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ਗੁਣ ਤੇ ਗੁਣ ਮਿਲਿ ਪਾਈਐ ਜੇ ਸਤਿਗੁਰ ਮਾਹਿ ਸਮਾਇ ॥
अगर सतगुरु में लीन हुआ जाए तो उस गुणवान् से मिलकर गुण प्राप्त हो जाते हैं।
ਮੋੁਲਿ ਅਮੋੁਲੁ ਨ ਪਾਈਐ ਵਣਜਿ ਨ ਲੀਜੈ ਹਾਟਿ ॥
अमूल्य गुण तो किसी भी मूल्य पर नहीं मिलते और न ही किसी दुकान से खरीद कर मिलते हैं।
ਨਾਨਕ ਪੂਰਾ ਤੋਲੁ ਹੈ ਕਬਹੁ ਨ ਹੋਵੈ ਘਾਟਿ ॥੧॥
हे नानक ! गुणों का तौल सदा पूरा है और वह कभी भी कम नहीं होता अर्थात् किसी को गुण देने से कभी कम नहीं होते॥ १॥
ਮਃ ੪ ॥
महला ४॥
ਨਾਮ ਵਿਹੂਣੇ ਭਰਮਸਹਿ ਆਵਹਿ ਜਾਵਹਿ ਨੀਤ ॥
नामविहीन भटकते रहते हैं और सदा आवागमन में पड़े रहते हैं।
ਇਕਿ ਬਾਂਧੇ ਇਕਿ ਢੀਲਿਆ ਇਕਿ ਸੁਖੀਏ ਹਰਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥
कोई बन्धनों में फंसा है, किसी के बन्धन खुल गए हैं और कुछ लोग परमात्मा से प्रेम लगाकर सुखी हैं।
ਨਾਨਕ ਸਚਾ ਮੰਨਿ ਲੈ ਸਚੁ ਕਰਣੀ ਸਚੁ ਰੀਤਿ ॥੨॥
हे नानक ! परमात्मा का मनन कर लो, क्योंकि यही सत्कर्म एवं सच्ची जीवन रीति है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी॥
ਗੁਰ ਤੇ ਗਿਆਨੁ ਪਾਇਆ ਅਤਿ ਖੜਗੁ ਕਰਾਰਾ ॥
गुरु से ज्ञान रूपी अति शक्तिशाली खड्ग पाया है,
ਦੂਜਾ ਭ੍ਰਮੁ ਗੜੁ ਕਟਿਆ ਮੋਹੁ ਲੋਭੁ ਅਹੰਕਾਰਾ ॥
जिससे लोभ, मोह, अहंकार एवं द्वैतभाव रूपी किला काट दिया है।
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰਾ ॥
शब्द गुरु का चिंतन करने से परमात्मा का नाम मन में बस गया है।
ਸਚ ਸੰਜਮਿ ਮਤਿ ਊਤਮਾ ਹਰਿ ਲਗਾ ਪਿਆਰਾ ॥
सत्य, संयम एवं उत्तम बुद्धि के कारण अब परमात्मा ही प्यारा लगा है।
ਸਭੁ ਸਚੋ ਸਚੁ ਵਰਤਦਾ ਸਚੁ ਸਿਰਜਣਹਾਰਾ ॥੧॥
परमेश्वर ही सृजनहार है और सब में वह परम-सत्य ही व्याप्त है॥ १॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੩ ॥
श्लोक महला ३॥
ਕੇਦਾਰਾ ਰਾਗਾ ਵਿਚਿ ਜਾਣੀਐ ਭਾਈ ਸਬਦੇ ਕਰੇ ਪਿਆਰੁ ॥
रागों में केदारा राग तभी उत्तम माना जाता है, यदि इस द्वारा प्राणी ब्रह्म शब्द से प्रेम करे।
ਸਤਸੰਗਤਿ ਸਿਉ ਮਿਲਦੋ ਰਹੈ ਸਚੇ ਧਰੇ ਪਿਆਰੁ ॥
वह सत्संगति से मिला रहे और सच्चे प्रभु से प्रेम करे।
ਵਿਚਹੁ ਮਲੁ ਕਟੇ ਆਪਣੀ ਕੁਲਾ ਕਾ ਕਰੇ ਉਧਾਰੁ ॥
वह अपने मन में से अभिमान रूपी मैल को दूर कर दे और अपनी वंशावलि का उद्धार करे।
ਗੁਣਾ ਕੀ ਰਾਸਿ ਸੰਗ੍ਰਹੈ ਅਵਗਣ ਕਢੈ ਵਿਡਾਰਿ ॥
वह गुणों की राशि संचित करे और अपने अवगुणों को मार कर बाहर निकाल दे।
ਨਾਨਕ ਮਿਲਿਆ ਸੋ ਜਾਣੀਐ ਗੁਰੂ ਨ ਛੋਡੈ ਆਪਣਾ ਦੂਜੈ ਨ ਧਰੇ ਪਿਆਰੁ ॥੧॥
हे नानक ! गुरु से मिला वही समझा जाता है, जो अपने गुरु को नहीं छोड़ता और न ही किसी अन्य से प्रेम करता है॥ १॥
ਮਃ ੪ ॥
महला ४॥
ਸਾਗਰੁ ਦੇਖਉ ਡਰਿ ਮਰਉ ਭੈ ਤੇਰੈ ਡਰੁ ਨਾਹਿ ॥
हे ईश्वर ! संसार-सागर को देखकर तो मैं बहुत डर रहा हूँ, लेकिन तेरे भय के कारण इससे डर नहीं लगता।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਸੰਤੋਖੀਆ ਨਾਨਕ ਬਿਗਸਾ ਨਾਇ ॥੨॥
हे नानक ! गुरु के शब्द से मन को संतोष मिला है और प्रभु नाम से मन खिला रहता है।॥ २॥
ਮਃ ੪ ॥
महला ४॥
ਚੜਿ ਬੋਹਿਥੈ ਚਾਲਸਉ ਸਾਗਰੁ ਲਹਰੀ ਦੇਇ ॥
गुरु के नाम रूपी जहाज पर चढ़कर चल पड़ा हूँ, नि:संदेह सागर से लहरें उठ रही हैं।
ਠਾਕ ਨ ਸਚੈ ਬੋਹਿਥੈ ਜੇ ਗੁਰੁ ਧੀਰਕ ਦੇਇ ॥
यदि गुरु धीरज दे तो इस सच्चे जहाज के मार्ग में कोई विध्न नहीं आता।
ਤਿਤੁ ਦਰਿ ਜਾਇ ਉਤਾਰੀਆ ਗੁਰੁ ਦਿਸੈ ਸਾਵਧਾਨੁ ॥
जहाज का खेवट गुरु होशियार है, उसने मुझे प्रभु के द्वार पर जाकर उतार दिया है।
ਨਾਨਕ ਨਦਰੀ ਪਾਈਐ ਦਰਗਹ ਚਲੈ ਮਾਨੁ ॥੩॥
हे नानक ! परमात्मा की कृपा-दृष्टि से ही जीव दरगाह में जाकर सम्मान प्राप्त करता है॥ ३॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी॥
ਨਿਹਕੰਟਕ ਰਾਜੁ ਭੁੰਚਿ ਤੂ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਚੁ ਕਮਾਈ ॥
तू गुरु के सान्निध्य में सत्य की कमाई कर और इस तरह सुखदायक राज भोग।
ਸਚੈ ਤਖਤਿ ਬੈਠਾ ਨਿਆਉ ਕਰਿ ਸਤਸੰਗਤਿ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਈ ॥
प्रभु अपने सच्चे सिंहासन पर बैठा ही न्याय करता है और सत्संगति से मेल मिला लेता है।
ਸਚਾ ਉਪਦੇਸੁ ਹਰਿ ਜਾਪਣਾ ਹਰਿ ਸਿਉ ਬਣਿ ਆਈ ॥
जो व्यक्ति परमात्मा का सच्चा उपदेश जपता है, उसकी उससे प्रीति हो जाती है।
ਐਥੈ ਸੁਖਦਾਤਾ ਮਨਿ ਵਸੈ ਅੰਤਿ ਹੋਇ ਸਖਾਈ ॥
सुख देने वाला परमेश्वर इहलोक में भी उसके मन में बस जाता है और अन्तकाल सहायक होता है।
ਹਰਿ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਊਪਜੀ ਗੁਰਿ ਸੋਝੀ ਪਾਈ ॥੨॥
गुरु से ज्ञान पा कर मन में भगवान् से प्रीति उत्पन्न हो गई है॥ २॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥
श्लोक महला १॥
ਭੂਲੀ ਭੂਲੀ ਮੈ ਫਿਰੀ ਪਾਧਰੁ ਕਹੈ ਨ ਕੋਇ ॥
मैं इधर-उधर भटकता रहा परन्तु किसी ने भी रास्ता नहीं बताया।
ਪੂਛਹੁ ਜਾਇ ਸਿਆਣਿਆ ਦੁਖੁ ਕਾਟੈ ਮੇਰਾ ਕੋਇ ॥
विद्वानों से भी जाकर पूछा कि कोई मेरा दुख काट दे।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਾਚਾ ਮਨਿ ਵਸੈ ਸਾਜਨੁ ਉਤ ਹੀ ਠਾਇ ॥
यदि सच्चा सतगुरु मन में बस जाए तो उस स्थान पर ही सज्जन प्रभु निवसित हो जाए।
ਨਾਨਕ ਮਨੁ ਤ੍ਰਿਪਤਾਸੀਐ ਸਿਫਤੀ ਸਾਚੈ ਨਾਇ ॥੧॥
हे नानक ! ईश्वर के सच्चे नाम की स्तुति करने से मन तृप्त हो जाता है॥ १॥
ਮਃ ੩ ॥
महला ३॥
ਆਪੇ ਕਰਣੀ ਕਾਰ ਆਪਿ ਆਪੇ ਕਰੇ ਰਜਾਇ ॥
ईश्वर स्वयं ही कार्य करता है और अपनी इच्छा से ही सब करता है।
ਆਪੇ ਕਿਸ ਹੀ ਬਖਸਿ ਲਏ ਆਪੇ ਕਾਰ ਕਮਾਇ ॥
वह स्वयं ही किसी को क्षमा कर देता है और स्वयं ही कार्य को सफल कर देता है।
ਨਾਨਕ ਚਾਨਣੁ ਗੁਰ ਮਿਲੇ ਦੁਖ ਬਿਖੁ ਜਾਲੀ ਨਾਇ ॥੨॥
हे नानक ! यदि गुरु का ज्ञान रूपी आलोक मिल जाए तो नाम द्वारा विकारों के दुख को जलाया जा सकता है॥ २॥
ਪਉੜੀ
पउड़ी॥
ਮਾਇਆ ਵੇਖਿ ਨ ਭੁਲੁ ਤੂ ਮਨਮੁਖ ਮੂਰਖਾ ॥
हे मूर्ख मनमुखी ! धन-दौलत को देखकर मत भूल।
ਚਲਦਿਆ ਨਾਲਿ ਨ ਚਲਈ ਸਭੁ ਝੂਠੁ ਦਰਬੁ ਲਖਾ ॥
धन-दौलत, सब झूठ है, क्योंकेि जगत् में से चलते हुए यह साथ नहीं जाता।
ਅਗਿਆਨੀ ਅੰਧੁ ਨ ਬੂਝਈ ਸਿਰ ਊਪਰਿ ਜਮ ਖੜਗੁ ਕਲਖਾ ॥
अज्ञानी अन्धा जीव यह नहीं समझता कि यम की तलवार उसके सिर पर लटक रही है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਉਬਰੇ ਜਿਨ ਹਰਿ ਰਸੁ ਚਖਾ ॥
जिन्होंने हरि-नाम रूपी रस चखा है, गुरु की कृपा से वे उबर गए हैं।