Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1063

Page 1063

ਸਤਿਗੁਰਿ ਸੇਵਿਐ ਸਹਜ ਅਨੰਦਾ ॥ सतिगुरु की सेवा करने से सहज ही आनंद मिलता है और
ਹਿਰਦੈ ਆਇ ਵੁਠਾ ਗੋਵਿੰਦਾ ॥ हृदय में प्रभु आकर बस जाता है।
ਸਹਜੇ ਭਗਤਿ ਕਰੇ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਆਪੇ ਭਗਤਿ ਕਰਾਇਦਾ ॥੪॥ तब जीव सहज ही दिन-रात भक्ति करता रहता है और प्रभु स्वयं ही भक्ति करवाता है॥ ४॥
ਸਤਿਗੁਰ ਤੇ ਵਿਛੁੜੇ ਤਿਨੀ ਦੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥ जो सतिगुरु से बिछुड़ गए हैं, उन्होंने दुख ही पाया है।
ਅਨਦਿਨੁ ਮਾਰੀਅਹਿ ਦੁਖੁ ਸਬਾਇਆ ॥ उन्हें प्रतिदिन मार पड़ती है और सब दुख उन्हें घेर लेते हैं।
ਮਥੇ ਕਾਲੇ ਮਹਲੁ ਨ ਪਾਵਹਿ ਦੁਖ ਹੀ ਵਿਚਿ ਦੁਖੁ ਪਾਇਦਾ ॥੫॥ उनका तिरस्कार होता है, उन्हें सच्चा स्थान नहीं मिलता और ऐसे व्यक्ति दुखों में और दुखी होते हैं।॥ ५॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਹਿ ਸੇ ਵਡਭਾਗੀ ॥ सतगुरु की सेवा में तल्लीन रहने वाले भाग्यवान् हैं।
ਸਹਜ ਭਾਇ ਸਚੀ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ॥ सहज-स्वभाव पूर्ण निष्ठा से उनकी परमात्मा में लगन लगी रहती है।
ਸਚੋ ਸਚੁ ਕਮਾਵਹਿ ਸਦ ਹੀ ਸਚੈ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਇਦਾ ॥੬॥ वे सदा सत्य का आचरण अपनाते हैं और उन्हें परमात्मा से मिला देता है॥ ६॥
ਜਿਸ ਨੋ ਸਚਾ ਦੇਇ ਸੁ ਪਾਏ ॥ सच्चा प्रभु जिसे सच्चा-नाम देता है, वही इसे प्राप्त करता है।
ਅੰਤਰਿ ਸਾਚੁ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਏ ॥ जिसके मन में सत्य बस जाता है, उसका भ्रम दूर हो जाता है।
ਸਚੁ ਸਚੈ ਕਾ ਆਪੇ ਦਾਤਾ ਜਿਸੁ ਦੇਵੈ ਸੋ ਸਚੁ ਪਾਇਦਾ ॥੭॥ परमात्मा स्वयं ही सत्य-नाम का प्रदाता है, जिसे वह देता है, वही सत्य प्राप्त करता है॥ ७॥
ਆਪੇ ਕਰਤਾ ਸਭਨਾ ਕਾ ਸੋਈ ॥ वह कर्ता-प्रभु स्वयं ही सबका (स्वामी) है,"
ਜਿਸ ਨੋ ਆਪਿ ਬੁਝਾਏ ਬੂਝੈ ਕੋਈ ॥ जिसे वह स्वयं सूझ प्रदान करता है, ऐसा कोई विरला पुरुष ही तथ्य को बूझता है।
ਆਪੇ ਬਖਸੇ ਦੇ ਵਡਿਆਈ ਆਪੇ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਇਦਾ ॥੮॥ वह स्वयं ही कृपा करके बड़ाई प्रदान करता है और अपने साथ मिला लेता है॥ ८॥
ਹਉਮੈ ਕਰਦਿਆ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ॥ समूचा जीवन तो अभिमान करते हुए जीव ने गंवा लिया और
ਆਗੈ ਮੋਹੁ ਨ ਚੂਕੈ ਮਾਇਆ ॥ आगे भी उसका माया का मोह दूर नहीं होता।
ਅਗੈ ਜਮਕਾਲੁ ਲੇਖਾ ਲੇਵੈ ਜਿਉ ਤਿਲ ਘਾਣੀ ਪੀੜਾਇਦਾ ॥੯॥ आगे परलोक में जब यमराज किए कर्मों का हिसाब लेता है तो दण्ड के रूप में कोल्हू में यूं पीसता है जैसे तेली तिलों को पीसता है॥ ९॥
ਪੂਰੈ ਭਾਗਿ ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਹੋਈ ॥ पूर्ण भाग्य से ही गुरु की सेवा होती है।
ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਤਾ ਸੇਵੇ ਕੋਈ ॥ जब प्रभु अपनी कृपा करता है तब ही कोई सेवा करता है।
ਜਮਕਾਲੁ ਤਿਸੁ ਨੇੜਿ ਨ ਆਵੈ ਮਹਲਿ ਸਚੈ ਸੁਖੁ ਪਾਇਦਾ ॥੧੦॥ यमराज भी उसके निकट नहीं आता और वह सच्चे घर में सुख प्राप्त करता है॥ १०॥
ਤਿਨ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਜੋ ਤੁਧੁ ਭਾਏ ॥ हे निरंकार ! उन्होंने ही सुख पाया है, जो तुझे प्रिय हैं।
ਪੂਰੈ ਭਾਗਿ ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਲਾਏ ॥ पूर्ण भाग्य से ही तूने उनको गुरु की सेवा में लगाया है।
ਤੇਰੈ ਹਥਿ ਹੈ ਸਭ ਵਡਿਆਈ ਜਿਸੁ ਦੇਵਹਿ ਸੋ ਪਾਇਦਾ ॥੧੧॥ सब बड़ाई तेरे हाथ में है, जिसे तू देता है, वही इसे पाता है॥ ११॥
ਅੰਦਰਿ ਪਰਗਾਸੁ ਗੁਰੂ ਤੇ ਪਾਏ ॥ मन में ज्ञान का प्रकाश गुरु से ही प्राप्त होता है और
ਨਾਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ॥ वह मन में नाम पदार्थ बसा देता है।
ਗਿਆਨ ਰਤਨੁ ਸਦਾ ਘਟਿ ਚਾਨਣੁ ਅਗਿਆਨ ਅੰਧੇਰੁ ਗਵਾਇਦਾ ॥੧੨॥ ज्ञान-रत्न से हृदय में सदा प्रकाश होता है और अज्ञानता का अंधेरा मिट जाता है॥ १२॥
ਅਗਿਆਨੀ ਅੰਧੇ ਦੂਜੈ ਲਾਗੇ ॥ अज्ञानी अंधे द्वैतभाव में लिप्त रहते हैं,"
ਬਿਨੁ ਪਾਣੀ ਡੁਬਿ ਮੂਏ ਅਭਾਗੇ ॥ ऐसे अभागे तो पानी के बिना ही डूबकर मर जाते हैं।
ਚਲਦਿਆ ਘਰੁ ਦਰੁ ਨਦਰਿ ਨ ਆਵੈ ਜਮ ਦਰਿ ਬਾਧਾ ਦੁਖੁ ਪਾਇਦਾ ॥੧੩॥ जगत से चलते वक्त उन्हें अपना सच्चा घर द्वार नजर नहीं आता और वे यम के द्वार पर बंधे हुए दुख ही भोगते हैं।॥ १३॥
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵੇ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਈ ॥ सतिगुरु की सेवा किए बिना किसी को मुक्ति प्राप्त नहीं होती,"
ਗਿਆਨੀ ਧਿਆਨੀ ਪੂਛਹੁ ਕੋਈ ॥ चाहे इस संदर्भ में किसी ज्ञानी-ध्यानी से जाकर पूछ लो।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੇ ਤਿਸੁ ਮਿਲੈ ਵਡਿਆਈ ਦਰਿ ਸਚੈ ਸੋਭਾ ਪਾਇਦਾ ॥੧੪॥ जो सतिगुरु की सेवा करता है, उसे ही कीर्ति प्राप्त होती है और सच्चे दर पर शोभा का पात्र बनता है॥ १४॥
ਸਤਿਗੁਰ ਨੋ ਸੇਵੇ ਤਿਸੁ ਆਪਿ ਮਿਲਾਏ ॥ जो सतिगुरु की सेवा करता है, ईश्वर स्वयं ही उसे मिला लेता है।
ਮਮਤਾ ਕਾਟਿ ਸਚਿ ਲਿਵ ਲਾਏ ॥ ऐसा व्यक्ति ममता को नाश करके सत्य में ही लगन लगाता है।
ਸਦਾ ਸਚੁ ਵਣਜਹਿ ਵਾਪਾਰੀ ਨਾਮੋ ਲਾਹਾ ਪਾਇਦਾ ॥੧੫॥ वह व्यापारी सदा सत्य का व्यापार करता रहता है और नाम रूपी लाभ हासिल करता है॥ १५॥
ਆਪੇ ਕਰੇ ਕਰਾਏ ਕਰਤਾ ॥ कर्ता-प्रभु स्वयं ही करता और करवाता है।
ਸਬਦਿ ਮਰੈ ਸੋਈ ਜਨੁ ਮੁਕਤਾ ॥ जो शब्द द्वारा मोह-माया की ओर से मर जाता है, वही मुक्त होता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਵਸੈ ਮਨ ਅੰਤਰਿ ਨਾਮੋ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਦਾ ॥੧੬॥੫॥੧੯॥ हे नानक ! जिसके मन में परमात्मा का नाम बस जाता है, वह नाम द्वारा नाम का ही मनन करता रहता है।॥१६॥५॥१९॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੩ ॥ मारू महला ३॥
ਜੋ ਤੁਧੁ ਕਰਣਾ ਸੋ ਕਰਿ ਪਾਇਆ ॥ जो तूने करना है, वही भाग्य में पाया है।
ਭਾਣੇ ਵਿਚਿ ਕੋ ਵਿਰਲਾ ਆਇਆ ॥ हे ईश्वर ! कोई विरला पुरुष ही तेरी रज़ा में चला है।
ਭਾਣਾ ਮੰਨੇ ਸੋ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ਭਾਣੇ ਵਿਚਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਦਾ ॥੧॥ जो तेरी रज़ा को मानता है, वही सुख पाता है। सत्य तो यही है कि प्रभु-रज़ा में ही सुख मिलता है॥ १॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਤੇਰਾ ਭਾਣਾ ਭਾਵੈ ॥ गुरुमुख को तेरी रज़ा ही भाती है।
ਸਹਜੇ ਹੀ ਸੁਖੁ ਸਚੁ ਕਮਾਵੈ ॥ वह सच्चा आचरण अपनाकर सुख ही सुख पाता है।
ਭਾਣੇ ਨੋ ਲੋਚੈ ਬਹੁਤੇਰੀ ਆਪਣਾ ਭਾਣਾ ਆਪਿ ਮਨਾਇਦਾ ॥੨॥ बहुत सारे जिज्ञासु तेरी रज़ा को मानना चाहते हैं परन्तु तू स्वयं ही अपनी रज़ा मनवाता है॥ २॥
ਤੇਰਾ ਭਾਣਾ ਮੰਨੇ ਸੁ ਮਿਲੈ ਤੁਧੁ ਆਏ ॥ जो तेरी रज़ा को सहर्ष मानते हैं, वे तुझ में ही आकर मिल जाते हैं।


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