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ਹੁਕਮੇ ਸਾਜੇ ਹੁਕਮੇ ਢਾਹੇ ਹੁਕਮੇ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਇਦਾ ॥੫॥
तू हुक्म से ही बनाता एवं तबाह कर देता है और हुक्म से ही मिला लेता है।
ਹੁਕਮੈ ਬੂਝੈ ਸੁ ਹੁਕਮੁ ਸਲਾਹੇ ॥ ਅਗਮ ਅਗੋਚਰ ਵੇਪਰਵਾਹੇ ॥
जो तेरे हुक्म को समझ लेता है, वह तेरे हुक्म की प्रशंसा करता रहता है, तू अपहुँच, मन वाणी से परे और बे-परवाह है।
ਜੇਹੀ ਮਤਿ ਦੇਹਿ ਸੋ ਹੋਵੈ ਤੂ ਆਪੇ ਸਬਦਿ ਬੁਝਾਇਦਾ ॥੬॥
तू जीव को जैसी मत देता है, वह वैसा ही हो जाता है और तू शब्द का रहस्य समझा देता है॥ ६॥
ਅਨਦਿਨੁ ਆਰਜਾ ਛਿਜਦੀ ਜਾਏ ॥ ਰੈਣਿ ਦਿਨਸੁ ਦੁਇ ਸਾਖੀ ਆਏ ॥
प्रतिदिन जीव की आयु घटती जाती है और दिन-रात ही इस बात के साक्षी हैं।
ਮਨਮੁਖੁ ਅੰਧੁ ਨ ਚੇਤੈ ਮੂੜਾ ਸਿਰ ਊਪਰਿ ਕਾਲੁ ਰੂਆਇਦਾ ॥੭॥
यम सिर पर खड़ा उसे रुलाता है किन्तु अन्धा मनमुखी जीव मूर्खता के कारण उसे याद ही नहीं करता॥ ७॥
ਮਨੁ ਤਨੁ ਸੀਤਲੁ ਗੁਰ ਚਰਣੀ ਲਾਗਾ ॥
जो गुरु के चरणों में लग गया है, उसका मन-तन शीतल हो गया है।
ਅੰਤਰਿ ਭਰਮੁ ਗਇਆ ਭਉ ਭਾਗਾ ॥
उसके मन से भ्रम दूर हो गया है और मृत्यु का भय भाग गया है।
ਸਦਾ ਅਨੰਦੁ ਸਚੇ ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ਸਚੁ ਬਾਣੀ ਬੋਲਾਇਦਾ ॥੮॥
वह सदा आनंदपूर्वक भगवान् के गुण गाता है और प्रभु स्वयं ही उससे सच्ची वाणी बुलवाता है॥ ८॥
ਜਿਨਿ ਤੂ ਜਾਤਾ ਕਰਮ ਬਿਧਾਤਾ ॥
हे कर्मविधाता ! जिसने तुझे जान लिया है,"
ਪੂਰੈ ਭਾਗਿ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਪਛਾਤਾ ॥
उसने पूर्ण भाग्य से शब्द-गुरु द्वारा पहचान लिया है।
ਜਤਿ ਪਤਿ ਸਚੁ ਸਚਾ ਸਚੁ ਸੋਈ ਹਉਮੈ ਮਾਰਿ ਮਿਲਾਇਦਾ ॥੯॥
यह सच्चा प्रभु ही उसकी जाति-पांति एवं सत्य है और यह सत्यस्वरूप उसके अभिमान को मिटाकर मिला लेता है॥ ६॥
ਮਨੁ ਕਠੋਰੁ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਲਾਗਾ ॥
जिसका मन कठोर है, वह द्वैतभाव में ही लीन रहता है।
ਭਰਮੇ ਭੂਲਾ ਫਿਰੈ ਅਭਾਗਾ ॥
ऐसा दुर्भाग्यशाली जीव भ्रम में ही भटकता रहता है।
ਕਰਮੁ ਹੋਵੈ ਤਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੇ ਸਹਜੇ ਹੀ ਸੁਖੁ ਪਾਇਦਾ ॥੧੦॥
यदि उस पर प्रभु-कृपा हो जाए तो वह सतिगुरु की सेवा करता है और सहज ही सुख प्राप्त करता है॥ १०॥
ਲਖ ਚਉਰਾਸੀਹ ਆਪਿ ਉਪਾਏ ॥
प्रभु ने स्वयं ही चौरासी लाख योनियों वाले जीव उत्पन्न किए हैं और
ਮਾਨਸ ਜਨਮਿ ਗੁਰ ਭਗਤਿ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ॥
मानव-जन्म में ही गुरु भक्ति करवाता है।
ਬਿਨੁ ਭਗਤੀ ਬਿਸਟਾ ਵਿਚਿ ਵਾਸਾ ਬਿਸਟਾ ਵਿਚਿ ਫਿਰਿ ਪਾਇਦਾ ॥੧੧॥
भक्ति के बिना जीव विष्ठा में टिका रहता है और पुनः पुनः विष्ठा में ही पड़ता है॥ ११॥
ਕਰਮੁ ਹੋਵੈ ਗੁਰੁ ਭਗਤਿ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ॥
यदि प्रभु-कृपा हो तो वह गुरु भक्ति करवाता है।
ਵਿਣੁ ਕਰਮਾ ਕਿਉ ਪਾਇਆ ਜਾਏ ॥
भाग्य के बिना उसे कैसे पाया जा सकता है।
ਆਪੇ ਕਰੇ ਕਰਾਏ ਕਰਤਾ ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਵੈ ਚਲਾਇਦਾ ॥੧੨॥
सत्य तो यही है कि ईश्वर स्वयं ही सब करता-करवाता है और जैसे उसे उपयुक्त लगता है, वैसे ही जीव को चलाता है॥ १२॥
ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਸਾਸਤ ਅੰਤੁ ਨ ਜਾਣੈ ॥
स्मृतियाँ एवं शास्त्र भी भगवान् का रहस्य नहीं जानते।
ਮੂਰਖੁ ਅੰਧਾ ਤਤੁ ਨ ਪਛਾਣੈ ॥
मूर्ख एवं अन्धा मनुष्य परम तत्व को नहीं पहचानता।
ਆਪੇ ਕਰੇ ਕਰਾਏ ਕਰਤਾ ਆਪੇ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਇਦਾ ॥੧੩॥
करने करवाने वाला स्वयं ईश्वर ही है और स्वयं ही जीव को भ्रम में भटकाता रहता है॥१३॥
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਆਪੇ ਆਪਿ ਕਰਾਏ ॥
वह अपने आप ही सब कुछ जीवों से करवाता है और
ਆਪੇ ਸਿਰਿ ਸਿਰਿ ਧੰਧੈ ਲਾਏ ॥
स्वयं ही उन्हें संसार के धंधों में लगाता है।
ਆਪੇ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪੇ ਵੇਖੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਪਿ ਬੁਝਾਇਦਾ ॥੧੪॥
वह स्वयं ही बनाता-बिगाड़ता, देखता रहता है और गुरुमुख को इस तथ्य का ज्ञान बता देता है॥ १४॥
ਸਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰਾ ॥
वह सच्चा मालिक गहन-गम्भीर है,"
ਸਦਾ ਸਲਾਹੀ ਤਾ ਮਨੁ ਧੀਰਾ ॥
सदैव उसका स्तुतिगान करने से ही मन को शान्ति प्राप्त होती है।
ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਕੀਮਤਿ ਨਹੀ ਪਾਈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮੰਨਿ ਵਸਾਇਦਾ ॥੧੫॥
उस अगम्य, अगोचर की कीमत को किसी ने नहीं जाना और गुरु के सान्निध्य में ही उसे मन में बसाया जाता है॥ १५॥
ਆਪਿ ਨਿਰਾਲਮੁ ਹੋਰ ਧੰਧੈ ਲੋਈ ॥
सारी दुनिया धंधों में लगी रहती है किन्तु वह स्वयं अलिप्त है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਬੂਝੈ ਕੋਈ ॥
गुरु की कृपा से कोई विरला ही सत्य को बूझता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਵਸੈ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਗੁਰਮਤੀ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਇਦਾ ॥੧੬॥੩॥੧੭॥
हे नानक ! जब परमात्मा का नाम हृदय में बस जाता है तो वह गुरु-मतानुसार अपने साथ मिला लेता है॥ १६॥ ३॥ १७॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੩ ॥
मारू महला ३॥
ਜੁਗ ਛਤੀਹ ਕੀਓ ਗੁਬਾਰਾ ॥
छत्तीस युगों तक घोर अंधकार किया हुआ था,"
ਤੂ ਆਪੇ ਜਾਣਹਿ ਸਿਰਜਣਹਾਰਾ ॥
हे सृजनहार ! तू स्वयं ही इस रहस्य को जानता है।
ਹੋਰ ਕਿਆ ਕੋ ਕਹੈ ਕਿ ਆਖਿ ਵਖਾਣੈ ਤੂ ਆਪੇ ਕੀਮਤਿ ਪਾਇਦਾ ॥੧॥
अन्य कोई इस बारे में क्या बता सकता है और क्या कहकर बयान करे, तुझे स्वयं इसका महत्व पता है॥ १॥
ਓਅੰਕਾਰਿ ਸਭ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਉਪਾਈ ॥
ऑकार ने समूची सृष्टि उत्पन्न की।
ਸਭੁ ਖੇਲੁ ਤਮਾਸਾ ਤੇਰੀ ਵਡਿਆਈ ॥
यह समूचा खेल-तमाशा हे परमेश्वर ! तेरी ही कीर्ति है।
ਆਪੇ ਵੇਕ ਕਰੇ ਸਭਿ ਸਾਚਾ ਆਪੇ ਭੰਨਿ ਘੜਾਇਦਾ ॥੨॥
हे परम-सत्य ! तूं स्वयं सवको अलग-अलग करता और स्वयं ही तोड़ता-बनाता है॥ २॥
ਬਾਜੀਗਰਿ ਇਕ ਬਾਜੀ ਪਾਈ ॥
बाजीगर परमेश्वर ने एक लीला रची है,"
ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਤੇ ਨਦਰੀ ਆਈ ॥
जिस मनुष्य को पूर्ण गुरु से यह लीला नजर आ गई है,"
ਸਦਾ ਅਲਿਪਤੁ ਰਹੈ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਸਾਚੇ ਸਿਉ ਚਿਤੁ ਲਾਇਦਾ ॥੩॥
वह सदैव निर्लिप्त रहता है और गुरु के उपदेश द्वारा सत्य में ही मन लगाता है। ३॥
ਬਾਜਹਿ ਬਾਜੇ ਧੁਨਿ ਆਕਾਰਾ ॥
मानव-शरीर में भिन्न-भिन्न ध्वनियों वाले बाजे बज रहे हैं और
ਆਪਿ ਵਜਾਏ ਵਜਾਵਣਹਾਰਾ ॥
बजाने वाला प्रभु स्वयं ही बजा रहा है।
ਘਟਿ ਘਟਿ ਪਉਣੁ ਵਹੈ ਇਕ ਰੰਗੀ ਮਿਲਿ ਪਵਣੈ ਸਭ ਵਜਾਇਦਾ ॥੪॥
सब शरीरों में प्राण वायु चल रहा है और प्रभु प्राण वायु से मिलाकर यह सब बाजे बजा रहा है ॥४॥