हो जाता है।॥१॥रहाउ॥
ਸਾਚਿ ਰਤੇ ਜਿਨ੍ਹਾ ਧੁਰਿ ਲਿਖਿ ਪਾਇਆ ॥ साचि रते जिन्हा धुरि लिखि पाइआ ॥ जिनके भाग्य में लिखा होता है, वे ईश्वर में ही लीन रहते हैं और
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਸਦਾ ਮਨਿ ਭਾਇਆ ॥ हरि का नामु सदा मनि भाइआ ॥ प्रभु का नाम सदा उनके मन को अच्छा लगता है।
ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਬਾਣੀ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥ सतिगुर की बाणी सदा सुखु होइ ॥ सतगुरु की वाणी से सदा सुख प्राप्त होता है और
ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਮਿਲਾਏ ਸੋਇ ॥੨॥ जोती जोति मिलाए सोइ ॥२॥ वही आत्म-ज्योति को परम-ज्योति से मिलाती है॥२॥
ਏਕੁ ਨਾਮੁ ਤਾਰੇ ਸੰਸਾਰੁ ॥ एकु नामु तारे संसारु ॥ केवल परमात्मा का नाम ही संसार को मुक्ति प्रदान करने वाला है,
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਨਾਮ ਪਿਆਰੁ ॥ गुर परसादी नाम पिआरु ॥ गुरु की कृपा से नाम से प्रेम होता है।
ਬਿਨੁ ਨਾਮੈ ਮੁਕਤਿ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਈ ॥ बिनु नामै मुकति किनै न पाई ॥ प्रभु-नाम बिना किसी ने मुक्ति प्राप्त नहीं की और
ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਤੇ ਨਾਮੁ ਪਲੈ ਪਾਈ ॥੩॥ पूरे गुर ते नामु पलै पाई ॥३॥ पूरे गुरु से ही नाम प्राप्त होता है॥३॥
ਸੋ ਬੂਝੈ ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਬੁਝਾਏ ॥ सो बूझै जिसु आपि बुझाए ॥ वही समझता है, जिसे परब्रह्म स्वयं समझाता है।
ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵਾ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜ੍ਹ੍ਹਾਏ ॥ सतिगुर सेवा नामु द्रिड़्हाए ॥ सतगुरु की सेवा से प्रभु का नाम दृढ़ करवाता है।
ਜਿਨ ਇਕੁ ਜਾਤਾ ਸੇ ਜਨ ਪਰਵਾਣੁ ॥ जिन इकु जाता से जन परवाणु ॥ जिसने ईश्वर को जान लिया है, वही व्यक्ति परवान हुआ है,
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਦਰਿ ਨੀਸਾਣੁ ॥੪॥੧੦॥ नानक नामि रते दरि नीसाणु ॥४॥१०॥ हे नानक ! प्रभु नाम में निमग्न जीव उसके द्वार को पाते हैं।॥४॥ १०॥
ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥ बसंतु महला ३ ॥ बसंतु महला ३॥
ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ਸਤਿਗੁਰੂ ਮਿਲਾਏ ॥ क्रिपा करे सतिगुरू मिलाए ॥ जिस परं ईश्वर कृपा करता है, उसे सतगुरु से मिला देता है और
ਆਪੇ ਆਪਿ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਏ ॥ आपे आपि वसै मनि आए ॥ स्वतः ही मन में आ बसता है।
ਨਿਹਚਲ ਮਤਿ ਸਦਾ ਮਨ ਧੀਰ ॥ निहचल मति सदा मन धीर ॥ तदुपरांत जीव की मति निश्चल हो जाती है और उसका मन सदैव शांत रहता है।
ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਗੁਣੀ ਗਹੀਰ ॥੧॥ हरि गुण गावै गुणी गहीर ॥१॥ फिर वह गुणी गम्भीर प्रभु के गुण गाता रहता है॥१॥
ਨਾਮਹੁ ਭੂਲੇ ਮਰਹਿ ਬਿਖੁ ਖਾਇ ॥ नामहु भूले मरहि बिखु खाइ ॥ ईश्वर के नाम को भुलाने वाले पापों का जहर खा कर मर जाते हैं और
ਬ੍ਰਿਥਾ ਜਨਮੁ ਫਿਰਿ ਆਵਹਿ ਜਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ब्रिथा जनमु फिरि आवहि जाइ ॥१॥ रहाउ ॥ अपना जन्म व्यर्थ गंवाकर पुनः आते जाते हैं।॥१॥रहाउ॥
ਬਹੁ ਭੇਖ ਕਰਹਿ ਮਨਿ ਸਾਂਤਿ ਨ ਹੋਇ ॥ बहु भेख करहि मनि सांति न होइ ॥ बहुत वेष धारण करने से मन को शान्ति प्राप्त नहीं होती और
ਬਹੁ ਅਭਿਮਾਨਿ ਅਪਣੀ ਪਤਿ ਖੋਇ ॥ बहु अभिमानि अपणी पति खोइ ॥ बहुत अभिमान करने वाला अपनी प्रतिष्ठा खो देता है।
ਸੇ ਵਡਭਾਗੀ ਜਿਨ ਸਬਦੁ ਪਛਾਣਿਆ ॥ से वडभागी जिन सबदु पछाणिआ ॥ वही भाग्यशाली है, जिसने शब्द के रहस्य को पहचान लिया है और
ਬਾਹਰਿ ਜਾਦਾ ਘਰ ਮਹਿ ਆਣਿਆ ॥੨॥ बाहरि जादा घर महि आणिआ ॥२॥ उसका बाहर जा रहा मन सच्चे घर में आ जाता है।॥२॥
ਘਰ ਮਹਿ ਵਸਤੁ ਅਗਮ ਅਪਾਰਾ ॥ घर महि वसतु अगम अपारा ॥ हृदय घर में ही अगम्य अपार नाम रूपी वस्तु विद्यमान है और
ਗੁਰਮਤਿ ਖੋਜਹਿ ਸਬਦਿ ਬੀਚਾਰਾ ॥ गुरमति खोजहि सबदि बीचारा ॥ गुरु उपदेशानुसार शब्द के चिंतन से इसे खोजा जा सकता है।
ਨਾਮੁ ਨਵ ਨਿਧਿ ਪਾਈ ਘਰ ਹੀ ਮਾਹਿ ॥ नामु नव निधि पाई घर ही माहि ॥ जिसे हृदय घर में नाम रूप नवनिधि प्राप्त हो जाती है,
ਸਦਾ ਰੰਗਿ ਰਾਤੇ ਸਚਿ ਸਮਾਹਿ ॥੩॥ सदा रंगि राते सचि समाहि ॥३॥ वह सदा नाम रंग में लीन रहकर सत्य में समा जाता है।॥३॥
ਆਪਿ ਕਰੇ ਕਿਛੁ ਕਰਣੁ ਨ ਜਾਇ ॥ आपि करे किछु करणु न जाइ ॥ मनुष्य से तो कुछ नहीं हो सकता, ईश्वर ही सब करता है।
ਆਪੇ ਭਾਵੈ ਲਏ ਮਿਲਾਇ ॥ आपे भावै लए मिलाइ ॥ वह स्वेच्छा से स्वयं ही मिला लेता है।
ਤਿਸ ਤੇ ਨੇੜੈ ਨਾਹੀ ਕੋ ਦੂਰਿ ॥ तिस ते नेड़ै नाही को दूरि ॥ हे नानक ! कोई भी जीव उससे निकट व दूर नहीं है,
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰਿ ॥੪॥੧੧॥ नानक नामि रहिआ भरपूरि ॥४॥११॥ क्योंकि परमात्मा सृष्टि के कण-कण में व्याप्त है॥ ४॥ ११॥
ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥ बसंतु महला ३ ॥ बसंतु महला ३॥
ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਹਰਿ ਚੇਤਿ ਸੁਭਾਇ ॥ गुर सबदी हरि चेति सुभाइ ॥ जो गुरु के उपदेश द्वारा स्वाभाविक ही निरंकार का चिंतन करता है,
ਰਾਮ ਨਾਮ ਰਸਿ ਰਹੈ ਅਘਾਇ ॥ राम नाम रसि रहै अघाइ ॥ राम नाम के भजन में ही तृप्त रहता है।
ਕੋਟ ਕੋਟੰਤਰ ਕੇ ਪਾਪ ਜਲਿ ਜਾਹਿ ॥ कोट कोटंतर के पाप जलि जाहि ॥ उसके करोड़ों ही पाप जल जाते हैं और
ਜੀਵਤ ਮਰਹਿ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਹਿ ॥੧॥ जीवत मरहि हरि नामि समाहि ॥१॥ सांसारिक कार्य करता हुआ मोह-माया से निर्लिप्त रहकर वह प्रभु के नाम में ही समा जाता है।॥१॥
ਹਰਿ ਕੀ ਦਾਤਿ ਹਰਿ ਜੀਉ ਜਾਣੈ ॥ हरि की दाति हरि जीउ जाणै ॥ अपनी बख्शिशों को ईश्वर स्वयं ही जानता है।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਇਹੁ ਮਨੁ ਮਉਲਿਆ ਹਰਿ ਗੁਣਦਾਤਾ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुर कै सबदि इहु मनु मउलिआ हरि गुणदाता नामु वखाणै ॥१॥ रहाउ ॥ गुरु के उपदेश द्वारा यह मन खिलकर गुणों के दाता प्रभु के नाम की ही चर्चा करता है॥१॥रहाउ॥
ਭਗਵੈ ਵੇਸਿ ਭ੍ਰਮਿ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਇ ॥ भगवै वेसि भ्रमि मुकति न होइ ॥ भगवा वेश धारण कर भ्रमण करने से भी मुक्ति नहीं होती और
ਬਹੁ ਸੰਜਮਿ ਸਾਂਤਿ ਨ ਪਾਵੈ ਕੋਇ ॥ बहु संजमि सांति न पावै कोइ ॥ बहुत संयम करने से भी किसी को शान्ति प्राप्त नहीं होती।
ਗੁਰਮਤਿ ਨਾਮੁ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥ गुरमति नामु परापति होइ ॥ गुरु की शिक्षा से ही नाम प्राप्त होता है और
ਵਡਭਾਗੀ ਹਰਿ ਪਾਵੈ ਸੋਇ ॥੨॥ वडभागी हरि पावै सोइ ॥२॥ भाग्यशाली ही भगवान को पाता है॥२॥
ਕਲਿ ਮਹਿ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਵਡਿਆਈ ॥ कलि महि राम नामि वडिआई ॥ कलियुग में राम नाम की ही कीर्ति है,


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